Abhaneri
Abhaneri (आभानेरी) is an ancient village in Baswa tahsil in Dausa district in Rajasthan.
Origin of name
Its ancient name was Abhaynagari (अभयनगरी). It was capital of Nikumbh Chauhans. Later they founded Alwar. According to local tradition Raja Chand had founded this village.[1]
According to another source it was also known as Abhanagari (आभानगरी) in ancient times. Origin of Abhanagari is said to be due to the Aura (Sanskrit:Abha) of the Harsat Mata.[2] It is known for temples dedicated to Rishabhadeva and Mahavira. [3]
The place is popular for the amazing Chand Baori (step wells) and Harshat Mata Temple.
Location
It is situated at a distance of 95 km from Jaipur, on Jaipur-Agra road near Bandikui.
Monuments
Chand Baori: It is famous for its post-Gupta or early medieval monuments. This village has contributed numerous pieces of sculpture to various museums worldwide. The place is popular for the amazing Chand Baori (step wells) and Harshat Mata Temple.
In the present day, this city of brightness is in ruins; still it attracts tourists from across the globe. Abhaneri is prominent for 'Baoris', which are the unique invention of the natives for harvesting rain water. Amongst the other step wells, Chand Baori is the most popular one. This colossal step well is located in front of the Harshat Mata Temple. Chand Baori is one of India's deepest and largest step wells. Raised during the 10th century, the wrecks of the temple still boast of the architectural and sculptural styles of ancient India. Harshat Mata is considered to be the goddess of joy and happiness. As per the beliefs, the goddess is always cheerful, who imparts her joy and happiness to the whole village. The temple is worth visiting for its amazing architecture and that too, which belongs to the medieval India. Abhaneri has a glorious past and this hoary magnetism of the place, attracts tourists to its threshold, from all over the world.
Jat Gotras
History
Chauhan Samantas - Nikumbhas of Abhaneri were under Chauhans. They were rulers of Khan Desh. We have two inscriptions about them from village Paran of Shaka Samvat 1075 (1153 AD) and Shaka Samvat 1128 (1207 AD). The Alwar fort was built by them. (Devi Singh Mandawa: Prithviraja Chauhan, p.139)
The temple of Abhaneri is on a terrace and the Harshat Mata installed here is probably ancient Harsiddhi Mata which finds mention in ancient Gujarati and Hindi literature. The statue of Harshat Mata has been stolen from the temple. [4]
Antiquity of Abhaner
I have already spoken, and I now draw the attention of my countrymen to Abhanair, which boasts a very remote antiquity ; and from an old stanza, we might imagine that its princes were connected with the Kaian dynasty of Persia. I copied it, some twenty years ago, from an itinerant bard, who had an imperfect knowledge of it himself, and I have doubtless made it more so, but it is still sufficiently intelligible to point at a remarkable coincidence :
- Raja Chund ca Ahhanair,
- Beea Sanjog, ayo Girnair (Girnar)
- Dekh bharat, leo bulae
- Keo bidut, mun begsae,
- Beao Sanjog, Permala burre
- Kos sath so, mun chit d'harre ;
- Tu beti Kaicum ca
- Nam Permala (a) ho
- Lekha hooa kurtar ko
- Eea jana sarb ko.
This is a fragment of a long poem relative to the rivalry of Raja Chund of Abhanair, and Raja Soorsen of Indrapoori, who was betrothed to Permal daughter of Kaicum, and had gone to Girnair, or Girnar, to espouse her, when the Abhanair prince abducted her. Raja Soorsen of Indrapoori (Delhli), if that ancestor of the Suraseni, and founder of Soorpoori, existed probably twelve hundred years before Christ. That sun- worshippers had established themselves in the peninsula of Saurashtra, (whose capital was Junagurh-Girnar), its appellation, in the days of the Greeks of Bactria, as now, proves : (see Strabo; Justin, &c,) but whether Kaicum, the father of Permala, is the Caicumaras Ferdoosi, we shall not stop to inquire. The connection between this and Persia was intimate in later times, so as even to give rise to the that the Ranas of Mewar were descended from the Sassanian kings. It was good fortune to discover Soorpoori on the Jumna, the residence of the rival of Chund of Abhanair, which city I leave to some one imbued with similar taste to visit, and merely add, he will find there an inscription in a coond or fountain dedicated to the Sun. The distance however, seven hundred coss (kos sathso) whether from Indrapoori or Abhanair, to Girnar, even admitting them to to be gao coss, would be too much. I believe this would make it hundred miles, and certainly, as the crow flies, it is not seven hundred. Interwoven with the story there is much about Raja Chambha, prince of Jajnuggur, a city of great antiquity in Orissa, and containing some of the finest specimens of sculpture I ever saw. There is also mention of a Riga Saer, (qu. Sahir or Sehris of Arore) of Perman. In 1804, I passed through Jajnuggru, after the conquest of the province of Cuttack, with my regiment. At Jajnuggur, my earliest friend, the late Captain Bellet Sealy, employed his pencil for several days with the sculptured remains. These drawings were sent to the authorities at Calcutta : perhaps this notice may rescue from oblivion the remains of Jajnuggur, and of my deceased friend's talent, for Captain Bellet Sealy was as ornament equally to private life and to his profession. He fell a victim to the fever contracted in the Nepal war. The ruins of Abhanair are on the Banganga, three coss east of Lalsont.
आभानेरी - आभानगरी
आभानेरी गाँव, जयपुर-आगरा मार्ग पर स्थित एक छोटा कस्बा है। यह जगह रोमांचक बावड़ियों और हर्षत माता के मन्दिर के लिये प्रसिद्ध है। आभानेरी का शुरुआती नाम था आभानगरी (अर्थात चमकने वाला शहर), लेकिन कालान्तर में भाषा के अपभ्रंश की वजह से इसका नाम धीरे-धीरे आभानेरी बन गया। ऐसी मान्यता है कि आभानेरी को राजा चाँद ने बसाया था, हालांकि इस शहर ने प्राचीन काल में कई विभीषिकाएं झेलीं, लेकिन "चाँद बावड़ी" और माता के मन्दिर की वजह से अब यह राजस्थान आने वाले पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन गया है। प्राचीन काल में वास्तुविदों और नागरिकों द्वारा जल संरक्षण और वाटर हार्वेस्टिंग हेतु बनाई गई इस प्रकार की कई बावड़ियाँ इस क्षेत्र में मौजूद हैं जिनमें काफ़ी पानी समाया रहता है जो क्षेत्र के निवासियों के वार्षिक उपयोग हेतु काम आता है। चाँद बावड़ी इन सभी बावड़ियों में सबसे बड़ी और लोकप्रिय है।
इन बावड़ियों के बीचोंबीच एक बड़ा गहरा तालाब होता है, जो इलाके को गर्मी के दिनों में भी ठण्डा रखता है। मन्दिर में दर्शन को जाने से पहले हाथ-मुँह धोना एक पवित्र परम्परा मानी जाती है, श्रद्धालु इस बावड़ी से यह करके माता के दर्शन करते हैं। दसवीं शताब्दी में निर्मित इस सुन्दर मन्दिर में आज भी उस प्राचीन काल की वास्तुकला और मूर्तिकला के दर्शन होते हैं। माना जाता है कि "हर्षत" माता खुशी और आनन्द की देवी हैं जो भक्त को हमेशा खुश रखती हैं और समूचे गाँव को आनन्दमय बनाये रखती हैं। ऐसी जनश्रुति भी है कि इस बावड़ी का निर्माण भूतों ने किया है, और जानबूझकर इतनी गहरी और अत्यधिक सीढ़ियों वाली बनाई है कि यदि इसमें एक सिक्का उछाला जाये तो उसे वापस पाना लगभग असम्भव है।
दौसा जिले के आभानेरी गांव में चांद बावडी और हर्षत माता का मंदिर पत्थरों पर नक्काशी का एक बेजोड़ नमूना भी है। जयपुर आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित दौसा जिला मुख्यालय से करीब 33 कि.मी. दूर आभानेरी गांव स्थित हर्षत माता मंदिर का निर्माण चौहान वंशीय राजा चांद ने करीब 8 तथा 9वीं शताब्दी में कराया था। इस मंदिर के पत्थरों पर आकर्षक नक्काशी में लगभग 33 करोड़ देवी देवताओं के चित्र बनाए गए थे।
विदेशी आक्रमण के हमले में खंडित इस मंदिर के भग्नावशेष यत्र-तत्र बिखरे पडे़ है। चांद बावड़ी और हर्षत माता मंदिर यहां का मुख्य आकर्षण है। चांद बावड़ी के अंदर बनी आकर्षक सीढि़यां कलात्मक और पुरातत्व कला का शानदार उदाहरण है। गुप्त युग के पश्चात तथा आरंभिक मध्यकालीन स्मारकों के लिए प्रसिद्ध आभानेरी पुरातात्विक महत्व का प्राचीन गांव है।
मंदिर के पुजारी रामजीलाल ने बताया कि मंदिर में छह फुट की नीलम के पत्थर की हर्षत माता की मूर्ति 1968 में चोरी हो गई। किंवदंती है कि हर्षत माता गांव में आने वाले संकट के बारे में पहले ही चेतावनी दे देती थी जिससे गांव वाले सतर्क हो जाते और माता उनकी हमेशा रक्षा करती थी। इसे समृद्धि की देवी भी कहा जाता है। बताया जाता है कि 1021-26 के काल में मोहम्मद गजनवी ने इस मंदिर को तोड़ दिया तथा सभी मूर्तियों को खंडित कर दिया था। खंडित मूर्तियां आज भी मंदिर परिसर तथा चांद बावड़ी में सुरक्षित रखी हुई है। जयपुर के राजा ने 18 वीं शताब्दी में इसका जीर्णोद्धार करवाया था।
इसी तरह चांद बावड़ी का निर्माण भी राजा चांद ने 8 या 9वीं शताब्दी में कराया था। इसे अंधेरे उजाले की बावड़ी भी कहा जाता है। चांदनी रात में यह बावड़ी एकदम सफेद दिखायी देती है। तीन मंजिली इस बावड़ी में राजा के लिए नृत्य कक्ष तथा गुप्त सुरंग बनी हुई है। इसके ऊपरी भाग में निर्मित परवर्ती कालीन मंडप इस बावड़ी के लंबे समय तक उपयोग में रहने का प्रमाण देती है। बावड़ी की तह तक पहुंचने के लिए करीब 1300 सीढि़यां बनाई गई है जो अद्भुत कला का उदाहरण पेश करती है। यह वर्गाकार बावड़ी चारों ओर स्तंभयुक्त बरामदों से घिरी हुई है। यह 19.8 फुट गहरी है जिसमें नीचे तक जाने के लिए 13 सोपान बने हुए है।
भुलभुल्लैया के रूप में बनी इसकी सीढि़यों के बारे में कहा जाता है कि कोई व्यक्ति जिस सीढ़ी से नीचे उतरता है वह वापस कभी उसी सीढ़ी से ऊपर नहीं आ पाता है। बावड़ी की सबसे निचली मंजिल पर बने दो ताखों में स्थित गणेश एवं महिसासुर मर्दिनी की भव्य प्रतिमाएं इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देती है।
इस बावड़ी में एक सुरंग भी है जिसकी लम्बाई लगभग 17 कि.मी. है जो पास ही स्थित गांव भांडारेज में निकलती है। कहा जाता है कि युद्ध के समय राजा एवं उनके सैनिकों द्वारा इस सुरंग का इस्तेमाल किया जाता था। करीब पांच साल पहले इसकी खुदाई एवं जीर्णोद्धार का कार्य कराया गया था। उसमें राजा चांद का उल्लेख किया हुआ एक शिलालेख भी मिला था।
Notable persons
External Links
References
- ↑ Dr. Raghavendra Singh Manohar:Rajasthan Ke Prachin Nagar Aur Kasbe, 2010,p. 22
- ↑ Dr. Raghavendra Singh Manohar:Rajasthan Ke Prachin Nagar Aur Kasbe, 2010,p. 22
- ↑ Encyclopaedia of Jainism, Volume-1 By Indo-European Jain Research Foundation p.5505
- ↑ Dr. Raghavendra Singh Manohar:Rajasthan Ke Prachin Nagar Aur Kasbe, 2010,p. 23
- ↑ Annals and Antiquities of Rajasthan, Volume II, Annals of Amber, pp.357-358 fn
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