Rulyana Mali

From Jatland Wiki
(Redirected from Bharmali Ka Rulyana)
For another villages of this name see Rulyana Patti & Rulyani
Location of Rulyana Mali in Sikar district

Rulyana Mali (रुल्याणा माली) is a medium-size village in Laxmangarh tahsil in Sikar district in Rajasthan.

Variants

  • Ruhelon Ka Rulyana (रोल्याणा या रुल्याणा- रुहेलों का रुल्याणा)
  • Bharmali Ka Rulyana (भारमली का रुल्याणा)
  • Rulyana (रुल्याणा)

Founder

Mali Jats - First founded as Bharmali Ka Rulyana (भारमली का रुल्याणा) and later inhabited by Pitha Mali on 22.04.1784.

Location

Rulyana Mali is a Village in Lachhmangarh Tehsil in Sikar District of Rajasthan State, India. It is located 26 KM towards west from District head quarters Sikar. 14 KM from Lachhmangarh.Rulyana Mali Pin code is 332041 and postal head office is Phagalwa. Suthoth ( 6 KM ) , Khakholi ( 7 KM ) , Sewad Bari ( 7 KM ) , Sewa ( 8 KM ) , Patoda ( 8 KM ) are the nearby Villages to Rulyana Mali. Rulyana Mali is surrounded by Dhod Tehsil towards South , Sikar Tehsil towards East , Piprali Tehsil towards East , Fatehpur Tehsil towards North .[1]

Jat Gotras in Rulyana Mali

Other castes

  • Brahman,
  • Harijan,
  • Jangir,
  • Jogi
  • Meena
  • Nat,
  • Rajput,

History

रुल्याणा माली पर पुस्तक

रुल्याणा माली पुस्तक का आवरण पृष्ठ
रुल्याणा माली पुस्तक का पीछे का पृष्ठ

रुल्याणा माली (झाँकता अतीत), लेखक - रघुनाथ भाखर (Mob:7303286310, भास्कर प्रकाशन सीकर, वर्ष 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0

रुल्याणा माली का इतिहास

स्रोत: लेखक - रघुनाथ भाखर (Mo:7303286310, रुल्याणा माली (झाँकता अतीत), भास्कर प्रकाशन सीकर, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0


[पृ.55]:विक्रम संवत 1192 (=1135 ई.) में सांभर से प्रस्थान के बाद मलसी ने मालीसर गांव बसाया- वैशाख सुदी आखा तीज के दिन विक्रम संवत 1194 साल (=1137 ई.)। जहां मलसी ने पनघट का कुआं खुदवाया, जोहड़ खुदवाया, सवा सौ बीघा पड़तल भूमि छोड़ी तथा महादेव जी की छतरी करवाई।

मलसी (1135 ई.) (पत्नि:सुंदर पूनिया पुत्री जोधराज पूनिया, चन्द्रा की पोती ) → धरमा (पत्नि:हेमी गोदारा, पुत्री मेहा गोदारा/हिदु की पोती) → जैतपाल (पत्नि: रायमल भावरीया, की पुत्री सायर) (भाई: करमसी, बहिन: राजां, जोरां) → उदय (पत्नि: सुलखा हरचतवाल की बेटी सिणगारी) (भाई रतन, जीवराज, बहिन सरस्वती) → धनराज (बहिन गणी)

धरमा माली ने बेटी राजा व जोरां का विवाह किया- वैशाख सुदी तीज विक्रम संवत 1278 (=1221 ई.) विवाह में 21 गायें दहेज में दी। विक्रम संवत 1329 (=1272 ई.) में मालीसर गांव में धर्मा की याद में करमसीजैतपाल ने ₹900 में पानी की 'पीय' कराई तथा विक्रम संवत 1338 (=1281 ई.) में मालीसर गांव में दान किया। विक्रम संवत 1342 (=1286 ई.) में मालीसर गांव में चौधरी उदय ने दान कार्य किया। (करमसी की पत्नि महासी निठारवाल की बेटी हरकू थी- वंश विराम)


[पृ.56]:चौधरी उदयसी, रतनसी, जीवराज गांव मालीसर छोड़ पलसाना बसे- वैशाख सुदी 7 विक्रम संवत 1352 (=1295 ई.) (शनिवार) के दिन सवा पहर दिन चढ़ते समय छड़ी रोपी।

विक्रम संवत 1513 (=1456 ई.) में चौधरी घासीराम माली पलसाना छोड़कर कासली बसा।

वैशाख सुदी आखातीज विक्रम संवत 1732 की साल (28 अप्रैल 1675 ई.) में चौधरी खडता व धर्मा ने कासली छोड़ गांव पूरां बसाया।

विक्रम संवत 1746 (1689 ई.) की साल धर्मा ने पुरां में धर्माणा जोहड़ा खुदवाया। कार्तिक सुदी सात विक्रम संवत 1754 (=1697 ई.) में चौधरी पांचू, बीजा, लौहट ने पिता धर्मा का मौसर किया। वह गंगाजी घाल गंगोज कराया। विक्रम संवत 1780 (=1723 ई.) की साल चौधरी पांचू/बाछू ने दान कार्य किया।

चौधरी पीथा का पुरां छोड़ रुल्याणा बसना

विक्रम संवत 1841 में चौधरी पीथा का पुरां छोड़ रुल्याणा बसना।

'रुल्याणा माली', पृ.93, माली वंशवृक्ष
'रुल्याणा माली', पृ.94, माली वंशवृक्ष
'रुल्याणा माली', पृ.95, माली वंशवृक्ष

[पृ.57]: विक्रम संवत 1840 का चालीसा अकाल या अन्य तत्कालीन दुरुह परिस्थितियों में दीपा माली का बेटा चौधरी पीथा अपने अन्य बंधुओं व घर परिवार को छोड़कर अन्यत्र बसने की खोज में पूरां गांव से विस्थापन कर गया। पूरां से प्रस्थान के पश्चात बसने के स्थल की तलाश में चौधरी (महत) पीथा बैशाख सुदी तीज (आखातीज) विक्रम संवत 1841 (22 अप्रैल 1784 ई. गुरुवार) के दिन इस खंडहर बन चुके प्राचीन निर्जन गांव भारमली का रुल्याणा से होकर अपनी बैलगाड़ी पर गुजर रहा था जहां गोधूलि बेला के समय क्षितिज में डूबते सूरज को देख रात्रि को विश्राम के लिए रुका और इन्हीं घड़ियों में प्रकृति के कुछ शुभ संकेतों को देखकर रात्रि विश्राम में धरती से जुड़े कुछ लगाओं से उसने यहीं बसने का फैसला किया। इस तरह से मात्र संयोगवस 22 अप्रैल 1784 गुरुवार के दिन खंडहर बन चुका रुल्याणा गांव पुनः आबाद हुआ और इत्तेफाक से पीथा इस गांव को बसाने वाला द्वितीय प्रवर्तक बना।

बसने के पश्चात उसने जमाने के इंसान की दो प्रमुख आवश्यकतओं यथा जमीन और पानी अर्थात जोतने हेतु जमीन की खोज और कुएं से पानी निकालने के उपकरणों की तलाश में दोपहर बाद उत्तर पश्चिम दिशा के जंगल की ओर निकला। यह दिन वैशाख सुदी पंचम विक्रम संवत 1841 (24 अप्रैल 1784 ई.) था, अचानक से आई आंधी में जंगल में वह सुध-बुध भूल गया। अकस्मात आए संकट की घड़ी में घिरे पीथा ने अपने इष्ट देव रामापीर का स्मरण किया तब उसे सुध-बुध आई और रामापीर की याद में सवा सौ बीघा बनी छोड़ी।


[पृ.58]: 1784 ई. का यह वही साल है जब भारत के मुगल बादशाह है शाह आलम द्वितीय (1759-1806) के शासनकाल में अंग्रेजी गवर्नर वारेन हेस्टिंग्स अंग्रेजी राज की जड़ें जमा रहा था यानी यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि आबाद गांव अंग्रेजी राज से पहले का है। पुराना गांव- भारमली का रुल्याणा तो कम से कम मुगलकाल या उससे भी पहले का रहा होगा तथापि ज्यादा संभावना यही है कि मुगल साम्राज्य की स्थापना 1526 ई. से पहले 13-14 वीं सदी में या राजपूत पतन काल में भी किसी न किसी रूप में या छोटे रूप में इसका अस्तित्व रहा होगा।

सारांशत: समयचक्र की एक लंबी एवं पूरी की पूरी श्रंखला समेटे यह गांव कितने ही सालों-सदियों की सभ्यता व संस्कृति की विरासत की यादें अपनी आंखों में संजोए हुए है।

बड़वा भइयों में वर्णित है- राजा लाखनसी जी का बेटा खींवसी जी का बेटा जिन्द्रपाल जी का बेटा मानकराव जी का बेटा मालंगसी से माली जाट गोत्र को प्रसिद्धि मिली। विक्रम संवत 1192 की साल गढ़ सांभर थान छोड़ मालीसर बसाया विक्रम संवत 1194 (=1137 ई.) की साल।

माली गोत्र के प्रमुख निकास स्थल व गांव: आबू कुंड निकास, नाडोल निकाल, अजमेर-सांभर का राज-थान, मालीसर गांव-थान, पलसाना, पूरां, कासली, रुल्याणा, बोठ-बादेड़, छापर, भींवसर, धोलीपाल, किलावाली, कीलानी (Kelania?), करियाहाली, गोलूहाला, पक्का सारना, रावतसर, रतनपुर, पुरोहित का बास, चौमू, सांगलिया, सिमली का बास (?), मीठड़ी, धरानिया, सुपका, कलवानिया (?), लालासरी, आदि।

माली जाट गोत्र पाकिस्तानअफ़ग़ानिस्तान में भी मिलती है। राजस्थान में छापर,


[पृ.59]: खिरकिया (हरदा, म.प्र), रींगस, फकीरपुरा, भींवसर, ढाबां (संगरिया), नून्द (Nagaur) आदि मालियों के अन्य मुख्य गांव हैं।

पीथा के गाँव रुल्याणा माली में में बसने के वर्षों बाद ढूंढाड़ से रेखा माली आया। वह पहले बादलवास बसा फिर दुगोली और अंत में रुल्याणा आकर बस गया। रेखा माली एक सज्जन व अमीर आदमी था। रेखा माली के बारे में कहा जाता है कि उसके पास चांदी के रुपयों से भरे बिलोवने थे। रुल्याणा गांव में इनके घर झाड़ी का बड़ा पेड़ था जिस कारण इस परिवार को झाड़ी वाले भी बोला जाता है। बहुत समय तक बादलवास छोड़कर आने को लेकर मन में नाराजगी रही।

पीथा की मृत्यु आषाढ़ शुक्ला द्वादशी विक्रम संवत 1885 (24 जुलाई 1828 गुरुवार) के दिन हुई और स्रावण बदी नवमी विक्रम संवत 1885 (4 अगस्त 1828 बुधवार) के दिन चौधरी (महत) बालू, डूँगा, रामू, रूपा ने पिता पीथा का मृत्यु भोज किया। गंगा (हरिद्वार) के पंडों की बही में में पीथा का दूसरा नाम 'बींजा' भी मिलता है।


[पृ.70]: माली जाट गोत्र को चौहानों का समर्थक और सहयोगी माना गया है। चौहनों की तरह जीणमाता तथा सांभर मूल निवास होने के कारण सम्भराय (शाकंभरी) माता को पूजते हैं। मालीचोटिया दोनों जात भाई माने जाते हैं।

माली गोत्र के बसने और विस्थापन का क्रम

[पृ.72]: रुल्याणा माली गांव के माली गोत्र के पूर्वज तुर्कों के सांभर पर आक्रमण के फलस्वरूप विक्रम संवत 1192 (1135 ई.) में सांभर से प्रस्थान कर गए तथा विक्रम संवत 1194 (1137 ई.) की साल के किसी दिन छड़ी रोककर मालीसर गाँव बसाया। माली गोत्र के बसने और विस्थापन का क्रम निम्न तरह से मिलता है:

सांभर (विक्रम संवत 1192 = 1135 ई.) → मालीसर (विक्रम संवत 1194 = 1137 ई.) → पलसाना (विक्रम संवत 1352 = 1295 ई.) → कासली (विक्रम संवत 1513 = 1446 ई.) → छापर (विक्रम संवत 1518 = 1461 ई.) → बाड़ा (विक्रम संवत 1522 = 1465 ई.) → बुसड़ी खेड़ा (?) (विक्रम संवत 1525 = 1468 ई.) → भींवसर (विक्रम संवत् 1535 ई. = 1478 ई.)

कासली (विक्रम संवत 1513= 1446 ई.) → पुरां डूंगरा की (विक्रम संवत 1732= 1675 ई.) → रुल्याणा माली (वैशाख सुदी आखातीज विक्रम संवत 1841 = 22 अप्रैल 1784)

झाड़ी वाले माली ढूंढाड़बादलवासदुगोलीरुल्याणा माली

पलसाना से क्रमिक स्थानांतरण के लगभग चार सौ साल बाद माली पुरां (डूंगरा की) बसे और वहां से करीब सौ साल बाद दीपा माली का बेटा पीथा माली रुल्याणा माली में आकर बसा।


पूरां (डूंगरा की) की शक्ति माता

[पृ. 76]: पिथा के रुल्याणा माली गांव में बसने से पहले उनके पैतृक गांव पूरां (डूंगरा की) में गठित हुई एक घटना का विवरण आज तक लोगों से कहते सुना जा सकता है। कहते हैं कि पिथा के परिवार में भोजाई की सोने की नथ ननंद ने चुरा ली थी। भोजाई द्वारा उसे वापस मांगने या चोरी कर लेने की आशंका दर्शाने पर ननदने मना कर दिया। आखिर विवाद से तंग आकर व ननद के 'जलजा' के चुभने वाले बोल पर भोजाई ने आत्मदाह कर लिया। उसी समय जलती हुई भोजाई ने श्राप दे दिया कि "मालियों के आई हुई सुख पाएगी और गई हुई (जाई-जन्मी) दुख पाएगी (स्वर्गीय श्री हरदेवा पटेल के अनुसार)।


[पृ.77]: इस कहावत में कितनी सच्चाई है यह तो नहीं पता परंतु आज भी जब इस गांव की किसी बेटी को उसके ससुराल में कष्ट पहुंचता है तो उस समय सती का कहा गया कथन लोगों को अनायास ही स्मरण हो जाता है। आज भी पूरा (डूंगरां की) गांव में शक्ति का चबूतरा मौजूद है जिसे माली पूजते हैं तथा उस शक्ति को देवी स्वरूप मानकर उसकी याद में विवाह के अवसर पर फेरों में शक्ति का एक नख टाला जाता है।

रुल्याणा माली गांव में बसने के चार पांच साल बाद संभवत है विक्रम संवत 1845 के कार्तिक मास में सेवाग्राम की घटना घटी। उस समय भूमिगत पानी से पीने और सिंचाई के लिए बैलों द्वारा पानी निकाला जाता था। रुल्याणा माली गाँव में बसने के कुछ सालों बाद पीथा ने विक्रम संवत 1865 में पहला कुआं आथुनी कोठी खुदवाई। इसके अगले ही वर्ष विक्रम संवत 1866 में वर्तमान ढूँढाणी कोठी खुदवाई। कुछ वर्षों बाद उत्तराधी पोली का निर्माण किया जो इस आबाद गांव के इतिहास की पहली पोली थी, जो बाद में उनके बड़े बेटे बालू के हिस्से में आई। आगे चल कर पीथा ने अपने अन्य दो विवाहित बेटों (दूंगा व रामू) के लिए दो पोलियाँ बनवाई। यही प्रारंभिक तीन पोलियाँ थी जिनके बनाने के स्थान की अवस्थिति के आधार पर इस गांव के मालियों को आज तक जाना-पहचाना जाता रहा है।

आषाढ़ शुक्ला द्वादशी गुरुवार विक्रम संवत 1885 (24 अगस्त 1828 ई.) को पीथा का स्वर्गवास हुआ और उसके चारों बेटों बालू, डूँगा, रामू और रूपा ने श्रद्धांजलि दी।


[पृ.78]: पिथा का मृत्यु भोज श्रावण बदी नवमी (4 अगस्त 1828) बुधवार के दिन किया गया। इस अवसर पर दूर-दराज से कोसों तक के गांवों के लोग कुछ हजार की संख्या में इकट्ठा हुए थे। बारहवें जिन लोगों को देसी घी के हलवे का जीमण करवाया गया और शाम तक जब भीड़ असीमित बढ़ी तो अंत में बचे लोगों को 105 मण सूखे मोठ बांटे गए। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस जमाने में पीथा के मौसर में जीमण के लिए कितने लोग इकट्ठे हुये होंगे।

रुल्याणा माली नामकरण: [पृ.80]: गांव के उजाड़ होने से पहले, उजाड़ के समय तथापि पीथा माली के बसने तक की लंबी अवधि तक इस गांव को भारमली का रुल्याणा कहा जाता था। भारमली एक ब्राह्मणी का नाम था। उसके नाम के पीछे यह नाम फैलता चला गया परंतु उसका मूल नाम रुल्याणा कहां से आया यह पता नहीं चल पाया है। ऐसा माना जाता है कि ढूंढाड़ से आकर इस जगह पर बसने वाले लोगों द्वारा ढूंढाड़ (प्राचीन जयपुर- आमेर) में अवस्थित इसी नाम के किसी गांव की तर्ज पर यह नाम अपनाया गया हो।


पीथा की ग्राम सेवा की दूसरी पत्नी किसनी

[पृ.89]: पीथा की दूसरी पत्नी - विक्रम संवत 1845 (=1788 ई.) में पीथा माली एक बार सीकर जगीरदार की एक बैठक में भाग लेकर ऊंट पर सवार होकर सेवा गांव से गुजरते हुये घर लौट रहे थे। रास्ते में वह सेवा ग्राम में एक चौधरी को हुक्का पीते देखकर उसके साथ हुक्का पीने के लिए खाट पर बैठ गए। पराई जगह से आकर बसने के कारण आसपास के गांव के लोग पीथा को एक 'ओपरा जाट' (बाहरी) मानते थे और उसको यहां से भगाना चाहते थे। इसी संदर्भ में सेवा के जाट ने मजाक में कह दिया- 'माली कौन सी जाति होती है?' इतना कहकर पीथा को नली निकाल कर हुक्का पकड़ा दिया- यह जताने के लिए कि वह उनकी बिरादरी का नहीं है। इस प्रकार उसने पीथा का अपमान कर दिया।

पीथा को यह अपमान बर्दाश्त नहीं हुआ। उसने हुक्का फैंकते हुये हुए मूछों पर ताव लगाकर कसम खाई - "अब हुक्का तो तभी पीऊँगा जब तुम्हारी जाई या ब्याही को घर ले जाऊंगा"। उसी दिन वहां से लौटकर यही प्रण उसने अपने धर्म की बहन (बठोठ गढ़ के ठाकुर की पत्नी) को बताया और उस दिन के बाद वह अपने अपमान का बदला लेने हेतु मौके की ताक में रहने लगा। कहते हैं एक दिन जब विक्रम संवत 1845 कार्तिक मास में पीथा सेवा गांव के खेतों से होकर अपने ऊंट पर सवार होकर सीकर से घर लौट रहा था।


[पृ.90]: पीथा ने एक खेत में दो औरतों (ननद - भोजाई) को काम करते हुए देखा। उसने सोच-समझ कर ऊंट के नीचे जमीन पर अपनी लाठी गिरा दी तथा उस लड़की को वापस पकड़ाने के लिए कहा। ज्योंही वह लड़की लाठी पकड़ाने लगी त्योंही पीथा ने उस लड़की का हाथ पकड़कर ऊँटपर बैठा लिया और सीधा बठोठ गढ़ में ले आया जहाँ उसकी धर्म की बहन (बठोठ गढ़ के ठाकुर की पत्नी) ने पहले ही उसे बोल रखा था कि मैं इसे किसी को नहीं ले जाने दूंगी। घटना के समय खेत में कुछ ही दूरी पर खड़ी भोजाई ने इस घटना को देखा और जाकर गांव वालों को बताया। सेवा के लोग ऊंट के पद-चिन्हों के साथ-साथ बठोठ गढ़ के ठाकुर के पास पहुंचे।


[पृ.91]: बठोठ ठाकुर ने दोनों गुटों से कहा कि जो ज्यादा पैसा देगा यह लड़की उसी की होगी। साजिश के तहत ठाकुर ने पीथा को ₹1000 पहले ही दे दिए थे और वही पैसे लेकर वह सबके सामने आ पहुंचा। सेवा के चौधरी के पास ₹150 ही जमा हो पाए थे। इस प्रकार लड़की जिसका नाम संभवत: 'किसानी' था, पीथा के दल को सौंप दी गई। बताया जाता है कि दोनों पक्षों में इस बारे में मुकदमा भी चला था। आगे चलकर पीथा की इस पत्नी से उसे एक बेटी की प्राप्ति हुई जो गांगियासर ब्याही गई। पीथा के जीवन सत्य में यह खलल जरूर है परंतु यह हादसा सही था या गलत यह तो उस समय की परिस्थितियों की समझ में ही निहित है। उस काल में बदनाम करने के लिए बड़वा लोगों द्वारा जागीरदारों के समर्थन से इस तरह की काल्पनिक कहानियाँ हर जाट गोत्र के साथ जोड़ी गई थी।

भाखर वंश

[पृ.322]:

भाखर गोत्र के प्रमुख निकास स्थल व थान:

गढ़ आबू (निकास वि.सं 1260= 1203 ई.) → सांभर निकास → अजमेर निकास → सिद्धमुख निकास → ददरेवा निकास → तीबो डोडो थान (?) → भाखरोली थानलाडनू थानबलदु थानकीचक थानफोगड़ी थानखाखोली थानमोडावट थानफागल्वा थानरुल्याणा थान → बरड़वा थानरातगो थानआजड़ोली थानडकावा थानसुनथली थान (?) → घस्सू थानथोरासी थान

भाखर गोत्र के बसाये हुये प्रमुख गाँव:

नागवंशी शासक प्रभाकर से इस गोत्र का प्रारंभ माना जाता है। पाणिनि की अष्टाध्यायी में वर्णित जनपद अपकर का संबंध पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के भक्खर इलाके से किया जाता है। आज भी भाकर भारत के साथ-साथ पाकिस्तान में भी बसे हुए हैं। भारत में यह गोत्र पंजाब, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान में मुख्यतः आबाद हैं। हरियाणा तो भाकर गोत्र का गढ़ है।

ऊपर वर्णित निकास स्थलों के अतिरिक्त राजस्थान में भाखर गोत्र के प्रमुख गांव हैं:

भांकरोटा (सांगानेर,जयपुर), भाखरां (राजगढ़,चूरू), भाखरों की ढाणी (ओसियां व बिलाड़ा जोधपुर), भाखरों की ढाणी (नागौर), भाखरपुरा (चौहटन,बाड़मेर), भाखरासर (पचपद्रा बाड़मेर), ढाणा भाखरान (तारानगर,चूरू), लाछड़सर (रतनगढ, चुरु), ऊंचली भाखरों की ढाणी व जूसरी (मकराना,नागौर), बाखरवास (जैतारण,पाली), भाखरवासी (जैतारण,पाली), भाखरी खेड़ा (पचपद्रा,बाड़मेर) भाकरांवाली (हनुमानगढ़), भाखरानी (फतेहगढ़ जैसलमेर), बलोद भाखरां (फतेहपुर, सीकर), सरवड़ी (धोद,सीकर), भाखरों की ढाणी (लक्ष्मणगढ़,सीकर), वाखरवासी (फतेहपुर,सीकर), ढाणी भाखरां (सरदारशहर चूरू), घस्सू (लक्ष्मणगढ़,सीकर), फागलवा (धोद सीकर), रुल्याणा माली (लक्ष्मणगढ़,सीकर)।


[पृ.323]:
भाखर वंशक्रम
'रुल्याणा माली', पृ.347, भाखर वंशवृक्ष

नसीराव → देघट → आगु → लेखट (बलराज, जेसा, कंवरसी, सधारण, महीपाल, ऊदसी, हेमा, खड़ता, चौथु, व बेटी - राधा)

जेसा → गिरधारी, आशा, रणधीर, पाला, सेवा, फुला

फुला → महाराज, नागु, लखा, बक्षा, खुमा व बेटी - रमा

नागु → रतनसी, रूपसी

रूपसी (प.तारा नेहरा) → डालम, भींवा व बेटी-कानी, चंदरी

डालम → मींया, ईसर, बसंत, माना (चौ.डालम मोडावट छोड़ फागल्वा आए वि.सं.1670 = 1613 ई.)

मींया (वि.सं. 1679 = 1622 ई. में 450 बीघा मींयाणा जोहड़ छोड़ा)

गोविंदा → दासा, बागा, देवा

दासा → लाला, दुदा*, दामा*, कुशला, रामु, खेवा (खींवा), नाथा

दामा → नाराणा → जगु, सदा, हेमा, रेखा

सदा → आशा → शेखा → ठाकुरसी → पन्ना, न्यौला, देवा

देवा → कजोड़ → श्योपाल, खींवा, गोविंद

नोट.1 - * फागल्वा के सारे भाखर दुदा व दामा के वंशज हैं

नोट.2 -शेखा के पुत्र ठाकुरसी व ठाकुरसी के पुत्र पन्ना से रुल्याणा माली के डूँगा माली की बेटी व पीथा माली की पौत्री ज्ञानी परणाई जिसके आगे चलकर चार बेटे (रतना,लादू, लच्छा, तिलोका) व बेटी रमा हुये। चार बेटों में से केवल रतना का वंश चला जिसके दो बेटे (दुला और गौरू) व पाँच बेटियाँ (जिनकू, पेमा, धापू, नैनी व बरगु) हुई। इस गाँव में रतना के बेटे दुला भाखर का वंश चला आ रहा है।

भाखर गोत्र के बसने और विस्थापन का क्रम:

गढ़ आबू (वि.सं 1260= 1203 ई.) → सांभरभाखरोली (वि.सं 1263= 1206 ई.) → ददरेवा (वि.सं 1360= 1303 ई.) → बलदु (वि.सं 1420= 1363 ई.) → कीचक (वि.सं 1499= 1442 ई.) → मोडावट (वि.सं 1512= 1455 ई.) → फागल्वा (वि.सं 1670= 1613 ई.) → सिगड़ोला छोटा (वि.सं 1954= 1897 ई.) → रुल्याणा माली (वि.सं 1956= 1899 ई.)

शेषमा वंश

[पृ.348]: शेषमा गोत्र के जाटों की उत्पत्ति नागवंशी राजा शेषनाग (110 BC-90 BC) से हुई मानी जाती है। शेषनाग वंश पूर्णरूप से जाट-संघ में शामिल हो गया जो आज शेषमा जाट गोत्र के रूप में जाने जाते हैं।

10वीं सदी में गुर्जर-प्रतिहार शक्ति के पतन के पश्चात मालवा में परमार वंश का उदय हुआ। परमारों की अनेक शाखाएं थी जिनमें उज्जैन-धारा नगरी के परमार विख्यात थे। राजा भोज (1000-1055 ई.) ने उज्जैन के स्थान पर धारानगरी को राजधानी बनाया व अनेक तालाब, मंदिर आदि बनवाये। 12 वीं सदी तक परमार वंश इतिहास के पटल से लुप्त हो गया। 1234 ई. में इल्तुतमिश ने मालवा को लूट लिया। और बाद में अलाउद्दीन खिलजी ने इनकी शक्ति को समाप्त कर दिया।


[पृ.349]: ठाकुर देशराज[2] लिखते हैं - उमर कोट सिन्ध और राजस्थान के मध्य में यह स्थान है। इस पर हुमायूं के समय तक पंवार गोत्री जाटों का राज्य था। पंवार शब्द के कारण कर्नल टाड ने उसे राजपूतों का राज्य बताया है। किन्तु जनरल कनिंघम ने 'हुमायूं नामा' के लेखक के कथन का हवाला देकर उसे जाट पंवार लिखा है। टाड राजस्थान के कथन का प्रतिवाद करते हुए जनरल कनिंघम लिखते हैं - “किन्तु हुमायूं की जीवनी लिखने वाले ने प्रमार के राजा और उनके अनुचरों का 'जाट' के नाम से परिचय दिया है।”[3] यह वंश धारा नगर के जाट-परमारों से सम्बन्धित रहा होगा। क्योंकि धारा नगर में जगदेव नाम का जाट राजा राज्य करता था और प्रमार जाट था। बिजनौर के कुछ जाट अपने को धारा नगर के महाराज जगदेव की संतान बताते हैं[4], जो कि वहां से महमूद गजनवी के आक्रमण के समय यू० पी० की ओर बढ़ गए थे। प्रमार भी 'अवार' की भांति एक शब्द है। जाट एक समय अवार कहलाते थे, जिसका कि भारत में अबेरिया से सम्बन्ध है। इसी भांति एक प्रदेश का नाम पंवार-प्रदेश था, जो कि धारा नगर और उज्जैन के मध्य में था और जो प्रान्त पंवार लोगों के बसने के कारण प्रसिद्ध हुआ।

इन आक्रमणों के फलस्वरूप, परमार जाति को उसकी मूल स्थली उज्जैन-धारानगरी आदि से खदेड़ दिए जाने के कारण, अपने अस्तित्व को संकट में पाकर विस्तारित होकर पँवार लोग उत्तर की ओर बढ़े। कुछ लोग राजस्थान, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार तक फैले। राजस्थान में बसने वाली शेषमा जाति इन्हीं परमार या पँवार की वंशज मानी जाती है।

नीचे शेषमा गोत्र के बड़वा की बही से कुछ विवरण दिया जा रहा है। बड़वा का विवरण भी उज्जैन, धारा की परमार या पवार जाति को शेषमा वंश से संम्बद्ध करता है जो आक्रमणकारियों द्वारा विस्तारित होकर अंततः शेषम ग्राम आ बसे। शेषम ग्राम से शेषमा गोत्र का विस्तार निम्नानुसार हुआ:

शेषमपलसानापूरांरुल्याणा माली


[पृ.350]: नव आबाद गांव रुल्याणा माली के प्रथम प्रवर्तक पीथा माली के पुत्र बाला (बालू) माली की तीन बेटियां (रुकमा, सामा व जैती) थी जिनमें से बड़ी बेटी रुकमा पूरां छोटी लाला शेषमा के साथ परणाई गई। रुल्याणा माली गांव के सारे शेषमा लाला शेषमा के ही वंशज हैं।

अग्नि-वंशजगदेव पंवार के वंशज शेषमा शिप्रा नदी के तट पर बसी उज्जैन नगरी से निकले थे।

डॉभ ऋषि के अवतार जगदेव पंवार के वंशजों (पौत्रों-प्रपौत्रों) में पवार जाति त्याग दी और यही लोग आगे चलकर शेषमा कहलाए।

महमूद गजनवी सोमनाथ के शिव मंदिर को लूटकर मालव देश में आ धमका। महमूद गजनवी के इस आक्रमण में मालवा की पवार जाति के विध्वंस में विस्तारित हुई, पवार जाति के जो लोग किसी क्षेत्र विशेष में अवशेष रहे वही आगे चलकर शेषमा हुए।

विक्रम संवत 1191 (=1134 ई.) चैत्र सुदी रविवार को धारा नगरी के राजा जगदेव पंवार ने अपना सिर समर्पित कर दिया।

महमूद गजनवी के आक्रमण में सोमपाल पवार के कुछ वंशज शेष रहे जो भागकर शेषम ग्राम आ पहुंचे और यही वंशज शेषमा कहलाए


[पृ.351]: मालवा से आकर कुछ शेषमा शेषम ग्राम बस गए, शेषम में इन्होंने अपना किला बनवाया और यहां से वे और 40 गांव में फैल गये।

शेषम ग्राम को छोड़कर वे 40 गांव में फैल गए, इसी कड़ी में हरीपुराजीणवास में भी बसे।

यह वही गोत्र है जिसका राजा भोज पवार था। उज्जैनधारा-नगरी तथा काली कंकाली जगदेव की कथा भी इसी वंश की गाथा है।

तुर्क शेषम ग्राम भी आ पहुंचे और घोर आतंक मचा दिया। इसी आतंक ने इनका शेषम ग्राम फिर छुड़ा दिया।

शेषम से आकर जीणवास बसे शेषमाओं पर भी तुर्कों ने पुनः हमला कर दिया। एक दिन जब रात की एक घड़ी बाकी थी और भौर के 4:00 बजे थे तो जीणवास के शेषमा आक्रमणकारियों से चारों ओर से गिर गए।

तुर्क शेषमाओं की गायों की मारकाट करने लगे ऐसी स्थिति में देवा शेषमा 'होनी हो सो होय' जानकर मुकाबले को आगे बढ़ा।


[पृ.352]: देवा शेषमा मौत बनकर दुश्मन पर टूट पड़ा। देवराणा का जोहड़ा आज भी उसका यह दांव याद दिलाता है।

आज भी हर्ष पर्वत के पास बसे जीणवास में देवा शेषमा की समाधि उसकी वीरता का अमिट निशान है।

देवा शेषमा अपने वंशजों को कह गया कि जगदेव पंवार के वंशजों! उसका यह भाव मत भूलो कि अपने धर्म की रक्षा के लिए उसने प्राणोत्सर्ग किया है, अब आप के हवाले ही इस वंश की नाव है जिसे आगे खेना है।

अत: अग्नि वंश के विक्रम के वंशजों! अपने इष्ट महाकाल को दिन रात याद करो।

लाला शेषमा का रुल्याणा माली आगमन
'रुल्याणा माली', पृ.360, शेषमा वंशवृक्ष

शेषम गांव छोड़कर शेषमा पहले पलसाना बसे फिर पूरां बसे और वहां से लाला शेषमा गांव रुल्याणा माली में आकर सबसे पहले बसा जिसका विवरण आगे दिया गया है। एक बार गांव वालों ने लाला शेषमा को ₹5 देकर 20 आदमियों की अस्थियां गंगा में विसर्जित करने हेतु हरिद्वार भेजा क्योंकि उस समय आने जाने के साधन के अभाव में वर्षों तक इकट्ठी अस्थियाँ लेकर पैदल ही हरिद्वार जाना पड़ता था। गंगा के पंडे इस बात पर अड़ गए कि 20 की अस्थियों के विसर्जन का नेग ₹20 लगेगा। पंडों ने लाला का तिरस्कार करना शुरू कर दिया, लाला उनसे तंग आकर अपनी सारी की सारी 200 बीघा जमीन पंडों को नेग में दे आया। चौमासे में बारिश के


[पृ.353]: बाद जब सब लोग अपना खेत जोतने लगे तब लाला ने अपना खेत छोड़कर दूसरों का खेत जोतना शुरू किया। जब उसकी पत्नी (बालू माली की पुत्री रुकमा) ने पूछा तो उसने बताया कि मैं तो सारी जमीन गंगा के पंडों को दक्षिणा में दे आया। यह वाकया बालू माली की बेटी ने अपने बाप को बताई तो माली परिवार उसे रुल्याणा माली ले आए। लाला शेषमा ने यहाँ आकर हासिल के बदले जमीन लेकर जोतना शुरू किया। सबसे पहले वर्तमान श्मशान भूमि के पूरब की तरफ वाली साठ बीघा जमीन जोती गई । फिर चार जगह 60-60 बीघा जमीन खरीदकर लाला ने अपने चार पुत्रों को दी। इस प्रकार इस गांव रुल्याणा माली में शेषमा वंश परंपरा की शुरुआत हुई। लोग बताते हैं कि जब लाला शेषमा इस गांव आकर बसा तो उसके दोनों बेटे जोधाडालू उम्र में बड़े-बड़े थे।

नीचे शेषमा गोत्र के बड़वा की बही से कुछ विवरण दिया जा रहा है।

पूरां गांव वालों ने गले में फूल (पूर्वजों की अस्तियां) डालकर लाला शेषमा को गंगा (हरिद्वार) भेज दिया परंतु वहां पंडे उन्हें सीधा साधा इंसान देखकर ज्यादा दान मांगते हैं। यह इतर बताया जा चुका है कि जोधा हट्टा-कट्टा एवं शालीन इंसान था।

लाला ने अपनी सारी जमीन गंगा के पंडों को दान में दे दी।

बालू माली की एक पुत्री (रुकमा) पूरां परणाई गई थी जो अपने पति लाला माली के साथ अपने पीहर रुल्याणा माली आ बसी।

मालियों की लड़की अपने पति के साथ पिता के इस गांव में आकर बस गई।


[पृ.354]: लाला शेषमा के दो बेटे जोधा व डालू हुए, आज के इस गांव रुल्याणा माली के सारे शेषमा इन्हीं दो के वंशज हैं।

जोधा के 4 पुत्र हुए जिनसे जोधा का वंश खूब बढा और डालू के राजू एक ही बेटा हुआ जो आज तक 1-1 ही चला रहा है।

रतना शेषमा इस शेषमा वंश की शान था। जिसने अपने तीन भाइयों के साथ शेषमा वंश का मान बढ़ाया।

रतना राहगीरों की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहता था और उन को भोजन कराए बिना जाने नहीं देता था। उन्होंने दो अनजान बरात भी जिमाई थी।


[पृ.355]: रविवार के दिन रामू शेषमा का जन्म हुआ था। रामू शेषमा का जन्म दसमी रविवार हुआ था। जिसने शेषमा वंश की शान बढ़ा दी।

राम लक्ष्मण की तरह बक्सा के बेटे रामू व बागा के नाम से यह बस्ती धन्य हुई है।

रामू धर्म पर चलने वाला इंसान था।


[पृ. 358]: रतना शेषमा - अपने समय का रुल्याणा माली गांव का सबसे उदार व परोपकारी इंसान माना जाता है। उसके पास पीतल जड़ा हुआ एक गाड़ा (बैलगाड़ी) थी जो उस समय ₹500 में खरीदी गई थी और उस समय के हिसाब से यह बहुत बड़ी रकम होती है। यह गाड़ा उस समय बहुत प्रसिद्ध था। यह बहुत महंगा और सबसे बड़ा माना जाता था। यह परहित में इतने संलग्न रहते थे कि रास्ते से गुजरते किसी भी राहगीर को बुलाकर भोजन कराए बिना जाने नहीं देते थे। इन्होंने दो बारात भोजन करवाई थी जिसे आज भी लोग याद करते हैं- एक किसी ब्राह्मण परिवार में और दूसरी राजपूतों की जो इस गांव से ऊंटों पर गुजर रही थी। बताया जाता है कि रतना शेषमा की पहुंच सीकर राज दरबार तक थी।

रामू शेषमा: रामू शेषमा का जन्म दसमी रविवार को हुआ था जो भाग्यशाली माना जाता है। मध्यम सुडौल शरीर परंतु 6 फीट ऊंचाई, सिर पर साफा, फीडी जूतियां, कानों में सोने के गुर्दे, व सांकली , हाथ में सोने का कड़ा, पैरों में चांदी की कड़ियां पहनते थे। उस जमाने में जब लोग लंगोट के सिवा बहुत कम कपड़े रखते थे तब यह धोती, गंजी, चोला व बारंडी-कोट पहनते थे। जिस समय लोग गुड़ के लिए तरसते थे यह मजदूरों को दूध-गुड़ भरपेट खिला कर उन्हें खुश रखते थे। उनका मानना था- "जितना चराओगे उतना ही काम करेंगे।" विपदा में हर किसी के लिए तैयार रहते थे और लड़ते-झगड़ते लोगों के बीच पहुंचकर कहते थे कि किसी भी चीज की कमी है तो मैं दे दूंगा। गांव में सांड के लिए ग्वार और गुड सबसे ज्यादा देने वालों में से एक थे। पढ़े-लिखे बिल्कुल नहीं परंतु कोई भी हिसाब तुरंत बता देते थे। कपटहीन तीक्ष्ण दिमाग था। जिस रास्ते से निकलते कोई न कोई व्यापार करते हुए ही निकलते थे। हर जाति के हिसाब से उसी प्रकार की व्यापारिक वस्तु ले आते थे यथा जूतियों के लिए फूल/फूली, चद्दर के टेंक, झाड़ी का रांग, मसाले, कपड़े इत्यादि। उनकी नजर में कोई काम छोटा-बड़ा नहीं था। उस समय लोग कहते थे- रामू जिस रास्ते से निकलता है लक्ष्मी बरसने लगती है। वह 4 गांव (जालू, खाखोली, चेलासीरुल्याणा माली) के बोहरा थे जिनमें कई शादियां तो इन्होंने अपने पैसे से खुद ही करवाई थी। इनकी एक आदत थी- वह अमूमन किसी संबंधी के घर खाना नहीं खाते थे। उन्होंने पीठ किसी की नहीं तकी, किसी की कोई गुम हुई वस्तु वापस लाकर दे देते थे। किसी का भी कोई उजाड़ (नुकशान) होता दिखता तो स्वयं सहायता के लिए पहुंच जाते थे। इनकी इमानदारी की आज भी मिसाल दी जाती है। गोरू शेषमा की मृत्यु के एक


[पृ. 359]: साल बाद विक्रम संवत 2035 (=1978 ई.) में रामू शेषमा की मृत्यु हुई। इस साल भयंकर टीडी आई थी जो खड़ी फसल को खा गई और अकाल पड़ा। रामू शेषमा की मौत शेषमा परिवार के लिए अपूर्णीय क्षति के साथ गांव के परिपेक्ष्य में एक अद्भुत वंश-काल का युग का अंत था। उनकी मौत पर लोगों द्वारा कही गई यह बात उनके गौरव को अभिभूत करने वाली है- शेषमा वंश का राम चला गया

बागा शेषमा: अक्खड़-निडर स्वभाव, जीवन में किसी के दुश्मन नहीं- निरपेक्ष, पक्ष-विपक्ष से परे गांव के इतिहास के सर्वश्रेष्ठ निष्पक्ष आदमी। गालीयुक्त मुंहफट अहित-रहित दबंग आवाज, हमेशा सत्य के पक्षकार, लोगों के कहने की परवाह न करते हुए कुछ भी पहनना-खाना, आंखों पर चश्मा, रफ-टफ मेहनती किसान-मजदूर का भेष, अपनी कही बात पर हमेशा अडिग, किसी भी परिस्थिति में कितने ही लोगों में एक ही अंदाज में बात करने में माहिर, कर्म का पुजारी जो मेहनत के लिए जन्मा मेहनत के लिए मरा, सादगी का सर्वोत्तम उदाहरण, पंचायती-राजस्व कानून का जानकर, गांधी जैसे ही कर्म और गांधी जैसा ही भेष! सचमुच रुल्याणा माली गांव का महात्मा गांधी।

अन्य जाट गोत्र

[पृ.361]: महला: महला पूर्णपूरा (लोसल) से आए थे। पूर्णपूरा (लोसल) से रूपा महला आया बताया जाता है। वह सीकर में ही पुरोहित द्वारा दी गई जमीन पर बस गया। बाद में राव राजा कल्याण सिंह के मुहासिब जेसू दरोगा (दीपपुरा) ने आगे चलकर इनको रुल्याणा माली में बसने पोली हेतु की जमीन का छोटा सा टुकड़ा दिया तथा जोतने हेतु जमीन जंगली गोचर भूमि (चाचाणी) के पास दी। रूपा के तीन बेटे एक बेटी थी।


[पृ.363]: रुल्याणा माली के बाकी महला बाद में अलफसर से आकर बसे थे।


'रुल्याणा माली', पृ.367, कसवां वंशवृक्ष

[पृ.367]: कसवां - रुल्याणा माली के राजू कसवां के 4 बेटियाँ हुई। छोटी का विवाह चिमना बुरड़क से हुआ। उसके पुत्र गोपाल हुआ। राजू के का पुत्र लाखू हुआ जिसके दो बेटे बीरमा और गणेशा हुये। बीरमा का पुत्र बकसा और उसका पुत्र निवास है। गणेशा का पुत्र कजोड़ जिसका पुत्र प्रकाश है।

गोदारा: [पृ.367-368]: रुल्याणा माली के गोदारा गोत्र में अणदा गोदारा का नाम सबसे ज्यादा चर्चित रहा है। ऐसा बताते हैं कि अणदा गोदारा इस गांव का सबसे भारी भरकम आदमी था। उस समय भरे चरस के लाव बिना थामणी के रोकने का काम कोई ऐसा असाधारण ताकत का धनी आदमी ही कर पाता था परंतु अणदा गोदारा तो इसे सहज ही कर लेता था। कहते हैं कि एक बार लोहारों का गाड़ा अकेले ही उठा कर के रख आया। सुबह लोहारों को अपना गाड़ा ढूंढते देख अणदा गोदारा उन से मुस्करी करने लगा। इनकी मां ने 5 सेर घी के लड्डू खाट के नीचे सिराने 1-1 प्रतिदिन सुबह के नाश्ते के लिए रखे परंतु अणदा गोदारा उनको एक ही रात सारे खा गया।


[पृ.369]: बिजारणिया - रुल्याणा माली के खींवा माली की बेटी पारा का विवाह बीबीपुर किया गया था परंतु कम उम्र में ही पति के खत्म होने के कारण वह वापस पीहर रुल्याणा माली आ गई। उस समय उसके एक बेटा था जिसका नाम सांवला था। यहीं से चलकर बिजारणिया गोत्र का इस गांव में वंश विस्तार हुआ। आगे चलकर सांवला के दो बेटे और तीन बेटियां हुई। बड़े बेटे का नाम परसा (>सुल्ताना) व छोटे का नाम जमना (>रुघनाथ), बेटियों का विवाह क्रमश: रूपराकसवाली किया गया।


'रुल्याणा माली', पृ.370, हुड्डा वंशवृक्ष

[पृ.370]: हुड्डा - रुल्याणा माली का हुड्डा परिवार, पीथा माली की जो बेटी गांगियांसर परणाई गई थी, उसी का बताया जाता है जो यहां गोद आकर बस गया। उदा (हुड्डा) के बाद से लेकर पीथा के आगे इस गांव में बसने वाले हुड्डा गोत्र के पहले व्यक्ति तक इनकी कड़ी क्या रही है? इसका तो पता नहीं चल पाया परंतु पन्ना की वंशावली यहाँ दी गई है।


[पृ.371]: बगड़िया - बगड़िया गोत्र चौहान वंश की शाखा माना गया है। बागड क्षेत्र से संबंधित होने के कारण सोहड़ देव के वंशज बगड़िया कहलाते हैं। रुल्याणा माली के बगड़िया सिगड़ोला छोटा से आकर बसे थे। भींवा की वंशावली नीचे दी गई है -

'रुल्याणा माली', पृ.371,बगड़िया वंशवृक्ष

[पृ.372]: डोटासरा - रुल्याणा माली के हीरा माली की पुत्री नाराणी का विवाह माना डोटासरा (गाँव डोटासरा) से हुआ था जो गोद आ गया। माना डोटासरा के पुत्र हैं - धन्ना, सुल्तान, रामकुमार।

पिलाणिया - रुल्याणा माली के भाना माली के पुत्र राजेश की पुत्री भवरी का विवाह सुटोट के भागीरथ पिलाणिया से हुआ था, दोहिता गोद आ गया।

पचार - रुल्याणा माली के भींवा माली की पुत्री रामकोरी का विवाह सबलपुरा के रामलाल पचार से हुआ था जो गोद आ गया। रामलाल पचार के पुत्र हैं - मनफूल, किशोर।

चबरवाल - झीगर की चबरवाल गोत्र के तीन भाई गोपी, गंगा व भगवानदास थे जिनमे से भगवानदास अविवाहित रहे, गाँव में रघुनाथजी/ठाकुरजी के मंदिर के पुजारी बन गए। भगवानदास अपने भाई गंगा के बेटों (पोखर, नाथा और बागा) में से नाथा को गोद ले आए। नाथा भगवानदास के बाद मंदिर के पुजारी बने।

Gallery of pages from Book

Population

As per Census-2011 statistics, Rulyana Mali village has the total population of 1638 (of which 829 are males while 809 are females).[5]

Notable persons

  • Raghunath Singh Bhaskar - I.R.S. (सहायक आयुक्त), वित्त मंत्रालय, भारत सरकार : Mob: 7303286310, Email:raghu.137@rediffmail.com. Author: रुल्याणा माली (झाँकता अतीत), भास्कर प्रकाशन सीकर, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0 {Peetha Mali → Dunga → Daughter Gyani (w/o Panna Bhakhar of Fagalwa) → Ratna → Dula → Hanuman → Ishwar → Raghunath Bhaskar}
  • Dr Harlal Singh Mali - Mob: 9549654561, Associate Professor in Mechanical Engineering Department at MNIT Jaipur Websites : Website-1 and Website-2, Email: harlal.singh@gmail.com; harlal.singh@mnit.ac.in (Peetha Mali → Balu → Mala → Nanag → Jhuntha → Gula → Bholu → Harlal Mali)
  • Peetha Mali - चौ.पीथा माली (मृत्यु:24 जुलाई 1828 गुरुवार) - 22 अप्रैल 1784 गुरुवार के दिन खंडहर बन चुका रुल्याणा गांव पुनः आबाद हुआ और पीथा इस गांव को बसाने वाला द्वितीय प्रवर्तक बना। पीथा माली के पिता का नाम दीपा माली था। पीथा माली की दो पत्नियाँ थी - पहली पत्नी पेमाराम की बेटी फूलां और दूसरी पत्नी सेवा गाँव की किसनी। पीथा माली के 5 बेटे हुये - 1. बालू, 2. डूंगा, 3. रामू, 4. रूपा, 5. उदा। पीथा माली के 6 बेटियाँ हुई - 1. रामा, 2. अणदी, 3. मेह, 4. बरजी, 5. गंगा, 6. जीवणी [6]
  • लाला माली - पीथा माली का पौता और डूंगा का बेटा। लाला भैरों से पहले चौधरी था और उनकी धाक चारों तरफ थी। [7] इनकी याद में पुत्र मंगला माली ने एक 6-7 फीट ऊँचा चबूतरा श्मशान घाट में बनाया था। वर्तमान में इस स्मारक के कोई अवशेष नहीं बचे हैं। [8]
  • जालू माली - जालू व्यवहार से उद्दंदी था। वह धाड़ा दौड़ता था। धाड़वी जलवे के कारण किसी की परवाह नहीं करता था। जालू के दो अजीज मित्र थे - अपने भाई पन्ना का साला खींवसर का चलका जाट और सोला गाँव का डूंगजी। [9]
  • डालू माली - जालू व्यवहार से बहुत अच्छा इंसान था। वह बिना किसी प्रतिफल के उम्मीद के नि:स्वार्थ भाव से गाँव के सार्वजनिक काम करते थे। [10]
  • दूदा माली - दूदा स्वभाव से बहुत सीधा-सादा अच्छा इंसान था। उसको अपनी मृत्यु का आभास पहले ही हो गया था। [11]
  • हणमान माली - इस गाँव और आसपास के गाँवों में इनकी सबसे ज्यादा स्मरण-शक्ति थी। लोक-परिवेश में घटित हर घटना, जन्म-मृत्यु सहित सब तिथियाँ इनको याद रहती थी। [12]
  • रूघनाथ माली (मृत्यु: 05.10.2003) - सामाजिक कार्यकर्ता [13]
  • धना कसवां - लोग इनको कसवां वंश-श्रंखला की उस समय तक की सबसे मजबूत कड़ी मानते थे। [14]

External links

References

  1. http://www.onefivenine.com/india/villages/Sikar/Lachhmangarh/Rulyana-Mali
  2. Jat History Thakur Deshraj/Chapter X, p.705
  3. Memoirs of Humayoon P.45
  4. ट्राइब्स एण्ड कास्ट्स ऑफ दी नार्थ वेस्टर्न प्राविंसेज एण्ड अवध
  5. http://www.census2011.co.in/data/village/81449-rulyana-mali-rajasthan.html
  6. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p.93
  7. रुल्याणा माली (झाँकता अतीत), लेखक - रघुनाथ भाखर (Mo:7303286310, भास्कर प्रकाशन सीकर, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0 , p. 155
  8. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p. 167
  9. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p. 156
  10. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p. 157
  11. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p. 157
  12. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p. 157
  13. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p. 157
  14. Raghunath Bhakhar: 'Rulyana Mali' (Jhankata Ateet), Bhaskar Prakashan Sikar, 2022. ISBN: 978-93-5607-079-0, p. 158

Back to Jat Villages