Dunga Ram Bhamu

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Dunga Ram Bhamu (चौधरी डूंगारामजी भामू) from Bhainrupura, सीकर, was a Freedom fighter and hero of Shekhawati farmers movement. [1]

जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है .... चौधरी डूंगारामजी - [पृ.491]: भैरूपुरा के तेजस्वी नाम से सभी जाट परिचित हैं। वहां पर चौधरी दूदाराम जी के घर आज से लगभग 50 साल पूर्व चौधरी डूंगारामजी का जन्म हुआ। आप का गोत्र भामू है. आप सीकर महायज्ञ के समय से ही कौम का काम कर रहे हैं। आप अडिग आदमियों में से हैं।

जीवन परिचय

रावराजा के निर्वासन से वापसी और सीकर बोर्डिंग हाऊस

सीकर के रावराजा के निर्वासन के पश्चात् वहां शांति व्याप्त थी. इस दौरान एक दिलचस्प घटना घटी. झुंझुनू में छात्रावास की भूमि बिसाऊ ठाकुर ने दी थी. किन्तु सीकर में प्रयास करने के उपरांत भी जमीन नहीं मिल रही थी. गोठड़ा किसान समेलन में भी यह प्रकरण उठा था. लेकिन रावराजा के निर्वासन के बाद भूमि कौन दे यह समस्या हो गयी. रावराजा के बाहर रहने से रानी चिंतित थी. किसी ने उन्हें बताया कि यदि किसान पंचायत जयपुर दरबार को कह दे तो रावराजा की वापसी हो सकती है. रानी ने किसान पंचायत के नेताओं को बुलाया. उनके सामने इच्छा प्रकट की कि राजा को वापस बुलाया जाये. हरीसिंह बुरड़क पलथाना और ईश्वर सिंह भामू ने मांग रखी कि यदि सीकर दरबार छात्रावास के लिए भूखंड उपलब्ध करवादे तो पंचायत के नेता रावराजा को वापस लाने का प्रयास करेंगे. उन्होंने रेलवे स्टेशन के निकट भूमि चिन्हित कर रखी थी. सीकर रानी ने वादा किया कि रावराजा के आते ही छात्रावास के लिए जमीन देदी जाएगी. पंचायत के मुखियाओं ने जयपुर महाराजा को लिखकर दिया कि यदि यदि रावराजा को सीकर लाया जाता है तो उनको कोई ऐतराज नहीं है. सितम्बर 1942 में कल्याण सिंह फिर से रावराजा बनकर आ गए. (राजेन्द्र कसवा: पृ.193)

यह अश्चर्यजनक लगता है कि रावराजा के विरुद्ध संघर्ष करने वाले और उत्पीड़न सहने वाले ही उन्हें वापस ले आये. पंचायत के जाट नेताओं ने सोच समझ कर ही यह निर्णय किया था. असल में कल्याण सिंह अनपढ़ जरूर थे किन्तु वे साफ़ दिल व्यक्ति थे. छोटे ठिकानेदार ही उसे निर्दयी बनाए थे. राष्ट्रीय स्तर पर यह लगने लगा था कि देर-सबेर जागीरदारों को जाना ही होगा. अंग्रेज अधिकारियों और जयपुर रियासत ने बंदोबस्त करके कुछ हद तक सीकरवाटी के किसानों को संतुष्ट भी कर दिया था. (राजेन्द्र कसवा: पृ.194)

रावराजा के पुनः आने से सकारात्मक प्रभाव पड़ा. छात्रावास के लिए किसान पंचायत को भूमि आवंटित करने में विलम्ब नहीं हुआ. बसंत पंचमी , फ़रवरी 1943 में, सीकर बोर्डिंग हाऊस का शिलान्यास स्वयं रावराजा ने किया. उस अवसर पर हरीसिंह बुरड़क पलथाना, ईश्वर सिंह भामू भैरूपुरा, कालूराम सुंडा कूदन, कानाराम भूकर, डूंगाराम भामू, हरी राम भूकर गोठड़ा आदि किसान नेता उपस्थित थे. कल्याण सिंह ने 12 बीघा भूमि प्रदान की. यही नहीं रावराजा ने अपने पुत्र हरदयाल सिंह के नाम से एक कमरे की राशि भी दी. (राजेन्द्र कसवा: पृ.195)

संदर्भ


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