Chillianwala

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Chillianwala (चिल्लियांवाला/ चिलियानवाला) is a town and union council of Mandi Bahauddin district in the Punjab province of Pakistan. It is located at 32°39'0N 73°36'0E at an altitude of 218 metres (718 feet) and lies to the north-east of the district capital Mandi Bahauddin.

Chillianwala is one of the largest villages in Pakistan. Before 1992, it was part of district Gujrat, but now, it is a part of Mandi Bahauddin. Chillianwala is culturally very rich. It has its own traditions and values, which are very different from other villages in the area.

History

It is famous for being the location of the Battle of Chillianwala that took place in 1849 between the forces of the Sikh Khalsa army and the British Army (after the death of Maharaja Ranjit Singh.

The most notable thing in the centre of the village is two graveyards which are both deeply respected by the citizens of Chellianwala, nearly million rupees have been donated by provincial government with the efforts of ex-chairman Chellianwala Chaudhary Nasir Ahmed, son of Chaudhary Ghulam Ahmad, from the royal Ameereke family and efforts are still being put in to highlight its historical importance and military significance, this has so far been a success. History.


About second Sikh War in Chillianwala, Thakur Deshraj writes:

......लार्ड गफ ने हिम्मत तब भी न छोड़ी और एक अन्तिम उद्योग करना उचित समझा। ब्राइण्ड और ह्वाइट को सिक्खों के दाहिनी ओर हमला करने का हुक्म दिया। वे तोपों की गर्जना के साथ आगे बढ़े। शत्रु-सेना छिन्न-भिन्न देखकर अतरसिंह के तोपखानों ने कुछ देर के लिए गोला छोड़ना बन्द कर दिया। ब्राइड ने सोचा कि मेरी मार के डर से अतरसिंह ने तोपें बन्द कर दीं हैं। ब्राइड इस कल्पना में मग्न था कि शत्रु की तोपें आग उगलने लगीं। अंग्रेजों की कुगति हुई। सारे दिन सिखों से पिटने के बाद, शाम को अतरसिंह से मार खाकर और अपनी रसद को छोड़कर सेनापति गफ चिलियानवाला भाग गया।

यह सिखों की विजय का दिन था। नेपोलियन को हराने वाला वीर उनका सामना करने में असफल रहा था। सिखों ने भागते गफ का पीछा न करके घायलों की देखभाल और मृतकों का संस्कार करना उचित समझा। जीतकर लाया गया अंग्रेजों का झण्डा भी सिखों के हाथ लगा।

हारकर भागते हुये भी गफ ने जीत के बाजे बजवाये, तोपें चलवाईं। डलहौजी ने तो झूठी जीत में प्रत्येक तोप चलवाई। यह केवल एक चाल थी, लोगों को डराने तथा धोखे में रखने की, ताकि जनता विद्रोह में शामिल न हो। अंग्रेजों की हार का पता लेकिन ग्रिफिन की पुस्तक पंजाब राजाज के उद्धरणों से लगता है। उसने लिखा था - “चिलियानवाला का युद्ध अफगानिस्तान की महाहत्या के समान ही अंग्रेजों के लिये भयानक हुआ।” कलकत्ता रिव्यू में एक अंग्रेज ने लिखा - “भारत में अंग्रेजों ने जितने युद्ध किये हैं, चिलियानवाला का युद्ध उनमें से अति भयानक था।” वो भी सिपाही रिवोल्ट नामक पुस्तक में लिखता है - “चिलियानवाला युद्ध


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठान्त 374


में ब्रिटिश तोपें छीन ली गईं। सिखों के हाथ ब्रिटिश झण्डे लगने से उनका गौरव बढ़ा। ब्रिटिश घुड़सवार सिखों के डर से भेड़-बकरियों की तरह भागने लगे।” कनिंघम भी इस युद्ध की तुलना सिकन्दर और पोरस के युद्ध से करता है।

चिलियानवाला की हार से इंग्लैंण्ड में भी हाय-तोबा मच गई। गफ को अयोग्य समझकर हटा देने की बात सोची गई। पर गुजरान-युद्ध की विजय का श्रेय मिल जाने से वह बच गया।[1]

Jat gotras

  • Siddhu gotra was the main gotra in this village before 1947. After creation of Pakistan, because of migration of Hindus to Indian part of Punjab, the situation has changed.

Population

The predominantly Muslim population in the surrounding villages around Chillianwala supported Muslim League and Pakistan Movement. After the independence of India, in 1947, the minority Hindus and Sikhs migrated to India while the Muslims refugees from India settled down in Mandi Bahauddin District.

Notable persons

External links

References


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