Jat Itihas (Utpatti Aur Gaurav Khand)/Ashtam Parichhed: Difference between revisions
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अपने विषय पर आने से पहले हम इन शासन तंत्रों की परिभाषा भी कर देना चाहते हैं। '''साम्राज्य''' उस हुकूमत को कहते हैं जो विभिन्न जातियों और देशों पर किसी एक जाति अथवा व्यक्ति द्वारा संचालित होती हो। इस तरह की हुकूमत में दो-तीन बड़े दोष हैं। (1) इसमें शासक जाति के हित के लिए शासित जातियों का शोषण किया जाता है। शासित जातियों का सामाजिक मान भी शासक जाति के अपेक्षा हीन होता है। (2) शासक और शासित जातियों में परस्परिक | अपने विषय पर आने से पहले हम इन शासन तंत्रों की परिभाषा भी कर देना चाहते हैं। | ||
'''साम्राज्य''' उस हुकूमत को कहते हैं जो विभिन्न जातियों और देशों पर किसी एक जाति अथवा व्यक्ति द्वारा संचालित होती हो। इस तरह की हुकूमत में दो-तीन बड़े दोष हैं। (1) इसमें शासक जाति के हित के लिए शासित जातियों का शोषण किया जाता है। शासित जातियों का सामाजिक मान भी शासक जाति के अपेक्षा हीन होता है। (2) शासक और शासित जातियों में परस्परिक | |||
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[पृ.135]: विश्वास की कमी होती है। अतः आंतरिक विद्रोह की संभावना स्वभावत: बनी रहती है। (3) इस तरह से ऐसा शासन स्वभावत: अधिक खर्चीला होता है। क्योंकि आंतरिक कलह और बाहरी आक्रमण की आशंका से ऐसी हुकूमत को गुप्तचर और सेना विभाग पर बड़ा भारी खर्च करना पड़ता है। | [पृ.135]: विश्वास की कमी होती है। अतः आंतरिक विद्रोह की संभावना स्वभावत: बनी रहती है। (3) इस तरह से ऐसा शासन स्वभावत: अधिक खर्चीला होता है। क्योंकि आंतरिक कलह और बाहरी आक्रमण की आशंका से ऐसी हुकूमत को गुप्तचर और सेना विभाग पर बड़ा भारी खर्च करना पड़ता है। | ||
'''भोज्य''' - उस हुकूमत को कहते हैं, जिसमें भूमि-कर में खाद्य पदार्थ लेने का नियम हो। राजपूताना, पंजाब और मालवा की शासक जातियों में यही प्रणाली चालू थी। ऐसी हुकूमत की प्रजा तो आनंद से रहती है बशर्ते कि राज का भूमि पर केवल उपज का कुछ अंश लेने के सिवा कोई स्वत्व ना हो। किंतु साम्राज्यवादी लोलुप समूह से रक्षा करने में ऐसे राज्यों को कठिनाई पड़ती है। कारण कि इनके पास रिज़र्व फोर्स यानी सुरक्षित सेना तो नाम मात्र को होती है। कुंतल,कौंतेय, अवनतिक और परिहार, परमार लोगों में यह प्रथा बहुत दिन तक चालू रही थी। इस तरह का राष्ट्र विशुद्ध [[जाति राष्ट्र]] होता है। विभिन्न जातियों और खयालातों के लोगों के मिश्रण से भोज-शासन पद्धति का चलना कठिन होता है। | |||
'''स्वराज्य''' - अपने हित के लिए जो हुकूमत अपने ही द्वारा संचालित होती है उसे स्वराज्य कहते हैं। साम्राज्य के विरोध में [[जाति राज्य]] का ही प्रिय नाम स्वराज्य रखा गया जान पड़ता है। | |||
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आठवां परिच्छेद
शासन प्रणाली
शासन प्रणाली
[पृ.134]: भारतवर्ष वह देश है जिसने एक समय संसार में इतना ऊंचा दर्जा प्राप्त कर लिया था कि दूसरे देश उसे अपना गुरु मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं करते थे। राजनीति में भी उसने सर्वोपरि उन्नति की थी। यहां के जन समुदाय ने अनेक प्रकार के शासन तंत्र चलाए थे। ऐतरेय ब्राह्मण में इन शासन तंत्रों के नाम इस प्रकार गिनाए हैं:-
- "साम्राज्यं, भोज्यं, स्वराज्यं, वैराज्यं, पार्मेष्टियं,
- महाराज्यं, आधिपत्य मयं, समन्तपर्यायीस्यात,
- सार्वभौम: सार्वायुष अंतादा, परार्धात्
- पृथिव्यै समुद्र पर्यनताया राडसि" (8.15)
अपने विषय पर आने से पहले हम इन शासन तंत्रों की परिभाषा भी कर देना चाहते हैं।
साम्राज्य उस हुकूमत को कहते हैं जो विभिन्न जातियों और देशों पर किसी एक जाति अथवा व्यक्ति द्वारा संचालित होती हो। इस तरह की हुकूमत में दो-तीन बड़े दोष हैं। (1) इसमें शासक जाति के हित के लिए शासित जातियों का शोषण किया जाता है। शासित जातियों का सामाजिक मान भी शासक जाति के अपेक्षा हीन होता है। (2) शासक और शासित जातियों में परस्परिक
[पृ.135]: विश्वास की कमी होती है। अतः आंतरिक विद्रोह की संभावना स्वभावत: बनी रहती है। (3) इस तरह से ऐसा शासन स्वभावत: अधिक खर्चीला होता है। क्योंकि आंतरिक कलह और बाहरी आक्रमण की आशंका से ऐसी हुकूमत को गुप्तचर और सेना विभाग पर बड़ा भारी खर्च करना पड़ता है।
भोज्य - उस हुकूमत को कहते हैं, जिसमें भूमि-कर में खाद्य पदार्थ लेने का नियम हो। राजपूताना, पंजाब और मालवा की शासक जातियों में यही प्रणाली चालू थी। ऐसी हुकूमत की प्रजा तो आनंद से रहती है बशर्ते कि राज का भूमि पर केवल उपज का कुछ अंश लेने के सिवा कोई स्वत्व ना हो। किंतु साम्राज्यवादी लोलुप समूह से रक्षा करने में ऐसे राज्यों को कठिनाई पड़ती है। कारण कि इनके पास रिज़र्व फोर्स यानी सुरक्षित सेना तो नाम मात्र को होती है। कुंतल,कौंतेय, अवनतिक और परिहार, परमार लोगों में यह प्रथा बहुत दिन तक चालू रही थी। इस तरह का राष्ट्र विशुद्ध जाति राष्ट्र होता है। विभिन्न जातियों और खयालातों के लोगों के मिश्रण से भोज-शासन पद्धति का चलना कठिन होता है।
स्वराज्य - अपने हित के लिए जो हुकूमत अपने ही द्वारा संचालित होती है उसे स्वराज्य कहते हैं। साम्राज्य के विरोध में जाति राज्य का ही प्रिय नाम स्वराज्य रखा गया जान पड़ता है।