Nander

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(Redirected from Nanded)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Nanded district map

Nanded (नांदेड़) is a city and district in Maharashtra. Nanded has been a major place for Sikh pilgrimage.[1] 10th Sikh Guru, Guru Gobind Singh made Nanded as his permanent abode and passed Guruship to Guru Granth Sahib before his death in 1708 in Nanded.[2]

Variants of name

Location

Nanded is located on the banks of Godavari river and was famous for its Vedic Hindu rituals on the sacred banks of river, such as Urvashi Ghat, Ram Ghat, Govardhan Ghat.

Mention by Panini

Nandinagara (नान्दीनगर) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [3]

Etymology

The city was formerly known as Nanditaṭa (नंदितट) according to a copper plate inscription found at Vasim. It was also known as Nandigrāma.[4] The name Nanded is widely believed to have originated from Nandi the Vahana of Lord Shiva, who performed penance on the banks (Taṭa of River Godavari). This Nandi taṭa became Nanded.

Nanded district

There were 16 talukas in Nanded district as in November, 2014, viz. Nanded, Ardhapur, Bhokar, Biloli, Deglur, Dharmabad, Hadgaon, Himayatnagar, Kandhar, Kinwat, Loha, Mahur, Mudkhed, Mukhed, Naigaon, and Umri.

History

V. S. Agrawala[5] writes that The Kashika gives the following examples of towns with the ending nagara: Nandinagara (Nāndīnagara) (नांदीनगर), Kantinagara (कांतिनगर) in the north (udīchām).


One of the oldest and historic cities in the Marathwada region of Maharashtra, Nanded is situated on the north bank of the Godavari River, in the southeastern part of Maharashtra, bordering Telangana.[6]

The Nanda dynasty ruled over Nanded for generations in the 5th and 4th centuries BCE.

Nanded was also part of the Maurya Empire under Ashoka (c. 272 to 231 BCE).

Later on, Nanded District and the adjoining areas were ruled over by the Andhrabhrtyas and Satvahanas during the first century AD.[7]

Early mentions of Nanded and irrigation practices are found in the Leela Charitra, a treatise written about 700 years ago by Mhaimbhatta.[8]

Under Mughal padshah (emperor) Shah Jahan, Nanded was the seat of Mughal Telangana Subah (an imperial top-level province) from its 1636 establishment until its 1657 merger into Bidar Subah.

In 1708, the year following Aurangzeb's death, Guru Gobind Singh, the tenth spiritual leader of the Sikhs, came to Nanded. He proclaimed himself the last living Guru and established the Guru Granth Sahib as the eternal Guru of Sikhism, elevating the reverence of the text to that of a living leader.

Around 1835, Maharaja Ranjit Singh oversaw the construction of a gurdwara at Nanded. Located at the site of Guru Gobind Singh's cremation, the gurdwara is part of the Hazur Sahib. Today, Nanded gains prominence from the Sikh Gurdwara which is erected at the place where Guru Gobind Singh, the last Sikh Guru, died in 1708.

Nanded became part of the Hyderabad State in 1725 and continued to be part of the Nizam's dominions until 1948.[9]

After India gained independence in 1947, the Indian Armed Forces annexed Hyderabad and ended the rule of the Nizam in Operation Polo, making Nanded part of the new Hyderabad State. Nanded remained in annexed Hyderabad state until 1956 when it was included in Bombay Presidency. On May 1, 1960 Maharashtra state was created on linguistic basis and Marathi dominant Nanded district became part of Maharashtra.


Ram Sarup Joon[10] writes that....Aurangzeb died on 3 Mar 1707 and his three sons indulged in a war of succession. In Nov 1708, Guru Gobind Singh followed Bahadur Shah's forces marching towards Deccan. He met Banda Bairagi Madhodas at Nander. He found the Banda Bairagi capable of leading the Panth, and persuaded him to come to Punjab. While on his way to Punjab, Banda Bairagi broke his journey at Sehri - Khandaa a Jat village of Dahiya Gotra, 20 miles west of Delhi.

In Inscriptions

Bharhut Inscriptions
Pillars at Batanmāra.

91. Nandagirino Bhānakasa Selapuraka thabho dānam.

" Pillar-gift of Bhanaka Selapuraka of Nandagiri (? Nander)." (The stūpa of Bharhut,p.138 )

37. Nadinagarikāyā Ida Devaya dānam. = " Gift of Indra Deva of Nandinagara (Nander)." (The stūpa of Bharhut, p. 141 )

Washim Inscription

A tamrapatra from Washim mentions its ancient name as Nandikala (नंदीकल).

नंदेड़ = नन्दगिरि = नंदीतट

विजयेन्द्र कुमार माथुर[11] ने लेख किया है ...Nander नंदेड़ = Nandagiri नन्दगिरि = Nanditata नंदीतट (महा.) (AS, p.473): पुराणों में वर्णित नंदीतट या नंदेड़ की गणना भारत के पवित्र धार्मिक स्थानों में की जाती है। मेकएलिफ़ की 'सिक्ख रिलीजन' के अनुसार इस स्थान का प्राचीन नाम 'नवनंद' था, क्योंकि इस स्थान पर नौ ऋषियों ने तप किया था। इस नाम का संबंध मगध के नवनंदों से भी बताया जाता है। कुछ विद्वानों का मत है कि 'पेरिप्लस ऑफ़ दि एराईथ्रियन सी' नामक ग्रंथ के लेखक ने दक्षिण भारत के जिस व्यापारिक नगर 'तगारा' का वर्णन किया है, वह नंदेड़ के निकट ही स्थित होगा। चौथी शती ई. में नंदेड़ नगर काफ़ी महत्त्वपूर्ण था और यहाँ एक छोटे से राज्य की राजधानी भी थी, किन्तु अब यहाँ अति प्राचीन भवनों आदि के अवशेष नहीं मिलते।

एक ऐतिहासिक कथा के अनुसार चालुक्य वंश के राजा आनंद ने अपनी राजधानी कल्याणी से नंदेड़ ले आने का विचार किया था और नंदेड़ में पत्थर के बांध बनवाकर एक तड़ाग का निर्माण भी करवाया था। उसी ने रत्नागिरि पहाड़ी पर नंदगिरि या नंदेड़ नगरी को बसाया था। चौथी शती ई. में वारंगल के चालुक्य नरेशों की एक शाखा नंदेड़ में राज्य करती थी। वारंगल के ककातीय राजवंश के इतिहास 'प्रताप रुद्रभुषण' में वर्णन है कि ककातीय नरेंश नंद का नंदेड़ पर राज्य था। नंददेव के पौत्र माधववर्मन के शासन काल में शिव तथा नंदी की पूजा को बहुत प्रोत्साहन मिला और इस समय के अनेक मंदिर नंदेड़ की प्राचीन कला और संस्कृति के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

'नरसिंह का मंदिर' तथा बौद्ध और जैन मंदिर हिन्दू काल के सुंदर संस्मारक हैं। मुस्लिमों के दक्षिण भारत पर आक्रमण के पश्चात् नंदेड़ अलाउद्दीन ख़िलजी तथा मुहम्मद तुग़लक़ के अधिकार में रहा। बहमनी काल में नंदेड़ एक बड़ा व्यापारिक स्थान बन गया था, क्योंकि गोदावरी नदी के तट पर स्थित होने के कारण यह उत्तरी और दक्षिणी भारत के बीच नदियों के द्वारा होने वाले व्यापार के मार्ग पर पड़ता था। महमूद गवाँ ने जो बहमनी राज्य का मंत्री थी, नंदेड़ को महोर के सूबे के अंतर्गत शामिल कर लिया। बहमनी काल में नंदेड़ में कई मुस्लिम संतों ने अपना आवास बनाया था।

मलिक अम्बर और कुतुबशाही सुल्तानों की बनवाई हुई दो मस्जिदें भी यहाँ पर स्थित हैं। किन्तु नंदेड़ की प्रसिद्धि का विशेष कारण सिक्खों के दसवें गुरु गोविंद सिंह की समाधि है। औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात् गोविंद सिंह बहादुरशाह प्रथम के साथ दक्षिण भारत आए थे। यहाँ पर उन्होंने नंदेड़ के निवासी [p.473]: 'माधोदास बैरागी' (बंदा बैरागी) की वीरता से संबंधित यशोगान सुने और उससे मिलने वे नंदेड़ आए। यहीं पर उन्होंने अपना अस्थायी निवास बनाया था। उनके डेरे का स्थान आज भी 'संगत साहब गुरुद्वारा' कहलाता है। गोदावरी के तट पर वह स्थान, जहाँ गुरु की बंदा से भेंट हुई थी, 'बंदाघाट' नाम से प्रसिद्ध है। एक शिष्य ने गुरु को एक अमूल्य हीरा भेंट किया था, जो उन्होंने गोदावरी के जल में फेंक दिया था। यह स्थान 'नगीना घाट' कहलाता है।

1708 ई. में नंदेड़ में ही गुरु गोविंद सिंह एक क्रूर पठान के हाथों घायल होकर कुछ समय पश्चात् स्वर्गगामी हुए। उनकी चिता की भस्म पर एक समाधि बनवाई गई थी, जो अब 'हज़ुर साहिब का गुरुद्वारा' नाम से सिक्खों का महत्त्वपूर्ण तीर्थ है। इस गुरुद्वारे का महाराणा रणजीत सिंह ने 1831 ई. में निर्माण करवाया था। इसके फर्श और स्तंभों पर संगमरमर का सुंदर काम है। गुरुद्वारे के गुंबद, छत और बीच के बरामदे पर सोने के भारी पत्थर लगे हैं। मुख्य गुरुद्वारे के अतिरिक्त नंदेड़ में सात अन्य गुरुद्वारे भी हैं- 1. हीराघाट, 2. शिखरघाट, 3. माता साहिबा, 4. संगत साहब, 5. मालटेकरी, 6. बंदाघाट, 7. नगीना घाट

इन सबसे गोविंद सिंह के जीवन की अनमोल कथाएं संबंधित हैं। वासिम से प्राप्त एक ताम्र पट्टलेख में नंदेड़ का प्राचीन नाम 'नंदीकल' दिया हुआ है।

See also

References