Rajgarh Churu

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(Redirected from Sadulpur)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

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Jat Samudayik Bhawan Rajgarh Churu
Location of Rajgarh in Churu district

Rajgarh or Sadulpur is a town and tahsil in Churu district in Rajasthan. It was part of Jangladesh where Punia Jats had ruled. Its old name was Ludi.

Ludi was founded by Punia gotra Jats and known as Puniagarh.[1]

Origin of name

Ludi village was converted to Rajgarh by Raja Gaj Singh of Bikaner in 1766 after his son Raj Sing who succeeded his father, S. 1843 (a.d. 1787), but he enjoyed the dignity only thirteen days, being removed by a dose of poison by the mother of Surut Sing, the fifth son of Raja Guj Singh.[2]

Jat Gotras

Villages in Rajgarh tahsil

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History

वर्तमान राजगढ़ का पूर्व नाम लूद्दी था। लूद्दी चुरू से 38 मील उत्तर-पूर्व में और सीधमुख से 16 मील दक्षिण-पूर्व में राजगढ़ कसबे के पास है. यह पूनिया जाटों की राजधानी थी. [3] किसी समय लूद्दी स्मृद्ध कस्बा रहा होगा, लेकिन अब यह अति साधारण गाँव है. पूनियों के अधीन 360 गाँव थे. [4]

इसके तीन बास है -

  • लूद्दी छाजू - लूद्दी छाजू तो सर्वथा निर्जन है. नेतजी मंदिर राजगढ़ - नेतजी अथवा भोमिया जी नगर के प्रधान देवता माने जाते हैं। सन 1823 मे राजगढ़ की स्थापना के समय लुद्दी छाजू से एक परिवार आकर राजगढ़ में बसा और उसने नगर के पश्चिम मे नेतजी का थान बनाया। नगर या गाँव की स्थापना पर भोमिया जी की पूजा की जाती है। बीकानेर राज्य ने मंदिर के लिए 9 बीघा भूमि आवंटित की। 22 जून 1983 को इस भूमि का पक्का पट्टा बना। [5]


लुद्दी खूबा और लुद्दी झाबर की जनसंख्या रजिस्टर देहात बीकानेर (1931) के अनुसार 25 और 76 थी, जो बढकर 1961 में 69 और 190 हो गयी. लुद्दी झाबर के उदमीराम पुनिया ने बताया कि बाढ़मेर से बाढ़जी पूनिया पहले पहल यहाँ आए थे. बाढ़जी के 12 बेटे थे जिन्होंने अपने नाम पर 12 गाँव बसाए. लुद्दी में पहले 360 दुकाने तो केवल पटवों की ही थी. यहाँ से माल दिल्ली जाता था. उदमीराम ने बताया कि 11 वीं पीढी पूर्व उसका एक पूर्वज खेमा था. खेमा और उसकी पत्नी की यहाँ छतरी बनी हैं, यहाँ दो और छतरियाँ हैं जो एक तो कुंवारी लड़की की है और एक उस माँ की छतरी बतलाई जाती है जो अपने बेटे की अकाल मृत्यु पर सती हुई थी.[6] [7]

ठाकुर देशराज ने लिखा है की पूनिया जांगल देश में ईसा के प्रारम्भिक काल में पहुँच गए थे. उन्होने इस भूमि पर 16 वीं सदी के पूर्वार्ध तक राज किया. रठोड़ों के आगमन के समय इनका राजा कान्हादेव था. कान्हा बड़ा स्वाभिमानी योद्धा था. उसने राव बीका की अधीनता स्वीकार नहीं की. अंत में राठोडों ने उसके दमन के लिए उनके एरिया में गढ़ बनाना प्रारंभ किया. दिन में राठोड़ गढ़ बनाते थे और पूनिया जाट रात को आकर गढ़ ढहा देते थे. कहा जाता है की राजगढ़ के बुर्जों में कुछ पूनिया जाटों को चुन दिया गया था. बड़े संघर्ष के बाद ही पूनियों को हराया जा सका था. पूनियों ने राठोड नरेश रामसिंह को मारकर बदला चुकाया. [8] [9]


गणेश बेरवाल[10] ने लिखा है कि राजगढ़ के बारे में सरकारी गज़ट में अंकित है कि यह महान थार रेगिस्तान का गेट है, जहां से होकर दिल्ली से सिंध तक के काफिले गुजरते हैं। 1620 ई. के पहले यहाँ प्रजातांत्रिक गणों की व्यवस्था थी जिसमें भामू, डुडी, झाझरिया, मलिक, पूनीयां, राडसर्वाग गणतांत्रिक शासक थे । जैतपुर पूनीया गाँव था जहां से झासल, भादरा (हनुमानगढ़) तक का बड़ा गण था। जिसका मुख्यलय सिधमुख था। गण में एक ही व्यक्ति सिपाही भी था और किसान भी। लड़ाई होने पर पूरा गण मिलकर लड़ता था। राठोड़ों की नियमित सेना ने इनको गुलाम बनाया।

ठाकुर देशराज लिखते हैं

ठाकुर देशराज लिखते हैं कि पोनियां सर्पों की एक नस्ल होती है। इस नाम से जान पड़ता है कि यह नागवंशी हैं। ‘हिसार गजिटियर’ में लिखा हुआ है कि - “ये अपने को शिव गोत्री मानते हैं, साथ ही महादेव की जटाओं से निकलने का भी जिक्र करते हैं।” शिव और तक्षक लोग पड़ौसी थे। साथ ही दोनों ही समुदाय आगे चलकर शैव मतानुयायी भी हो गए थे। इसलिए उनका निकट सम्बन्ध है। सिकन्दर के आक्रमण के पश्चात् शिवोई (शिवी) और तक्षक वंशी लोग पंजाब से नीचे उतर आए थे। उनमें से ही कुछ लोगों ने जांगल-प्रदेश को अधिकार में कर एक लम्बे अर्से तक उसका उपयोग किया था। जांगल-प्रदेश में ईशा के आरम्भिक काल में पहुंच गए थे। उन्होंने इस भूमि पर पन्द्रहवीं शताब्दी के काल तक राज्य किया है। जिन दिनों राठौरों का दल बीका और कान्दल के संचालन में जांगल-प्रदेश में पहुंचा था, उस समय पोनियां सरदारों के अधिकार में 300 गांव थे। वे कई पीढ़ी पहले से स्वतंत्रता का उपभोग करते चले आ रहे थे। उन्हीं के छः राज्य जाटों के जांगल-प्रदेश में और भी थे। रामरत्न चारण ने ‘राजपूताने के इतिहास’ में इन राज्यों को भौमियाचारे राज्य लिखा है। इन राज्यों का वर्णन ‘भारत के देशी राज्य’ ‘तारीख राजगान हिन्द’ ‘वाकए-राजपूताना’ आदि कई इतिहासों में है। हमने भी प्रायः सारा वर्णन उन्हीं इतिहासों के आधार पर लिखा है। उस समय इनकी राजधानी झांसल थी जो कि हिसार जिले की सीमा पर है। रामरत्न चारण ने अपने इतिहास में इनकी राजधानी लुद्धि नामक नगर में बतायी है। उस समय इनका राजा कान्हादेव था। कान्हादेव स्वाभिमानी और कभी न हारने वाला योद्धा था। उसके अन्य पूनियां भाई भी उसकी आज्ञा में थे। गणराज्यों को फूट नष्ट करती है। उसके पोनियां समाज में एकता थी। प्रति़क्षण उपस्थित रहने वाली सेना तो कान्हदेव के पास अधिक न थी, किन्तु उसके पास उन नवयुवक सैनिकों की कमी नहीं थी, जो अपने-अपने घर पर रहते थे और जब भी कान्हदेव की आज्ञा उनके पास पहुंचती थी, बड़ी प्रसन्नता से जत्थे के जत्थे उसकी सेवा में हाजिर हो जाते थे। प्रत्येक पोनियां अपने राज्य को अपना समझता था। वे सब कुछ बर्दाश्त करने को तैयार थे। किन्तु यह उनके लिए असह्य था कि अपने ऊपर अन्य जाति का मनुष्य शासन करता। ऐसी उनकी मनोवृत्ति थी जिसके कारण उन्होंने बीका


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज,पृष्ठान्त-617


की अधीनता को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया था। वे अपनी स्वाधीनता बनाए रखने के लिए उस समय तक लड़ते रहे जब तक कि उनके समूह के अन्दर नौजवानों की संख्या काफी रही। उनके स्थानों पर राठौर अधिकार कर लेते थे। अन्त में राठौरों ने उनके दमन के लिए उनके बीच में गढ़ को ढहा देते थे। दन्तकथा के आधार पर कहा जाता है कि राजगढ़ के बुर्जो में कुछ पोनियां जाटों को चुन दिया था।

बड़े संघर्ष के बाद पोनियां लोग परास्त कर दिए गए। तब उनमें से कुछ यू.पी. की तरफ चले आये। राठौरों के पास सेना बहुत थी, गोदारे जाटों का समूह भी उनके साथ था। इसलिए पोनियां हार गए। पर यह पोनियों के लिए गौरव की बात ही रही कि स्वाधीनता की रक्षा के लिए उन्होंने कायरता नहीं दिखाई। उन्होंने खून की नदियां बहा दीं। वे बदला चाहते थे, उनके हृदय में आग जल रही थी। उनके नेताओं के साथ जो घात सरदारों ने किया था, उसका प्रतिकार पोनियों ने राठौर नरेश रायसिंह का वध करके किया। ‘भारत के देशी राज्य’ में भी पोनियों के द्वारा बदला लेने की बात लिखी है।

पोनियां जाटों के राज्य की सीमा झांसल (हिसार की सीमा) से मरोद तक थी। मरोद राजगढ़ के दक्षिण में 12 कोस की दूरी पर है। दन्त कथाओं के अनुसार किसी साधु ने पोनियां सरदार से कहा था कि घोड़ी पर चढ़कर जितनी जमीन भूमि दबा लेगा, वह सब पोनियों के राज्य में आ जाएगी। निदान सरदार ने ऐसा ही किया। घोड़ी दिन भर छोड़ने के बाद सांयकाल मरोद में पहुंचने पर मर गई। उस समय पोनियां सरदार ने कहा था-

“झासल से चाल मरोदा आई। मर घोड़ी पछतावा नांही।”

पोनियों की पुरानी राजधानी झांसल में जहां उनका दुर्ग था, कुछ निशान अब तक पाए जाते हैं। बालसमंद में भी ऐसे ही चिन्ह पाए जाते हैं।

राठौर राजा इनके वंशधरों को सन्तुष्ट रखने के लिए कुछ उनके मुखियों को देते रहे। कुछ समय पहले ही दश पोशाक और कुछ नकद के प्रति वर्ष राज से पाते हैं।

राजगढ़ आंदोलन

गणेश बेरवाल[11] ने लिखा है ... राजगढ़ आंदोलन बीकानेर से शुरू करवाया गया। एक दिन बीकानेर जेल में 22 नंबर वर्ाड के पश्चिम में बनी हुई होदी (कुंड) पर चौधरी हरदत सिंह, सरदार गुरुदयाल सिंह और मोहर सिंह बैठे थे। हरदत सिंह ने कहा कि मोहर सिंह जेल में ही रहेंगे या कभी छूट भी जाएंगे। मोहर सिंह ने कहा की जनता सत्याग्रह करे तो छूट सकते हैं। तब हम तीनों ने अपने-अपने इलाके से सत्याग्रह शुरू करवाने का निर्णय किया। राजा पर दबाव पड़ेगा तो अपने को छोड़ेगा। मोहर सिंह ने बैरक में आकर खून से राजगढ़ के लिए चिट्ठी लिखी जो प्रजा-परिषद राजगढ़ के कैशियर चौधरी रामलाल सिंह कड़वासरा (नेशल) के नाम से रवाना की गई थी। इस चिट्ठी को बाहर पहुँचाने के लिए हमें बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ा। इस चिट्ठी में मोहर सिंह ने कार्यकर्ताओं को संबोधित किया, जिसमें पिताश्री चौधरी जीवणराम , ताराराम स्योराण, भानी राम (जैतपुरा), गुगनाराम, (बैरासर), उदमी राम (बैरासर छोटा), जीराम , लालचंद (हमीरवास), टीकू राम, हेमा राम (बींजावस), आदि कई साथियों के नाम थे। चौधरी मुख राम, लक्ष्मण राम (बैजुआ) के नाम इसमें थे। मोहर सिंह ने लिखा था -- "हम तो जेल में चाहे सड़ कर मर जाएँ पर तुम चूड़ी पहनकर चुंदड़ी ओढ़कर घरों में घुस जाओ या हिम्मत है तो सत्याग्रह करो"। घोड़े से यह चिट्ठी जैतपुरा पहुंचाई गई। जैतपुरा में उस समय कई आदमी बैठे थे तब उनके सामने चिट्ठी खोली गई। तारा राम स्योराण तथा भानी राम लांबा ने कहा कि लिखा तो बहुत सख्त है पर किया क्या जाए। इस पर पिताश्री जीवण राम ने कहा कि हिम्मत है तो चन्दा इकट्ठा करो ओर सत्याग्रह शुरू करवाओ। आस-पास के 20-30 गांवों से चंदा इकट्ठा किया गया जो 18750 रुपये हुआ औए इसके साथ ही 25000 फार्म जो पहले भरवाये गए थे जेल जाने से पूर्व, उनका सदस्यता शुल्क 6350 रुपये शामिल करके 25000 रुपये इकट्ठा हुये। पिताश्री जीवण राम ने ये रुपये करमानन्द तथा दीपचन्द को भिजवाए।


[p.61]: उधर दोदराम जाखड़ के नेतृत्व में सत्याग्रह की अलख गुड़ान गाँव से जलाई। इसके बाद श्योकरण भाकर (चांदगोठी) के सानिध्य में आयोजन हुआ। सुलखनिया, नोरंगपुरा, भैंसली आदि गांवों में प्रचारार्थ दौरे शुरू हो चुके थे। इस प्रकार सत्याग्रह प्रारम्भ हो गया। मार्च.... में पहला जत्था राजगढ़ गया जिसे बीकानेर जेल भिजवा दिया। उस जत्थे द्वारा जेल दरवाजे पर नारेबाजी की गई। हमारे को दूध सप्लाई करने वाले वार्डन जीतू खां ने आकर खबर दी कि राजगढ़ से सत्याग्रहियों का पहला जत्था आ गया है। हरदत सिंह, गुरु दयाल सिंह ने छोड़ी छाती की तो मोहर सिंह ने कहा कि अब यहाँ शुरू हो गया तो आपके यहाँ भी हो जाएगा। तीन जत्थे आए, जिसमें चाँदगोठी तथा पास के क्षेत्र के आदमियों की अधिकता थी, ये बीकानेर जेल आ गए।

15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के मौके पर इन्हें तो छोड़ दिया परंतु मोहर सिंह को 7 फरवरी 1948 को रिहा किया गया तो बीकानेर से राजगढ़ और फिर राजगढ़ से कालरी गए। उसके बाद बेजुआ तथा काफी गांवों का दौरा किया।

Munuments

  • विद्यार्थी आश्रम राजगढ़ - चौधरी जीवनराम जी पूनिया और उनके पुत्र कामरेड मोहर सिंह ने राजगढ़ में विद्यार्थी आश्रम की स्थापना की। इसका पलानपौषण अमीलाल जी पूनिया सूरतपुरा ने किया। उन्होंने स्वामी केशवानंद जी की प्रेरणा से इसे अपना जीवन अर्पण कर दिया। राज्य शासन ने इन पर मुक़दमा चलाया जिसका तीन वर्ष तक सामना किया। आज यह आश्रम विशाल रूप ले चुका है।[12]
  • नेतजी मंदिर राजगढ़ - नेतजी अथवा भोमिया जी नगर के प्रधान देवता माने जाते हैं। सन 1823 मे राजगढ़ की स्थापना के समय लुद्दी छाजू से एक परिवार आकर यहाँ बसा और उसने नगर के पश्चिम मे नेतजी का थान बनाया। नगर या गाँव की स्थापना पर भोमिया जी की पूजा की जाती है। बीकानेर राज्य ने मंदिर के लिए 9 बीघा भूमि आवंटित की। 22 जून 1983 को इस भूमि का पक्का पट्टा बना। [13]

जाट कीर्ति संस्थान चूरू, ईकाई राजगढ

जाट सामुदायिक भवन राजगढ़ चूरू

दिनांक 30 सितम्बर 2018 को जाट कीर्ति संस्थान राजगढ ईकाई के चुनाव निर्माणाधीन जाट सामुदायिक भवन में सर्व सम्मति से समपन्न हुए जिसमें निम्नानुसार पदाधिकारियों ल चयन किया गया.

  • अध्यक्ष पद पर श्री सुमेर सिह गोदारा बैरासर,
  • उपाध्यक्ष अशोक पूनिया और प्रताप सिहं पूनिया,
  • कोषाध्यक्ष श्री रामकुमार पूनिया,
  • सचिव (मंत्री) धर्मेन्द्र महला
  • श्री राम सिंह झाझडि़या, श्री महिपाल पूनियां, कैप्टन धर्मपाल रणवा और श्री अमर सिंह सांगवान को संस्था के संरक्षक बनाये गये।

चुनाव अधिकारी व संस्था के संस्थापक श्री लक्ष्मण राम महला ने चुनाव सम्पन्न करवाकर पदाधिकारियों को समाज और मानवता के हित मे जाति और राजनैतिक पार्टियों के परे रह कर भलाई और समाज सुधार के क्षेत्र में काम करने की शपथ दिवाई। इस अवसर पर समाज सेवी और भामाशाह श्री रणवीर जी झाझडि़या देवीपूरा ने संस्था के भवन निर्माण मे सहयोग करने हेतू 31 लाख, ईक्कतीस लाख रूपये की नगद राशी देने की घोषणा की। समाज के लोगों ने रणवीर झाझडि़या के दान देने पर माला पहनाकर उनका स्वागत और धन्यवाद दिया। पूर्व अध्यक्ष श्री महीपाल पूनियां ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया।


9 सितंबर 2022, भादवा माह की चौदस को जाट सामुदायिक भवन राजगढ पर जाट समाज और किसानों के कुल देवता ,गौरक्षक, सत्यवादी, न्यायप्रिय, वचन के धनी वीर तेजाजी महाराज की ध्वजा पताका को समाज के प्रबुद्ध व्यक्तियों की उपस्थिति में पूजा अर्चना और प्रसाद के वितरण के साथ भवन के गुबंद पर सम्मान पूर्वक चढ़ाने का काम किया गया। इस पुण्य कार्य हेतु विशेष रूप से तेजाजी के बलिदान दिवस तेजा दसवीं पर सालाना भरने वाले विशाल मेले तेजाजी की जन्म स्थली खरनाल (नागौर) के मंदिर से लाकर शुभ मुहूर्त के अनुसार चढ़ाई गई है। इस अवसर पर जाट कीर्ति संस्थान राजगढ के अध्यक्ष सुमेर सिंह गोदारा, उपाध्यक्ष राकेश पूनिया, कोषाध्यक्ष रामकुमार पूनिया, सचिव धर्मेंद्र महला, राजवीर सिंह कालेरा,अमर सिंह ख्यालिया, रामप्रसाद कोठारी, सुमेर सिंह गुलपुरा, सुधीर सिहाग, राजेश नीमा,रधुवेंद्र पूनिया, जगदीश मेघवाल आदि उपस्थित थे।

Notable persons

  • Captain Sajjan Singh Malik - From Rajgarh Churu was in Indian Army Special Force who got Posthumous Kirti Chakra for his acts of bravery in fighting with terrorists on 7 July 2004 in Gundpura village of Baramula district. He killed three terrorists before becoming martyr. [14]
  • Jitendra Singh (Poonia) - Bharat Electronicd Ltd, Date of Birth : 18-March-1980. Present Address : Near Mohta college,Rajgarh P.O.- Sadulpur, Churu, Rajasthan, Email Address : poonia_iitd@rediffmail.com
  • Shish Ram - From village Rajgarh Churu, Bhajanopadeshak, leader of Kangar movement.Freedom fighter and social worker.[15]
  • Fakir Chand - From Rajgarh, Social worker and reformer, started many schools.[16]
  • Deep Chand - From Rajgarh, Freedom Fighter, Social worker and reformer. Leader of Kangar movement.[17]

Gallery

External links

References

  1. Jat Samaj. Agra : November 2000
  2. James Todd Annals, Vol 1, p.146
  3. ठाकुर देशराज ने पूनिया जाटों की राजधानी झांसल तहसील भाद्रा लिखी है जाट इतिहास, पेज 613
  4. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 205
  5. राजश्री स्मारिका, राजगढ़ विकास परिषद, पृ 57
  6. गोविन्द अग्रवाल, चुरू मंडल का शोधपूर्ण इतिहास, पेज 118
  7. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 211-212
  8. ठाकुर देशराज , जाट इतिहास, पेज 613-614
  9. Dr Pema Ram, The Jats Vol. 3, ed. Dr Vir Singh,Originals, Delhi, 2007 p. 205
  10. Ganesh Berwal: 'Jan Jagaran Ke Jan Nayak Kamred Mohar Singh', 2016, ISBN 978.81.926510.7.1, p.2
  11. Ganesh Berwal: 'Jan Jagaran Ke Jan Nayak Kamred Mohar Singh', 2016, ISBN 978.81.926510.7.1, p.60-61
  12. उद्देश्य:जाट कीर्ति संस्थान चूरू द्वारा आयोजित सर्व समाज बौधिक एवं प्रतिभा सम्मान समारोह, स्मारिका जून 2013,p.117
  13. राजश्री स्मारिका, राजगढ़ विकास परिषद, पृ 57
  14. Jat Samaj, Jan-Feb 2005, p. 55
  15. Sanjay Singh Saharan, Dharati Putra: Jat Baudhik evam Pratibha Samman Samaroh Sahwa, Smarika 30 December 2012, by Jat Kirti Sansthan Churu, pp.11-12
  16. उद्देश्य:जाट कीर्ति संस्थान चूरू द्वारा आयोजित सर्व समाज बौधिक एवं प्रतिभा सम्मान समारोह चूरू, 9 जनवरी 2013,पृ. 76
  17. उद्देश्य:जाट कीर्ति संस्थान चूरू द्वारा आयोजित सर्व समाज बौधिक एवं प्रतिभा सम्मान समारोह चूरू, 9 जनवरी 2013,पृ. 22

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