Bagdoda

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Location of Bagroda in Sikar district

Bagdoda or Bagroda (बागदौड़ा) is a village in Fatehpur tahsil in Sikar district of Rajasthan.

Jat Gotras

Kansujiya,

Population

As per Census-2011 statistics, Bagdoda village has the total population of 2599 (of which 1280 are males while 1319 are females).[1]

History

Notable persons

कॉमरेड त्रिलोक सिंह शेखावाटी किसान आन्दोलन से जुड़े

छात्रावास में रहकर पढने वाले एक छात्र के पिता को ठिकानेदार ने एक कैम्प में रोक लिया था. ठिकानेदार ऐसे किसानों को कैम्प में रोक लेते थे जिनके पास लगान देने के लिए रुपये नहीं थे. ऐसे करीब दस बंदी किसान थे. त्रिलोक सिंह को जब यह सूचना मिली तो उन्होंने छात्रों की एक टोली बनाई. कैम्प पर धावा बोलकर दादूपंथियों को भगा दिया और बंधक किसानों को मुक्त कर दिया.[2]

गाँव में आपके बड़े भाई भूर सिंह की शादी थी. बाग़दौड़ा ठिकानेदार ने चेतावनी दे दी, 'भूर सिंह दूल्हा बनकर घोडी पर नहीं चढ़ेगा.' नवयुवक त्रिलोक सिंह ने इसे चुनौती समझा. एक घोडा खरीद लिया. इस पर दूल्हा बैठ गया और शेष बारात ऊंटों पर चदकर बाग़दौड़ा गाँव से निकल गयी. ठाकुर देखते रह गए. यहीं से त्रिलोक सिंह शेखावाटी किसान आन्दोलन से जुड़ गए. [3]


सत्यदेव सिंह को सन 1937 में सरदार हरलाल सिंह एवं नेत राम सिंह उनके गाँव देवरोड़ से झुंझुनू ले आये. विद्यार्थी भवन में रहकर सत्यदेव ने शिक्षा ग्रहण की. उनका कहना है कि उस समय विद्यार्थी भवन में करीब 15 छात्र थे. इनके नाम थे - सुल्तान सिंह, गुलाब सिंह खाजपुर नया एवं पुराना, नत्थू सिंह बाडलवास, नाहर सिंह पातुसरी, सरदार हरलाल सिंह के दो पुत्र - नरेंद्र सिंह एवं फ़तेह सिंह, श्योदान सिंह, शीश पाल सिंह भादरवास, शिव लाल सिंह, नानक सिंह वारिसपुरा, अमर सिंह नरुका, सब्बल सिंह देरवाला, त्रिलोक सिंह अलपसर, संवत सिंह हनुमानपुरा आदि. [4]

External links

References

  1. http://www.census2011.co.in/data/village/81306-bagdoda-rajasthan.html
  2. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, p. 181
  3. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, p. 181
  4. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), प्रकाशक: कल्पना पब्लिकेशन, जयपुर, फोन: 0141 -2317611, संस्करण: 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, p. 175

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