Thal

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Location of villages around Kishangarh, Ajmer

Thal (थल) is a Village in Kishangarh tehsil in District Ajmer, Rajasthan.

Location

Origin

History

तेजाजी का इतिहास

संत श्री कान्हाराम[1] ने लिखा है कि.... [पृष्ठ-84]: तेजाजी के जन्म के समय (1074 ई.) यहाँ मरुधरा में छोटे-छोटे गणराज्य आबाद थे। तेजाजी के पिता ताहड़ देव (थिरराज) खरनाल गणराज्य के गणपति थे। इसमें 24 गांवों का समूह था। तेजाजी का ससुराल पनेर भी एक गणराज्य था जिस पर झाँझर गोत्र के जाट राव रायमल मुहता का शासन था। मेहता या मुहता उनकी पदवी थी। उस समय पनेर काफी बड़ा नगर था, जो शहर पनेर नाम से विख्यात था। छोटे छोटे गणराज्यों के संघ ही प्रतिहारचौहान के दल थे जो उस समय के पराक्रमी राजा के नेतृत्व में ये दल बने थे।


[पृष्ठ-85]: पनैर, जाजोतारूपनगर गांवों के बीच की भूमि में दबे शहर पनेर के अवशेष आज भी खुदाई में मिलते हैं। आस पास ही कहीं महाभारत कालीन बहबलपुर भी था। पनेर से डेढ़ किमी दूर दक्षिण पूर्व दिशा में रंगबाड़ी में लाछा गुजरी अपने पति परिवार के साथ रहती थी। लाछा के पास बड़ी संख्या में गौ धन था। समाज में लाछा की बड़ी मान्यता थी। लाछा का पति नंदू गुजर एक सीधा साधा इंसान था।

तेजाजी की सास बोदल दे पेमल का अन्यत्र पुनःविवाह करना चाहती थी, उसमें लाछा बड़ी रोड़ा थी। सतवंती पेमल अपनी माता को इस कुकर्त्य के लिए साफ मना कर चुकी थी।

खरनालशहर पनेर गणराजयों की तरह अन्य वंशों के अलग-अलग गणराज्य थे। तेजाजी का ननिहाल त्योद भी एक गणराज्य था। जिसके गणपति तेजाजी के नानाजी दूल्हण सोढ़ी (ज्याणी) प्रतिष्ठित थे। ये सोढ़ी पहले पांचाल प्रदेश अंतर्गत अधिपति थे। ऐतिहासिक कारणों से ये जांगल प्रदेश के त्योद में आ बसे। सोढ़ी से ही ज्याणी गोत्र निकला है।

पनेर के निकटवर्ती गाँव थल, सिणगारा, रघुनाथपुरा, बाल्यास का टीबा स्थित सांभर के चौहान शासक गोविंददेव तृतीय (1053 ई.) के समय के शिलालेख, जो कि तेजाजी के समकालीन था

इन सभी गणराजयों की केंद्रीय सत्ता गोविंददेव या गोविंदराज तृतीय चौहान की राजधानी सांभर में निहित थी। इसके प्रमाण इतिहास की पुस्तकों के साथ-साथ यहाँ पनेर- रूपनगर के क्षेत्र के गांवों में बीसियों की संख्या में शिलालेख के रूप में बिखरे पड़े हैं। थल, सिणगारा, रघुनाथपुरा, रूपनगढ, बाल्यास का टीबा, जूणदा आदि गांवों में एक ही प्रकार के पत्थर पर एक ही प्रकार की बनावट व लिखावट वाले बीसियों शिलालेख बिलकुल सुरक्षित स्थिति में है।


संत श्री कान्हाराम[2] ने लिखा है कि.... [पृष्ठ-86]: इन शिलालेख के पत्थरों की घिसावट के कारण इन पर लिखे अक्षर आसानी से नहीं पढे जाते हैं। ग्राम थल के दक्षिण-पश्चिम में स्थित दो शिलालेखों से एक की लिखावट का कुछ अंश साफ पढ़ा जा सका, जिस पर लिखा है – विक्रम संवत 1086 गोविंददेव

मंडावरिया पर्वत की तलहटी स्थित रण संग्राम स्थल के देवले

रघुनाथपुरा गाँव की उत्तर दिशा में एक खेत में स्थित दो-तीन शिलालेखों में से एक पर विक्रम संवत 628 लिखा हुआ है। जो तत्कालीन इतिहास को जानने के लिए एक बहुत बड़ा प्रमाण है। सिणगारा तथा बाल्यास के टीबा में स्थित शिलालेखों पर संवत 1086 साफ-साफ पढ़ा जा सकता है। इन शिलालेखों पर गहन अनुसंधान आवश्यक है।


[पृष्ठ-87]: रूपनगढ क्षेत्र के रघुनाथपुरा गाँव के प्राचीन गढ़ में एक गुफा बनी है जो उसके मुहाने पर बिलकुल संकरी एवं आगे चौड़ी होती जाती है। अंतिम छौर की दीवार में 4 x 3 फीट के आले में तेजाजी की एक प्राचीन प्रतिमा विराजमान है। उनके पास में दीवार में बने एक बिल में प्राचीन नागराज रहता है। सामंती राज में किसी को वहाँ जाने की अनुमति नहीं थी। इस गुफा के बारे में लेखक को कर्तार बाना ने बताया। कर्तार का इस गाँव में ननिहाल होने से बचपन से जानकारी थी। संभवत ग्रामीणों को तेजाजी के इतिहास को छुपने के प्रयास में सामंतों द्वारा इसे गोपनीय रखा गया था।

राष्ट्रीय राजमार्ग – 8 पर स्थित मंडावरिया गाँव की पहाड़ी के उत्तर पूर्व में स्थित तेजाजी तथा मीना के बीच हुई लड़ाई के रणसंग्राम स्थल पर भी हल्के गुलाबी पत्थर के शिलालेखों पर खुदाई मौजूद है। पुरातत्व विभाग के सहयोग से आगे खोज की आवश्यकता है।

Jat Gotras

Population

Notable Persons

External Links

References

  1. Sant Kanha Ram: Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. pp.84-85
  2. Sant Kanha Ram: Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. pp.86-87

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