Mandothi

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Mandothi (मांडोठी) is a big village in Bahadurgarh tehsil of Jhajjar district of Haryana.

Location

The founders

History

Ram Swarup Joon[1] writes that....Dalal is a very small gotra as compared to the Mann and Sihag gotras of which it is a branch. There are 12 villages of Dalals including Chhara, Mandothi and Ashoda. People belonging to this gotra inhabit the Chiefs of Kuchesar in district Bulandshahr also belong to the same gotra in that area about 12 villages.


It is one of the twelve villages of Dalal gotra including Chhara and Asaudha. Dalal gotra Jats were the Chiefs of Kuchesar in district Bulandshahr.


Capt. Kanwal Singh, one of the prominent freedom fighters, hailed from this village. He held a high position in INA. He had travelled with Netaji Subhash Chander Bose in a German submarine from Germany to Japan, in 1944 (during the course of Second World War).

Events of 1857

दलीपसिंह अहलावत लिखते हैं -

.....उस समय रोहतक बंगाल के गवर्नर के मातहत था, तथा कमिश्नरी का हैड क्वार्टर आगरा था। रोहतक का डिप्टी कमिश्नर जोहन एडमलौक था। 23 मई को क्रान्तिकारी सेना ने बहादुरगढ़ में प्रवेश किया और 24 मई को रोहतक पहुंची। डिप्टी कमिश्नर गोहाना के रास्ते करनाल भाग गया। रहे हुए अंग्रेज अधिकारियों को मार दिया गया। जेल के दरवाजे खोल दिये गए, कचहरी को आग लगा दी गयी। क्रान्तिकारी सेना ने शहर के हिन्दुओं को लूटना चाहा परन्तु जाटों ने ऐसा न करने दिया। क्रान्तिकारियों ने खजाने से दो लाख रुपया निकाल लिया। मांडौठी, मदीना, महम की चौकियां लूट ली गईं। सांपला तहसील को आग लगा दी गई। सभी अंग्रेज स्त्रियों को जाटों ने, मुस्लिम राजपूत (रांघड़ों) के विरोध के बावजूद, सही सलामत उनके ठिकानों पर पहुंचा दिया। गोहाना पर गठवाला मलिक जाटों ने कब्जा जमा लिया। अंग्रेजी सेना 30 मई को अम्बाला से रोहतक को चली, परन्तु देशी सेना ने उसे श्यामड़ी (सामड़ी) के जंगल में युद्ध करके हरा दिया। [2]

अंग्रेजों से बचने को मांडोठी में भूमिगत रहे थे भगत सिंह

मांडोठी गांव को क्रान्तिकारियों का गढ़ यूं ही नहीं कहा जाता। खुद भगतसिंह भी एक बार आन्दोलन के दौरान अंग्रेजों से बचने के लिए इसी गांव में भूमिगत रहे हैं। यहाँ के क्रान्तिकारियों के किस्से आज भी लोगों के जेहन में हैं।

सरकार-प्रशासन के स्तर पर भले ही इन क्रान्तिकारियों को अपेक्षित सम्मान नहीं मिल पाया, मगर उनकी बहादुरी और देश की आजादी में उनके योगदान को जब भी याद किया जाता है तो रगों में देशभक्ति का जज्बा स्वतः ही दौड़ पड़ता है।

मांडोठी गाँव यूं तो कई मायनों में खास है, मगर आजादी आंदोलन के दौरान यहां का योगदान भुलाया नहीं जा सकता। इस गाँव के पंडित मांगेराम वत्स भी सरदार भगतसिंह के साथी हुआ करते थे। 14 साल की उम्र में वे आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे।

अंग्रेजी शासन से मुकाबले को तैयार होते थे हथियार - बताते हैं कि पंडित मांगेराम अपने समर्पण के कारण भगतसिंह और चन्द्रशेखर आजाद के साथी तो थे ही, मगर उनके छोटे से घर में हथियार भी तैयार किए जाते थे। कई क्रान्तिकारी छिपने के लिए यहां आते थे। एक बार खुद भगतसिंह भी आए थे। गांव के सुखबीर दलाल बताते हैं कि उस समय गांव के पास हवाई पट्टी होती थी। यहाँ पर अंग्रेजों का तहखाना होता था। क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार करने के बाद इस तहखाने में रखा जाता था। उन पर अत्याचार होता था। उसके खिलाफ भी मांगेराम ने ही आवाज उठाई थी। चंद्रशेखर आजाद के बलिदान के बाद अंग्रेज सरकार ने मांगेराम को लाहौर के किले में नजरबंद किया था। (जागरण सिटी झज्जर/बहादुरगढ - दिनांक 24 जून 2020)

Jat Gotras

Population

According to 2001 census, the population of Mandothi was 10660 (Male: 5823, Female: 4837)[3]

Notable persons

External Links

Mandothi in News

References


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