Gurdev Singh Jaswal

From Jatland Wiki
Major Gurdev Singh Jaswal , VrC, 22 Punjab

Gurdev Singh Jaswal (20.07.1942 - 10.12.1971) became martyr on 10.12.1971 in Shakargarh Sector during Indo-Pak War-1971. He was awarded Vir Chakra (posthumous) for his act of bravery during the war. He was from Deoli village in Una district of Himachal Pradesh, India.

Unit - 22 Punjab Regiment.

मेजर गुरदेव सिंह जसवाल

मेजर गुरदेव सिंह जसवाल

20-07-1942 - 10-12-1971

वीर चक्र (मरणोपरांत)

यूनिट - 22 पंजाब रेजिमेंट

चक अमरू का युद्ध

ऑपरेशन कैक्टस लिली

भारत-पाक युद्ध 1971

मेजर गुरदेव सिंह का जन्म ब्रिटिश भारत में 20 जुलाई 1942 को तत्कालीन पंजाब में वर्तमान हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के देवली गांव में जमादार लड्ढा सिंह जसवाल के घर में हुआ था। 10 मई 1964 को उन्हें एक आपातकालीन कमीशन अधिकारी के रूप में चुना गया था और पंजाब रेजिमेंट की 22 बटालियन में सैकिंड लेफ्टिनेंट के रूप में नियुक्त किया गया था।

1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में, जैसे कि परिकल्पना की गई थी, पश्चिमी युद्धस्थल पर पाकिस्तान की रणनीति पूर्वी युद्धस्थल (वर्तमान बांग्लादेश) पर होने वाले सर्वाधिक संभावित क्षति की क्षतिपूर्ति के लिए जितना संभव हो उतना भारतीय क्षेत्र पर अधिकार करने की थी। भारतीय सेना को आशंका थी कि इस उद्देश्य में, पाकिस्तान पठानकोट और जम्मू-पठानकोट सड़क को लक्ष्य बनाते हुए शकरगढ़ उभार (BULGE) के समक्ष आक्रमण कर सकता है, जिससे जम्मू-कश्मीर भारत से कट जाएगा।

शकरगढ़ BULGE के पश्चिम में हीरानगर के दक्षिण में चक्र क्षेत्र, भारतीय सेना के लिए एक महत्वपूर्ण मैदान था, BULGE के उत्तर-पूर्व के भीतर चक अमरू को पाकिस्तानी टैंकों के युद्धाभ्यास की धुरी माना जाता था। भारतीय सेना ने अपने अभियानों को आगे बढ़ाने के लिए 22 पंजाब बटालियन को शीघ्रातिशीघ्र चक अमरू पर अधिकार करने का कार्य सौंपा गया, किंतु टोही में यह ज्ञात हुआ कि पाकिस्तानी सेना ने चक अमरू पर न केवल अधिकार कर लिया गया था, अपितु अग्रिम और किनारे के क्षेत्र में सघन खदानें बिछा दी थीं।

मेजर गुरदेव सिंह जसवाल 22 पंजाब बटालियन की 'B' कंपनी की कमान संभाल रहे थे। उनकी बटालियन को शकरगढ़ सेक्टर में चक अमरू रेलवे स्टेशन पर स्थित शत्रु की स्थिति पर अधिकार करने का आदेश दिया गया था। मेजर जसवाल के नेतृत्व में 'B' कंपनी को 7/8 दिसंबर की रात्रि को आक्रमण का नेतृत्व करना था।

उन्होंने 600 गज भीतर खदान आच्छादित क्षेत्र में आक्रमण का नेतृत्व किया। आक्रमण की गति के कारण, शत्रु आश्चर्यचकित रह गया और परास्त हो गया। पुनर्गठन के समय, उनकी कंपनी शत्रु के तोपखाने और मीडियम मशीन के सटीक और प्रचंड फायर में घिर गई। शत्रु के लघु शस्त्रों के तीव्र फायर और गोला वृष्टि के होते हुए भी अपने सैनिकों को प्रेरित करने के लिए मेजर जसवाल एक-एक खाई में गए।

इस प्रक्रिया में, उन्हें शत्रु की मीडियम मशीन गन की अनेक गोलियां लगीं और वह गंभीर रूप से घायल हो गए। उन्होंने युद्धक्षेत्र छोड़ना अस्वीकार कर दिया और अधिकृत स्थिति पर कंपनी के सफलतापूर्वक संगठित नहीं होने तक वह अपने प्लाटून कमांडरों को निर्देश देते रहे। इसके शीघ्र पश्चात, उन्हें एडवांस ड्रेसिंग स्टेशन ले जाया गया जहां अत्यधिक रक्त बह जाने के कारण वह वीरगति को प्राप्त हो गए।

इस पूर्ण कार्रवाई में मेजर जसवाल ने उच्च कोटि की वीरता और दृढ़ संकल्प प्रदर्शित किया। उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र सम्मान दिया गया।

शहीद को सम्मान

चित्र गैलरी

स्रोत

बाहरी कड़ियाँ

संदर्भ


Back to The Martyrs