Kanak Singh Khatri

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Author:User:Solankivich

Ch. Kanak Singh Khatri
Jat zamindars of narela

Chaudhary Kanak Singh Khatri was the Jagirdar under Mughal then Britishers from Pana Mamurpur, Narela. His son Swami Omanand Sarswati was an Arya Samajist and a social reformer.

चौ० कनकसिंह नरेला के गिने-चुने व्यक्तियों की सबसे अग्रिम पंक्ति में आते थे । वे गांव के नम्बरदार भी थे । नरेला की भूमि अत्यधिक उपजाऊ भूमि है । यह भूमि अन्न के रूप में सोना उगलती है । जिन परिवारों के पास केवल दस-पन्द्रह बीघा भूमि है वे भी केवल इसी पर निर्भर रहकर भरे पूरे परिवार का सानन्द निर्वाह करने में सफल हैं । फिर चौ० कनकसिंह तो ३०० बीघा भूमि के स्वामी थे, जिसमें जल सिंचन के लिए पांच कुएं थे । एक बड़ा उद्यान (बाग) था । फिर उन्हें विरासत में पैतृक सम्पत्ति भी बहुत मिली थी । इस प्रकार उनकी आर्थिक सम्पन्नता का आकलन सहज में ही किया जा सकता है । दूसरी ओर समाज में उनका ऊंचा स्थान था । विशेषकर इसलिए कि वे हर सामाजिक कार्य में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे । सामाजिक कार्यों में दान भी बहुत देते थे । सम्पन्नता का अभिमान उनको छू भी नहीं गया था । उस समय उत्तर भारत में आर्यसमाज का बोलबाला था । आर्यसमाज ही राष्ट्रीयता का प्रचार करने वाली सबसे बड़ी और अग्रगण्य संस्था थी । आर्य-प्रचारक महर्षि दयानन्द और महात्मा गांधी के सन्देशों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए नरेला गांव में इस प्रकार के उपदेशकों के भोजन और निवास का प्रबन्ध श्री चौ० कनकसिंह के घर पर ही होता था । आपकी माता जी अतिथि-सत्कार में अतिदक्ष थी । वे स्वभाव से बहुत ही मृदु एवं धर्म-परायण तथा सामाजिक मर्यादाओं में विश्वास रखने वाले स्त्री थी । वे अतिथि-सत्कार में किसी प्रकार की कोई कसर न उठा रखती थीं । इसी कारण इस परिवार को दूर-दूर तक जाना पहचाना जाने लगा ।[1]