Khove Rao Maurya
Khove Rao Mauya (खोवे राव मौर्य) of Mewar was a great warrior who is originator of Khoye Maurya Jat clan [1] found in Uttar Pradesh in India. It is branch of Maurya.
Jat Gotra originated
- Khoye Maurya (खोये मौर्य)/Khove Maurya (खोवे मौर्य)/ Khovemaurya (खोवेमौर्य)[2] Khobey (खोबे)
History
Jats of this clan founded the city Vijaynagar in Uttar Pradesh, which became Bijnor. Raja Nainsingh was a famous ruler of this clan. This clan is also found in Marathas and Gujars but not found in Rajputs at all.
The chronology of Khove Maurya Jat rulers is as under:
खोबे मौर्य का इतिहास
दलीप सिंह अहलावत[3] के अनुसार मेवाड़ के खोबे राव मौर्य नामक व्यक्ति से एक पृथक् खोबे-मौर्य नाम पर शाखा प्रचलित हुई। चित्तौड़ राज्य का अन्त होने पर मौर्यों का एक दल खोबे राव मौर्य के नेतृत्व में वहां से चलकर हस्तिनापुर पहुंचा। वहां से गंगा नदी पार करके भारशिव (जाटवंश) शासक से विजयनगर गढ़ पर युद्ध किया। चार दिन के घोर युद्ध के बाद वहां के भारशिवों को जीत लिया। खोबे मौर्यों में से वैन मौर्य को विजयनगर का राजा बनाया गया। परन्तु बुखारे गांव के कलालों द्वारा राजा वैन तथा उसके परिवार को विषैली शराब पिलाकर धोखे से मार डाला। इस परिवार की केवल एक गर्भवती स्त्री बची जो कि अपने पिता के घर गई हुई थी। वहां पर ही उसने एक लड़के को जन्मा। इस खोबे वंश का पुरोहित पं० रामदेव भट्ट इस लड़के को लेकर अकबर के पास पहुंचा। स्वयं मुसलमान बनकर अकबर से अपने यजमान राजा वैन के एकमात्र वंशधर एकोराव राणा को विजयनगर दिलाने की अपील की। इस लड़के के जवान होने पर पं० रामदेव भट्ट और एकोराव राणा ने मुगल सेना सहित मुखारा के कलाल और विजयनगर के भरों को विदुरकुटी के समीप परास्त कर दिया। इस युद्ध में रांघड़, पठान, और एकोराव राणा के बीकानेर वासी वंशज भी साथ थे। इन सब ने इस विध्वस्त विजयनगर से पृथक् नगर विजयनगर बसाया जो कि आज बिजनौर नाम से प्रसिद्ध है। इसे ब्रिटिश सरकार ने बाद में जिला बना दिया।
विजयनगर में एकोराव राणा, राजा मान के नाम से प्रसिद्ध हुये। राजा मान के कई पुत्र हुए। इस वंश में नैनसिंह राजा सुप्रसिद्ध पुरुष हुए।
खोबे मौर्य का विस्तार - इस वंश के लोग, बिजनौर नगर के मध्य भाग में, पूरनपुर, तिमरपुर, आदमपुर बांकपुर, पमड़ावली, गन्दासपुर, कबाड़ीवाला आदि गांव अच्छी सम्पन्न स्थिति में हैं। यह यहां चौधरी के नाम पर प्रसिद्धि प्राप्त है। इनका मोहल्ला भी चौधरियान ही है।
इस मौर्य वंश की सत्ता केवल नागपुर प्रदेश के मराठों में ही है। राजपूतों में इस वंश की विद्यमानता नहीं है। गूजरों में इनकी थोड़ी सत्ता है।
नोट - इस मौर्य-मौर जाटवंश के मगध तथा सिन्ध राज्य को क्रमशः पुष्यमित्र एवं चच्च नामक दो ब्राह्मणों ने अपने स्वामी राजाओं को विश्वासघात करके मार दिया और उनके राज्यों पर अधिकार कर लिया। परन्तु इसके विपरीत पण्डित रामदेव भट्ट ने अपने स्वामी मौर्य जाट राजा के राज्य को वापिस दिलाकर स्वामीभक्ति का एक आदर्श उदाहरण भी प्रस्तुत किया। इतिहास के ऐसे उदाहरण कदाचित् (बिरले) ही हैं।
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....इस मौर्यवंश की एक शाखा खोबे मौर्य भी है। मेवाड़ के खोबेराव मौर्य वीर व्यक्ति के नाम पर यह एक पृथक् खोबे मौर्य नाम पर शाखा प्रचलित हुई। मौर्यवंश का चित्तौड़ राज्य मे अन्त होने पर इन मौर्यों के एक दल ने खोबेराव मौर्य के नेतृत्व में वहां से चलकर उ० प्र० में गंगा नदी के पार विजयनगर गढ़ को भारशिव जाटों से जीत लिया।[4]
References
- ↑ Dr Mahendra Singh Arya, etc: Ādhunik Jat Itihas, Agra 1998, p.235
- ↑ डॉ पेमाराम:राजस्थान के जाटों का इतिहास, 2010, पृ.298
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ-314
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter V (Page 483)
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