Dhara Singh Sindhu

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लेखक:लक्ष्मण बुरड़क, IFS (R)

Dhara Singh Sindhu (born:1896) (मास्टर धारासिंह सिंधु), from ----, Meerut (मेरठ), Uttar Pradesh, was a social worker in Nagaur, Rajasthan.[1]

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....मास्टर धारा सिंह जी - [पृ.189]: आप सिंधु गोत्र के हैं और मेरठ जिले के निवासी हैं।


[पृ.190]: आपकी इस समय 50 साल की अवस्था है। आप एजुकेशन डिपार्टमेंट के एग्रीकल्चर के नामी मास्टरों में से हैं। आपने शुरू से ही मारवाड़ की जाति विद्या संस्थाओं को जोड़ने में रात दिन खूब भाग लिया। जहां कहीं पर भी आपका तबादला हुआ वही पर आपने जातीय है लड़कों को 4-5 को तो सुधार कर तैयार किया ही है। आप विचार के धनी हैं इसके लिए आप दीर्घायु हो।

जाट जागृति में योगदान

डॉ पेमाराम[3][4] ने लिखा है कि अक्टूबर 1925 में कार्तिक पूर्णिमा को अखिल भारतीय जाट महासभा का एक अधिवेसन पुष्कर में हुआ था उसमें मारवाड़ के जाटों में जाने वालों में चौधरी गुल्लाराम, चौधरी मूलचंद जी सियाग, मास्टर धारासिंह, चौधरी रामदान जी, भींया राम सिहाग आदि पधारे थे. इस जलसे की अध्यक्षता भरतपुर के तत्कालीन महाराजा श्री किशनसिंह जी ने की. इस समारोह में उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली के अलावा राजस्थान के हर कोने से जाट सम्मिलित हुए थे. इन सभी ने पुष्कर में अन्य जाटों को देखा तो अपनी दशा सुधारने का हौसला लेकर वापिस लौटे. उनका विचार बना की मारवाड़ में जाटों के पिछड़ने का कारण केवल शिक्षा का आभाव है.

जाट बोर्डिंग हाउस जोधपुर" की स्थापना: कुछ समय बाद चौधरी गुल्लारामजी के रातानाडा स्थित मकान पर चौधरी मूलचंद सिहाग नागौर, चौधरी भिंयारामजी सिहाग परबतसर, चौधरी गंगारामजी खिलेरी नागौर, बाबू दूधारामजी और मास्टर धारा सिंह की एक मीटिंग हुई. यह तय किया गया कि किसानों से विद्या प्रसार के लिए अनुरोध किया जाए. तदनुसार 2 मार्च 1927 को 70 जाट सज्जनों की एक बैठक श्री राधाकिसन जी मिर्धा की अध्यक्षता में हुई. इस बैठक में चौधरी गुल्लारामजी ने जाटों की उन्नति का मूलमंत्र दिया कि - "पढो और पढाओ" . साथ ही एक जाट संस्था खोलने के लिए धन की अपील की गयी. यह तय किया गया कि बच्चों को निजी स्कूल खोल कर उनमें भेजने के बजाय सरकारी स्कूलों में भेजा जाय पर उनके लिए ज्यादा से ज्यादा होस्टल खोले जावें. चौधरी गुल्लारामजी ने इस मीटिंग में अपना रातानाडा स्थित मकान एक वर्ष के लिए छात्रावास हेतु देने, बिजली, पानी, रसोइए का एक वर्ष का खर्च उठाने का वायदा किया. इस तरह 4 अप्रेल 1927 को चौधरी गुल्लारामजी के मकान में "जाट बोर्डिंग हाउस जोधपुर" की स्थापना की । [5] [6]

1930 तक जब जोधपुर के छात्रावास का काम ठीक ढंग से जम गया और जोधपुर सरकार से अनुदान मिलने लग गया तब चौधरी मूलचंद जी, बल्देवराम जी मिर्धा, भींया राम सियाग, गंगाराम जी खिलेरी, धारासिंह एवं अन्य स्थानिय लोगों के सहयोग से बकता सागर तालाब पर 21 अगस्त 1930 को नए छात्रावास की नींव नागौर में डाली । बाद में चौधरी रामदानजी के सहयोग से बाडमेर में व 1935 में चौधरी पूसरामजी पूलोता, डांगावास के महाराजजी कमेडिया, प्रभुजी घतेला, तथा बिर्धरामजी मेहरिया के सहयोग से मेड़ता में छात्रावास स्थापित किया गया. [7] [8] [9] [10]

गैलरी

बाहरी कड़ियाँ

संदर्भ

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.189-190
  2. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.189-190
  3. डॉ पेमाराम, मारवाड़ में किसान जागृति के कर्णधार जाट, राष्ट्रिय सेमिनार, "लाइफ एंड हिस्ट्री आफ जट्स" , दिल्ली 1998
  4. डॉ पेमाराम व डॉ विक्रमादित्य चौधरी: जाटों की गौरवगाथा, जोधपुर, 2004, पेज 105
  5. रिपोर्ट श्री जाट बोर्डिंग हाउस जोधपुर शुरू से 30 जून 1936 तक, पेज 2
  6. डॉ पेमाराम व डॉ विक्रमादित्य चौधरी: जाटों की गौरवगाथा, जोधपुर, 2004, पेज 106
  7. श्री बल्देवराम मिर्धा, पृ 30
  8. आचार्य गोपालप्रसाद कौशिक, चौधरी मूलचंद जी अभिनन्दन ग्रन्थ, 1976, पेज 149
  9. रिपोर्ट श्री जाट बोर्डिंग हाउस जोधपुर शुरू से 30 जून 1936 तक, पेज 3
  10. डॉ पेमाराम व डॉ विक्रमादित्य चौधरी: जाटों की गौरवगाथा, जोधपुर, 2004, पेज 107

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