Jiwan Ram Kadwasra

From Jatland Wiki
Author: Laxman Burdak, IFS (R)

Jiwan Ram Kadwasra

Chaudhari Jiwan Ram Kadwasra (born:3.5.1896-) was a Social worker freedom fighter from Deengarh, Hanumangarh Rajasthan.

He was associated with Gramotthan Vidyapeeth Sangaria along with Harish Chandra Nain, Swami Keshwanand and Bahadur Singh Bhobia till 1972.

जाट जन सेवक

रियासती भारत के जाट जन सेवक (1949) पुस्तक में ठाकुर देशराज द्वारा चौधरी जीवनराम कड़वासरा का विवरण पृष्ठ 129-130 पर प्रकाशित किया है जो निम्नानुसार प्रस्तुत है।

ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है ....चौधरी जीवनराम कड़वासरा [पृ.129]: पिता का नाम चौधरी कुशलाराम जी गांव दीनगढ़ तहसील हनुमानगढ़ है। आपका जन्म संवत 1953 चैत बड़ी 11 अर्थात 3 मई 1896 को हुआ। चौधरी कुशलाराम जी के तीन पुत्र हुये:

1. चौधरी पेमाराम जिनके पुत्र चौधरी रामचंद्र सिंह बीएएलएलबी डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज गंगानगर हैं। चौधरी रामचंद्र सिंह से दो छोटे हैं जो जम्मीदारी करते हैं।

2. पेमाराम जी से छोटे चौधरी गणेशाराम जी खेतीबाड़ी करते हैं।

3. जीवन राम जी की संतान 3 हैं: लड़के दो लड़की एक। बड़ा हरिश्चंद्र बीएससी बीकानेर में पढ़ते हैं। मंझला मनीराम FA चुरू में पड़ता है। छोटे बलबीर सिंह उर्फ अविषासी। बड़ी भाई कुंवर मोहनीदेवी प्रभाकर, छोटी आशा देवी पढती है डिस्ट्रिक्ट बोर्ड पूरबगढ़ में म्युनिसिपल बोर्ड, हनुमानगढ़ और असेंबली बीकानेर के मेंबर हैं।

विशेषता - म्यूनिसिपल बोर्ड हनुमानगढ़ के लिए 5 बार चुनाव लड़ा, 5 बार जीते। डिस्ट्रिक्ट बोर्ड में दो बार चुनाव लड़ा दोबारा चुनाव जीता। असेंबली में भी चुनाव से पिछली बार गए थे।

खेती के अलावा 20 वर्ष से गवर्नमेंट बीकानेर के रेलवे और कैनाल के कॉन्ट्रैक्ट हैं।

चौधरी जीवनराम एक जिंदादिल आदमी है। लंबे और तगड़े शरीर पर हंसमुख चेहरा आपकी विशेषता है।


[पृ.130]:हिम्मत के आप आप धनी हैं पिछले सत्याग्रह संग्राम में जेल यात्रा भी कर आए हैं। समाज सुधारक आप पक्के हैं। लड़कों की भांति लड़कियों को भी उच्च शिक्षा दिलाने का आपने उदाहरण पेश किया है। आप चौधरी हरिश्चंद्र की तरह की जाट जाति में अखिल भारतीय फेस के आदमी हैं। आपकी जाति सेवा में पुरानी और सदैव याद रहने वाली चीजें हैं।

रायसिंहनगर का जलसा

गणेश बेरवाल [2] ने लिखा है ...– रायसिंहनगर के जलसे में बिकानेर डिवीजन के बहुत से आदमी शामिल थे। यह सबसे बड़ा जलसा था। यह इलाका पंजाब से आए सरदारों- सिखों का था। इस जलसे में हजारों आदमियों ने भाग लिया। लोगों में भारी जोश था। सरदार अमर सिंह जलसे के संचालक थे। इस जलसे में मास्टर बेगाराम जी (अबोहर), पंजाब कांग्रेस के प्रधान पंडित जी, रामचन्द्र जैन, चौधरी ख्यालीराम गोदारा, आदि प्रमुख थे। जब मोहर सिंह जलसे में बोल रहे थे तभी जनता बहुत उत्साहित थी कि इतने में दुधवा खारा के किसान नेता हनुमान सिंह के बड़े भाई बेगा राम बीकानेर जेल से रिहा होकर समय पर जलसे में पहुँच गए। हमने उनसे कहा कि दुधवा खारा जाकर अपने बच्चों को संभालो, जलसा तो चलता रहेगा हम संभाल लेंगे। बेगाराम दुधवा खारा जाने की मंशा से रेलवे स्टेशन पर टिकट लेने आए। उनके हाथ में तिरंगा झण्डा था, जो कि महाराजा के आदेश से सभा मंच के सिवाय बाहर लगाना प्रतिबंधित था। पुलिस झंडे सहित बेगा राम पर टूट पड़ी और घसीट कर रेस्ट हाउस ले आए। वहाँ उसे लेटाकर उसकी छाती पर दो लठियाँ रखकर दो पुलिस वाले बैठ गए। इधर सारे घटनाक्रम को एक साधू पैनी नजर से देख रहा था । वह भाग कर स्टेज पर आया और कहा कि आपके एक आदमी को पुलिस रेस्ट हाऊस में बुरी तरह


[p.58]: पीट रही है। यह सुनकर दसों हजार आदमी खड़े हो गए और सारे जलसे में गुस्से की लहर दौड़ गई। सभी आदमी रेस्ट हाऊस की तरफ दौड़ पड़े। इस मौके पर राजगढ़ तहसील से 84 आदमी जलसे में गए हुये थे।

बीरबल मोची की सहादत: जलसे में श्री गंगानगर का रहने वाला बीरबल जो रायसिंहनगर में ब्याहा था, वो भी जलसे में आया हुआ था। इस सारे घटनाक्रम को देखकर उससे रुका नहीं गया, अतः वह रेस्ट हाऊस में घुस गया तथा कोने में पड़े हुये तिरंगे झंडे को उठाकर पुलिस से धक्का मुक्की करते हुये बाहर आ गया। इधर सादुलसिंह इन्फेंट्री ने, जो रेस्ट हाऊस से पश्चिम की तरफ ठहरी हुई थी, खतरे की सीटी सुनकर दीवार फांद कर रेस्ट हाऊस में आकर मोर्चा ले लिया। जो आदमी जलसे में राजगढ़ से आए उनसे चार कदम पश्चिम की तरफ चौधरी जीवन राम कडवासरा, उनसे पश्चिम की तरफ नोरंगराम (हमीरवास) तथा उनसे पश्चिम तरफ गाड़ी के पास चौधरी भादरा वाले खड़े हो गए। इतने में 17 गोलियां चली और रेस्ट हाऊस से झण्डा लेकर आते हुये बीरबल की जांघ में एक गोली लगी कि तत्काल ही उनका मुंह स्टेशन की तरफ फिर गया, तभी दूसरी गोली दूसरी जांघ में आकार लगी। उस गोली का हमें पता नहीं लगा, इतने में गोलियां चलनी बंद हो गई थी। पहली जांघ में जो गोली लगी थी, उसके ऊपर जीवन राम ने अपनी धोती फाड़ कर मरहमपट्टी कर दी, लेकिन दूसरी गोली का हमें पता नहीं लगा क्योंकि उसके ऊपर कमीज था। खून नीचे की ओर बहने लगा। बीरबल को मंच के पास लाया गया। बिहारी लाल कमिश्नर ने डाक्टरों और दूकानदारों को कह रखा था कि इनको कोई सहायता नहीं दी जावे। इलाज के अभाव में शाम 4.30 बजे बीरबल खत्म हो गया। इस सहादत का पता लगा तो चारों तरफ से आकर 15-20 हजार लोग रायसिंह नगर में उमड़ गए। सवेरे जब बीरबल मोची को दाह-संस्कार के लिए शमशान घाट की तरफ ले जाने लगे तभी बीरबल की पत्नी का गंगानगर से तार आया कि जब तक मैं अंतिम दर्शन न करलूँ दाह-संस्कार नहीं करें। सब लोग सकते में पड़ गए। इतने में बीरबल का मामा तथा उसके मामा का बेटा आगे आए और कहने लगे कि इसका दाह संस्कार कर दो, हम दोनों इसके लिए जिम्मेदार हैं।


[p.59]: बीरबल की बहू पहुंची तो उसका स्टेज पर मास्टर तेजराम ने माला डालकर स्वागत किया। वह बोली – "मेरे पति देश के लिए शहीद हो गए हैं मुझे संतोष है। मेरे लिए जमीन व आसमान मिल गए है"।

बीकानेर महाराज ने अपने राज में धारा 144 लगा दी। हम 84 आदमी जब स्टेशन पर पहुंचे तो जगदीश एस. पी. स्टेशन पर खड़े थे। वे हमारे तिरंगे झंडे को देख रहे थे। उन्होने हाथ जोड़कर कहा – “बेटो मेरी शान रखो, झंडे राजा ने माना कर रखे हैं”। मोहर सिंह ने कहा – झण्डा ज्यादा ऊंचा नहीं रखेंगे, कुछ ऊंचा रखकर ही जुलूस निकाल लेंगे और आपकी शान रख देंगे”। इस जलसे का प्रचार कई प्रान्तों में हुआ।


चौधरी जीवनरामजी दीनगढ़ बीकानेर ने जाट इतिहास (उत्पत्ति और गौरव खंड) पुस्तक के छपाने के लिए सहायता दी।[3]

Gallery

References

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.129-130
  2. Ganesh Berwal: 'Jan Jagaran Ke Jan Nayak Kamred Mohar Singh', 2016, ISBN 978.81.926510.7.1, p.57-59
  3. Jat Itihas (Utpatti Aur Gaurav Khand)/Parishisht,p.175

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