Kaurava

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Kaurava (कौरव) is gotra of Jats. They are considered descendants of Kuruvansh of Mahabharata. The King Agnidhra (अग्निध्र) had nine sons out of them Kuru was one.[1]

Origin

History

James Tod[2] writes that The Kaurava Tribe is singular tribe of Rajputs, whose habits, even in the midst of pillage, are entirely nomadic, is to be found chiefly in the thal of Dhat, though in no great numbers.1 They have no fixed habitations, but move about with their Hocks, and encamp wherever they find a spring or pasture for their cattle ; and there construct temporary huts of the wide-spreading pilu,1 by interlacing its living branches, covering the top with leaves, and coating the inside with clay : in so skilful a manner do they thus shelter themselves that no sign of human habitation is observable from without. Still the roaming Sahariya is always on the look-out for these sylvan retreats, in which the shepherds deposit their little hoards of grain, raised from the scanty patches around them. The restless disposition of the Kauravas, who even among their ever-roaming brethren enjoy a species of fame in this respect, is attributed (said my Dhati) to a curse entailed upon them from remote ages. They rear camels, cows, buffaloes, and goats, which they sell to the Charans and other merchants. They are altogether a singularly peaceable race ; and like all their Rajput brethren, can at will [320] people the desert with palaces of their own creation, by the delightful amal-pani, the universal panacea for ills both moral and physical.


James Tod[3] mentions Nur Ali, Pani-ka-Tar — Sixty houses of Charans, Sultana Rajputs and Kauravas (qu. the ancient Kauravas ?) water (pani-ka-tar) plenty in the thal. He also mentions place called Rual — Twelve hamlets termed bas, scattered round a tract of several coss, inhabited by different tribes, after whom they are named, as Sodha, Sahariya, Kaurava, Brahman, Bania and Sutar, as Sodha-ka-bas, Sahariya-ka-bas, or habitations of the Sodhas ; of the Sahariyas, etc. etc. (see p. 1263).

इंद्रप्रस्थ

विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है कि....इंद्रप्रस्थ वर्तमान नई दिल्ली के निकट पांडवों की बसाई हुई राजधानी थी. महाभारत आदि पर्व में वर्णित कथा के अनुसार प्रारंभ में धृतराष्ट्र से आधा राज्य प्राप्त करने के पश्चात पांडवों ने इंद्रप्रस्थ में अपनी राजधानी बनाई थी. दुर्योधन की राजधानी लगभग 45 मील दूर हस्तिनापुर में ही रही. इंद्रप्रस्थ नगर कोरवों की प्राचीन राजधानी खांडवप्रस्थ के स्थान पर बसाया गया था--

'तस्मातत्वं खांडवप्रस्थं पुरं राष्ट्रं च वर्धय, ब्राह्मणा: क्षत्रिया वैश्या: शूद्राश्च कृत निश्चया:। त्वदभ्क्त्या जंतग्श्चान्ये भजन्त्वेव पुरं शुभम्' महाभारत आदि पर्व 206

अर्थात धृतराष्ट्र ने पांडवों को आधा राज्य देते समय उन्हें कौरवों के प्राचीन नगर वह राष्ट्र खांडवप्रस्थ को विवर्धित करके चारों वर्णों के सहयोग से नई राजधानी बनाने का आदेश दिया. तब पांडवों ने श्री कृष्ण सहित खांडवप्रस्थ पहुंचकर इंद्र की सहायता से इंद्रप्रस्थ नामक नगर विश्वकर्मा द्वारा निर्मित करवाया--'विश्वकर्मन् महाप्राज्ञ अद्यप्रभृति तत् पुरम्, इंद्रप्रस्थमिति ख्यातं दिव्यं रम्य भविष्यति' महाभारत आदि पर्व 206.

इस नगर के चारों ओर समुद्र की भांति जल से पूर्ण खाइयाँ बनी हुई थी जो उस नगर की शोभा बढ़ाती थीं. श्वेत बादलों तथा चंद्रमा के समान उज्ज्वल परकोटा नगर के चारों ओर खींचा हुआ था. इसकी ऊंचाई आकाश को छूती मालूम होती थी--


[पृ.76]: इस नगर को सुंदर और रमणीक बनाने के साथ ही साथ इसकी सुरक्षा का भी पूरा प्रबंध किया गया था तीखे अंकुश और शतघ्नियों और अन्यान्य शास्त्रों से वह नगर सुशोभित था. सब प्रकार की शिल्प कलाओं को जानने वाले लोग भी वहां आकर बस गए थे. नगर के चारों ओर रमणीय उद्यान थे. मनोहर चित्रशालाओं तथा कृत्रिम पर्वतों से तथा जल से भरी-पूरी नदियों और रमणीय झीलों से वह नगर शोभित था.

युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ इंद्रप्रस्थ में ही किया था. महाभारत युद्ध के पश्चात इंद्रप्रस्थ और हस्तिनापुर दोनों ही नगरों पर युधिष्ठिर का शासन स्थापित हो गया. हस्तिनापुर के गंगा की बाढ़ से बह जाने के बाद 900 ई. पू. के लगभग जब पांडवों के वंशज कौशांबी चले गए तो इंद्रप्रस्थ का महत्व भी प्राय समाप्त हो गया. विदुर पंडित जातक में इंद्रप्रस्थ को केवल 7 क्रोश के अंदर घिरा हुआ बताया गया है जबकि बनारस का विस्तार 12 क्रोश तक था. धूमकारी जातक के अनुसार इंद्रप्रस्थ या कुरूप्रदेश में युधिष्ठिर-गोत्र के राजाओं का राज्य था. महाभारत, उद्योगपर्व में इंद्रप्रस्थ को शक्रपुरी भी कहा गया है. विष्णु पुराण में भी इंद्रप्रस्थ का उल्लेख है.

आजकल नई दिल्ली में जहाँ पांडवों का पुराना किला स्थित है उसी स्थान के परवर्ती प्रदेश में इंद्रप्रस्थ की स्थिति मानी गई है. पुराने किले के भीतर कई स्थानों का संबंध पांडवों से बताया जाता है. दिल्ली का सर्वप्रचीन भाग यही है. दिल्ली के निकट इंद्रपत नामक ग्राम अभी तक इंद्रप्रस्थ की स्मृति के अवशेष रूप में स्थित है.

Distribution

Reference


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