Jhunjhunu Jat Mahotsav 1932

From Jatland Wiki
Author:Laxman Burdak, IFS (Retd.)

Jhunjhunu Jat Mahotsav 1932 was organized in Jhunjhunu to awaken the farmers of Rajasthan specially Jats. It was chaired by Richhpal Singh Fogat of Dhamera Kirat village in Bulandshahr (Uttar Pradesh). The farmers from all parts of Rajasthan had come to attend it. This led to a mass movement in Rajasthan against the Jagirdars and the British Government resulting in abolition of Jagirs.

झुंझुनूं जाट सम्मलेन 1932

नोट - यह सेक्शन राजेन्द्र कसवा की पुस्तक मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, जयपुर, फोन: 0141 -2317611, संस्करण: 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 109-117 से साभार लिया गया है.

जब राष्ट्रीय स्तर पर गांधीजी डांडी यात्रा कर रहे थे और नमक का कानून तोड़ने के अभियान चला रहे थे तो पन्ने सिंह ने शेखावाटी में जन आन्दोलन की हलचलें शुरू की. पन्ने सिंह उस समय शेखावाटी में तेजी से उभर रहे थे. उनमें संगठन निर्माण की अद्भुत क्षमता थी. रींगस के मूल चन्द अग्रवाल ने पिलानी में खादी भण्डार खोल दिया जिसे पन्ने सिंह ही संभाल रहे थे. खादी उत्पादन केंद्र देवरोड़ में खोला गया . कताई-बुनाई का कार्य शुरू किया गया. ठाकुर देशराज झुंझुनू आये औए पन्ने सिंह सहित अन्य किसान नेताओं से मिले. झुंझुनूं में विशाल पैमाने पर सम्मलेन करने के लिए गाँव-गाँव भजनोपदेशक पहुँचने लगे.

सन 1931 में ही मंडावा में आर्य समाज का वार्षिक सम्मलेन हुआ. ठिकानेदारों ने भय का वातावरण बनाया किन्तु हजारों स्त्री-पुरुषों ने सम्मलेन में भाग लिया. सभी ने आग्रह किया कि झुंझुनू में होने वाले सम्मलेन में भाग लें. ठाकुर देशराज के नेतृत्व में झम्मन सिंह वकील, भोला सिंह, हुकुम सिंह तथा स्थानीय भजनोपदेशकों की टोलियाँ शेखावाटी अंचल के सैंकड़ों गाँवों में घूमी और झुंझुनू सम्मलेन को सफल बनाने की अपील की.

जन जागरण के गीतों के माध्यम से गाँव-गाँव को जागरुक किया. घासी राम और हरलाल सिंह पडौसी रियासत बीकानेर के गाँवों में प्रचार करने लगे. राजगढ़ तहसील के जीवन राम जैतपुरा साथ थे जो देर रात तक गाँवों में भजनों के माध्यम से कार्यक्रम करते.

झुंझुनू सम्मलेन, बसंत पंचमी गुरुवार, 11 फ़रवरी 1932 को होना तय हुआ जो तीन दिन चला. स्वागत-समिति के अध्यक्ष पन्ने सिंह को बनाया गया. उनके पुत्र सत्यदेव सिंह के अनुसार महासम्मेलन के आयोजन के लिए बिड़ला परिवार की और से भरपूर आर्थिक सहयोग मिला. मुख्य अतिथि का स्वागत करने के लिए बिड़ला परिवार ने एक सुसज्जित हाथी उपलब्ध कराया. यह समाचार सुना तो ठिकानेदार क्रोधित हो गए. उन्होंने कटाक्ष किया - तो क्या जाट अब हाथियों पर चढ़ेंगे? यह सामंतों के रौब-दौब को खुली चुनोती थी. जागीरदारों ने सरे आम घोषणा की, 'हाथी को झुंझुनू नहीं पहुँचने दिया जायेगा.'

पिलानी के कच्चे मार्ग से हाथी झुंझुनू पहुँचाना था. रस्ते में पड़ने वाले गाँवों ने हाथी की सुरक्षा का भर लिया. इस क्रम में गाँव खेड़ला, नरहड़ , लाम्बा गोठड़ा, अलीपुर, बगड़ आदि गाँवों के लोग मुस्तैद रहे. हाथी दो दिन में सुरक्षित झुंझुनू पहुँच गया. ठिकाने दारों की हिम्मत नहीं हुई की कि रोकें.

सम्मलेन के लिए वर्तमान सेठ मोती लाल कालेज और रानीसती मंदिर के मैदान में विशाल तम्बू लगाये गए थे. एक नया गाँव बस गया था. सम्मलेन का कार्यालय सभा स्थल के निकट, मुख्य सड़क पर 'टेकडी वाली हवेली' में रखा था. आम लोगों के लिए सम्मलेन स्थल पर अनेक भोजनालय बनाये गए थे. झुंझुनू शहर के दुर्गादास काइयां , रंगलाल गाड़िया, बजरंग लाल वर्मा आदि ने खूब दौड़-भाग की. बगड़, चिड़ावा आदि शहरों से भरपूर सहयोग मिला. पूरा झुंझुनू शहर महासम्मेलन का स्वयं ही आयोजक बन गया था. स्वयं सेवकों की पूरी फ़ौज तीन दिन तक सम्मलेन स्थल पर अपनी सेवाएँ देती रही. झुंझुनू की गली-गली उत्साह से सरोबर थी.

पन्ने सिंह ने महासम्मेलन की अध्यक्षता के लिए दिल्ली के आनरेरी मजिस्ट्रेट चौधरी रिशाल सिंह राव को आमंत्रित किया था. चौधरी रिशाल सिंह दिल्ली से रींगस, रींगस से झुंझुनू रेल द्वारा पहुंचे. रेलवे स्टेशन पर किसान नेताओं के अलावा हजारों का जनसमूह अपने मुख्य अतिथि की प्रतीक्षा कर रहे थे. जब वे स्टेशन पहुंचे तो झुंझुनू स्टेशन जय कारों से गूँज उठा. रेलवे स्टेशन पर ऐसी भीड़ बाद में कभी नहीं देखी गयी. स्टेशन से सभा स्थल तक मुख्य सड़क से जुलुस के रूप में जाना तय हुआ. आगे-आगे बैंड बाजा , उसके पीछे सजा हुआ हाथी चलने लगा. हाथी पर चौधरी रिशाल सिंह और उनके पीछे पन्ने सिंह सवार थे. हाथी पर इन दोनों के साथ गनपतराम नाई बैठा था, जो मुख्य अतिथि को चंवर ढुला रहा था. हाथी के पीछे पैदल स्त्रियों का जत्था पांच-पांच की पंक्तियों में गीत गाते चल रहा था. महिला जत्थे के पीछे पांच-पांच की पंक्तियों में पुरुष पैदल हाथों में लाठियां या बरछी लिए चल रहे थे. सबसे पीछे ऊंट सवारों का जत्था था. सजे हुए ऊंट भी पांच-पांच की पंक्तियों में चल रहे थे. सत्यदेव सिंह के पास वर्षों तक इस जुलुस की फोटो सुरक्षित रही परन्तु दुर्भाग्य से अब वे उपलब्ध नहीं हैं. सत्यदेव सिंह पन्ने सिंह के दूसरे बेटे हैं.

चौधरी घासीराम, हर लाल सिंह, राम सिंह बख्तावरपुरा, लादूराम किसारी, ठाकुर देशराज, पंडित ताड़केश्वर शर्मा, जीवन राम जैतपुरा, हुकुम सिंह आदि की मेहनत के कारण पूरा झुंझुनू जिला महासम्मेलन की और उमड़ पड़ा. पन्ने सिंह के बड़े भाई भूरेसिंह ने भी इस सम्मलेन के दौरान उत्साह से कार्य किया. सीकरवाटी से भी काफी संख्या में किसान नेता आये थे. यह परिवर्तन की आंधी थी. इसलिए भूखे-प्यासे, पीड़ित गाँवों के लोग पैदल जत्थों में सभा स्थल की और चल पड़े. प्रथम बार गाँवों की महिलायें गीत गाते हुए आई. झुंझुनू की मुख्य सड़क पर जुलुस सभा स्थल की और बढ़ रहा था. शहर के निवासीगण घरों की छतों पर, दीवारों और मुंडेरों तथा छपरों पर खड़े हो आन्दोलनकारियों का हौसला बढ़ा रहे थे.

जयपुर रियासत के पुलिस इंस्पेक्टर जनरल मि. अफ.ऍम. यंग, नाजिम शेखावाटी, पुलिस अधीक्षक झुंझुनू व अन्य अधिकारीगण जुलुस के साथ-साथ चल रहे थे. शहर के निवासियों ने अनेक स्थानों पर जुलुस रोककर , मुख्य अतिथि व किसान नेताओं का सम्मान किया. महिलाओं ने आरती उतारी. तत्पश्चात वे भी जुलुस में शामिल हो गए.

सम्मलेन स्थल पर ऊँचा मंच बना हुआ था. अनेक हवन-कुण्ड एक और बने हुए थे. अधिवेशन के दौरान तीनों दिन सुबह यग्य हुआ और जनेऊ बांटी गयी. दिन में भाषणों के अतिरिक्त भजनोपदेशक रोचक और जोशीले गीत प्रस्तुत कर रहे थे. जीवन राम जैतपुरा, हुकुम सिंह, भोला सिंह, पंडित दत्तुराम, हनुमान स्वामी, चौधरी घासी राम आदि ने एक से बढ़कर एक गीत सुनाये. ठाकुर देशराज, पन्ने सिंह, सरदार हरलाल सिंह आदि नेताओं ने सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक बदलाव की आवश्यकता प्रतिपादित की. विशाल सम्मलेन को संबोधित करते हुए जयपुर रियासत के आई .जी . यंग ने कहा - जाट एक बहादुर कौम है. सामन्तों और पुरोहितों के लिए यह असह्य था.

इस ऐतिहासिक सम्मलेन जो निर्णय लिए गए उनमें प्रमुख निर्णय था - झुंझुनू में विद्यार्थियों के पढ़ने और रहने के लिए छात्रावास का निर्माण. दूसरा निर्णय जाट जाति का सामाजिक दर्जा बढ़ाने सम्बंधित था. जागीरदार और पुरोहित किसान को प्रताड़ित करते थे और उनमें हीन भावना भरने के लिए छोटे नाम से पुकारते थे जैसे मालाराम को मालिया. मंच पर ऐलान किया गया कि आज से सभी अपने नाम के आगे 'सिंह' लगावेंगे. सिंह उपनाम केवल ठाकुरों की बपौती नहीं है. उसी दिन से पन्ना लाल देवरोड़ बने कुंवर पन्ने सिंह देवारोड़, हनुमानपुरा के हरलाल बने सरदार हरलाल सिंह, गौरीर के नेतराम बने कुंवर नेतराम सिंह गौरीर, घासी राम बने चौधरी घासी राम फौजदार. आगरा के चाहर अपना टाईटल फौजदार लगाते हैं अत: चाहर गोत्र के घासी राम को यह टाईटल दिया गया.

कुंवर पन्ने सिंह देवरोड़ महासम्मेलन के पश्चात् पूरे शेखावाटी क्षेत्र में प्रसिद्ध हो गए थे. राष्ट्रीय स्तर पर अन्य नेताओं से उनके संपर्क स्थापित हुए. उनकी कर्मठता, परिवर्तन की ललक, अध्ययन प्रियता और दबंग स्वभाव ने पन्ने सिंह को शेखावाटी अंचल का आदर्श व्यक्ति बनादिया. उनके साहस की चर्चा जन-जन में होने लगी. पन्ने सिंह के नाम से गाँवों के गरीबों में साहस भर जाता था. पिलानी के निकट होने से बिड़लाओं ने स्कूलों का जाल बिछाया, उन सबके पीछे पन्ने सिंह का मस्तिष्क काम कर रहा था.

खादी की सफ़ेद धोती, कुरता, खुले गले का कोट, सर पर सफ़ेद पगड़ी, पैरों में देशी जूती, ये पन्ने सिंह की पहचान बन गयी. विशाल काया और ऊँचा कद , पन्ने सिंह को अन्य से करते थे. उनके देवरोड़ स्थित घर में आने जाने वालों का ताँता लगा रहता था. पन्ने सिंह के बेटे सत्यदेव का कहना है कि उनके घर पर क्रांतिकारियों का जमघट लगा ही रहता था. क्रन्तिकारी बाबा नरसिंह दास लम्बे समय तक भूमिगत रूप में पन्ने सिंह के घर रहे. पन्ने सिंह की पत्नी आने वालों को खाना खिलाती थी. मेहमानों की भीड़ बढने पर गाँव के नाई की सेवा ली जाती थी.

पन्ने सिंह दिन-रात जिले में दौरा करते थे. आवश्कता होने पर राज्य से बाहर भी जाते थे. जब-जब भी आर्य समाज का वार्षिक सम्मलेन मंडावा में होता, पन्ने सिंह गाँव के लोगों को एकत्रित कर पैदल ही मंडावा के लिए चल देते. गाँवों में रुकते हुए, प्रचार करते हुए वे मंडावा पहुंचते थे.

राजनैतिक जीवन में व्यस्त रहने के बावजूद वे आर्थिक पक्ष का ध्यान रखते थे. इसके लिए वे निर्माण कार्यों का ठेका लेते. इससे उन्हें अतिरिक्त आय होती रहती और आर्थिक आधार सुदृढ़ बना रहता. किसी के आगे हाथ पसारने की उन्हें आवश्यकता नहीं थी. सन 1928 के पश्चात् पन्ने सिंह ने ब्याज पर रुपये उधार देना (बोरगत) बंद कर दिया था. इस कार्य से उन्हें घृणा हो गयी थी.

झुंझुनू जाट महासभा कान्फ्रेंस 1932

गणेश बेरवाल[1] ने लिखा है....जाट महासभा का झुंझुनू कान्फ्रेंस बसंत पंचमी 1932 को हुआ। इस जलसे में 80 हजार आदमी व औरतें इकट्ठे हुये। जलसे में उपस्थित होने वालों में 50 हजार जाट और 30 हजार अन्य कौम के लोग थे। अन्य कौम के लोग भी जाटों से सहानुभूति रखते थे क्योंकि जाट जागीरदारों का मुक़ाबला कर रहे थे। पिलानी कालेज से प्रोफेसर, मास्टर अकान्टेंट आदि इस जलसे में पहुंचे। बिड़ला जी का रुख इस जलसे को सफल बनाने का था। जलसे को सफल बनाने वालों में पिताश्री जीवनराम जी भजनोपदेशक, पंडित हरदत्तराम जी, चौधरी घासीराम जी, हुकम सिंह जी, मोहन सिंह जी आदि ने गांवों में भारी प्रचार किया। चौधरी मूल सिंह जी, भान सिंह जी मुकाम तिलोनिया (अजमेर) आदि इस जलसे को सफल बनाने के लिए आए। उत्तर प्रदेश, हरयाणा से भी कफी लोग आए। अधिवेशन में जुलूस निकाला गया जिसमें चौधरी रिछपाल सिंह जी मुकाम धमेड़ा (उत्तर प्रदेश) से पधारे थे। वे जलसे के प्रधान थे।


[p.45]: इसी जलसे में मास्टर नेतराम गौरीर की बड़ी लड़की जो घरड़ाना के मोहर सिंह राव को ब्याही थी, ने लिखित में भाषण पढ़ा था। उस वक्त शेखावाटी में स्त्री शिक्षा झुञ्झुणु में शुरू हो चुकी थी। स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए पिताश्री जीवन राम जी के निम्नांकित भजनों से बड़ा प्रोत्साहन मिला....

सुनिए ए मेरी संग की सहेली
रीत एक नई चाली। बहन विद्या बिन रह गई खाली री
एक जाने ने दो वृक्ष लगाए सिंचिनिया भी एक माली
बहन विद्या बिन रह गई खाली री......
मैं जन्मी तब फूटा ठीकरा – भाई जन्मा तब थाली री
विद्या बिन रह गई खाली री
भईया को पढ़न बैठा दिया, मैं भैंसा की पाली री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
भाई खावे दूध पतासो मैं रूखी रोटी खाली री
विद्या बिन रह गई खाली री.....
भाई के ब्याह में धरती धर दी मेरे ब्याह में छुड़ाली री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
भईया पहने पटना का आभूषण मैं पहनू नथ-बाली री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
मेरा पति जब आया लेवण ने मैं पहन सींगर के चाली री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
जब सासु के पैरों में लागी कपड़ों में उजाली री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
देवरानी जिठानी पुस्तक बाँचे मेरे से मजवाई थाली री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
मेरे में उनमें इतना फर्क था वो काली मैं धोली री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
जीवन सिंह चलकर के आयो बहन न डिग्री ला दी री
बहन विद्या बिन रह गई खाली री.....
सुनिए ए मेरी संग की सहेली रीत एक नई चाली
बहन स्कूल में चाली री

चौधरी जीवन राम जी के इस गीत ने जादू का सा असर किया। गाँव-गाँव में लड़कियां पढ़ने स्कूल जाने लगी। आज के दिन स्त्री शिक्षा में झुंझुणु जिला राजस्थान में प्रथम है। झुंझुणु अधिवेशन से 4-5 जिलों में भारी जागृति फैली। इस जलसे में राजगढ़ तहसील के 17 आदमी गए थे। महाराजा गंगा सिंह ने हमारे पीछे सी.आई.डी. लगा राखी थी। इस जलसे ने मेहनतकशों व अन्य क़ौमों में जागृति पैदा


[p.46]: कर दी। जागीरदारों के जुल्मों के खिलाफ आवाज उठने लगी और शेखावाटी किसान आंदोलन तेज हो गया। इस दौरान शेखावाटी के नेतागण निम्नांकित थे-

जनता को जगाने में संघर्ष करते भजनोपदेशक जीवन राम आर्य, भजनोपदेशक पंडित दंतू राम (मुकाम पोस्ट डाबड़ी, त. भादरा, गंगानगर) साथी सूरजमल (नूनिया गोठड़ा), तेजसिंह (भडुन्दा), साथी देवकरण (पलोता), स्वामी गंगा राम, हुकम सिंह, भोला सिंह आदि थे। गाँव-गाँव में प्रचारकों की मंडलियाँ प्रचार में जुटी हुई थी जो जनता को जागृत कर रही थी। इस प्रकार शेखावाटी में जन आंदोलन की लहर सी चल पड़ी।

राजस्थान की जाट जागृति में योगदान

ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ....उत्तर और मध्य भारत की रियासतों में जो भी जागृति दिखाई देती है और जाट कौम पर से जितने भी संकट के बादल हट गए हैं, इसका श्रेय समूहिक रूप से अखिल भारतीय जाट महासभा और व्यक्तिगत रूप से मास्टर भजन लाल अजमेर, ठाकुर देशराज और कुँवर रत्न सिंह भरतपुर को जाता है।


[पृ.4]: अगस्त का महिना था। झूंझुनू में एक मीटिंग जलसे की तारीख तय करने के लिए बुलाई थी। रात के 11 बजे मीटिंग चल रही थी तब पुलिसवाले आ गए। और मीटिंग भंग करना चाहा। देखते ही देखते लोग इधर-उधर हो गए। कुछ ने बहाना बनाया – ईंधन लेकर आए थे, रात को यहीं रुक गए। ठाकुर देशराज को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्होने कहा – जनाब यह मीटिंग है। हम 2-4 महीने में जाट महासभा का जलसा करने वाले हैं। उसके लिए विचार-विमर्श हेतु यह बैठक बुलाई गई है। आपको हमारी कार्यवाही लिखनी हो तो लिखलो, हमें पकड़ना है तो पकड़लो, मीटिंग नहीं होने देना चाहते तो ऐसा लिख कर देदो। पुलिसवाले चले गए और मीटिंग हो गई।

इसके दो महीने बाद बगड़ में मीटिंग बुलाई गई। बगड़ में कुछ जाटों ने पुलिस के बहकावे में आकार कुछ गड़बड़ करने की कोशिश की। किन्तु ठाकुर देशराज ने बड़ी बुद्धिमानी और हिम्मत से इसे पूरा किया। इसी मीटिंग में जलसे के लिए धनसंग्रह करने वाली कमिटियाँ बनाई।

जलसे के लिए एक अच्छी जागृति उस डेपुटेशन के दौरे से हुई जो शेखावाटी के विभिन्न भागों में घूमा। इस डेपुटेशन में राय साहब चौधरी हरीराम सिंह रईस कुरमाली जिला मुजफ्फरनगर, ठाकुर झुममन सिंह मंत्री महासभा अलीगढ़, ठाकुर देशराज, हुक्म सिंह जी थे। देवरोड़ से आरंभ करके यह डेपुटेशन नरहड़, ककड़ेऊ, बख्तावरपुरा, झुंझुनू, हनुमानपुरा, सांगासी, कूदन, गोठड़ा


[पृ.5]: आदि पचासों गांवों में प्रचार करता गया। इससे लोगों में बड़ा जीवन पैदा हुआ। धनसंग्रह करने वाली कमिटियों ने तत्परता से कार्य किया और 11,12, 13 फरवरी 1932 को झुंझुनू में जाट महासभा का इतना शानदार जलसा हुआ जैसा सिवाय पुष्कर के कहीं भी नहीं हुआ। इस जलसे में लगभग 60000 जाटों ने हिस्सा लिया। इसे सफल बनाने के लिए ठाकुर देशराज ने 15 दिन पहले ही झुंझुनू में डेरा डाल दिया था। भारत के हर हिस्से के लोग इस जलसे में शामिल हुये। दिल्ली पहाड़ी धीरज के स्वनामधन्य रावसाहिब चौधरी रिशाल सिंह रईस आजम इसके प्रधान हुये। जिंका स्टेशन से ही ऊंटों की लंबी कतार के साथ हाथी पर जुलूस निकाला गया।

कहना नहीं होगा कि यह जलसा जयपुर दरबार की स्वीकृति लेकर किया गया था और जो डेपुटेशन स्वीकृति लेने गया था उससे उस समय के आईजी एफ़.एस. यंग ने यह वादा करा लिया था कि ठाकुर देशराज की स्पीच पर पाबंदी रहेगी। वे कुछ भी नहीं बोल सकेंगे।

यह जलसा शेखावाटी की जागृति का प्रथम सुनहरा प्रभात था। इस जलसे ने ठिकानेदारों की आँखों के सामने चकाचौंध पैदा कर दिया और उन ब्राह्मण बनियों के अंदर कशिश पैदा करदी जो अबतक जाटों को अवहेलना की दृष्टि से देखा करते थे। शेखावाटी में सबसे अधिक परिश्रम और ज़िम्मेदारी का बौझ कुँवर पन्ने सिंह ने उठाया। इस दिन से शेखावाटी के लोगों ने मन ही मन अपना नेता मान लिया। हरलाल सिंह अबतक उनके लेफ्टिनेंट समझे जाते थे। चौधरी घासी राम, कुँवर नेतराम भी


[पृ.6]: उस समय तक इतने प्रसिद्ध नहीं थे। जनता की निगाह उनकी तरफ थी। इस जलसे की समाप्ती पर सीकर के जाटों का एक डेपुटेशन कुँवर पृथ्वी सिंह के नेतृत्व में ठाकुर देशराज से मिला और उनसे ऐसा ही चमत्कार सीकर में करने की प्रार्थना की।

External links

References

  1. Ganesh Berwal: 'Jan Jagaran Ke Jan Nayak Kamred Mohar Singh', 2016, ISBN 978.81.926510.7.1, p.44-46
  2. ठाकुर देशराज:Jat Jan Sewak, p.1, 4-6

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