Baranawa

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Barnava, near Binauli on District map of Baghpat
Author:Laxman Burdak, IFS (Retd.)

Baranawa (बरणावा) is a Village in Baraut tahsil of district Bagpat in Uttar Pradesh. It is identified with Varanavata (वारणावत) of Mahabharata (V.31.19).

Variants

Location

Barnava is situated near Binauli village. Pincode- 250645. Sirsal Garh is one of the village of district Bagpat in Uttar Pradesh. The village is Located 25 km. in East of bank of river Yamuna.It is 40 km from Meerut City and 20 km. from Bagpat. In the East of this village a small town Barnawa famous from the ancient time of Mahabharata for the burning of Laksha-grah.

The Founders

History

Barnava, near Binauli is the site of the Lakshagriha, the lac palace that was built by Mayasura, the demon architect, to kill the Pandavas.

The district city Bagpat, founded by the Pandava brothers of Mahabharata, was originally known as Vyaghraprastha (Sanskrit: व्याघ्रप्रस्थ, lit. “tigercity”) because of the population of tigers found many centuries ago, and was one of the five villages asked by the Pandava brothers from Duryodhan to avoid the Mahabharat. Barnava, near Baraut is the site of the Lakshagraha – palace made of wax, that was built by Purochana a minister of Duryodhana to kill the Pandavas.[1]

In Mahabharata

Varanavata (वारणावत) is mentioned in Mahabharata (V.31.19). Udyoga Parva/Mahabharata Book V Chapter 31 mentions that Pandavas were desirous of peace and demanded only five villages: Kushasthala, Vrikasthala, Asandi, Varanavata, and for the fifth any other village to end the quarrel. [2]


Adi Parva, Mahabharata/Mahabharata Book I Chapter 90 mentions that Duryodhana became exceedingly jealous of Pandavas. All Duryodhana's efforts proved futile. Then Dhritarashtra sent them, by an act of deception to Varanavata, and they went there willingly. There an endeavour was made to burn them to death; but it proved abortive owing to the warning counsels of Vidura. After that the Pandavas slew Hidimva, and then they went to a town called Ekachakra. There also they slew a Rakshasa of the name of Vaka and then went to Panchala. And there obtaining Draupadi for a wife they returned to Hastinapura. And there they dwelt for some time in peace and begat children. [3]

बरनावा

विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है कि.... (बरनावा), जिला मेरठ (वर्तमान बड़ौत), बागपत, उ.प्र., (AS, p.609): हिंडौन और कृष्णी नदी के संगम पर सरधना (वर्तमान बड़ौत) तहसील में, मेरठ से लगभग 15 मील (जनश्रुति के अनुसार) यह वही ग्राम है जहां पांडवों को भस्म कर देने के लिए दुर्योधन ने लाक्षागृह तैयार करवाया था. यह प्राचीन गांव वारणावत या वारणावर्त है जो उन 5 ग्रामों में था जिनकी मांग पांडवों ने दुर्योधन से महाभारत युद्ध के पूर्व की थी. (दे. वारणावत)

बागपत

विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है कि....बागपत (जिला मेरठ, उत्तर प्रदेश) (AS, p.617). वर्तमान जिला बागपत: इस नगर का प्राचीन नाम व्याघ्रप्रस्थ या वृषप्रस्थ कहा जाता है. स्थानीय जनश्रुति में यह गांव उन पांच गांवों में से था जिनकी मांग महाभारत युद्ध से पहले समझौता करने के लिए, पांडवों ने दुर्योधन से की थी. अन्य 4 ग्राम सोनीपत, तिलपत, इंद्रपत और पानीपत कहे जाते हैं. किंतु महाभारत में यह 5 ग्राम दूसरे ही हैं-- ये हैं-- अविस्थल, वृकस्थल, माकन्दी, वारणावत, और पांचवा नाम रहित कोई भी अन्य ग्राम (दे. अविस्थल). संभव है वृकस्थल बागपत का महाभारत कालीन नाम है. वैसे वृकस्थल (वृक-- भेड़िया या बाघ) बागपत या व्याघ्रप्रस्थ का प्रयाय हो सकता है.

वारण

विजयेन्द्र कुमार माथुर[6] ने लेख किया है कि....Vārana वारण (AS,p.843) - महाभारत उद्योग पर्व 29,31 में इस स्थान का उल्लेख है-'वारणं वाटधानं च यामुनश्चैव पर्वत:; एष देश: सुविस्तीर्ण: प्रभूतधनधान्यवान'. यहाँ दुर्योधन के सहायतार्थ आने वाले असंख्य सेनाओं के ठहरने के लिए जो स्थान नियत किए गए थे उनका वर्णन है. जान पड़ता है वारण , महाभारत में अन्यत्र उल्लिखित वारणावत ही है. वारणावत का अभिज्ञान बरनावा जिला मेरठ से किया गया है. (दे वारणावत)

वारणावत

विजयेन्द्र कुमार माथुर[7] ने लेख किया है कि....वारणावत AS,p.843), महाभारत के अनुसार इस नगर में दुर्योधन ने लाक्षागृह बनाकर पांडवों को जला डालने की चाल चली थी जो पांडवों की चतुराई के कारण सफल नहीं हो सकी. वारणावत में शिव की पूजा के लिए जुड़े हुए 'समाज' अथवा मेले को देखने के लिए पांडव लोग धृतराष्ट्र की आज्ञा से गए थे. यहीं पुरोचन ने छद्म रूप से सन, राल, मूंज, बल्वज, बांस आदि पदार्थों से लाक्षागृह की रचना की थी. महाभारत उद्योग पर्व 31.19 के अनुसार वारणावत उन 5 ग्रामों में से था जिन्हें युधिष्ठिर ने दुर्योधन से युद्ध को रोकने का प्रस्ताव करते हुए मांगा था. वारणावत का अभिज्ञान जिला मेरठ उत्तर प्रदेश में स्थित बरनावा नामक स्थान से किया गया है. बरनावा हिंडन और कृष्णी नदी के संगम पर मेरठ नगर से 15 मील दूर है. जान पड़ता है कि महाभारत काल में कौरवों की प्रसिद्ध राजधानी हस्तिनापुर का विसतार पश्चिम में वारणावत तक था. वारणावत के विषय में एक उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि यहां जैसा कि महाभारत आदि पर्व 142,3 से सूचित होता है, उस समय शिव उपासना से संबंधित भारी मेला लगता था जिसे 'समाज' कहा गया है. इस प्रकार के समाजों का उल्लेख अशोक के शिला-अभिलेख संख्या एक में भी है.

Jat Gotras

Notable Persons

External Links

References

  1. Official website of Bagpat on nic
  2. कुशस्थलं वृकस्थलम आसन्दी वारणावतम, अवसानं भवेथ अत्र किं चिथ एव तु पञ्चमम Mahabharata (V.31.19)
  3. ततश च हिडिम्बम अन्तरा हत्वैक चक्रां गताः (I.90.79), तस्याम अप्य एकचक्रायां बकं नाम राक्षसं हत्वा पाञ्चाल नगरम अभिगताः Mahabharata (I.90.80)
  4. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.609
  5. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.617
  6. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.843
  7. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.843-44

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