Uttarakhand

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Map of Uttarakhand

Uttarakhand (उत्तराखण्ड) is a state located in the Northern region of India. Known for its natural beauty, it was carved out of Himalayan and adjoining districts of Uttar Pradesh on 9 November 2000, becoming the 27th state of the Republic of India.[1] It borders China Tibet on the north, Nepal on the east and the Indian states of Uttar Pradesh to the south, Haryana to the west and Himachal Pradesh to the north west.

Variants

Origin of name

The region is traditionally referred to as Uttarakhanda in Hindu scriptures and old literature, a term which derives from Sanskrit uttara (उत्तर) meaning north, and khaṇḍa (खण्ड) meaning country or part of a country. It has an area of 53,566 km².

History

In January 2007, the name of the state was officially changed from Uttaranchal, its interim name, to Uttarakhand. The provisional capital of Uttarakhand is Dehradun which is also a rail-head and the largest city in the region. The small hamlet of Gairsen has been mooted as the future capital owing to its geographic centrality but controversies and lack of resources have led Dehradun to remain provisional capital. The High Court of the state is in Nainital.

Uttarakhand is also well known as the birthplace of the Chipko movement, and a myriad other social movements including the mass agitation in the 1990 that led to its formation.

उत्तराखण्ड

विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ... उत्तराखण्ड (AS, p.93) उत्तर पश्चिमी उत्तरप्रदेश का पार्वतीय प्रदेश जिसमें बदरीनाथ और केदारनाथ का क्षेत्र सम्मिलित है। मुख्य रूप से गढ़वाल का उत्तरी भाग इस प्रदेश के अंतर्गत है।

उत्तराखण्ड का इतिहास

उत्तराखण्ड की भौगोलिक सीमाएँ पूर्व में पश्चिमी नेपाल, पश्चिम में यमुना की सहायक नदी टोंस, दक्षिण में तराई भावर के खटीमा टनकपुर तक तथा उत्तर में तिब्बत की सीमा तक विस्तृत हैं। पुरातात्त्विक दृष्‍टि से उत्तराखण्ड मानव सभ्यता के आदिकाल से अनवरत आबादित रहा। देहरादून जिले के कालसी से प्राप्त पाषाण उपकरण, अल्मोड़ा के लखुउड्यिारचमोली के किमनी एवं डूंगरी से प्राप्त चित्रित शैलाश्रय, पिथौरागढ़ के बनकोट व नैनी पाताल से प्राप्त ताम्र उपकरण एवं जिला चमोली के मलारी से प्राप्त वृहत्पाषाण कालीन स्वर्ण मुखौटा तथा लटकन आदि की प्राप्ति उत्तराखण्ड में मानव सभ्यता के क्रमिक विकास की पुष्टि करती है। साहित्यिक, मुद्राशास्त्रीय एवं अभिलेखीय स्रोत इस क्षेत्र में द्वितीय शताब्दी ई0पू0 से पांचवीं शताब्दी ई0 के मध्य यहाँ के सांस्कृतिक प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। चैथी शताब्दी ई0 में यह क्षेत्र कार्तिकेयपुर के नाम से जाना जाता था जिसका विवरण समुद्रगुप्त के इलाहाबाद प्रशस्ति अभिलेख में मिलता है।

अल्मोड़ा जिले के तालेश्वर से प्राप्त दो ताम्रपत्र अभिलेख मध्य हिमालय में छठी शताब्दी ई0 में बर्मन शासकों की सत्ता की पुष्टि करते हैं। उत्तराखण्ड ब्रह्मपुर के नाम से भी जाना जाता था, जिसका उल्लेख बराह-मिहर की बृहद-संहिता मे मिलता है। सातवीं सदी ई0 में चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरण में भी ब्रहमपुर का वर्णन मिलता है। 7वीं से 12वीं सदी ई0 में उत्तराखण्ड एवं पश्चिमी नेपाल कत्यूरी वंश के शासकों द्वारा शासित रहा। अभिलेखीय प्रमाणों से ज्ञात होता है कि सन् 1199 से 1223 ई0 के मध्य पश्चिमी नेपाल के मल्ल शासकों ने इस क्षेत्र को अपने अधीन किया।

मल्ल शासकों के प्रभाव के कारण कत्यूरी शासकों की सत्ता का हृास होने लगा। अभिलेखीय प्रमाण इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि कालान्तर में परवर्ती कत्यूरी शासक स्वतंत्र रूप से छोटे-छोटे राजवंशों के रूप में इस क्षेत्र में शासन करते रहे। धीरे-धीरे इन छोटे राजवंशों का प्रभाव भी घटने के साथ ही इस क्षेत्र में दो नये राजवंशो का प्रार्दुभाव हुआ इनमें गढ़वाल का पंवार तथा कुमाऊँ का चन्द्र वंश प्रमुख है। कालान्तर में सन् 1734 में रोहिला शासकों ने कुमाऊँ पर अधिकार कर राजधानी अल्मोड़ा को अपने नियन्त्रण में ले लिया लेकिन तत्कालीन परिस्थितियों के कारण रोहिला केवल छह माह तक ही अल्मोड़ा में अपना अधिकार रख पाये। सन् 1791 में नेपाल के गोरखा शासकों ने कुमाऊँ तथा सन् 1804 में गढ़वाल पर अपना अधिकार स्थापित किया। सन् 1815 में अंग्रेजों द्वारा गोरखा राजा को परास्त कर सम्पूर्ण उत्तराखण्ड को ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन कर लिया।

उक्त पुरातात्त्विक खोजों व उपलब्धियों से ज्ञात होता है कि इस क्षेत्र में प्रागैतिहासिक आद्य-एतिहासिक, महाश्म, ऐतिहासिक, परवर्ती ऐतिहासिक काल एवं मध्यकाल में सांस्कृतिक गतिविधियाँ अनवरत रूप से चलती रहीं, जो वर्तमान में भी जारी हैं।

संदर्भ: ASI Dehradun, Uttarakhand

उत्तराखण्ड परिचय

उत्तराखण्ड या उत्तराखंड भारत के उत्तर में स्थित एक राज्य है। 2000 और 2006 के बीच यह उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था, 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड भारत गणराज्य के 27 वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। राज्य का निर्माण कई वर्ष के आन्दोलन के पश्चात् हुआ।

इस प्रान्त में वैदिक संस्कृति के कुछ सबसे महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं। इस राज्य की राजधानी देहरादून है। उत्तराखण्ड अपनी भौगोलिक स्थिता, जलवायु, नैसर्गिक, प्राकृतिक दृश्यों एवं संसाधनों की प्रचुरता के कारण देश में प्रमुख स्थान रखता है। उत्तराखण्ड राज्य तीर्थ यात्रा और पर्यटन की दृष्टि से विशेष महत्त्व रखता है।

यहाँ चारों धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री हैं। इस चार धाम यात्रा मार्ग पर कई दर्शनीय स्थल हैं।

पंचप्रयाग के नाम से प्रसिद्ध पाँच अत्यन्त पवित्र संगम स्थल यहीं स्थित है। ये हैं- विष्णुप्रयाग, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग व देवप्रयाग। इसके अलावा सिक्खों के तीर्थस्थल के रूप में हेमकुण्ड साहिब भी विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है। यहाँ की अधिकांश झीलें कुमाऊँ क्षेत्र में हैं जो कि प्रमुखतः भूगर्भीय शक्तियों के द्वारा भूमि के धरातल में परिवर्तन हो जाने के परिणामस्वरूप निर्मित हुई हैं।

इतिहास: प्राचीन धर्मग्रंथों में उत्तराखंड का उल्लेख केदारखंड, मानसखंड और हिमवंत के रूप में मिलता है। लोककथा के अनुसार पांडव यहाँ पर आए थे और विश्व के सबसे बड़े महाकाव्यों महाभारतरामायण की रचना यहीं पर हुई थी। इस क्षेत्र विशेष के बारे में बहुत कुछ कहा जाता है, लेकिन प्राचीन काल में यहाँ मानव निवास के प्रमाण मिलने के बावजूद इस इलाक़े के इतिहास के बारे में बहुत कम जानकारी मिलती है।

भारत के इतिहास में इस क्षेत्र के बारे में सरसरी तौर पर कुछ जानकारी मिलती है। उदाहरण के लिए हिन्दू धर्म के पुनरुद्धारक आदि शंकराचार्य के द्वारा हिमालय में बद्रीनाथ मन्दिर की स्थापना का उल्लेख आता है। शंकराचार्य द्वारा स्थापित इस मन्दिर को हिन्दू चौथा और आख़िरी मठ मानते हैं।

यहाँ पर कुषाणों, कुनिंदों, कनिष्क, समुद्रगुप्त, पौरवों, कत्यूरियों, पालों, चंद्रों, पंवारों और ब्रिटिश शासकों ने शासन किया है। इसके पवित्र तीर्थस्थलों के कारण इसे देवताओं की धरती ‘देवभूमि’ कहा जाता है। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को निर्मल प्राकृतिक दृश्य प्रदान करते हैं। वर्तमान उत्तराखंड राज्य 'आगरा और अवध संयुक्त प्रांत' का हिस्सा था। यह प्रांत 1902 में बनाया गया। सन् 1935 में इसे 'संयुक्त प्रांत' कहा जाता था। जनवरी 1950 में 'संयुक्त प्रांत' का नाम 'उत्तर प्रदेश' हो गया। 9 नंवबर, 2000 तक भारत का 27वां राज्य बनने से पहले तक उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा बना रहा।

स्वातंत्र्योत्तर इतिहास: स्वातंत्र्योत्तर भारत में 1949 में इसका एक बार फिर उल्लेख मिलता है, जब टिहरी गढ़वाल और रामपुर के दो स्वायत्त राज्यों को संयुक्त प्रान्त में मिलाया गया। 1950 में नया संविधान अंगीकार किये जाने के साथ ही संयुक्त प्रान्त का नाम उत्तर प्रदेश रखा गया और यह नए भारतीय संघ का संविधान-सम्मत राज्य बन गया। उत्तर प्रदेश के गठन के फ़ौरन बाद ही इस क्षेत्र में गड़बड़ी शुरू हो गई। यह महसूस किया गया कि राज्य की बहुत विशाल जनसंख्या और भौगोलिक आयामों के कारण लखनऊ में बैठी सरकार के लिए उत्तराखण्ड के लोगों के हितों का ध्यान रखना असम्भव है। बेरोज़गारी, ग़रीबी, पेयजल और उपयुक्त आधारभूत ढांचे जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव और क्षेत्र का विकास न होने के कारण उत्तराखण्ड की जनता को आन्दोलन करना पड़ा। शुरुआत में आन्दोलन कुछ कमज़ोर रहा, लेकिन 1990 के दशक में यह ज़ोर पकड़ गया और 1994 के मुज़फ़्फ़रनगर में इसकी परिणति चरम पर पहुँची। उत्तराखण्ड की सीमा से 20 किमी दूर उत्तर प्रदेश राज्य के मुज़फ़्फ़नगर ज़िले में रामपुर तिराहे पर स्थित शहीद स्मारक उस आन्दोलन का मूक गवाह है, जहाँ 2 अक्टूबर, 1994 को लगभग 40 आन्दोलनकारी पुलिस की गोलियों के शिकार हुए थे।

लगभग एक दशक के दीर्घकालिक संघर्ष की पराकाष्ठा के रूप में पहाड़ी क्षेत्र के सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों की पहचान और बेहतर प्रशासन के लिए राजनीतिक स्वायत्तता हेतु उत्तरांचल राज्य का जन्म हुआ।

List of Jat gotras

Jats in Uttarakhand

Districts in Uttarakhand

There are 13 Districts in Uttarakhand which are grouped into two divisions. Kumaon Division and Garhwal Division

The Kumaon Division includes six districts.

The Garhwal Division includes seven districts.

Notable persons

Politics

Politics of Jats in Uttarakhand State

External Links

List of Monuments of National Importance in Uttarakhand

References


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