Shatashranga: Difference between revisions
Line 13: | Line 13: | ||
== History == | == History == | ||
== शतश्रृंग पर्वत == | == शतश्रृंग पर्वत == | ||
[[Vijayendra Kumar Mathur|विजयेन्द्र कुमार माथुर]]<ref>[[Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur]], p.888</ref> ने लेख किया है ...'''[[Shatashringa|शतश्रृंग]]''' ([[AS]], p.888) [[Himalaya|हिमालय]] के उत्तर में स्थित पर्वत है, जहाँ [[महाभारत]] के अनुसार [[Pandu|महाराज पांडु]] अपनी रानियों [[Madri|माद्री]] और [[Kunti|कुंती]] के साथ जाकर रहने लगे थे। यहीं पर पांचो पांडवों की देवताओं के आह्वन द्वारा उत्पत्ति हुई थी। शतश्रंग तक पहुंचने में महाराज पांडु को [[Chaitrarathavana|चैत्ररथ]] (कुबेर का वन जो [[Alaka Nagari|अलका]] के निकट था) [[Kalakuta|कालकूट]] और हिमालय को पार करने के बाद [[Gandhamadana|गंधमादन]], [[Indradyumna|इंदुद्युम्न सर]] तथा [[Hansakuta|हंसकूट]] के उत्तर में जाना पड़ा [p.889]: था- 'स चैत्ररथमासाद्य कालकूटमतीत्य च हिमंवन्तमतिक्रम्य प्रययौ गंधमादनम्। रक्ष्याभाणो महाभूतैः सिद्धैश्च परमर्षिभिः उवास स महाराज समेषु विषमेषु च। इंद्रद्युम्नसर: प्राप्य हंसकूट मतीत्यच, शतश्रृंगे महाराज तापस: समतप्यत’।-- महाभारत, आदिपर्व 118,48.49-50 | [[Vijayendra Kumar Mathur|विजयेन्द्र कुमार माथुर]]<ref>[[Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur]], p.888-889</ref> ने लेख किया है ...'''[[Shatashringa|शतश्रृंग]]''' ([[AS]], p.888) [[Himalaya|हिमालय]] के उत्तर में स्थित पर्वत है, जहाँ [[महाभारत]] के अनुसार [[Pandu|महाराज पांडु]] अपनी रानियों [[Madri|माद्री]] और [[Kunti|कुंती]] के साथ जाकर रहने लगे थे। यहीं पर पांचो पांडवों की देवताओं के आह्वन द्वारा उत्पत्ति हुई थी। शतश्रंग तक पहुंचने में महाराज पांडु को [[Chaitrarathavana|चैत्ररथ]] (कुबेर का वन जो [[Alaka Nagari|अलका]] के निकट था) [[Kalakuta|कालकूट]] और हिमालय को पार करने के बाद [[Gandhamadana|गंधमादन]], [[Indradyumna|इंदुद्युम्न सर]] तथा [[Hansakuta|हंसकूट]] के उत्तर में जाना पड़ा [p.889]: था- 'स चैत्ररथमासाद्य कालकूटमतीत्य च हिमंवन्तमतिक्रम्य प्रययौ गंधमादनम्। रक्ष्याभाणो महाभूतैः सिद्धैश्च परमर्षिभिः उवास स महाराज समेषु विषमेषु च। इंद्रद्युम्नसर: प्राप्य हंसकूट मतीत्यच, शतश्रृंगे महाराज तापस: समतप्यत’।-- महाभारत, आदिपर्व 118,48.49-50 | ||
शतश्रृंग निवासियों को पांडु के पांचों पुत्रों से बड़ा प्रेम था - ‘मुदं परमिकां लेभे ननन्द च नराधिपः ऋषाणामपि सर्वेषां शतश्रंगनिवासिनाम्’।आदिपर्व 122,124 | शतश्रृंग निवासियों को पांडु के पांचों पुत्रों से बड़ा प्रेम था - ‘मुदं परमिकां लेभे ननन्द च नराधिपः ऋषाणामपि सर्वेषां शतश्रंगनिवासिनाम्’।आदिपर्व 122,124 |
Latest revision as of 12:18, 15 July 2020
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Shatashringa (शतशृंग) is a mountain mentioned in Mahabharata.
Origin
Variants
Shatashringa (शतशृंग) (AS, p.888)
Jat clans
Sikharwan - This gotra is said to have originated from the people who lived around Shatashranga (शतश्रंग). [1]
History
शतश्रृंग पर्वत
विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...शतश्रृंग (AS, p.888) हिमालय के उत्तर में स्थित पर्वत है, जहाँ महाभारत के अनुसार महाराज पांडु अपनी रानियों माद्री और कुंती के साथ जाकर रहने लगे थे। यहीं पर पांचो पांडवों की देवताओं के आह्वन द्वारा उत्पत्ति हुई थी। शतश्रंग तक पहुंचने में महाराज पांडु को चैत्ररथ (कुबेर का वन जो अलका के निकट था) कालकूट और हिमालय को पार करने के बाद गंधमादन, इंदुद्युम्न सर तथा हंसकूट के उत्तर में जाना पड़ा [p.889]: था- 'स चैत्ररथमासाद्य कालकूटमतीत्य च हिमंवन्तमतिक्रम्य प्रययौ गंधमादनम्। रक्ष्याभाणो महाभूतैः सिद्धैश्च परमर्षिभिः उवास स महाराज समेषु विषमेषु च। इंद्रद्युम्नसर: प्राप्य हंसकूट मतीत्यच, शतश्रृंगे महाराज तापस: समतप्यत’।-- महाभारत, आदिपर्व 118,48.49-50
शतश्रृंग निवासियों को पांडु के पांचों पुत्रों से बड़ा प्रेम था - ‘मुदं परमिकां लेभे ननन्द च नराधिपः ऋषाणामपि सर्वेषां शतश्रंगनिवासिनाम्’।आदिपर्व 122,124
यहीं किसी असंयम के कारण और किसी ऋषि के शाप के कारण पांडु की मृत्यु हुई थी और उनका अंतिम संस्कार शतश्रंग निवासियों को ही करना पड़ा था- ‘अर्हतस्तस्य कृत्यानि शतश्रृंरंगनिवासिनः, तापसा विधियवच्चक्रुश्चारणाऋषिभिः सह’-- (महाभारत आदिपर्व 124,31 से आगे दाक्षिणात्य पाठ). प्रसंगानुसार यह पर्वत हिमालय की उत्तरी शृंखला में स्थित जान पड़ता है। यहां से हस्तिनापुर तक के मार्ग को महाभारत में बहुत लम्बा बताया है -‘प्रपन्ना दीर्घपध्बानं संक्षिप्तं तदमन्यत’। आदिपर्व 125,8
External links
References
- ↑ Mahendra Singh Arya et al: Adhunik Jat Itihas, p. 282
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.888-889