Gauda Bengal

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Malda district map

Gauḍa, (Hindi: गौड़, Bengali: গৌড়), also known as Lakhnauti, is a ruined city on the India-Bangladesh border, most of the former citadel is located in present-day the Malda district of West Bengal, India, while a smaller part is located in Nawabganj District of Bangladesh.

Variants of name

Location

Gauḍa is located at 24°52′N 88°08′E near the India-Bangladesh international border. It has an average elevation of 22 metres. Gauḍa lies in the Eastern bank of the rivers Bhagirathi and Pagla This city was on the east bank of the Ganges river, 40 kms downstream from Rajmahal, 12 km south of Malda. However, the current course of the Ganges is far away from the ruins.

Mention by Panini

Gaudapura (गौड़पुर) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [1]


Gaudika (गौड़िक) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [2]


V S Agarwal[3] mentions.... Gaudapura (गौड़पुर) (VI.2.100], Gauda, the well-known town in Maldah district in Bengal.

History

V. S. Agrawala[4] writes that Panini mentions Pura ending names of towns like Gauḍapura (VI.2.100), modern Gauḍa in Malda in Bengal.


V. S. Agrawala[5] writes that Panini refers to Nagara (IV.2.142), e.g. Mahanagara and Navanagara as names of towns 'not in the north' but in the east. Mahanagara is to be identified with Mahasthana, the capital of north Bengal or Pundra and Navanagara with the Navadvipa, the capital of west Bengal or Vanga. In between Mahanagara and Navanagara lay Gauḍapura (VI.2.100), modern Gauḍa, an important town in route from Champa to Mahasthana and an important centre of guḍa manufacturing in the Pundra Country.


Lakshmanavati or Lakhnauti gathered prominence during the Sena dynasty, with the name of the city, often attributed to the Sena king Lakshman Sena. Prior to the accession of the Sena dynasty, Gauda region was under the control of the Pala dynasty and, in all probability, Karnasuvarna, the capital of Shashanka, served as the administrative headquarter. For example, the Khalimpur copperplate inscription of Dharmapal, refers to the monarch as Gaudeshwar (lord of Gauda). It is possible that, the Sena dynasty, that supplanted the Pala dynasty in Bengal proper (and to Gauda region) felt the need for a new administrative capital, to reduce the Pala influence. It is possible that the process might have been started by Vijay or Ballal Sena - but given the final shape by Lakshmana Sena. In fact Lakshmanasena had the administrative capital at Lakhnauti while a lesser capital (more likely a retreat in his later days) at Nadia. It was in the later capital, possibly less defended, that he was surprised by Ikhtiyar-ud-din Mohammad ibn Bakhtiyar Khalji.

The area was known as Gauḍa (ablate of Sankrit guḍa, meaning sweet or molasses or root) at the time was under the rule of famous Bengali kings such as Shashanka. In the 7th century Gopala by a democratic election in Gauḍa became the first independent Buddhist king of Bengal and founded the Pala Empire. The Pala dynasty ruled for nearly four centuries between the mid to late 8th century to 12th century CE. The Palas were often described by opponents as the Lords of Gauḍa. It was also a prosperous city during the Sena dynasty's rule in Bengal. However, its most well documented history begins with its conquest in 1198 by the Muslims, who retained it as the chief seat of their power in Bengal for more than three centuries.

Around the year 1350, the Sultans of Bengal established their independence, and transferred their seat of government to Pandua (q.v.), also in Malda district. To build their new capital, they plundered Gauḍa of every monument that could be removed. When Pandua was in its turn deserted (1453), Gauḍa once more became the capital under the name Jannatabad; it remained so as long as the Muslim kings retained their independence.

In 1565 Sulaiman Khan Karrani, a Pashtun ruler, abandoned it for Tanda, a place somewhat nearer the Ganges. Gauḍa was sacked by Sher Shah in 1539, and was occupied by Akbar's general Munim Khan in 1575, when Daud Khan Karrani, the last of the Afghan dynasty, refused to pay homage to the Mughal emperor. This occupation was followed by an outbreak of the plague and course change of the Ganges, which completed the downfall of the city. Since then it has been little better than a heap of ruins, almost overgrown with jungle.[6]

In Rajatarangini

Rajatarangini[7] tellas abput the Movements of Sanjapala: ....The king Jayasimha whose efforts had been checked by Sujji and Chitraratha did not give orders to Sanjapala to enter the city ; but Mallarjjuna sent messengers to him. On this account Sanjapala got himself into a quarrel on the way with some leaders of the army, his body was marked with wounds, and he was deprived of his glory. Even, in this plight, Mallarjjuna could not bring him over to him, though he promised much wealth. Wise men therefore praised Sanjapala. certain feudatory chicf privately invited him through messengers out of courtesy, and Rilhana and he came there without delay. "If I am not killed yet, I shall be killed afterwards," thought the brave Sanjapala, as he entered the city by a road difficult of access, on account of enemies. He was respected by the kings of Kanyakubja and Gauda for his prowess, but he was grieved at not receiving good treatment in his own country. [VIII (i),p.181]

निवृति

विजयेन्द्र कुमार माथुर[8] ने लेख किया है ...2. निवृति (AS, p.502): पुंड्र का पूर्वी भाग. गौड़ का भी एक नाम निवृति था.

गौड़ बंगाल

विजयेन्द्र कुमार माथुर[9] ने लेख किया है ...1. गौड़ (AS, p.308) प्राचीन 'लक्ष्मणावती' या 'लखनौती' (बंगाल) का मध्ययुगीन नाम था। सेन वंश के शासन काल (13वीं शती) में बंगाल की राजधानी क्रमश: काशीपुरी, वरेंद्र और लक्ष्मणावती में रही थी.

मुस्लिमों के बंगाल पर आधिपत्य होने के बाद इस सूबे की राजधानी कभी गौड़ और कभी पांडुआ में रही। पांडुआ गौड़ से 20 मील (लगभग 32 कि.मी.) दूर है। आज इस मध्ययुगीन भव्य नगर के केवल खंडहर ही शेष हैं। इनमें अनेक हिन्दू मंदिरों तथा मूर्तियों के अवशेष हैं, जिनका मसजिदों के निर्माण में प्रयोग किया था। 1575 ई. में बादशाह अकबर के सूबेदार ने गौड़ के सौंदर्य से आकृष्ट होकर राजधानी पांडुआ से हटाकर गौड़ में बनाई, जिसके फलस्वरूप गौड़ में एक बारगी बहुत भीड़भाड़ हो गई थी।

थोड़े ही दिनों बाद गौड़ में महामारी का भी प्रकोप हुआ, जिससे गौड़ की जनसंख्या को भारी क्षति पहुँची। बहुत से निवासी गौड़ छोड़कर भाग गए। पांडुआ में भी महामारी का प्रकोप फैला और बंगाल के ये दोनों प्रमुख नगर जहाँ भव्य इमारतें खड़ी हुईं थीं तथा चारों ओर व्यस्त नर-नारियों का कोलाहल रहता था, इस महामारी के पश्चात् श्मशानवत् दिखलाई पड़ने लगे और उनकी सड़कों पर अब घास उग आई और दिन दहाड़े हिंसक पशु घूमने लगे। पांडुआ से गौड़ जाने वाली सड़क पर अब घने जंगल बन गए थे। तत्पश्चात् प्राय: 300 वर्षों तक बंगाल की

[p.309]:शानदार नगरी गौड़ खंडहरों के रूप में घने जंगलों के बीच छिपी रही। अब कुछ ही वर्ष पहले वहाँ के प्राचीन वैभव को खुदाई द्वारा प्रकाश में लाने का प्रयत्न किया गया है।

लखनौती में 9वीं-10वीं शती ई. में पाल राजाओं का आधिपत्य था तथा 12वीं शती तक सेन नरेशों का। इस काल में यहाँ अनेक हिन्दू मंदिर बने, जिन्हें गौड़ के परवर्ती मुस्लिम बादशाहों ने नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। गौड़ की मुस्लिम कालीन इमारतों के बहुत से अवशेष अब भी यहाँ हैं। इनकी मुख्य विशेषता इनकी ठोस बनावट तथा विशालता है। सोना मसजिद प्राचीन मंदिरों की सामग्री से बनी है। यह यहाँ के जीर्ण किले के अंदर स्थित है। इसकी निर्माण-तिथि 1526 ई. है। इसके अतिरिक्त 1530 ई. में बनी नुसरतशाह की मसजिद भी कला की दृष्टि से उल्लेखनीय है।

2. गौड़ (AS, p.308) बंगाल का एक प्राचीन सामान्य नाम था। 'गौड़' या 'गौड़पुर' का उल्लेख पाणिनि 6,2,200 ने भी में किया है। कहा जाता है कि 'पुंड्र' या 'पौंड्र' (पौंड्र=पौंडा या गन्ना) देश से गुड़ का प्रचुर मात्रा में निर्यात इस प्रदेश द्वारा होने के कारण ही इसे गौड़ कहा जाता था। गौड़पुर को गौड़भृत्यपुर भी कहा गया है। बाण के 'हर्षचरित' में गौड़ (बंगाल) के नरेश शशांक का उल्लेख है। संस्कृत काव्य की एक वृत्ति का नाम भी गौड़ी है, जो गौड़ देश से ही संबंधित है। इसके अतिरिक्त कई जातियों को भी गौड़ नाम से अभिहित किया जाता था। (दे. पंचगौड़)

गौड़ परिचय

गौड़ बंगाल का प्राचीन सामान्य नाम है। स्कंदपुराण के अनुसार गौड़ देश की स्थिति वंगदेश से लेकर भुवनेश (भुवनेश्वर, उड़ीसा) तक थी- 'वंगदेशं समारभ्य भुवनेशांतग: शिवे, गौड़ देश: समाख्यात: सर्वविद्या विशारद:।' पद्म पुराण (189- 2) में गौड़ नरेश नरसिंह का नाम आया है। अभिलेखों में गौड़ देश का सर्वप्रथम उल्लेख 553 ई. के हराहा अभिलेख में है जिसमें ईश्वर वर्मन मौखरी की गौड़देश पर विजय का उल्लेख है। बाणभट्ट ने गौड़नरेश शशांक का वर्णन किया है जिसने हर्षवर्धन के ज्येष्ठ भ्राता राज्यवर्धन का वध किया था। माधाईनगर के ताम्रपट्ट लेख से सूचित होता है कि गौड़नरेश लक्ष्मणसेन का कलिंग तक प्रभुत्व था। गौड़ देश के नाम पर संस्कृत काव्य की पुरुषावृत्ति का नाम ही गौड़ी पड़ गया था। कायस्थों आदि की कई जातियाँ आज भी गौड़ कहलाती है। कुछ विद्वानों का मत है कि गुड़ के व्यापार का केंद्र होने के कारण ही इस प्रदेश का नाम गौड़ हो गया था।

अन्य नाम: प्राचीन 'लक्ष्मणावती' या 'लखनौती' (बंगाल) का मध्ययुगीन नाम था। कहा जाता है कि इस प्रदेश से प्रचुर मात्रा में गुड़ का निर्यात होने के कारण ही इसे 'गौड़' कहा जाता था। बाणभट्ट के 'हर्षचरित' में गौड़ के नरेश शशांक का उल्लेख मिलता है। आज इस मध्ययुगीन सुन्दर नगर के मात्र खंडहर ही शेष हैं।

इतिहास: नवीं-दसवीं शताब्दी में गौड़ पर पाल वंश के राजाओं का आधिपत्य था। सेन वंश के शासनकाल (12वीं शताब्दी) में बंगाल की राजधानी लखनौती थी। मुग़ल शासकों में हुमायूँ ने बंगाल की राजधानी गौड़ पर कुछ वर्षों के लिए अधिकार कर लिया था, परंतु अफ़ग़ानों ने तुरंत ही उसे वहाँ से बाहर निकाल दिया। सन 1576 ई. में दो वर्ष के संघर्षपूर्ण घटना-चक्र के पश्चात् बंगाल मुग़ल साम्राज्य का एक सूबा बना दिया गया।

संदर्भ: भारतकोश-गौड़

Notable persons

External links

References


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