Ror

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Ror (रोर)[1] Rod (रोड़) Rur (रूर)[2] is gotra of Jats. It is variant of Rora (रोरा)[3] Roda (रोड़ा) clan. They were powerful about 7000 years back.[4] Ror community supported Chauhan Federation. Rorak/Rod clan is found in Afghanistan.[5]

Villages after Roda

History

The Ror (रोड़) clan is fairly small and well-knit; as of today, they hold nearly 270 villages in Haryana and 52 more in Western Uttar Pradesh and the Haridwar district of Uttaranchal.

In his famed work, "A Glossary of the Tribes and castes of Punjab and North-West Frontier Provinces", H.A. Rose says that the Ror are fine, stalwart men. Quoting from the third volume, Rose says:[6]

The real seat of the Ror is the great Dhak jungles of Thanesar. They hold 84 villages and Amin is the "Tika" or head village. They also hold 12 villages south of Kaithal and the gotra there is Turan. Again, there are 12 more villages of the Ror beyond the Ganges. The immediate place of origin of the Rors seems to be Badli in Jhajjar tehsil of Rohtak district and all of them unanimously claim to have come from there.

In the Archaeological Survey of India Report for the year 1871-72, A.C.L. Carlleyle says about the image of a Ror warrior found at the site of Kaga Ror or Kagarol:[7]

The features of the face are fine and manly, of the handsomest Hindu type. The warrior has his right knee raised; on his right arm he presents a shield in defense and in the left hand he brandishes a straight sword of huge dimensions over his head. In a belt round his waist he wears a dagger with a cross-shaped hilt at his left side. The hair of the head is full but drawn back in straight lines on the head. Evidently, its a figure of a warrior of great strength.

The fort at Bhainsror in Southern Rajasthan is supposed to have come up in the 2nd century B.C. and the Kagarol (Kaga Ror)[8] ruins near present-day Agra have also pointed to a similar time-line for another branch of Rors who ruled from there. The coins found in the Agra circle by Sir Alexander Cunningham [9] seem to indicate a close relationship between the Ror rulers of the area and the rulers of Hastinapur and Indraprastha. A few coins found close to the site have been dated to the 3rd century CE by Cunningham as a result of the general style of the coins and the type of Sanskrit used.[10]

Rora (रोरा) is variant of Rathors. They had rule in Kagarol (कागारोल) near Agra in Uttar Pradesh. [11]

Genetic Similarity

Rod clan is listed in Jat clans. Though one theory tells that Ror's ancestral root is in Maharashtra state of India. This clan's warriors came in Haryana to fight third battle of Panipat in 1761. In the the command of Sadashiv Rao Bhau. In this battle Maratha's lost and many Maratha soldiers and commanders never came back in Maharashtra, then Maratha Kingdom. They began to live around the villages of Panipat, which was main battle ground in that massive war. Many descendants of these soldiers and warrior's now live in this place.

However other theory tells he is a Ror Jat whose DNA match 100 percent to Rohtak Jats as per Prof Pathak from Harvard and only social custom they took from Maratha was marriages in Adla Badli as during 3rd battle of Panipat that’s why Chaudhary Virendra Singh created a Ror Maratha political alliance to defeat Devi Lal. They are restricted to Haryana only with 5 to 6 Lakh only.

According to Ajay Kumar Pathak[12][13] Demographic PNWI History Based on Allele Frequency and Haplotype-Sharing Analyses Outgroup f3 analysis in the form of (PNWI, X; Yoruba) showed that the Ror and Jats have distinct high genetic similarity to modern Europeans, far higher than the similarity observed in other NWI populations, such as the Gujjar......In CHROMOPAINTER analysis, as expected, the Ror (and Jat) exhibited a significantly higher number of chunks received from Europeans than do other NWI populations studied (t test, p value < 0.01). The excess sharing between the Ror and Europeans was made evident by the NNLS ancestry-profiling method, which we used to report the ancestry proportions of seven regional groups. Furthermore, the same analysis supports our previous observation suggesting a high degree of heterogeneity among PNWI groups. Populations such as the Ror and Jat possess more European and less Indian Indo-European (IN_IE) ancestry than other PNWI groups.

Scientific studies suggest that Ror and Jat are of the same stock.[14]

जाट इतिहास

ठाकुर देसराज[15] लिखते हैं - आरम्भ में ये लोग पंजाब में आबाद थे और राठौर, राठी आदि की भांति अरट्टों के उत्तराधिकारी हैं। संयुक्त-प्रदेश में कागरौल नामक स्थान के पास इनका राज्य था, जो कि इनके काक नाम के राजा के नाम पर बसाया हुआ जान पड़ता है। कहा जाता है उसका किला एक मील के घेरे से भी अधिक था। जैगारे व कागरौल के बीच में उसके निशान अब तक बताये जाते हैं। रोर या रूर लोग अब से सात सौ वर्ष वैभवशाली थे। लाखा बंजारे की और सोरठ की गाथा का इन रोर लोगों से ही सम्बद्ध है, ऐसा भी अनुमान किया जाता है।

रोरो

एक भ्रम रोड़ (जाति) कौन हैं?

डा कृष्ण पाल सिंह तेवतिया

अभी हाल ही में सम्पन्न हुए टोक्यो ओलम्पिक खेलों में हरियाणा के नीरज चोपड़ा ने भाला फेंकने में स्वर्ण पदक हासिल किया। नीरज चोपड़ा के गोत्र व जाति को लेकर काफी चर्चाएँ चल रहीं हैं। नीरज वैसे तो हरियाणा की रोड़ बिरादरी से संबंध रखते हैं । काफी लोगों का सवाल है कि हरियाणा के रोड़ कौन हैं? रोड़ जाति के इतिहास को लेकर पिछले कुछ वर्षों में एक भ्रम फैलाया गया है कि हरियाणा में जो ये रोड़ जाति है इनका संबंध मराठों से हैं, ये वो लोग हैं जो 1761 की पानीपत की लड़ाई में मराठा सेना में महाराष्ट्र से यहाँ आए थे।

मराठा और रोड़ इतिहास का यह भ्रम 1990 के बाद फैलाया गया है। सोचने वाली बात है कि क्या मराठा सेना इतनी बड़ी तादाद में आई थी कि मात्र ढाई सो साल में उनके इतने गाँव बस गए ? जबकि युद्ध में हार के पश्चात हारी हुई मराठा सेना के परिवारों को महाराजा सूरजमल ने सकुशल वापिस महाराष्ट्र भिजवाया था, और जो जाट सैनिक इन परिवारों को वापिस छोड़ने गए थे उनमें से काफी वही बस गए थे ।

उन जाट सैनिकों के वंशजों को आज भी अपनी जाति का पता है और सभी के सभी अपनी जाति जाट और अपने गोत लिखते हैं । जहां वो बसे हैं उन गावों को जाट बाईसा के नाम से जाना जाता है और वर्तमान में हते सिंह पुनिया उनके प्रधान हैं। तो फिर उस समय में आए ये मराठा सैनिक, जिन्हें कुछ लोग अब रोड़ बता रहे हैं, वे अपनी जाति अपना इतिहास कैसे भूल गए ? दूसरा प्रश्न यह है कि यह कैसा इतिफाक है कि युद्ध में हार के पश्चात सभी मराठा सैनिक पानीपत से ऊपर की ओर यानि उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर गए ?

जबकि मराठा सेना का सेनापति सदाशिव राव भाऊ युद्ध में हार के पश्चात अपनी जान बचाता हुआ जिला रोहतक के गाँव सांघी (पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भूपिंदर सिंह हुड्डा का गाँव) की तरफ आया और फिर साधू बनकर इसी गाँव में रहा, जहां उनके नाम की आज भी समाधि बनी हुई है। सोचने वाली बात है कि जब सदाशिव राव सांघी गाँव की तरफ आए तो उनके साथ उनके कुछ सैनिक भी आए होंगे तो फिर इस तरफ मराठों अर्थात रोड़ जाति का कोई गाँव क्यों नहीं है? यदि रोड़ ही मराठे हैं, तो वो हर वर्ष भाऊ की समाधि पर लगने वाले मेले में क्यों नहीं आते?

दरअसल, यह सब कोरी झूठ है जिसका प्रचार 1990 के बाद किया गया । हरियाणा की रोड़ जाति का मराठों से कोई संबंध नहीं है । यह सब झूठा प्रचार किसी साजिश के तहत किया गया लगता है । रोड़ जाति जाट जाति का ही एक हिस्सा है । यदि हम पहनावे की बात करें तो रोड़ जाति की औरतों का पहनावा ब्राह्मणवादी पहनावा अर्थात साड़ी न हो कर सूट सलवार ही है , जो जाटनियों का भी है; जबकि हरियाणा में जो ब्राह्मणवादी जातियाँ हैं उनकी औरतें साड़ी पहनती हैं । ऐसे ही रोडों में भी करेपा अर्थात विधवा विवाह की प्रथा है, जबकि ब्राह्मणवादी जातियों में यह प्रथा नहीं है ।

ऐसे ही यदि हम गोतों की बात करें तो रोड़ जाति के लगभग सभी गोत जाटों से मिलते हैं। रोड़ जाति के कुछ मुख्य गोत जो जाटों में भी पाए जाते हैं- अत्री, बढ़गुज्जर, चौपड़ा (गोयत), दहिया, गुलिया, गोलन, चौहान, हुड्डा, खोखर, गोरा, जागलान, कादियान, भाकल, कैंधल, लांबा, लाठर, महला, राणा, बड़सर, बालन,भूरा, धनखड़, आदि। ऐसे गोत कोई भी मराठा जाति में नहीं हैं। मराठा जाति में राजपूत जाट और गुर्जर जाति का पँवार गोत समान रूप से पाया जाता है। रोड़ भी जाटों की ही तरह चौधरी टाइटल लगाते हैं।

रोड़ जाति के इतिहास पर श्री रामदास अपनी किताब ‘आर्यावरत एवं रोड़ वंश का इतिहास‘ में लिखते हैं कि रोड़ सिंध से आए थे और 450 ईसा पूर्व राजा धज ने रोड़ साम्राज्य की स्थापना की थी। राजा सिहासी राय, जिनकी चच ने धोखे से जहर देकर हत्या कर दी थी वो राजा धज के ही वंशज थे। रोड़ इतिहासकार के इस कथन से भी स्पष्ट है कि रोड़ और जाट एक ही हैं। क्योंकि सिंध जाटों की रियासत थी और राजा सिहासी राय मोर गोत के जाट थे। रोड़ जाटों का एक गोत भी है। जाटों के रोड़ गोत की वंशावली का इतिहास तथा रोड़ जाति का इतिहास बिलकुल एक है। इतिहास में एकमत यह भी है कि रोड़ बादली (झज्जर) से कुरुक्षेत्र-करनाल क्षेत्र में आकर बसे थे ।

सन् 1207 में तुर्क हमले के बाद बादली से कुछ आदमी, चारण भाटों के अनुसार 84 आदमी, यहाँ थानेसर के जंगल में बसाए गए थे। बादली क्षेत्र गुलिया खाप का क्षेत्र है तथा बदली गाँव गुलिया गोत के जाटों का एक बड़ा गाँव हैं और भाटों के अनुसार उन 84 आदमियों में एक गुलिया भी था और इसके इलावा जो दूसरे गोत थे उनमें खोखर, धनखड़, हुड्डा, कादियान, दहिया, महला, जागलान आदि कुछ ऐसे गोत हैं जो रोहतक जिले में जाटों के गोत हैं । इससे सपष्ट है कि भाटों ने जिन 84 आदमियों का इस क्षेत्र से वहाँ बसने का लिखा है वह जाट थे।

ओलंपिक चैम्पियन नीरज चोपड़ा के गोत को लेकर भी हैरानी नहीं होनी चाहिए। चोपड़ा जाटों का एक बड़ा गोत है। चोपड़ा गोत के जाट राजस्थान में हैं। राजस्थान में चोपड़ा गोत के वैसे तो कई गाँव हैं पर दो गाँव ऐसे हैं जिनका नाम गोत पर ही है - चोपड़ा की ढाणी, तहसील मेड़ता, जिला नागौर तथा चौपड़ा की ढाणी, तनकरड़ा गाँव, जिला चौमु । राजस्थान से चौधरी घासी लाल जी चोपड़ा गोत के विधायक भी रहें हैं । राजस्थान से हरियाणा में आए चोपड़ा गोत के जाट अब अपना गोत गोयत लिखते हैं। चोपड़ा गोत के जाट पहले जिला भिवानी के गाँव कुंगड़ में बसे थे, और फिर कुंगड़ से नरवाना व अन्य जगह फैले । हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के ओएसडी श्री महेंद्र सिंह चोपड़ा भी चोपड़ा (गोयत) गोत के जाट हैं।

जाट और रोड़ एक ही नस्ल हैं, इसीलिए रोड़ जाति को एसबीसी आरक्षण में हमने अपने साथ रखा था और जाटों का किसी प्रकार का कोई विरोध नहीं था, क्योंकि वे जाट हैं। उस समय रोड़ जाति के प्रधान कुरुक्षेत्र के रहने वाले एडवोकेट श्री आर.डी महला जी थे । जिन्हें मैं अक्सर हँसता था कि आप तो मेरे समधी हैं क्योंकि मेरे बड़े लड़के राकेश की शादी महला गोत में हो रखी है । क्योंकि जब पहली बार मैंने महला साहब से पूछा था कि रोड़ कौन होते हैं ? तो उन्होने बड़ा स्पष्ट कहा था कि रोड़ जाटों से ही निकली जाति है। इसलिए स्वाभाविक है कि वो मेरे समधी थे, जो लगभग एक वर्ष पूर्व ईश्वर को प्यारे हो चुके हैं। सो इसमें जरा भी संशय नहीं होना चाहिए। जाट और रोड़ अलग अलग होते हुए भी एक नस्ल के हैं।

यह तो राजनीति ने हमें बाँट रखा है। जो लोग हमें अलग अलग बताते हैं कुछ दिन पहले यही लोग कहा करते थे कि हिन्दू जाट और सिक्ख जाट अलग अलग हैं, कुछ तो यह भी कह देते थे कि सिखों में जाट नहीं होते। ऐसे लोगों का काम ही खामखा की बहसबाजी करना और भ्रम फैलाना होता है, और वो ऐसा करते ही रहेंगे। बाकी रोड़ अपनी अलग जाति रखना चाहते हैं तो भी हमें बड़ी खुशी है क्योंकि भाई तो हमारे ही हैं, अलग हो गए तो क्या। क्योंकि भाई से भाई अलग होना तो हम जाटों की प्रथा रही है। जाटों में तो क्या ये प्रथा पूरी दुनिया में है।

लेखक: डा कृष्ण पाल सिंह तेवतिया प्रवक्ता भौतिकी, सचिव जाट जनचेतना महासभा, मथुरा

Distribution in Rajasthan

Villages in Nagaur district

Rod (रोड़) Jats live in : Lamba Jatan,

Villages in Barmer district

Rodiyon Ka Tala,

Distribution in Punjab

Villages in Rupnagar district

Reference

  1. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. र-41
  2. O.S.Tugania:Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu,p.58,s.n. 2163
  3. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. र-41
  4. Mahendra Singh Arya et al: Adhunik Jat Itihas, p. 278
  5. An Inquiry Into the Ethnography of Afghanistan, H. W. Bellew, p.122,179
  6. Pages 834-835, A Glossary of the Tribes and Castes of the Punjab and North-West Frontier Provinces, By H A Rose, Sir Denzil Ibbetson, Sir Edward Douglas Maclagan, Published 1990, Asian Educational Services, ISBN 8120605055
  7. Pages 210-212, Archaeological Survey of India, Report for the year 1871-72, Volume IV, Agra circle covered by A.C.L. Carlleyle, Under the supervision of Alexander Cunningham
  8. The ancient fort buried under this place (village Khangar Ror or Kaga Ror) was founded by a Ror Raja, son of Raja Khangar", Pages 210-212, Archaeological Survey of India, Report for the year 1871-72, Volume IV, Agra circle covered by A.C.L. Carlleyle, Under the supervision of Alexander Cunningham
  9. Junagadh Rock Inscription of Rudradaman
  10. Page 96, Archaeological Survey of India, Report for the year 1871-72, Volume IV, Agra circle covered by A.C.L. Carlleyle, Under the supervision of Alexander Cunningham
  11. Mahendra Singh Arya et al: Adhunik Jat Itihas,p. 278
  12. https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC6288199/
  13. https://www.researchgate.net/figure/Proportions-of-Ancient-Ancestry-in-South-Asian-Populations-qpAdm-plot-indicating_fig1_329451295
  14. https://www.google.com/amp/s/www.thehindubusinessline.com/news/science/haryanas-rors-brought-western-flavor-to-indus-valley/article25690855.ece/amp/
  15. जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठ-563

See also


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