Angadesha
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Anga Desha (अंगदेश) was an ancient Indian kingdom that flourished on the eastern Indian subcontinent and one of the sixteen mahajanapadas ("large state").[1] They fought Mahabharata War in Kaurava's side
Variants
- Anga (अंग, उत्तर बिहार) (AS, p.1)
- Anga Desha (अंगदेश)
Location
It lay to the east of its neighbour and rival, Magadha, and was separated from it by the river Champa. The capital of Anga was located on the bank of this river and was also named Champa. It was prominent for its wealth and commerce.[2] Anga was annexed by Magadha in the 6th century BCE.
Counted among the "sixteen great nations" in Buddhist texts like the Anguttara Nikaya, Anga also finds mention in the Jain Vyakhyaprajnapti’s list of ancient janapadas. Some sources note that the Angas were grouped with people of ‘mixed origin’,[3] generally in the later ages.
Etymology
According to the Mahabharata (I.104.53-54) and Puranic literature, Anga was named after Prince Anga, the founder of the kingdom. A king Bali, the Vairocana and the son of Sutapa, had no sons. So, he requested the sage, Dirghatamas, to bless him with sons. The sage is said to have begotten five sons through his wife, the queen Sudesna.[4] The princes were named Anga, Vanga, Kalinga, Sumha and Pundra.[5]
The Ramayana (1.23.14) narrates the origin of name Anga as the place where Kamadeva was burnt to death by Siva and where his body parts (angas) are scattered.[6]
Jat clans
Anga (अंग)/(अंगा)[4][5] Angi (अंगी) is one of the gotras of Jats. They were inhabitants of the territory of India called Anga.[6]
Ancestry
Bhagavata Purana provides us the ancestry of Bali. Bali (बलि) was a king in line of Anu son of Yayati as under:
Yayati → Anu → Sabhanara → Kalanara → Janamejaya → Maha Shala → Mahamanas → Titiksha → Rushadratha → Homa → Sutapas → Bali
As per Bhagavata Purana the Dirghatama Rishi produced on Bali's wife six sons: Anga, Banga, Kalinga, Sambhu, Pundra and Odhra
Mention by Panini
Anga (अंग) is a name of Country mentioned by Panini in Ashtadhyayi under Gahadi (गहादि) (4.2.138) group. [7]
Angaka (आंगक) is a term mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [8]
Angi (आंगी) is a term mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [9]
History
V S Agarwal [10] writes that Panini takes Bhakti to denote loyalty of the citizen to the State either a kingdom or a republic. The Kashika mentions, as examples of this kind of Bhakti or loyalty, 1. Angaka, 2. Vangaka, 3. Sauhmaka, 4. Paundraka, 5. Madraka, 6. Vrijika.
अंग देश
विजयेन्द्र कुमार माथुर[11] ने लेख किया है ...अंग देश (AS, p.1) या 'अंग महाजनपद' प्राचीन जनपद था, जो बिहार राज्य के वर्तमान भागलपुर और मुंगेर ज़िलों का समवर्ती था। अंग की राजधानी चंपा थी। आज भी भागलपुर के एक मुहल्ले का नाम चंपानगर है। महाभारत की परंपरा के अनुसार अंग के वृहद्रथ और अन्य राजाओं ने मगध को जीता था, पीछे बिंबिसार और मगध की बढ़ती हुई साम्राज्य लिप्सा का वह स्वयं शिकार हुआ। राजा दशरथ के मित्र लोमपाद और महाभारत के अंगराज कर्ण ने वहाँ राज किया था। बौद्ध ग्रंथ 'अंगुत्तरनिकाय' में भारत के बुद्ध पूर्व सोलह जनपदों में अंग की गणना हुई है।
अंग देश का सर्वप्रथम नामोल्लेख अथर्ववेद 5,22,14 में है-'गंधारिभ्यं मूजवद्भयोङ्गेभ्यो मगधेभ्य: प्रैष्यन् जनमिव शेवधिं तवमानं परिदद्मसि।' इस
[p.2]: अप्रशंसात्मक कथन से सूचित होता है कि अथर्ववेद के रचनाकाल (अथवा उत्तर वैदिक काल) तक अंग, मगध की भांति ही, आर्य-सभ्यता के प्रसार के बाहर था, जिसकी सीमा तब तक पंजाब से लेकर उत्तर प्रदेश तक ही थी। महाभारतकाल में अंग और मगध एक ही राज्य के दो भाग थे। शांति पर्व 29,35 (अंगं बृहद्रथं चैव मृतं सृंजय शुश्रुम') में मगधराज जरासंध के पिता बृहद्रथ को ही अंग का शासक बताया गया है। शांति पर्व 5,6-7 ('प्रीत्या ददौ स कर्णाय मालिनीं नगरमथ, अंगेषु नरशार्दूल स राजासीत् सपत्नजित्। पालयामास चंपां च कर्ण: परबलार्दन:, दुर्योधनस्यानुमते तवापि विदितं तथा') से स्पष्ट है कि जरासंध ने कर्ण को अंगस्थित मालिनी या चंपापुरी देकर वहां का राजा मान लिया था। तत्पश्चात् दुर्योधन ने कर्ण को अंगराज घोषित कर दिया था।[2]
वैदिक काल में - वैदिक काल की स्थिति के प्रतिकूल, महाभारत के समय, अंग आर्य-सभ्यता के प्रभाव में पूर्णरूप से आ गया था और पंजाब का ही एक भाग- मद्र- इस समय आर्यसंस्कृति से बहिष्कृत समझा जाता था।[3] महाभारत के अनुसार अंगदेश की नींव राजा अंग ने डाली थी। संभवत: ऐतरेय ब्राह्मण 8,22 में उल्लिखित अंग-वैरोचन ही अंगराज्य का संस्थापक था। जातक-कथाओं तथा बौद्धसाहित्य के अन्य ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि गौतमबुद्ध से पूर्व, अंग की गणना उत्तरभारत के षोडश जनपदों में थी। इस काल में अंग की राजधानी चंपानगरी थी। अंगनगर या चंपा का उल्लेख बुद्धचरित 27, 11 में भी है। पूर्वबुद्धकाल में अंग तथा मगध में राज्यसत्ता के लिए सदा शत्रुता रही। जैनसूत्र- उपासकदशा में अंग तथा उसके पड़ोसी देशों की मगध के साथ होने वाली शत्रुता का आभास मिलता है। प्रज्ञापणा-सूत्र में अन्य जनपदों के साथ अंग का भी उल्लेख है तथा अंग और बंग को आर्यजनों का महत्त्वपूर्ण स्थान बताया गया है। अपने ऐश्वर्यकाल में अंग के राजाओं का मगध पर भी अधिकार था जैसा कि विधुरपंडितजातक (काँवेल 6, 133) के उस उल्लेख से प्रकट होता है जिसमें मगध की राजधानी राजगृह को अंगदेश का ही एक नगर बताया गया है। किंतु इस स्थिति का विपर्यय[4] होने में अधिक समय न लगा और मगध के राजकुमार बिंबिसार ने अंगराज ब्रह्मदत्त को मारकर उसका राज्य मगध में मिला लिया। बिंबिसार अपने पिता की मृत्यु तक अंग का शासक भी रहा था।[2]
जैन-ग्रंथों में बिंबिसार के पुत्र कुणिक अजातशत्रु को अंग और चंपा का राजा बताया गया है। मौर्यकाल में अंग अवश्य ही मगध के महान् साम्राज्य के अंतर्गत था। कालिदास ने रघु. 6,27 में अंगराज का उल्लेख इंदुमती-स्वयंवर के प्रसंग में मगध-नरेश के ठीक पश्चात् किया है जिससे प्रतीत होता है कि अंग की प्रतिष्ठा पूर्वगुप्तकाल में मगध से कुछ ही कम रही होगी। रघु. 6, 27 में ही अंगराज्य के प्रशिक्षित हाथियों का मनोहर वर्णन है- 'जगाद चैनामयमंगनाथ: सुरांगनाप्रार्थित यौवनश्री: विनीतनाग: किलसूत्रकारैरेन्द्रं पदं भूमिगतोऽपि भुंक्ते'। विष्णु पुराण अंश 4, अध्याय 18 में अंगवंशीय राजाओं का उल्लेख है। कथासरित्सागर 44, 9 से सूचित होता है कि ग्यारहवीं शती ई. में अंगदेश का विस्तार समुद्रतट (बंगाल की खाड़ी) तक था क्योंकि अंग का एक नगर विटंकपुर समुद्र के किनारे ही बसा था।
महाभारत ग्रन्थ में प्रसंग है कि हस्तिनापुर में कौरव राजकुमारों के युद्ध कौशल के प्रदर्शन हेतु आचार्य द्रोण ने एक प्रतियोगिता का आयोजन किया। अर्जुन इस प्रतियोगिता में सर्वोच्च प्रतिभाशाली धनुर्धर के रूप में उभरा। कर्ण ने इस प्रतियोगिता में अर्जुन को द्वन्द्व युद्ध के लिए चुनौति दी। किन्तु कृपाचार्य ने यह कहकर ठुकरा दिया कि कर्ण कोई राजकुमार नहीं है। इसलिए इस प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सकता। तब दुर्योधन ने कर्ण को अंग देश का राजा घोषित कर दिया था।
कर्णगढ़
विजयेन्द्र कुमार माथुर[12] ने लेख किया है ...कर्णगढ़ (AS, p.143) भागलपुर (अंग देश की राजधानी, प्राचीन चंपा) के निकट एक पहाड़ी है। कर्णगढ़ का नाम महाभारत के कर्ण से संबंधित है। कर्ण अंगदेश का राजा था। यह स्थान पूर्व-बौद्धकालीन है। महाभारत में भीम की पूर्व दिशा की दिग्विजय के प्रसंग में मगध के नगर गिरिव्रज के पश्चात् मोदागिरि या मुंगेर के पूर्व जिस स्थान पर भीम और कर्ण के युद्ध का वर्णन है वह निश्चयपूर्वक यही जान पड़ता है- 'स कर्णं युधि निर्जित्य वशेकृत्वा च भारत, ततो विजिग्ये बलवान् राज्ञ: पर्वतवासिन:।' (सभा पर्व महाभारत 31,20)
आपण
विजयेन्द्र कुमार माथुर[13] ने लेख किया है ...आपण (AS, p.64): बुद्धचरित के अनुसार अंग और सुह्म के बीच में स्थित नगर जहाँ गौतमबुद्ध ने केन्य व शेल नामक ब्राह्मणों को दीक्षित किया था।
कीकट
विजयेन्द्र कुमार माथुर[14] ने लेख किया है ...कीकट (AS, p.192) गया (बिहार) का परिवर्ती प्रदेश था. पुराणों के अनुसार बुद्धावतार कीकट देश में ही हुआ था. कीकट का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में है-- ' किंते कृण्वंति कीकटेषु गावो नाशिरं दुहे न तपन्ति धर्मं आनोभरप्रमगंदस्य वेदो नैचाशाखं के मधवत्रन्ध्यान:' 3,53, 14. इस उद्धरण में कीकट के शासक है प्रमगंद का उल्लेख है. यास्क के अनुसार (निरुक्त 6,32) कीकट अनार्य देश था. पुराण काल में कीकट मगध ही का एक नाम था तथा इससे सामन्यत: अपवित्र समझा जाता था; केवल गया और राजगृह तीर्थ रूप में पूजित थे-- 'कीकटेषु गया पुण्या पुण्यं राजगृहं वनम्' वायु पुराण 108,73. बृहद्धर्मपुराण में भी कीकट अनिष्ट देश माना गया है किन्तु कर्णदा और गया को अपवाद कहा गया है-- 'तत्र देशे गया नाम पुण्यदेशोस्ति वुश्रुत:, नदी च कर्णदा नाम पितृणां स्वर्गदायिनी' 26,47. श्रीमद्भागवत में कतिपय अपवित्र अथवा अनार्य लोगों के देशों में कीकट या मगध की गणना की गई है. महाभारत काल में भी ऐसी ही मान्यता थी. पांडवों की तीर्थ यात्रा के प्रसंग में वर्णन है कि वे जब मगध की [p.193] सीमा के अंदर प्रवेश करने जा रहे थे तो उनके सहयात्री ब्राह्मण वहां से लौट आए. संभव है कि इस मान्यता का आधार वैदिक सभ्यता का मगध या पूर्वोत्तर भारत में देर से पहुंचना हो. अथर्ववेद 5,22,14 से भी अंग और मगध का वैदिक सभ्यता के प्रसार के बाहर होना सिद्ध होता है. पुराण काल में शायद बौद्ध धर्म का केंद्र होने के कारण ही मगध को अपुण्य देश समझा जाता था.
विदेह
विजयेन्द्र कुमार माथुर[15] ने लेख किया है .....
3. विदेह (AS, p. 858): बुद्धचरित 21,10 के अनुसार अंगदेश के निकट एक पर्वत जहां बुद्ध ने पंचशीख, असुर और देवों को धर्म प्रवचन सुनाया था.[16]
Anga in Vedas
Earliest reference to Angas (अंग) occurs in Atharava Veda (V.22.14) where they find mention along with the Magadhas, Gandharis and the Mujavatas, all apparently as a despised people. The Jaina Prajnapana ranks the Angas and the Vangas in the first group of Aryan peoples.
Based on Mahabharata evidence, the kingdom of the Angas roughly corresponded to the region of Bhagalpur and Monghyr in Bihar and parts of Bengal; later extended to include most of Bengal. River Champa (modern Chandan) formed the boundaries between the Magadha in the west and Anga in the east. Anga was bounded by river Koshi on the north. According to the Mahabharata, Duryodhana had named Karna the King of Anga.
In Mahabharata
Karna's conquests: Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 255 describes Karna's victory march and countries subjugated. ..... Then descending from the mountain and rushing to the east, he reduced the Angas (अङ्गा) (3-255-7b), and the Bangas (वङ्गा) (3-255-7b), and the Kalingas (कलिङ्गा) (3-255-7b), and the Mundikas (मुण्डिक) (Shundika) (शुण्डिक) (3-255-7b), and the Magadhas (मगध) (3-255-8a). the Karkakhandas (कर्कखण्ड) (3-255-8a); and also included with them the Avashiras (आवशीर) (3-255-8b), Yodhyas (योध्या) (3-255-8b), and the Ahikshatras (अहिक्षत्र) (3-255-8b).
Distribution
Notable persons
References
- ↑ Jha, D. N. (1999). Ancient India : in historical outline. New Delhi: Manohar Publishers & Distributors. ISBN 9788173042850. p.78
- ↑ Jha, D. N. (1999). Ancient India : in historical outline. New Delhi: Manohar Publishers & Distributors. ISBN 9788173042850. p.79
- ↑ Bodhayana Dharma Sutra
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.27,sn-20.
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.29,sn-167.
- ↑ Dr Mahendra Singh Arya etc,: Ādhunik Jat Itihasa , Agra 1998,p.226
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.509
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.430
- ↑ V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.89
- ↑ V S Agarwal, India as Known to Panini,p.430
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.1-3
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.143
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.192
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p. 857
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p. 858
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