Rashtra Gauravon Ka Sangharsh

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राष्ट्र गौरवों का संघर्ष

स्रोत: सम्पादकीय लेख - जाट समाज पत्रिका, आगरा, अंक मई-जून-2023, पृ.5

देश का सम्मान एवं गौरव बढ़ाने वाले कुश्ती खिलाड़ियों को एक माह से अधिक समय तक जंतर-मंतर पर भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष के विरुद्ध गिरफ्तारी की मांग को लेकर धरना देना पड़ा. धरने के चलते और नई संसद के उद्घाटन वाले दिन भारत के गौरव इन पहलवानों को बड़ी बेरहमी और असम्मान तरीके से जबरदस्ती हटाकर धरना स्थल पर रोक लगा दी गई. देश के गौरव इन खिलाड़ियों को न्याय के लिए सड़क पर बैठकर गुहार लगानी पड़ी. इसके बाद भी उन्हें न्याय नहीं मिल पा रहा है, गुस्सा और हताशा में उन खिलाड़ियों ने अपने अंतरराष्ट्रीय मेडल गंगा में प्रवाहित करने का निर्णय लिया और ये हरिद्वार तक पहुंचे भी किंतु प्रबुद्ध और समाज के वरिष्ठ लोगों के समझाने पर कि मेडल उनकी मेहनत और योग्यता से मिले हैं किसी सरकार या व्यक्ति की कृपा से नहीं, अतः इसे टाल दिया गया.

सात महिला पहलवानों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाते हुए उसके विरुद्ध प्राथमिकी पुलिस में दर्ज कराकर जांच किए जाने की मांग की थी. उच्चतम न्यायालय ने याचिका पर संज्ञान लेते हुए दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया था. प्राथमिकी दर्ज हो गई. कोर्ट ने आदेश दिया कि पहलवान चाहें तो निचली अदालत या उच्च न्यायालय जा सकते हैं और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई बंद कर दी. अतः न्याय पाने के लिए खिलाड़ियों का धरने पर बैठना मजबूरी हो गई. इसके फलस्वरूप भारतीय कुश्ती महासंघ को भंग कर दिया और 7 मई 2023 को कार्यसमिति के होने वाले चुनाव को भी रद्द कर दिया.

खेल मंत्रालय का कथन है कि आरोपों की जांच के लिए सरकार द्वारा 23 जनवरी 2023 को गठित निगरानी समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी है और वर्तमान में इसकी जांच की जा रही है. कुछ अन्य निष्कर्षों में यौन उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम 2013 के अंतर्गत विधिवत गठित आंतरिक शिकायत समिति के अनुपस्थिति और शिकायत निवारण के लिए खिलाड़ियों के बीच जागरूकता के लिए पर्याप्त तंत्र की कमी शामिल है. मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि खिलाड़ियों सहित महासंघ और विधायकों के बीच अधिक पारदर्शिता और परामर्श की आवश्यकता है. महासंघ और खिलाड़ियों के बीच प्रभावी समाज की आवश्यकता है. इस संबंध में 6 सदस्य निगरानी समिति का गठन किया गया है जिसमें पहलवान बबीता फोगाट भी शामिल है.

केंद्र सरकार द्वारा कोई ठोस कार्रवाई आरोपी के खिलाफ न होने के कारण खिलाड़ियों और आम लोगों में आक्रोश है. विपक्षी दलों के नेता प्रायः अपनी राजनीति चमकाने के लिए धरना स्थल पर आते रहे किन्तु किसी के द्वारा जन समर्थन नहीं जुटाया गया. केवल खिलाड़ियों का मनोबल ही बढा किन्तु धरने का राजनीतिकरण हो गया. सरकार और विरोधियों को इसमें राजनीतिक लाभ हुआ है जो कि आगामी चुनाव को प्रभावित कर सकता है.

देश के सम्मान के लिए खून पसीना बहाने वाले खिलाड़ियों का प्रारंभ में संज्ञान प्रभावी ढंग से न खेल मंत्रालय ने, न गृहमंत्री ने और न प्रधानमंत्री ने लिया. देश के प्रबुद्ध वर्ग और अखबारों की भूमिका भी नाममात्र की रही. सजातीय बंधुओं और खाप पंचायतों के सक्रिय हो जाने पर इस आंदोलन को जाट, किसान और खालिस्तान से भी कुछ तत्वों ने जोड़ने का प्रयास किया. हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पंजाब के किसानों की सक्रिय सहभागिता को राजनीतिक रंग देने की पूरी कोशिश की गई जो बहुत शर्मनाक है. यही खिलाड़ी जब देश के लिए मेडल लाएं तो पूरा देश गौरवान्वित हो और जब इनके प्रति अपने ही देश में अन्याय हो तो चुप्पी क्यों? क्यों नहीं लोग इनके समर्थन में सड़कों पर निकलते?

महिला खिलाड़ियों के प्रति देश के नागरिकों की इतनी उदासीनता खेल जगत और देश के गौरव के लिए घातक होगी. कौन अपनी बेटी को खेलने के लिए प्रोत्साहित करेगा. महिलाओं के मान-सम्मान के साथ-साथ खेल संस्कृति का भी भारी अहित हो रहा है. यदि खेल संघों की कार्यप्रणाली विवादास्पद, भ्रष्टाचारयुक्त , शोषण से घिरी रहेगी तो देश में खेलों का उन्नयन एवं स्वस्थ खेल भावना का विकास संभव नहीं है. महिला खिलाड़ियों को सुरक्षित एवं निर्भययुक्त वातावरण मिलना चाहिए. खेल संघों को राजनेताओं से परहेज करके पूर्व खिलाड़ियों को ही इनका पदाधिकारी चुनना चाहिए ताकि वह खेल भावना के अनुरूप सच्चे मन से कार्य कर सकें. महिला खिलाड़ियों के इस मामले में प्रधानमंत्री को विशेष रूचि लेकर आरोपी की शीघ्रता से जांच कराकर कानून के अनुसार कार्रवाई करनी चाहिए. प्रधानमंत्री को स्वयं देश के गौरव इन खिलाड़ियों से भी बातचीत करनी चाहिए. सरकार की उदासीनता आरोपी की हिम्मत बढ़ा रही है जिससे सरकार और भाजपा की छवि पर प्रश्न चिन्ह उठ रहे हैं.

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