Malloi

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Malloi (मल्लोई)[1] Mandloi (मण्डलोई) Mandolia (मण्डोलिया) is gotra of Jats.[2]

Origin

  • This gotra is said to be originated from ancient tribe Malava of Mahabharata.
  • This gotra is said to be originated from Malwa. The inhabitants of Malwa were known as Malloi. [3]

History

Dr Pema Ram writes that after the invasion of Alexander in 326 BC, the Jats of Sindh and Punjab migrated to Rajasthan. They built tanks, wells and Bawadis near their habitations. The tribes migrated were: Shivis, Yaudheyas, Malavas, Madras etc. The Shivi tribe which came from Ravi and Beas Rivers founded towns like Sheo, Sojat, Siwana, Shergarh, Shivganj etc. This area was adjoining to Sindh and mainly inhabited by Jats. The descendants of Malavas are: Mal, Madra, Mandal, Male, Malloi etc. [4]


Hukam Singh Pawar (Pauria)[5] states: The companion princes of Harshavardhana, i.e. Kumaragupta III and Madhavagupta belonged to the Mallava tribe (Malloi) and Bhandi was a Poni . Mahasenagupta, the mother of Prabhakarvardhana, the grand-mother of Harsha, was a princess of the Gupta (Dharana) lineage. King Grahavarman, husband of Rajyashri was a Maukhari . The Jats have among them the Kuntals, Mall or Malli; Poni or Punia or Paunyas, Dharanas as well as Mukharis or Mokharias. This does not seem to be a mere coincidence.

Variant of Malloi is Mandloi/Mandolia gotra Jats live in Jaipur district in Rajasthan. Found in Jaipur city at Bhatton Ki Gali, Sanganer.

मल्ल: ठाकुर देशराज

ठाकुर देशराज[6] ने लिखा है.... मल्ल - [पृ.100]: सिकंदर के साथियों ने इन्हें मल्लोई ही लिखा है। हिंदुस्तान के कई इतिहासकारों को उनके संबंध में बड़ा भ्रम हुआ है। वह इन्हें कहीं उज्जैन के आसपास मानते हैं। वास्तव में यह लोग पंजाब में रावी नदी के किनारे पर मुल्तान तक फैले हुए थे। फिरोजपुर और बठिंडा के बीच के लोग अपने प्रदेश को मालवा कहते हैं। बौद्ध काल में हम लोगों को चार स्थानों


[पृ.101]: पर राज्य करते पाते हैं-- पावा, कुशीनारा, काशी और मुल्तान। इनमें सिकंदर को मुल्तान के पास के मल्लों से पाला पड़ा था। इनके पास 90000 पैदल 10000 सवार और 900 हाथी थे। पाणिनी ने इन्हें आयुध जीवी क्षत्रिय माना है। हमें तो अयोधन और आयुध इन्हीं के साथी जान पड़ते हैं। जाटों में यह आज भी मल, माली और मालवन के नाम से मशहूर हैं। एक समय इनका इतना बड़ा प्रभाव हो गया था इन्हीं के नाम पर संवत चल निकला था। इनके कहीं सिक्के मिले जिन पर 'मालवानाम् जय' लिखा रहता है। ये गणवादी (जाति राष्ट्रवादी) थे। इस बात का सबूत इन के दूसरे प्रकार के उन सिक्कों से भी हो जाता है जिन पर 'मालव गणस्य जय' लिखा हुआ है। जयपुर के नागर नामक कस्बे के पास से एक पुराने स्थान से इनके बहुत से सिक्के मिले थे। जिनमें से कुछ पर मलय, मजुप और मगजस नाम भी लिखे मिले हैं। हमारे मन से यह उन महापुरुषों के नाम हैं जो इनके गण के सरदार रह चुके थे। इन लोगों की एक लड़ाई क्षत्रप नहपान के दामाद से हुई थी। दूसरी लड़ाई समुद्रगुप्त से हुई। इसी लड़ाई में इनका ज्ञाति राष्ट्र छिन्न-भिन्न हो गया और यह समुद्रगुप्त के साम्राज्य में मिला लिया गया इनके सिक्के ईसवी सन के 250 150 वर्ष पूर्व माने जाते हैं।

भाटी की उत्पत्ति

ठाकुर देशराज[7] ने लिखा है.... भाटी - भाटी लोगों के पास पंजाब में पटियाला और नाभा जैसी सिख जाट रियासते हैं। जैसलमेर की रियासत राजपूत भाटियों के पास है। जगाभाट लोगों ने जाट भाटियों के संबंध में यह भ्रांति फैला रखी है कि राव खेवा ने नादू जाट की लड़की से शादी कर ली। इससे राव खेवा की संतान के लोग जाट कहलाने लगे। हम नहीं समझते कि राव खेवा यह समझते हुए भी कि जाटनी से शादी करने से उन्हें राजपूत निकाल देंगे, ऐसी गलती क्यों करते हैं। संभव है वह पटियाला के वर्तमान महाराजा की बराबर बुद्धिमान न रहे हों जिन्होंने फिर से राजपूत होने के लिए संस्कार कराया था। झूठी बात भी दो-चार पीढ़ी तक सुनते रहने से किस प्रकार सही हो जाती है यह गढ़ंत इस बात का उदाहरण है। पहले तो भाटियों के संबंध में भाटों की


[पृ.131]: गढ़ी हुई हम इसी बात का खंडन करना चाहते हैं। भाट कहते हैं कि एक यादव राजकुमार ने देवी को प्रसन्न करने के लिए भट्टी में अपना सिर होम दिया था तभी से यह भाटी कहलाने लगे। खूब ! बेसिर-पैर की उड़ाई है। क्या आज के प्रकाश के युग में कोई इस बात पर विश्वास कर सकता है कि जलती हुई भट्टी में से सिर बिना खाक हुए बचा रह गया और फिर वही सिर धड़ पर रख देने से पहले जैसा ही हो गया।

असल बात यह है कि गजनी से लौटा हुआ यह समूह जब भटिंडा भटनेर के आसपास के इलाके में आबाद हो गया तो भाटी कहलाने लगा। संस्कृत साहित्य में इस देश को बातिभय लिखा है ईसा से कई सदी पहले वत्स गोत्री राजा उदयान यहां पर राज्य करता था। यह बातिभय बातभय का रूपांतर है जिसके माने 'हवा का डर' होता है। वास्तव में गर्मी के महीनों में यहाँ इतनी लू चलती है जितनी भारत के किसी कोने में शायद ही चलती होगी। प्रातः 8 बजे से शाम के 5 बजे तक आसमान धूल से ढक जाता है। एक फर्लांग दूर का मनुष्य भी दिखाई नहीं देता। बालू में से अग्नि किरणें उठती दिखाई देती हैं। एक तरह से उस समय पर यह सारा प्रदेश एक जलती भट्टी होता है। यदि भाटों ने इसी को अलंकार मय भाषा में देवी की भट्टी कहा हो तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। पानी का जहां प्राय: सदैव अकाल रहता है। ऐसे प्रांत का बातभय नाम होना ही चाहिए। इसी बात-भय शब्द से


[पृ.132]: बातियाना भतियाना और भटियाना नाम पड़ गया और जो लोग इसमें आबाद हो गए वे भाटी कहलाए और जितना समूह अपने परंपरागत रस्मों रिवाजों को छोड़कर नवीन ब्राह्मण धर्म में दीक्षित हो गया वह राजपूत कहलाया। हमें तो यह भी कहना पड़ता है कि भाटियों का खानदान मल्लों में से है जो कि यादवों की ही एक शाखा थे। क्योंकि पटियाला का खानदान फुलकिया मलोई कहलाता है अर्थात वे मलोई जो फूल के वंशज हैं। हम यूनानी लेखकों की पुस्तकों में सिकंदर के आक्रमण के समय मलोई नाम की एक प्रसिद्ध प्रजासत्तात्मक शासक जाति को पाते हैं जो सतलज के किनारे पर आबाद थी। सिकंदर अथवा अन्य विदेशी ताकत के संघर्ष है जब इसे बराबर नीचे के खुश्क मैदान में बसना पड़ा जोकि भटियाना के नाम से प्रसिद्ध है तो यह भाटी कहलाने लगे- बठिंडा, हिसार, भटनेर और हांसी पर एक लंबे अरसे तक जाट भाटियों की हुकूमत रही है। इस समय 3 तरह के भाटी हैं- मुसलमान भाटी, जाट भाटी, राजपूत भाटी। जाट भाटियों के पास पटियाला, नाभा, जींद, फरीदकोट जैसी प्रसिद्ध रियासतें हैं।

Notable persons

External links

See also

Mandolia (मण्डोलिया)

References


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