Esah

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Esah (ऐसाह) or Aisah is a village in Ambah tahsil of Morena district of Madhya Pradesh. It was the capital of Tomars prior to Delhi.

History

तोमरों का ऐसाह आगमन : सन 1192 में तराइन के निर्णायक युद्ध में चाहडपाल देव तोमर की मृत्यु के पश्चात तोमरों के दिल्ली साम्राज्य का पतन हो गया.[1] दिल्ली तथा उसके आस-पास के हिन्दु राजाओं पर विदेशी आक्रान्ताओं का दवाब बढने लगा तब वे लोग मैदानी क्षेत्रों को छोडकर मध्य भारत के बीहडों तथा दुर्गम क्षेत्रों की ओर नई सत्ता की स्थपना के लिये बढने लगे. पराजित तोमर शासक चम्बल के बीहडों मे स्थित अपने प्राचीन स्थान एसाह आ गये. [2][3]

चम्बल का पनी चम्बल में - प्रिन्सेप[4] ने विल्फ़ोर्ड[5] द्वार विवेचित एक अनुश्रुति का उल्लेख किया है. किसी अनंगपाल का पौत्र दिल्ली के पतन के बाद अपने देश गौर चला गया. यह गौर निश्चय ही ग्वालियर क्षेत्र है और अनंगपाल है अनंगप्रदेश का अन्तिम राजा चाहड़पाल. दिल्ली का तोमर राजवंश ग्वालियर आया था. वे चम्बल के ऐसाहगढ में आकर निवास करने लगे थे.

बमरौलिया जाटों का ऐसाह की और पलायन :दिल्ली सुलतान फरोजशाह तुगलक के शासनकाल में सन 1367 में आगरा सूबेदार मुनीर मुहम्मद था. उस समय बमरौली कटारा का जागीरदार रतनपाल बमरौली कटारा छोड़कर अपने मित्र तोमर राजा के पास ऐसाह (वर्तमान मुरैना जिले की अम्बाह तहसील में राजस्थान सीमा के पास चम्बल किनारे गाँव, दिल्ली से पूर्व यहाँ तोमरों की राजधानी थी) पहुंचा. जहाँ वह तोमरों के प्रमुख सामंत के रूप में स्थापित हुए.[6] तोमर सम्राट देव वर्मा द्वारा रतनपाल बमरौलिया को पचेहरा (जटवारा) निवास हेतु प्रदान किया गया. (Ojha, p.35)

पचेहरा से बगथरा आगमन - केहरी सिंह बमरौलिया (1390-1395) को ऐसाह के तोमर राजा वीरसिंह देव (1375-1400) के शासनकाल में अपनी वीरता प्रदर्शित करने का अवसर मिल गया. उस समय 1394 में वीरसिंह देव ने ग्वालियर दुर्ग पर दिल्ली सुलतान की ओर से नियुक्त अमीर को पराजित कर ग्वालियर में तोमर राजवंश की नींव डाली. 4 जून 1394 को दिल्ली सुलतान नसीरुद्दीन मुहम्मद को पराजित कर ग्वालियर में स्वतंत्र तोमर राज्य स्थापित किया.[7](Ojha, p.35)

वीरसिंह देव तोमर ग्वालियर के प्रथम स्वतंत्र तोमर शासक बने. तोमर राजा वीर सिंह देव तथा दिल्ली सुलतान के मध्य हुए युद्ध में केहरी सिंह बमरौलिया ने वीरसिंह देव का साथ दिया. केहरी सिंह की जाट सेना की छापामार युद्ध प्रणाली की भयंकर मार से सुलतान की सेना भाग खड़ी हुई थी. जब वीरसिंह देव ग्वालियर के स्वतंत्र राजा बन गए तब केहरी सिंह को बगथरा गाँव निवास हेतु प्रदान किया. [8] (Ojha, p.35)

स्थानीय जाटों से वैवाहिक सम्बन्ध - बगथरा गाँव में बसने के बाद इन बमरौलिया जाटों ने स्थानीय बिसोतिया गोत्र के जाटों से वैवाहिक सम्बन्ध बनाये तथा अपने बल में वृद्धि की.[9] (Ojha, p.35)

जाट संघ - केहरी सिंह बमरौलिया ने बगथरा में निवास करने के दौरान स्थानीय जाटों का एक संगठन बनाया और तोमर राजा का युद्धों में साथ देकर उनका विश्वासपात्र बन गया. इस प्रकार ये बमरौलिया जाट तोमर राजाओं के प्रमुख सामंत बन गए. [10] (Ojha, p.36)

ग्वालियर के तोमर वंश " का उदगम स्थल ऐसाह

ऐसाह और सिहोनिया मुरैना जिले की अम्बाह तहसील में प्राचीन ऐतिहासिक स्थान है। ऐसाह "ग्वालियर के तोमर वंश " का उदगम स्थल है। ऐसाह को कभी "ऐसाह मणि" कहा जाता था। ऐसाह का मतलब ईश से है और समीप के गाँव सिहोनिया में अम्बिका देवी का मंदिर है। ईश और अम्बा ये स्थल कभी तोमर शक्ति की धुरी थे। ऐसाह के अवशेषो को देखने से ज्ञात होता है जैसे चम्बल नदी ने दायीं ओर करवट ली हो और ऐसाह की प्राचीन बसाहट को दक्षिणी दिशा में धकेल दिया हो।

यहाँ अधिकांश मूर्तियाँ शिवपरिवार की मिलती है। इसमे एक एक - मुख शिव तो ई. पू.पहली सदी से तीसरी सदी के बीच की है। गणेश ,कार्तिकेय और नंदी की प्रतिमाएं भी प्राचीन है। तोमरों का ऐसाह का गढ़ आधा मील लम्बा रहा होगा जिसके पत्थर तोड़ तोड़ कर नई बसाहटों में लगतें रहे है। ऐसाह गढ़ के कुछ दूर बाघेस्वरी नामक स्थान है , कभी यह व्याघ्रेश्वरी का स्थान रहा होगा।यहाँ हुए नवनिर्माण ने अब मूल स्वरूप को ही समाप्त कर दिया है।

संभवतः नागवंश के समय ऐसाह समृद्ध नगर था। नागवंशीय नगर कान्तिपुरी अर्थात सिहोनियाँ के नाग ऐसाह पर ही चम्बल पार कर मथुरा की ओर जाते होंगे। सिहोनियाँ में वीरमदेव तोमर के अम्बिका देवी मंदिर के अतिरिक्त कुछ टीलों में माता देवी का भव्य मंदिर है ये टीले अपने अंचल प्राचीन इतिहास छुपाए हुए है।

ग्वालियर स्टेट गज़ेटियर के अनुसार "यह बड़ा कस्वा है और तीन मील में फैला हुआ है । इसमे इमारतों के खंडहर ही खंडहर नज़र आते है। इसकी बुनियाद ग्वालियर के बानी सूरजसेन के बुजुर्गों ने डाली हुई बताते है और इसका नाम सुधनपुरा रखा जो बाद में सुहानिया हो गया।"

यहाँ कच्छपघात कालीन शिव मंदिर ककनमठ के नाम से जाना जाता है जिसे सिकंदर लोदी द्वारा तहस नहस कर दिया गया। गांव के पश्चिम एक खंबा है जिसे भीम की लाट कहते है। दक्षिण में कई दिगम्बर जैन मूर्तियाँ है । जहाँ अब विशाल भव्य जैन मंदिर बन गया है। सन 1170 में इस पर कन्नौज के शासक विजैचंन्द्र ने हमला कर ले किया था।यह गाँव एक अरसे मेवातियों के पास भी रहा। गाँव मे छोटा सा किला उन्ही के समय का है।

चम्बल के तोमरों ने सन 736 ई. में हरियाणा क्षेत्र में अपना राज्य स्थापित किया था और दिल्ली को राजधानी बना कर सन 1192 तक राज्य करते रहे। सन 1192 में तरायन द्वितीय युद्ध मे चाहड़पाल देव तोमर की पराजय और मृत्यु के बाद यह राज्य समाप्त हो गया। सन 1194 ई में अंतिम पराजय के पश्चात अंतिम तोमर राजा तेजपाल का पुत्र और चाहड़पालदेव का नाती अचलब्रम्ह ऐसाह की ओर चला आया। इसके बाद लगभग सवासो वर्ष का तोमरों का इतिहास अस्पष्ट है। सन 1340 में घटमदेव या कमल सिंह का एकमात्र आधार इब्नबतूता का यात्र वृतांत है। "वीरसिंघावलोक " में इनका पुत्र देववर्मा होना बताया गया है। खड़ग राय के गोपांचल आख्यान से भी इसकी पुष्टि होती है।

फिरोजशाह तुगलक ने देववर्मा की ऐसाह की जागीर को विधिवत मान्यता दे दी। बे विधिवत " राय" हो गए। वीरसिंहावलोक में उन्हें "भूपति" और खड़गराय ने उन्हें "राजा " लिखा है , पर वस्तुतः बे फ़िरोज़शाह के जागीरदार ही थे। देववर्मा की मृत्यु के बाद वीरसिंह देव ने जागीरदार के रूप में ऐसाह की गद्दी संभाली। सन 1394 ई में सुल्तान अलाउद्दीन सिकंदर शाह हुमायूँ ने वीरसिंह देव को गोपांचल गढ़ का प्रशासक नियुक्त किया तथा उनके पुरोहित दिनकर मिश्र भी अपने लिए सुकुल्हारी की जागीर की पुष्टि करा सके । मार्च 1394 में वीरसिंहदेव तोमर ने ग्वालियर दुर्ग पर आधिपत्य कर लिया तथा 4 जून 1394 ई को दिल्ली के सुल्तान नासुरुद्दीन मुहम्मद को पराजित करने के पश्चात गोपांचल गढ़ के प्रथम स्वतंत्र तोमर शासक बने। इस प्रकार ऐसाह के " राय " ग्वालियर के तोमर शासक बने। उनका यह राज्य ग्वालियर के अंतिम तोमर शासक विक्रमादित्य की पराजय सन 1523 ई तक रहा। विक्रमादित्य को ब्राहिम लोदी से पराजित होकर सन 1523 ई में संधि करनी पड़ी। संधि के अनुसार बे ग्वालियर किला छोड़ कर शमसाबाद बाद चले गए। इस तरह ग्वालियर पर से तोमरो का राज्य समाप्त हुआ।

संदर्भ - उपाध्याय, संयुक्त कलेक्टर, आधार - हरिहर निवास द्विवेदी कृत, "ग्वालियर के तोमर"

Jat Gotras

Bamraulia

Population

Notable persons

External Links

References

  1. Harihar Niwas Dwivedi, Gwalior Ke Tomar, p.3
  2. Harihar Niwas Dwivedi, Gwalior Ke Tomar, p.3
  3. Dr. Ajay Kumar Agnihotri (1985) : Gohad ke jaton ka Itihas(Hindi), p. 16
  4. Essays, Part-2,p.294
  5. Asiatic Research, Part-9,p.154
  6. Mohan Lal Gupta, Jaipur: Jilewar Sanskritik Evam Aitihasik Adhyayan, p.175
  7. Harihar Niwas Dwivedi, Dilli Ke Tomar, p.30
  8. Kannu Mal, Dholpur Rajya Aur Dhaulpur Naresh,p.9
  9. Kannu Mal, Dholpur Rajya Aur Dhaulpur Naresh,p.9
  10. Mohan Lal Gupta, Jaipur: Jilewar Sanskritik Evam Aitihasik Adhyayan, p.175

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