Elephanta

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(Redirected from Gharapuri)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Elephanta Caves (एलिफेंटा गुफाएँ) are a UNESCO World Heritage Site and a collection of cave temples predominantly dedicated to god Shiva in Maharashtra near Mumbai.[1]

Variants

Location

They are located on Elephanta Island, or Gharapuri (literally "the city of caves") in Mumbai Harbour, 10 kms to the east of the city of Mumbai in the Indian state of Mahārāshtra. The island, located offshore about 2 kms west of the Jawaharlal Nehru Port, consists of five Shaivite caves and a few Buddhist stupa mounds that may be dating to the 2nd century BCE,[2] as well as a small group of two Buddhist caves with water tanks.[3]

Origin

They were named Elefante – which morphed to Elephanta – by the colonial Portuguese when they found elephant statues on it.

History

The Elephanta Caves contain rock cut stone sculptures that show syncretism of Hindu and Buddhist ideas and iconography.[4] The caves are hewn from solid basalt rock. Except for a few exceptions, much of the artwork is defaced and damaged.[5] The main temple's orientation as well as the relative location of other temples are placed in a mandala pattern.[6] The carvings narrate Hindu mythologies, with the large monolithic 20 feet Trimurti Sadashiva (three-faced Shiva), Nataraja (Lord of dance) and Yogishvara (Lord of Yoga) being the most celebrated.[7]

The origins and date when the caves were constructed have attracted considerable speculations and scholarly attention since the 19th century. These date them between 5th and 9th century, and attribute them to various Hindu dynasties. They are more commonly placed between 5th and 7th centuries. Most scholars consider it to have been completed by about 550 CE.[8][9]

They were named Elefante – which morphed to Elephanta – by the colonial Portuguese when they found elephant statues on it. They established a base on the island, and its soldiers damaged the sculpture and caves. The main cave (Cave 1, or the Great Cave) was a Hindu place of worship until the Portuguese arrived, whereupon the island ceased to be an active place of worship.[10] The earliest attempts to prevent further damage to the Caves were started by British India officials in 1909. The monuments were restored in the 1970s. In 1987, the restored Elephanta Caves were designated a UNESCO World Heritage Site. It is currently maintained by the Archaeological Survey of India (ASI).[11]

एलिफेंटा गुफ़ाएँ

विजयेन्द्र कुमार माथुर[12] ने लेख किया है ...एलिफेंटा की गुफ़ाएँ (AS, p.113)) - अपोलो वंदर, बम्बई से समुद्र में 7 मील उत्तर पूर्व की ओर एक छोटा सा द्वीप है। इसका व्यास लगभग 4.5 मील है। यहां दो पहाड़ियां हैं जिनके बीच में एक संकीर्ण घाटी है। द्वीप का नाम प्राचीन नाम घारापुरी है।

ऐहोड़ अभिलेख में पुलकेशिन द्वितीय द्वारा विजित जिस पुरी का उल्लेख है वह हीरानंद शास्त्री के मत में यही स्थान है।[13] पुर्तग़ाल के यात्री वाँन लिंसकोटन के 'डिस्कोर्स आव वायेजेज' नामक ग्रंथ से सूचित होता है कि 16वीं शती में (1579 ई. के लगभग) यह द्वीप पोरी अथवा पुरी नाम से प्रसिद्ध था। द्वीप की पहाड़ियों में 5वीं - 6वीं शती ई. में बनी हुई और पहाड़ियों के पार्श्व में तराशी हुई पांच गुफाएं हैं। इनमें हिंदू धर्म से संबंधित अनेक मूर्तियां, विशेषकर, शिव की मूर्तियां गुप्तकालीन कला के उत्तम उदाहरण हैं।

एलिफेंटा में भगवान शंकर के कई लीला रूपों की मूर्तिकारी, एलोरा और अजंता की मूर्तिकला के समकक्ष ही है। महायोगी, नटेश्वर, भैरव, पार्वती-परिणय, अर्धनारीश्वर, पार्वतीमान, कैलाशधारी रावण, महेशमूर्ति शिव तथा त्रिमूर्ति यहां के प्रमुख मूर्ति चित्र हैं। त्रिमूर्ति जिसका चिह्न भारत के डाक टिकट पर है- वास्तव में शिव के ही 3 विविध रूपों की मूर्ति है न कि त्रिदेवों की। नटराज शिव के मुख पर परिवर्तनशील संसार की उपस्थिति में जिस संतुलित, शांत तथा संयत भावना की छाप है वह गुप्तकालीन मूर्तिकला के प्रख्यात विशिष्टता है। यहां की मुख्य गुफा तथा पार्श्ववर्ती कक्षों में अजंता के अनुरूप भित्ति-चित्रकारी भी थी किंतु अब वह नष्ट हो गई है। पुर्तगालियों ने इसका उल्लेख भी किया है।

एलिफेंटा पर 16वीं शती में मुम्बई तट पर बसने वाले पुर्तग़ालियों का अधिकार था। इन कला शून्य व्यापारियों ने इस द्वीप की सुंदर गुफाओं का गोशालाओं, चारा रखने के गोदामों, यहां तक कि चांदमारी के लिए प्रयोग करके इनका कला वैभव नष्ट प्राय: कर दिया। 16वीं शती ई. तक राजघाट नामक स्थान पर हाथी की एक विशाल मूर्ति अवस्थित थी। इसी कारण पुर्तग़ालियों ने द्वीप को एलिफेंटा का नाम दिया था। (देखें - काराद्वीप)

काराद्वीप

विजयेन्द्र कुमार माथुर[14] ने लेख किया है ...काराद्वीप (AS, p.172) आर्यशूर की जातकमाला के अगस्त्य-जातक में कारादीप का उल्लेख है. इस द्वीप की स्थिति दक्षिण समुद्र में बताई गई है. कारादीप का अभिज्ञान [p.173]: संदेहास्पद है. संभव है यह घारापुरी का वर्तमान एलिफेंटा द्वीप हो. घारापुरी नाम प्राचीन है और यह अनुमेय है कि कालांतर में मूल शब्द 'कारा' का रूपांतर घारा हो गया हो. पर एलिफेंटा दक्षिण समुद्र में न होकर पश्चिम समुद्र में स्थित है किंतु प्राचीन काल में उत्तर भारतियों की दृष्टि में दक्षिण और पश्चिम समुद्र में अधिक भेदभाव नहीं जान पड़ता. (देखें एलिफेंटा)

एलिफेंटा गुफ़ाएँ : एक परिचय

एलिफेंटा की गुफ़ाएँ महाराष्ट्र राज्य के मुंबई शहर में पौराणिक देवताओं की अत्यन्त भव्य मूर्तियों के लिए विख्यात है। इन मूर्तियों में त्रिमूर्ति शिव की मूर्ति सर्वाधिक लोकप्रिय है। ये गुफ़ाएँ मुंबई से 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।एलिफेंटा की गुफ़ाएँ मुम्‍बई महानगर के पास स्थित पर्यटकों का एक बड़ा आकर्षण केन्‍द्र हैं। एलिफेंटा की गुफ़ाएँ 7 गुफ़ाओं का सम्मिश्रण हैं, जिनमें से सबसे महत्‍वपूर्ण है महेश मूर्ति गुफ़ा। एलिफेन्टा के गुहा मन्दिर राष्ट्रकूटों के समय में बने। एलिफेन्टा की पहाड़ी में शैलोत्कीर्ण करके उमा महेश गुहा मन्दिर का निर्माण लगभग 8वीं शताब्दी में किया गया। इन गुफ़ाओं को घारापुरी के पुराने नाम से जाना जाता है जो कोंकणी मौर्य की द्वीप राजधानी थी।

एलिफेंटा की गुफ़ाओं के पर्वत पर भगवान शिव की मूर्ति भी है। मंदिर में एक बड़ा हॉल है जिसमें भगवान शिव की नौ मूर्तियों के खण्ड विभिन्न मुद्राओं को प्रस्तुत करते हैं। इस गुफ़ा में शिल्‍प कला के कक्षों में अर्धनारीश्‍वर, कल्‍याण सुंदर शिव, रावण द्वारा कैलाश पर्वत को ले जाने, अंधकारी मूर्ति और नटराज शिव की उल्‍लेखनीय छवियाँ दिखाई गई हैं। एलिफेंटा में भगवान शंकर के कई लीलारूपों की मूर्तिकारी, एलौरा और अजंता की मूर्तिकला के समकक्ष ही है। एलिफेंटा की गुफ़ाएँ चट्टानों को काट कर मूर्तियाँ बनाई गई है।

इस गुफ़ा के बाहर बहुत ही मज़बूत चट्टान भी है। इसके अलावा यहाँ एक मंदिर भी है जिसके भीतर गुफ़ा बनी हुई है। एलिफेंटा की गुफ़ाएँ से हर तीस मिनट के बाद एक नाव जाती है जो केवल सुबह के नौ बजे से लेकर दोपहर के बारह बजे के बीच ही चलती है। अपोलो बंडर से एलीफेंटा के बीच नाव चलने का समय दोपहर के एक बजे से लेकर शाम बजे के बीच वापस आती है।

संदर्भ: भारतकोश-एलिफेंटा की गुफ़ाएँ

External links

References

  1. https://www.britannica.com/place/Elephanta-Island
  2. https://www.britannica.com/place/Elephanta-Island
  3. Brunn, Stanley D. (2015). The Changing World Religion Map: Sacred Places, Identities, Practices and Politics. Springer. p. 514. ISBN 9789401793766.
  4. "Elephanta Caves". Works Heritage: Unesco.org.
  5. Stella Kramrisch (1988). The Presence of Siva. Motilal Banarsidass. pp. 443–445. ISBN 978-81-208-0491-3.
  6. Elephanta Island, Encyclopedia Britannica
  7. Elephanta Island, Encyclopedia Britannica
  8. George Michell (2015). Elephanta. Jaico. pp. 1–4, 30–33, 96–98. ISBN 978-8-184-95603-0.
  9. Walter M. Spink (2005). Ajanta: The end of the Golden Age. BRILL Academic. pp. 182–183. ISBN 90-04-14832-9.
  10. Elephanta Island, Encyclopedia Britannica
  11. "Elephanta Caves". Works Heritage: Unesco.org. Retrieved 2010-02-10.
  12. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.113
  13. ए गाइड टू एलिफेंटा - पृ.8
  14. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.172-173