Ajmer

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Ajmer district map

Ajmer (अजमेर) is a city in Ajmer District in India's Rajasthan state. It was associated with Jainism from the times of early Chauhans It was closely associated with the activities of monks of Kharataragachchha. [1] Its ancient name was Ajayameru (अजयमेरु).

Variants

  • Ajmer (अजमेर, राजस्थान) (AS,p.14)
  • Ajayameru (अजयमेरु)

Origin of name

  • Ajaipal is a name celebrated in the Chauhan chronicles, as the founder of the fortress of Ajmer, one of the earliest establishments of Chauhan power. Ajmer is commonly said to have been founded by Raja Aja, A.D. 145. It was founded by Ajayadeva Chauhan about A.D. 1100 (IA, xxv. 162 f.).[2]

Demography

Its population was approximately 500,000 in 2001. The city gives its name to a district, and also to a former province of British India called Ajmer-Merwara, which, after India's independence, it became the state of Ajmer. On November 1, 1956, it was merged into Rajasthan State.

It is situated in 26° 27, N. lat. and 74° 44, E. long., on the lower slopes of Taragarh hill, in the Aravalli Range. To the north of the city is a large artificial lake, called Anasagar, adorned with a marble structure called Baradari.

Important Institutions

  • Rajasthan Public Service Commission, Ajmer
  • Rajasthan Board of School Education
  • MDS Univerity, Ajmer.

The city is well laid out with wide streets and handsome houses. Ajmer is an important railway junction. The city is a trade center and has cotton mills and railroad shops. Manufactures include wool textiles, hosiery, shoes, soap, and pharmaceuticals.

Tahsils in Ajmer district

Villages in Ajmer Tahsil

Ajaysar, Ajmer (M Cl), Akhri, Amba Maseena, Aradka, Babayacha, Badlya, Baghpura, Balwanta, Banseli, Bargaon, Beer, Bhanwta, Bhawani Khera, Bhoodol, Boraj Kazipura, Bubani, Chachiyawas, Chandiyawas, Chawandiya, Chhatri, Danta, Daurai, Deo Nagar, Doomara, Doongariya Khurd, Gagwana, Ganahera, Gegal, Ghooghra, Godiyawas, Gudha, Gudha, Gudli, Guwardi, Hansiyawas, Hathi Khera, Hatoondi, Hokaran, Hoshiyara, Jatiya, Jatli, Kadel, Kaklana, Kanas, Kankarda Bhonabay, Kawalai, Kayampura, Kayar, Khajpura, Kharekhari, Khonda, Khori, Kiranipura (CT), Kishanpura Goyla, Lachchipura, Ladpura, Leela Seori, Leswa, Lohagal, Madarpura, Magra, Magri, Majhewla, Makarwali, Manpura, Miyapur, Muhami (Mohami), Naharpura, Nand, Nareli, Narwar Ajmer, Nedaliya, Nolkha, Oontra, Padampura, Palra, Pushkar (M), Ramner Dhani, Rampura Nand, Rasoolpura, Rewat, Saradhana, Sarana, Sedariya, Somalpur, Tabeeji, Tilora,

History

Ajmer Fort

Ajmer (Ajayameru in Sanskrit) was founded in the tenth century CE by Raja Ajay Pal Chauhan. He established the Chauhan dynasty which continued to rule the country while repeated waves of Muslim invasion swept across India. Ajmer was conquered by Muhammad of Ghor, founder of the Delhi Sultanate, in 1193. Its internal government, however, was handed over to the Chauhan rulers upon the payment of a heavy tribute to the conquerors. Ajmer then remained feudatory to Delhi until 1365, when it was captured by the ruler of Mewar. In 1509 Ajmer became a source of contention between the maharajas of Mewar and Marwar, and was ultimately conquered by the Marwar ruler in 1532. Ajmer was lost to the Mughal emperor Akbar in 1559. It continued to be in the hands of the Mughals, with occasional revolts, till 1770, when it was ceded to the Marathas. From that time up to 1818 Ajmer was the scene of an ongoing struggle, being seized at different times by the Mewar and the Marwar maharajas, from whom it was often retaken by the Marathas. In 1818 the Marathas sold Ajmer to the British for 50,000 rupees. Since then Ajmer has enjoyed unbroken peace and stable governance.

अजमेर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है ...स्थापना: राजा अजयदेव चौहान ने 1100 ई. में अजमेर की स्थापना की थी। सम्भव है, कि पुष्कर अथवा अनासागर झील के निकट होने से अजयदेव ने अपनी राजधानी का नाम अजयमेर (मेर या मीर—झील, जैसे कश्यपमीर=काश्मीर) रखा हो। उन्होंने तारागढ़ की पहाड़ी पर एक क़िला गढ़-बिटली नाम से बनवाया था। जिसे कर्नल टाड ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ में राजपूताने की कुँजी कहा है। अजमेर में, 1153 में प्रथम चौहान-नरेश बीसलदेव ने एक मन्दिर बनवाया था, जिसे 1192 ई. में मुहम्मद ग़ोरी ने नष्ट करके उसके स्थान पर अढ़ाई दिन का झोंपड़ा नामक मस्जिद बनवाई थी। कुछ विद्वानों का मत है, कि इसका निर्माता कुतुबुद्दीन ऐबक था।

कहावत है, कि यह इमारत अढ़ाई दिन में बनकर तैयार हुई थी, किन्तु ऐतिहासिकों का मत है, कि इस नाम के पड़ने का कारण इस स्थान पर मराठा काल में होने वाला अढ़ाई दिन का मेला है। इस इमारत की क़ारीगरी विशेषकर पत्थर की नक़्क़ाशी प्रशंसनीय है। इससे पहले सोमनाथ जाते समय (1124 ई.) में महमूद ग़ज़नवी अजमेर होकर गया था। मुहम्मद ग़ौरी ने जब 1192 ई. में भारत पर आक्रमण किया, तो उस समय अजमेर पृथ्वीराज के राज्य का एक बड़ा नगर था। पृथ्वीराज की पराजय के पश्चात् दिल्ली पर मुसलमानों का अधिकार होने के साथ अजमेर पर भी उनका क़ब्ज़ा हो गया, और फिर दिल्ली के भाग्य के साथ-साथ अजमेर के भाग्य का भी निपटारा होता रहा। 1193 में दिल्ली के ग़ुलाम वंश ने इसे अपने अधिकार में ले लिया।

मुग़ल सम्राट अकबर को अजमेर से बहुत प्रेम था, क्योंकि उसे मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की यात्रा में बड़ी श्रृद्धा थी। एक बार वह आगरा से पैदल ही चलकर दरग़ाह की ज़ियारत को आया था। मुईनुद्दीन चिश्ती 12वीं शती ई. में ईरान से भारत आए थे। अकबर और जहाँगीर ने इस दरग़ाह के पास ही मस्जिदें बनवाई थीं। शाहजहाँ ने अजमेर को अपने अस्थायी निवास-स्थान के लिए चुना था। निकटवर्ती तारागढ़ की पहाड़ी पर भी उसने एक दुर्ग-प्रासाद का निर्माण करवाया था, जिसे विशप हेबर ने भारत का जिब्राल्टर कहा है। यह निश्चित है, कि राजपूतकाल में अजमेर को अपनी महत्त्वपूर्ण स्थिति के कारण राजस्थान का नाक़ा समझा जाता था।

अजमेर के पास ही अनासागर झील है, जिसकी सुन्दर पर्वतीय दृश्यावली से आकृष्ट होकर शाहजहाँ ने यहाँ पर संगमरमर के महल बनवाए थे। यह झील अजमेर-पुष्कर मार्ग पर है।

अजमेर में, चौहान राजाओं के समय में संस्कृत साहित्य की भी अच्छी प्रगति हुई थी। पृथ्वीराज के पितृव्य विग्रहराज चतुर्थ के समय के संस्कृत तथा प्राकृत में लिखित दो नाटक, ललित-विग्रहराज नाटक और हरकली नाटक छः काल संगमरमर के पटलों पर उत्कीर्ण प्राप्त हुए हैं। ये पत्थर अजमेर की मुख्य मस्जिद में लग हुए हैं। मूलरूप से ये किसी प्राचीन मन्दिर में जड़े गए होंगे।

अजमेर परिचय

अजमेर शहर, मध्य राजस्थान राज्य, पश्चिमोत्तर भारत में स्थित है। अजमेर तारागढ़ की पहाड़ी, जिसके शिखर पर क़िला है, निचली ढलानों पर यह शहर स्थित है। पर्वतीय क्षेत्र में बसा अजमेर अरावली पर्वतमाला का एक हिस्सा है, जिसके दक्षिण-पश्चिम में लूनी व पूर्वी हिस्से में बनास की सहायक नदियाँ बहती हैं। मुग़लों की बेगम और शहजादियाँ यहाँ अपना समय व्यतीत करती थी। इस क्षेत्र को इत्र के लिए प्रसिद्ध बनाने में उनका बहुत बड़ा हाथ था। कहा जाता है कि नुरजहाँ ने गुलाब के इत्र को ईजाद किया था। कुछ लोगों का मानना है यह इत्र नूरजहाँ की माँ ने ईजाद किया था। अजमेर में पान की खेती भी होती है। इसकी महक और स्वाद गुलाब जैसी होती है। [5]

1878 में अजमेर क्षेत्र को मुख्य आयुक्त के प्रान्त के अजमेर-मेरवाड़ रूप में गठित किया गया और दो अलग इलाक़ों में बाँट दिया गया। इनमें से बड़े में अजमेर और मेरवाड़ उपखण्ड थे तथा दक्षिण-पूर्व में छोटा केकरी उपखण्ड था। 1956 में यह राजस्थान राज्य का हिस्सा बन गया।[6]

इतिहास

ठाकुर देशराज[7] ने लिखा है ....अजमेर-मेरवाड़ा प्रांत 2 जिलों अजमेर और मेरवाड़ा से मिलकर बना है। अजयमेरु (न जीता जाने वाला पहाड़) से अजमेर शब्द बना है। अजमेर के पास पहाड़ पर तारागढ़ है जहां किसी समय चौहानों की पताका फहराती थी। इससे भी पहले बौद्ध धर्म के विरुद्ध यहां अशोक काल में एक महान सरोवर के पास ब्राह्मण धर्म का प्रचार करने के लिए ट्रेनिंग कैंप खोला था। यह क्षेत्र पुष्कर के नाम से प्रसिद्ध है। पुष्कर के चारों ओर जाट, गुर्जर आदि की आबादी है। मेर लोगों के नाम पर मेरवाड़ा पड़ा है। इस प्रकार इस प्रांत में जाट, गुर्जर और मेर लोग बहुत पुराने वाशिंदे हैं। यहां के प्राय सभी जाट नागवंशी हैं। जिनमें शेषमा नस्ल का पुराणों में भी वर्णन है।

यहां चौहानों के फैलने से पहले जाटों के कुल-राज्य (वंश राज्य) थे जो प्रजातंत्री तरीके से चलते थे। यहां के जाटों का मुख्य देवता तेजाजी है। भादों में तेजा दशमी का त्योहार बड़े उत्साह से मनाया जाता है।

वर्तमान समय में जागृति का आरंभ सन् 1925 से हुआ जबकि भरतपुर के तत्कालीन महाराज श्री किशन सिंह के सभापतित्व में यहां के जाटों का एक शानदार उत्सव हुआ। इसने यहां के जाटों की आंखें खोल दी। इस उत्सव को कराने का श्रेय मास्टर भजनलाल को जाता है।


[पृ.95]: इसके बाद यहां सन् 1931 से सन 1932 के आखिर तक ठाकुर देशराज ने जागृति का दीपक जलाया। उन्होंने गांव में जाकर मीटिंग की और सराधना में एक अच्छा जलसा सन 1932 में 28 जून 30 सितंबर को कराया। पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर सैकड़ों जाटों के यज्ञोपवित संस्कार कराए। उस समय तक इस समय के तरुण नेता प्राय सभी शिक्षा पा रहे थे। सुवालाल सेल, किशनलाल लामरोड, रामकरण परोरा विद्यार्थी जीवन में थे अतः ठाकुर देशराज को देहात के लोगों से भी सहयोग लेना पड़ता था।


ठाकुर देशराज[8] ने लिखा है ....ब्यावर में श्री किशन लाल जी वामी के साथियों में रामप्रसादजी रामगोपाल जी और कनीराम जी समाज सुधार के कामों में सदैव कोशिश करते रहे हैं। यही पर से चौधरी प्रताप मल्ल जी गोरा है। जो अच्छे व्यवसाई होने के कारण मशहूर है। सरकारी मुलाजमत करते हुए जितना भी बन पड़ा हृदय से कौम का काम करने वालों में दोनों छोगालाल जी साहब और हल लाल सिंह जेलर का नाम उल्लेखनीय है।

चौहान सम्राट

संत श्री कान्हाराम[9] ने लिखा है कि.... [पृष्ठ-76]: ईसा की दसवीं सदी में प्रतिहारों के कमजोर पड़ने पर प्राचीन क्षत्रिय नागवंश की चौहान शाखा शक्तिशाली बनकर उभरी। अहिच्छत्रपुर (नागौर) तथा शाकंभरी (सांभर) चौहनों के मुख्य स्थान थे। चौहनों ने 200 वर्ष तक अरबों, तुर्कों, गौरी, गजनवी को भारत में नहीं घुसने दिया।

चौहनों की ददरेवा (चुरू) शाखा के शासक जीवराज चौहान के पुत्र गोगा ने नवीं सदी के अंत में महमूद गजनवी की फौजों के छक्के छुड़ा दिये थे। गोगा का युद्ध कौशल देखकर महमूद गजनवी के मुंह से सहसा निकल पड़ा कि यह तो जाहरपीर (अचानक गायब और प्रकट होने वाला) है। महमूद गजनवी की फौजें समाप्त हुई और उसको उल्टे पैर लौटना पड़ा। दुर्भाग्यवश गोगा का बलिदान हो गया। गोगाजी के बलिदान दिवस भाद्रपद कृष्ण पक्ष की गोगा नवमी को भारत के घर-घर में लोकदेवता गोगाजी की पूजा की जाती है और गाँव-गाँव में मेले भरते हैं।


[पृष्ठ-77]: चौथी पाँचवीं शताब्दी के आस-पास अनंत गौचर (उत्तर पश्चिम राजस्थान, पंजाब, कश्मीर तक) में प्राचीन नागवंशी क्षत्रिय अनंतनाग का शासन था। इसी नागवंशी के वंशज चौहान कहलाए। अहिछत्रपुर (नागौर) इनकी राजधानी थी। आज जहां नागौर का किला है वहाँ इन्हीं नागों द्वारा सर्वप्रथम चौथी सदी में धूलकोट के रूप में दुर्ग का निर्माण किया गया था। इसका नाम रखा नागदुर्ग। नागदुर्ग ही बाद में अपभ्रंश होकर नागौर कहलाया।

551 ई. के आस-पास वासुदेव नाग यहाँ का शासक था। इस वंश का उदीयमान शासक सातवीं शताब्दी में नरदेव हुआ। यह नागवंशी शासक मूलतः शिव भक्त थे। आठवीं शताब्दी में ये चौहान कहलाए। नरदेव के बाद विग्रहराज द्वितीय ने 997 ई. में मुस्लिम आक्रमणकारी सुबुक्तगीन को को धूल चटाई। बाद में दुर्लभराज तृतीय उसके बाद विग्रहराज तृतीय तथा बाद में पृथ्वीराज प्रथम हुये। इन्हीं शासकों को चौहान जत्थे का नेतृत्व मिला। इस समय ये प्रतिहरों के सहायक थे। 738 ई. में इनहोने प्रतिहरों के साथ मिलकर राजस्थान की लड़ाई लड़ी थी।

नागदुर्ग के पुनः नव-निर्माण का श्री गणेश गोविन्दराज या गोविन्ददेव तृतीय के समय (1053 ई. ) अक्षय तृतीय को किया गया। गोविंद देव तृतीय के समय अरबों–तुर्कों द्वारा दखल देने के कारण चौहनों ने अपनी राजधानी अहिछत्रपुर से हटकर शाकंभरी (सांभर) को बनाया। बाद में और भी अधिक सुरक्षित स्थान अजमेर को अजमेर (अजयपाल) ने 1123 ई. में अपनी राजधानी बनाया। यह नगर नाग पहाड़ की पहाड़ियों के बीच बसाया था। एक काफी ऊंची पहाड़ी पर “अजमेर दुर्ग” का निर्माण करवाया था। अब यह दुर्ग “तारागढ़” के नाम से प्रसिद्ध है।

अजमेर से डिवेर के के बीच के पहाड़ी क्षेत्र में प्राचीन मेर जाति का मूल स्थान रहा है। यह मेरवाड़ा कहलाता था। अब यह अजमेर – मेरवाड़ा कहलाता है। अजयपाल ने अपने नाम अजय शब्द के साथ मेर जाति से मेर लेकर अजय+मेर = अजमेर रखा। अजमेर का नाम अजयमेरु से बना होने की बात मनगढ़ंत है। अजयपाल ने मुसलमानों से नागौर पुनः छीन लिया था। बाद में अपने पुत्र अर्नोराज (1133-1153 ई.) को शासन सौंप कर सन्यासी बन गए। अजयपाल बाबा के नाम से आज भी मूर्ति पुष्कर घाटी में स्थापित है। अरनौराज ने पुष्कर को लूटने वाले मुस्लिम आक्रमणकारियों को हराने के उपलक्ष में आना-सागर झील का निर्माण करवाया।


[पृष्ठ-78]: विग्रहराज चतुर्थ (बिसलदेव) (1153-1164 ई) इस वंश का अत्यंत पराक्रमी शासक हुआ। दिल्ली के लौह स्तम्भ पर लेख है कि उन्होने म्लेच्छों को भगाकर भारत भूमि को पुनः आर्यभूमि बनाया था। बीसलदेव ने बीसलपुर झील और सरस्वती कथंभरण संस्कृत पाठशाला का निर्माण करवाया जिसे बाद में मुस्लिम शासकों ने तोड़कर ढाई दिन का झौंपड़ा बना दिया। इनके स्तंभों पर आज भी संस्कृत श्लोक उत्कीर्ण हैं। जगदेव, पृथ्वीराज द्वितीय, सोमेश्वर चौहानों के अगले शासक हुये। सोमेश्वर का पुत्र पृथ्वीराज तृतीय (1176-1192 ई) ही पृथ्वीराज चौहान के नाम से विख्यात हुआ। यह अजमेर के साथ दिल्ली का भी शासक बना।

प्राचीन तेजाजी की देवरी पर सालाना मेला

  • अजमेर - ऊसरी गेट स्थित प्राचीन तेजाजी की देवरी पर सालाना मेले में भारी संख्या में लोग आते हैं। दाता नगर जटिया हिल्स स्थित तेजाजी महाराज का मेला भरता है। तोपदड़ा के मेघवंशी मोहल्ला में तेजाजी महाराज की शोभायात्रा निकलती है। रामनगर स्थित तेजा धाम पर तेजाजी का मेला भरता है। यहां मेला सुबह ध्वजारोहण के साथ शुरू होता है।

भाखर गोत्र के इतिहास में

भाखर गोत्र के प्रमुख निकास स्थल व थान[10]:

गढ़ आबू (निकास वि.सं 1260= 1203 ई.) → सांभर निकास → अजमेर निकास → सिद्धमुख निकास → ददरेवा निकास → तीबो डोडो थान (?) → भाखरोली थानलाडनू थानबलदु थानकीचक थानफोगड़ी थानखाखोली थानमोडावट थानफागल्वा थानरुल्याणा थान → बरड़वा थानरातगो थानआजड़ोली थानडकावा थानसुनथली थान (?) → घस्सू थानथोरासी थान

भाखर गोत्र के बसने और विस्थापन का क्रम[11]:

गढ़ आबू (वि.सं 1260= 1203 ई.) → सांभरभाखरोली (वि.सं 1263= 1206 ई.) → ददरेवा (वि.सं 1360= 1303 ई.) → बलदु (वि.सं 1420= 1363 ई.) → कीचक (वि.सं 1499= 1442 ई.) → मोडावट (वि.सं 1512= 1455 ई.) → फागल्वा (वि.सं 1670= 1613 ई.) → सिगड़ोला छोटा (वि.सं 1954= 1897 ई.) → रुल्याणा माली (वि.सं 1956= 1899 ई.)

Jat Gotras in Ajmer

Bana, Baradwal, Bud Chauhan, Chandelia, Chopra, Chotiya, Choyal, Chundiwal, Dhaka, Dhayal Dia, Gaina, Gawaria, Ghasal, Gora, Jhajhra, Jhinjha, Khangal, Lamba, Lohra, Mavaliya, Paroda, Punia, Ranwa, Relania, Sel, Sogaria, Tada, Thori, Vijayrania,

Notable persons

  • Dr C.B. Gaina - Professor and Ex. V.C. Bikaner University, Date of Birth : 1-June-1947, Address : 5,Chandra Nagar, Beawer Road, Ajmer, Rajasthan, Phone: 0145-2441033, Mob: 9414281357, Email: cbgena@gmail.com
  • Dr. Vivek Mavaliya (Mavaliya) - M.O. I/C Medical & Health, Date of Birth : 9-September-1983, Present Address : 21, Pragati Nagar, Kotara, Ajmer, Mob: 9414866225
  • Anil Choudhary (Sel) - JTO BSNL, Date of Birth : 26-January-1975, Home District - Ajmer, Present Address : Plot. No.237, Sect. 7Extn.,New Power House Road, Jodhpur, Rajasthan, Mob: 9413395414, Email: anilchoudhary1975@yahoo.in
  • Bhanu Pratap Chowdhary (Bijarnia) - Professor Texas A & M University, Permanent Address : 39, Adarsh Nagar, Ajmer, Email Address : bchowdhary@cvm.tamu.edu
  • Dilip Gena - Lecturer (Botany) College Education, Date of Birth : 5-September-1973, Address : 5, Chandra Nagar, Beawar road, Ajmer,PIN- 305003, Phone: 0145-2441033, Mob : 9414003233, Email: dilipgenaajmer@gmail.com
  • Dr. M. S. Choudhary (Kadwa) - M.S. (Ortho.) Choudhary Hospital, Ajmer , Date of Birth : 1-December-1959, Choudhary Hospital,Army Circular Road(Behind Roadways Bus Stand),Ajmer (Raj.) Phone: 0145-2624637, Mob: 9928353366, Email: choudharyhospital@hotmail.com
  • Satyendra Singh Choudhary (Kala) - Sr. Reporter Dainik Bhaskar TV, Date of Birth :1974, H.NO.-250/11,Kundan Nagar, Ajmer, Present Address : 30,Cooperative Colony,Behind Rathi Petrol Pump,Sodala, Jaipur, Phone Number : 9929866629, Mob: 9929866629

External links

Gallery

References

  1. Encyclopaedia of Jainism, Volume-1 By Indo-European Jain Research Foundation p.5506
  2. James Todd, Annals and Antiquities of Rajasthan, Volume I,: Chapter 7 Catalogue of the Thirty Six Royal Races,pp.114
  3. Sant Kanha Ram: Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. pp.76-78
  4. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.1415
  5. भारतकोश-अजमेर
  6. भारतकोश-अजमेर
  7. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.94-95
  8. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.112
  9. Sant Kanha Ram: Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. pp.76-78
  10. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.322
  11. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.323

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