Baghelkhand

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Baghelkhand (बघेलखंड) is a region and also a mountain range in central India that covers the northeastern regions of Madhya Pradesh and a small area of southeastern Uttar Pradesh. Historian KP Jayaswal has identified Atavi with Bundelkhand and eastern Baghelkhand. [1] Baghelkhand is considered to be part of ancient Karusha (करुष).[2]

Variants

Location

It includes the Madhya Pradesh districts of Rewa, Satna, Shahdol, Sidhi, and Singrauli and Chitrakoot of Uttar Pradesh.

Bagelkhand is surrounded by the Indo-Gangetic plains in the north and east, Bundelkhand in the west and the Vindhya range in the south.

History

The early Buddhist books (including the Mahabharata) link the Baghelkhand tract with rulers of the Haihaya, Kalchuri or Chedi clan, who gained sufficient importance in the 3rd century CE. They had their capital at Mahishmati, identified by some with Maheshwar in Khargone District, from where they seem to have been driven eastwards. They had acquired the fort of Kalinjara (a few miles beyond the border of the district, in Uttar Pradesh), and with that as base, they extended their dominions over Baghelkhand.


The ancient name of Bharhut was Vardavati. Ptolemy in his 'Geography' has mentioned a city named 'Bardaotis' situated on the route from Ujjain to Pataliputra, which according to Alexander Cunningham is related with Bharhut. According to Tibetan 'Dhulva' a Shakya monk named Samyak was expelled from Kapilavastu and came to Bagud and built a stupa here. Alexander Cunningham tells us that Bagud is Bharhut. It has been mentioned to be within the Ātavī province of the ancient literature. Samudragupta has mentioned Atavi in the list of places won by him. KP Jayaswal has identified Atavi with Bundelkhand and eastern Baghelkhand. [4]


The Baghels rajputs, who give their name to the region, are a branch of the Solanki rajputs who once ruled in Gujarat and migrated eastward in the 13th century. Vyaghra Dev was the first Solanki ruler who came to this area from Gujarat and established his rule. Bagh is derived from Vyaghra, which is Sanskrit for tiger. The descendants of Vyaghra Dev are known as Baghels, who ruled Baghelkhand for a long time till independence of India in 1947.

बघेलखंड

विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है ..... बघेलखंड मध्य प्रदेश में स्थित भूतपूर्व रीवा रियासत तथा परिवर्ती क्षेत्र का मध्ययुगीन नाम है. 12 वीं सदी के अंतिम भाग में बाघेल या बघेला राजपूतों ने जो गुजरात के सोलंकी राजपूतों की एक शाखा थे, पवार राज्य के पूर्व में राज्य स्थापित करके रीवा में अपनी राजधानी बनाई थी. बघेलों का पुरखा बघु (व्याघ्रदेव) [p.602]: गुजरात से आकर इस प्रदेश में बसा था. रीवा बघेलों का ही राज्य था. बघेलखंड प्राचीन करुष का एक भाग है.

बघेलखंड परिचय

मुसलमानों के आगमन से पूर्व बघेलखंड दहाला के नाम से प्रसिद्ध था और यहाँ युद्ध प्रिय कलचुरी वंश (छठी से बारहवीं शताबदी) का शासक था, जिनका मज़बूत गढ़ कालिंजर था। 14 वीं शताब्दी में बघेल राजपूतों, जिनके नाम पर इस भूभाग का नामकरण हुआ, के उदय के साथ ही इसे रीवा राज्य में मिला दिया गया। 1871 में ब्रिटिश सेंट्रल इंडिया एजेंसी के उपखंड, बघेलखंड प्रांत की स्थापना की गई, जिसमें रीवा और कई अन्य राज्य शामिल थे। इसका मुख्यालय सतना में था। 1931 में यह बुंदेलखंड एजेंसी में मिल गया और 1947 में भारतीय स्वतंत्रता के समय विंध्य प्रदेश का पूर्वी अंश बना।

भौगोलिक और आर्थिक स्थिति: बघेलखंड एक ऐतिहासिक-सांस्कृतिक क्षेत्र, छत्तीसगढ़ राज्य एवं मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है। बघेलखंड के पूर्व में स्थित बलुआ पत्थर के इस पठार का झुकाव पूर्वोत्तर से दक्षिण-पूर्व की ओर है। कैमूर शृंखला इसे दो प्राकृतिक प्रदेशों में बांटती है। संपूर्ण क्षेत्र में टोंस, सोन व उनकी सहायक नदियाँ बहती हैं। प्रदेश के पूर्वोत्तर में स्थित इन्हीं नदी घाटियों का क्षेत्र खुला एवं गम्य है। पश्चिम में उच्च मैदान हैं और पूर्व में ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी मार्ग है, जिस पर विंध्य शृंखला की समानांतर वनयुक्त पर्वतश्रेणियाँ हैं। विंध्य ढलवां भूमि (भांडेर श्रेणी, रीवा के पठार, सोनापुर पर्वतश्रेणियाँ और सोन नदि के नाले से मिलकर बनी) इस प्रदेश के भीतरी भाग की विशेषता है। बघेलखंड का बाकी हिस्सा एक पठारीय क्षेत्र है, जिसके दक्षिण और पूर्वी हिस्से की निचली तह ग्रेनाइट की है। मध्य भाग में गोंडवाना और दक्कन ट्रैप तथा पूर्वोत्तर में बिंध्य है। सोन नदी की संकरी पनाली में जलोढ़ मिट्टी की परत पायी जाती है। गोंड और कोल जनजातियाँ यहाँ की जनसंख्या का प्रमुख हिस्सा हैं।

इस प्रदेश में कृषि विकास कम है, मुख्य फ़सल धान है और गेहूँ, मक्का व चना भी यहाँ उगाया जाता है। बघेलखंड कोयला, एल्युमिनियम वाली मिट्टी बॉक्साइट, चिकनी मिट्टी और क्वार्ट्ज़ की अविकसित, लेकिन विपुल खनिज संपदा मौजूद है। बघेलखंड अपनी भौगोलिक स्थिती, आर्थिक अलगाव और अधिकांश जनजातिय निर्धन कृषक वर्ग के कारण उपेक्षित हैं। चूना-पत्थर और कोयले के अलावा बघेलखंड में मौजूद अन्य खनिज संसाधनों का वाणिज्यिक उद्यम द्वारा समुचित उपयोग नहीं किया जा रहा है।

संदर्भ: भारतकोश-बघेलखंड

References

  1. Abha Singh, Bharhut Stoopa Gatha (Hindi), Ed. Ramnarayan Singh Rana, Satna, 2007, p. 119
  2. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur,p.601-02
  3. Corpus Inscriptionium Indicarium Vol IV Part 2 Inscriptions of the Kalachuri-Chedi Era, Vasudev Vishnu Mirashi, 1955, p.450-457
  4. Abha Singh, Bharhut Stoopa Gatha (Hindi), Ed. Ramnarayan Singh Rana, Satna, 2007, p. 119
  5. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.601-02