Bayana
Author: Laxman Burdak IFS (R) |
Bayana (बयाना) is a historical town and tahsil in Bharatpur district of Rajasthan, India.
Variants
- Bayana बयाना, जिला भरतपुर, राज., (AS, p.607)
- Vijayagadha (विजयगढ़), 2. जिला भरतपुर, (Rajasthan) (p.851)
- Bijayagadh (बिजयगढ़)
- Shripatha (श्रीपथ)
- Bānapura (बाणपुर) (AS, p.620)
- Varanasi (वाराणसी)
- Shripatha (श्रीप्रस्थ)
- Shripura (श्रीपुर)
- Baranasi बारानसी =1. Varanasi (वाराणसी),2. Bayana (बयाना) (AS, p.622)
- Shriprastha श्रीप्रस्थ दे. Bayana बयाना (AS, p.922)
The Founders
Bayana is a historical city founded by Bana clan Jats who were the first rulers in this area. Bayana was their capital.
Location
Bayana is located in a small plain, between two hill ranges running more or less parallel to each other near the left bank of the Gambhiri river, at a distance of 36 km from Bharatpur.
Jat Gotras
Villages in Bayana tahsil
Adda, Aghawali, Ajnoli, Alapuri, Arauda, Bachhaina, Bagren, Baisora Bharatpur, Bajna, Bajoli, Bamoori, Ban Kookra, Bangaspura, Bansroli, Baori, Barkhera, Baroda, Bastrawali, Bayana ( Rural ), Bayana (M), Beerampura, Bhagori, Bhaja Moroli, Bidyari, Birhata, Biskhori, Brahmawad, Budhawar, Chahal Bayana, Chainpura Bayana, Chak Balrampur, Chak Beechhi, Chak Nawli, Chak Samantgarh, Chaukhanda, Cheekhru, Damdama, Dar Barahna, Dehgawan, Dewasarai, Dhadren, Dhurairi, Dumariya, Encholi, Etmadpur, Farso, Gajnua, Gazipur, Ghunaini, Gurdha Dang, Gurdha Nadi, Harnagar, Jheel (Nagla Medsingh), Imliya, Intkhera, Jaisora, Jarwar, Jaspura Moroli, Jaswant Nagar, Jhamri, Jhatola, Kachaira, Kair, Kakalpura, Kalsara, Kanawar, Kani, Kapoora Dahar, Kapoora Malooka, Karwari, Katariyapura, Katkar, Khan Khera, Khareri, Khatnawali, Kheri Dang, Kheriya, Kherli Gadasiya, Khohra, Khoot Khera, Khulawali, Kot, Kothi Khera, Lahchora Kalan, Lahchora Khurd, Lohatwara, Madanpur, Mahloni, Mahmadpura, Mahrawar, Malipura, Mangren Kalan, Mangren Khurd, Milakpur, Moodiya, Mor Talab, Muawali, Murki, Nadi Gaon, Nagla Andowa, Nagla Bahaduriya, Nagla Chheetariya, Nagla Chimman, Nagla Hota, Nagla Jhamra, Nagla Khatka, Nagla Khushaliram, Nagla Khushfaham, Nagla Kishan Vallabh, Nagla Kurwariya, Nagla Medsingh, Nagla Nabariya, Nagla Nirbhan, Nagla Purohit, Nagla Roopram, Nagla Sewa Kurwariya, Nagla Shyolal, Nagla Tirkha, Nahroli, Naroli Bayana, Nawli, Nayagaon Kalan, Nayagaon Khurd, Nithari, Palidang, Parua, Patti Shahjad, Peeloopura, Peeparra, Peepli, Pidawali, Popalpura, Purabai Khera, Puraharlal, Raroda, Raseri, Reechhauli, Sadhpura, Salabad, Samantgarh, Samogar, Samri, Santokpura, Sarai Bhamboo, Seedpur, Seopura, Sewla, Shahpur, Shekhpur, Shergarh, Sikandara, Singhan Khera, Singhaniya, Singhara, Singhrawali, Sookha Seela, Soopa, Sultanpur, Talimpur, Tarbeejpur, Tarsooma, Thana Dang, Thikariya, Turtipura,
History
The ancient name of Bayana was Shripatha or Shriprashtha. It is a curious mixture of Hindu and Mohammad relics. Ruled by stalwarts like Mohammad Ghori, Sikandar Lodhi and Humayun, Bayana held a special place in history. According to Abul Fazal: "this town is the burial place of many illustrious men". It can be adjudged that various important battles were fought here. Ain-e-Akbari mention that in former times Bayana was the capital of a province of which Agra was merely a dependent village.
Bayana is famous for Bijaigarh (Vijaygarh) fort which was built by Jadon Raja Bijai Pal in 1040 A.D. The Bijaigarh fort contains several old temples and a red sandstone pillar bearing an inscription of Vishnuvardhan, a feudatory of Samudragupta. The fort was described as one of the most famous forts in India by Babur himself. Besides this there is a monolithic sandstone pillar, a curious combination of Hindu and Mohammedan styles, which bears many inscriptions.
Another important place is Usha temple, which was built during the reign of Raja Laxman Sen, by his wife.
James Tod[1] writes that The warriors assembled under Visaladeva Chauhan against the Islam invader included the ruler Dahima. The renowned Dahima was lord of Bayana ; also called Druinadhar.
Need to bring in global list
Arjun Kumar in an article in Times of India dated Aug 1, 2019, has mentioned that a pillar inside Vijaymandirgarh fort at Bayana bears an inscription commemorating the ceremonial sacrifice by Vishnu Vardhan of the Varik clan. The Vikrami Samvat date mentioned on it corresponds to 372-373 a period when the region was part of the Gupta Empire and and Vardhan was probably a vassal of theirs.....Today, at a time when it is critical for Rajasthan to create new avenues for drawing tourism, the relatively unknown Vijaymandirgarh and Khandar offer opportunities.[2]
बयाना, जिला भरतपुर
विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है .....बयाना, जिला भरतपुर, राज., (AS, p.607): इस स्थान का प्राचीन नाम 'बाणपुर' कहा जाता है। इसके अतिरिक्त, इसके अन्य नाम 'वाराणसी', 'श्रीप्रस्थ' या 'श्रीपुर' भी उपलब्ध हैं।
किंवदन्ती के अनुसार वाणपुर का सम्बन्ध बाणासुर तथा उसकी कन्या ऊषा से बताया जाता है। ऊखा मन्दिर ऊषा का ही स्मारक कहा जाता है। 956 ई. के एक अभिलेख में, जो ऊखा मन्दिर से प्राप्त हुआ था, यहाँ के राजा लक्ष्मण सेन का उल्लेख है।
एक अन्य अभिलेख बाबर के समय का (934 हिजरी या 1527 ई.), जिससे इस वर्ष में [p.608]: बाबर का बयाना पर अधिकार सूचित होता है। अवश्य ही बाबर के हाथ में यह प्रदेश राणा संग्राम सिंह के खानवा के युद्ध (1527 ई.) में पराजित होने पर आया होगा। बाबर के सेनापति महमूद अली का महल भीतरवाड़ी में अब भग्नावस्था में है।
महमूद अली के प्रधानमंत्री अजब सिंह भांवरा थे, जो जाति के ब्राह्मण बताए जाते हैं। इनके नाम से बयाना में भांवरा गली प्रसिद्ध है। इस गली में अजब सिंह के बनवाए हुए चौका महल, गिदोरिया कूप तथा अनासागर बाबड़ी आज भी वर्तमान में हैं।
बयाना बहुत समय तक जाट रियासत भरतपुर की रिज़ामत (ज़िला) था। हाल ही में 1137 ई. (1194 वि. सं.) का एक अभिलेख पाल नरेशों के समय का मागरौल नामक ग्राम से प्राप्त हुआ है, जो इस प्रकार है— संवत् 1194 अगहन स्वस्ति श्री ठाकुर साहू राम कील माहड़ ग्राम भाँगसरुवास हर्डखे श्री देवहज श्री पाल लिखी मिति 3'।
यहाँ के पाल नरेशों में विजयपाल प्रसिद्ध है। इन्हीं के नाम से स्थापित विजय मंदिर गढ़ आज भी भग्नावस्था में यहाँ स्थित है. विजयपाल के पुत्र तिहिनपाल के तीन पुत्र थे, जो पाल भाई नाम से प्रसिद्ध हुए। 1243 विक्रम संवत=1186 ई. का एक अन्य हिन्दी अभिलेख भी यहाँ पर मिला है।
बयाना परिचय
बयाना राजस्थान राज्य के भरतपुर ज़िले में स्थित एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। एक 'ख्यात' लेखक सूचित करता है कि, वर्तमान बयाना के स्थान पर 'करावली राजवंश' का पहला शासक विजयपाल, जो मथुरा से यहाँ आया था, ने विजयमंदिर नाम से गढ़ बनाया। इस दुर्ग का नाम बाद में बयाना पड़ गया। 'ख्यात' लेखक से यह जानकारी भी मिलती है कि, विजयपाल के साथ महमूद ग़ज़नवी का संघर्ष हुआ था। इसी वंश का एक अन्य प्रतिभाशाली शासक तिहिनपाल या तवनपाल था, जिसने आस-पास का काफ़ी क्षेत्र अपने अधिकार में कर लिया था और 'परमभट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर' की उपाधि धारण की थी। तिहिनपाल के तीन पुत्र थे, जो पाल भाई नाम से प्रसिद्ध हुए। 1243 विक्रम संवत=1186 ई. का एक अन्य हिन्दी अभिलेख भी यहाँ पर मिला है। 1196 ई. में मुहम्मद ग़ोरी का इस क़िले पर अधिकार हो गया।
इब्नबतूता ने अपने वृत्तांत में जिन भारतीय शहरों का उल्लेख किया है, उनमें बयाना भी शामिल है, जो उसके महत्त्व को दर्शाता है। जियाउद्दीन बरनी अपने ग्रंथ में अलाउद्दीन ख़िलजी एवं बयाना के क़ाज़ी मुगीसुद्दीन के बीच लम्बी बातचीत का वर्णन करता है।
बाबर के आक्रमण के समय अफ़गानों का इस पर अधिकार था। राणा साँगा और बाबर में बयाना के निकट ही खानवा के मैदान में संघर्ष हुआ था। बाद में यह शेरशाह सूरी के अधिकार में चला गया। यहाँ से बाबर का अभिलेख भी मिला है। मुग़ल काल और बाद में यह भरतपुर के जाट राजाओं की एक रियासत बन गया।
सामरिक महत्त्व: आगरा के निकट होने के कारण बयाना का दुर्ग सामरिक महत्त्व रखता था। बयाना मध्यकाल में नील की खेती के लिए प्रसिद्ध था। बयाना में सर्वश्रेष्ठ किस्म की नील का उत्पादन होता था, जबकि घटिया किस्म की नील का उत्पादन दोआब, खुर्जा एवं कोइल (अलीगढ़) में होता था। सर जदुनाथ सरकार लिखते हैं कि बयाना की नील भारत के अन्य क्षेत्रों की नील से 50 प्रतिशत अधिक मूल्य पर बिकती थी। यहाँ से नील इराक होते हुए इटली तक भेजी जाती थी।
पुरामहत्त्व: 'ऊखा मन्दिर' से प्राप्त 956 ई. के एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि यहाँ का राजा उस समय लक्ष्मण सेन था। बयाना आगरा के निकट स्थित होने के कारण इतिहास में बहुत प्रसिद्ध रहा है। यहाँ से गुप्तकालीन सिक्के भी प्राप्त हुए हैं, जो यह साबित करते हैं कि यहाँ गुप्त शासकों का शासन भी रहा था। बयाना अपनी बेहतरीन क़िस्म की नील की पैदावार के लिए प्रसिद्ध था।
बयाना से 1821 ई.सोने के सिक्कों का भारी ढेर प्राप्त हुआ है, जो गुप्तकालीन हैं। इससे गुप्त शासकों की आर्थिक समृद्धि का प्रमाण मिलता है। इनमें अधिक सिक्के चन्द्रगुप्त द्वितीय के हैं। इन सिक्कों में कई नये प्रकार के सिक्के हैं, जो गुप्त शासकों की विविधता प्रमाणित करते हैं। इन सिक्कों से गुप्तवंशीय कुमारगुप्त द्वितीय के इतिहास पर नया प्रकाश पड़ता है। यह अनुमान लगाया जाता है कि लगभग 540 ई. के आस-पास हूणों के आक्रमण के समय इस खज़ाने को ज़मीन में गाड़ दिया गया था। यहाँ से स्कन्दगुप्त का एक ही सिक्का मिला है।
संदर्भ: भारतकोश-बयाना
बाणपुर
विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है ...देखें- 1. बयाना, 2. महाबलीपुरम्
विजयगढ़
विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है ...1. विजयगढ़ (AS, p.851): जिला मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश के एक अति प्राचीन दुर्ग के लिए यह स्थान उल्लेखनीय है. किले के मार्ग में एक शिला पर प्रागैतिहासिक चित्रकारी अंकित है इसमें एक योद्धा तथा सिंह की आकृतियां बनी हैंं. किले की पहाड़ी पर पांचवी सदी ई. से आठवीं सदी ई. तक के 20 से अधिक अभिलेख उत्कीर्ण हैं.
2. विजयगढ़ (AS, p.851): विजयगढ़ भरतपुर ज़िला, राजस्थान का ऐतिहासिक स्थान है। यह बयाना से 2 मील की दूरी पर दक्षिण-पश्चिम की ओर स्थित है। यहाँ से यौधेय-गण का एक शिलालेख (दूसरी शती ई.) प्राप्त हुआ है, जिससे इस काल में यौधेयों के राज्य का प्रसार इस क्षेत्र में सिद्ध होता है। गिरनार स्थित रुद्रदामन (लगभग 120 ई.) के अभिलेख में उसकी यौधेयों पर प्राप्त विजय का उल्लेख है। बाद में यौधेयों को गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त से भी परास्त होना पड़ा था, जैसा कि 'हरिषेण' लिखित प्रयाग-प्रशस्ति (पंक्ति 22) से ज्ञात होता है। विजयगढ़ के इस अभिलेख से इसके खंडित होने के कारण और अधिक ऐतिहासिक जानकारी नहीं मिल सकी। विजयगढ़ से वारिककुल के राजा विष्णुवर्धन का एक प्रस्तर स्तंभ लेख भी मिला है। इसमें संवत 428 दिया हुआ है, जो लिपि के आधार पर अभिलेख की परीक्षा करने से, विक्रम संवत (=372-373 ई.) जान पड़ता है। यदि उक्त तिथि का अभिज्ञान ठीक हो तो वारिक-विष्णुवर्धन को समुद्रगुप्त का समकालीन तथा उसका करद सामंत मानना पड़ेगा। यहाँ से प्राप्त अभिलेख में विष्णुवर्धन द्वारा पुंडरीक यज्ञों के पश्चात् 'यूपस्तंभ' के निर्माण करवाए जाने का उल्लेख है।
Sultan Bahau-d din Tughril and Bayana
Sir H. M. Elliot[6] writes about Bayana:
Malik Bahau-d din Tughril was a man of kindly disposition, just, charitable, and polite. He was one of the oldest servants of Sultan Ghazi Mu'izzu-d din, who with his favour had made him a great man. When the Sultan conquered the fort of Thankar1 in the country of Bhayana2 after fighting with the Rai, he consigned it to Bahau-d din, and he so improved the condition of the country that merchants and men of credit came thither from all parts of Hindustan and Khurasan, He gave all of them houses and goods, and also made them masters of landed property, so that they settled there. As he and his army did not like to reside in the fort of Thankar, he founded the city of Sultan-kot,3 in the territory of Bhayana and made it the place of his residence. From this place he constantly sent his horsemen towards Gwalior. When Sultan Ghazi retired from that fort
1 ["Bhankar" or "Bhangar" in other places, see p. 296. A note in the text gives the preference to " Thankar," but no reason is assigned,]
2 Bayana or Biana, fifty miles S.W. of Agra.
3 [See Firishta I. 195. A note in the text says " Sialkot," but this is impossible.]
[p.305]: he told Bahau-d din that he ought to secure it for himself. Upon this hint Bahau-d din, posted a division of his army at the foot of the fort of Gwalior, and at two parasangs distance he constructed a fortification, where his cavalry might picket at night and return in the morning to the base of the rock. A year passed and the garrison being reduced to extremities sent messengers to Kutbu-d din and surrendered the fort to him. There was a little misunderstanding; between Bahau-d din and Sultan Kutbu-d din (r. 1206-1210). Malik Bahau-d din Tughril was a man of excellent qualities, and he has left many marks of his goodness in the territory of Bhayana.
Bijayagadh Stone Inscription of the Yaudheyas
- Perfection has been attained! Of the Mahârâja and Mahâsênâpati, who has been made the leader of the Yaudhêya tribe, . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .and having asked the settlement, headed by the Brâhmans, as to the health of (their) bodies &c., writes "There is . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . . .[7]
Bijayagadh Stone Pillar Inscription of Vishnuvardhana S. 428 (372 AD)
- From: Fleet, John F. Corpus Inscriptionum Indicarum: Inscriptions of the Early Guptas. Vol. III. Calcutta: Government of India, Central Publications Branch, 1888, 254.[8]
The Bijayagadh Stone Pillar Inscription of Vishnuvardhana, locally known as Bhīm kī Lāţ, was erected at Bayana in Bharatpur district for having perfection been attained in samvat 428 on the fifteenth lunar day of the dark fortnight of (the month) Phâlguna. Bijayagadh Stone Pillar Inscription of Vishnuvardhana reads as[9]:
Perfection has been attained! Four centuries of years, together with the twenty-eighth (year), (or in figures) 400 (ana) 20 (ana) 8, having been accomplished; on the fifteenth lunar day of the dark fortnight of (the month) Phalguna;-on this (lunar day), (specified) as aforesaid: -
(Line 3.)-On the ceremony of the pundarīka-sacrifice (having been performed), this sacrificial post has been caused to be set. up by the Varika, the illustrious Vishnuvardhana whose royalty and name are well established,-who is the excellent son of Yashovardhana; (and) the excellent son s son of Yashôrâta; (and) the excellent son of the son s son of Vyâghrarâta, - for the purpose of increasing (his) splendour, sacrifices, religion, welfare (in the other world), prosperity, fame, family, lineage, good fortune, and enjoyment.
(L. 4.)-Let there be success! Let there be increase! Let there be tranquillity! Let there be the condition of (his) having a son who shall live! Let there be the attainment of desires that are wished for! May there be faith and wealth!
Source - Fleet, John F. Corpus Inscriptionum Indicarum: Inscriptions of the Early Guptas. Vol. III. Calcutta: Government of India, Central Publications Branch, 1888, 254.
The Bijayagadh Stone Pillar Inscription of Vishnuvardhana shows that Yasodharman, the father of Vishnuvardhana, was a king of Virk gotra. [10] [11]Thakur Deshraj and CV Vaidya apparently believe that the inscription of Bijaygarh and Mandsaur "prove" that Yasodharman, the ruler of Malwa, was a Jat king of the Virk gotra (clan). [12][13]
Comments by Dr SS Rana
The name of the father of Vishnuvardhana as given in the above inscrition is Yashovarmarman not Yashodharman of the Mandasor Inscriptions. We know now that he was from the family of Aulikaras of Mandsor about whom the Risthal Inscription gives rich information. [14]--Drssrana2003
Bayana Inscription of Mahipaladeva V. 1012 (955 AD)
The relevant inscription recording the fact is incised on a slab in the pavement of the Ukha mosque at Bayana, now transformed into the Ukha mandir.
The temple was constructed by Mahipaladeva in ca. 950 or sometime before AD 955 as the Bayana inscription dated VS 1012 (AD 955) suggests that Sripatha was the seat of Mahipala Deva.
The Bayana inscription of Chitralekha (955 AD)74 refers to the collection of three drammas for a deity at the mandapika of Shripatha and of a similar sum at the mandapika of Vasavata. Both the mandapikas appear to have been noted for trade in horses, as the local queen donated in favour of a Visnu temple .
An inscription found at Bayana in Rajasthan, dated VS 1012=955 AD, refers to one Maharajadhiraja Mahipala. The Bayana region must have been within the Pratihara dominions, for Rajor, lying further to its north-west.
Up to V. 1012 (955 AD), Sripatha appears to have been ruled by the Surasena dynasty.
Bayana inscription of queen Chitra-lekha (dated 955 AD) mentions prostitutes attached to temples.
Bayana formed part of the kingdom of Kanauj in Vikrama year 1012 = 955 ad, the date of the epigraph, nobody would probably ... and this supposition is doubtless to some extent strengthened by the evidence of the Rajor inscription...
Arrival of Sultan Muhammad Ghori in Hindustan
Sir H. M. Elliot[15] writes that When Kutbu-d din Aibak (r. 1206-1210) heard of the Sultan Muhammad Ghori's march from Ghazna, he advanced as far as Hansi to meet him. In the year 592, H. (1196 A.D.), they marched towards Thangar,(Bayana) and strong castle was taken, which had hitherto remained closed to all the sovereigns and princes of the world.
[p. 227]: " Kuwar Pal, the Rai of Thangar, who had prided himself on the numbers of his army and the strength of his castle, suffered the loss of his kingdom, was content that his life was left to him. The Musulmans, and harbis, and zimmis entered into conditions for paying revenue. The government of Thangar was conferred on Bahau-d din Tughril.
दलीप सिंह अहलावत लिखते हैं
चूड़ामन ने अपने पिता ब्रजराज के जीवनकाल में रूपवास, बाड़ी, बसेडी, सिरमथरा, बयाना तथा कठूमर के बीहड़ जंगल तथा पहाड़ों में शरण लेकर नवीन छापामार दल संगठित कर लिए थे। इन दलों ने पांच-छः वर्ष तक आगरा, दिल्ली तथा रणथम्भौर मुगल सरकारों के मध्य भाग में लूटमार करके अराजकता को फैलाया। मुगल सरकारों के सूबेदार तथा परगनों के फौजदार क्रान्तिकारी समूह की गतिविधियों को नियन्त्रित रखने में पूर्णतः असफल रहे। अपने पिता ब्रजराज तथा ज्येष्ठ भ्राता भावसिंह की मृत्यु के बाद वह अपने लड़ाकू जाट सैनिकों के साथ कठूमर परगना को छोड़कर अपनी जन्मभूमि (सिनसिनी परगना) में वापिस लौट आया। इस समय समस्त गांवों के सिनसिनवार जाट मुखियाओं की एक पंचायत बैठी और उस पंचायत ने फतेसिंह (सुपुत्र राजाराम) को अयोग्य समझकर चूड़ामन को सिनसिनवार जाट पंचायत का प्रधान निर्वाचित किया। यह पंचायत 1702 ई० के आस-पास हुई थी।[16]
Notable persons
- Inder Singh Sardar (सरदार इंदर सिंह), from Bayana (बयाना), Bharatpur was a Social worker in Rajasthan.
- Charan Singh Sinsinwar Bayana (ठाकुर चरणसिंह सिनसिनवार), from Bayana, Bharatpur was a Social worker in Bharatpur, Rajasthan. [17]
External links
References
- ↑ James Tod: Annals and Antiquities of Rajasthan, Volume II,Annals of Haravati,p.414-416
- ↑ Abandoned forts that can make it to global list
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.607-608
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.620
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.851
- ↑ The history of India : as told by its own historians. Volume II/VIII. Tabakat-i Nasiri of Minhaju-s Siraj, Sir H. M. Elliot Edited by John Dowson, 1867 pp.304-305
- ↑ From: Fleet, John F. Corpus Inscriptionum Indicarum: Inscriptions of the Early Guptas. Vol. III. Calcutta: Government of India, Central Publications Branch, 1888, 252.
- ↑ http://www.mssu.edu/projectsouthasia/history/primarydocs/Epigraphy/Gupta-Era/bijayagadh_stone_pillar.htm
- ↑ Bijayagadh Stone Pillar Inscription of Vishnuvardhana
- ↑ Bijayagadh Stone Pillar Inscription of Vishnuvardhana
- ↑ Fleet, John F. Corpus Inscriptionum Indicarum: Inscriptions of the Early Guptas. Vol. III. Calcutta: Government of India, Central Publications Branch, 1888, 254.
- ↑ Thakur Deshraj: Jat Itihas (Hindi), Maharaja Suraj Mal Smarak Shiksha Sansthan, Delhi, 1934, 2nd edition 1992 (Page 707)
- ↑ CV Vaidya, History of Medieval Hindu India
- ↑ K.V. Ramesh and S.P.Tiwari, Journal of Indian Epigraphical Society, Vol.10.
- ↑ The history of India : as told by its own historians. Volume II/V. Taju-l Maasir of Hasan Nizami: Sir H. M. Elliot Edited by John Dowson, 1867, p.226-227
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter VIII (Page 641)
- ↑ Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, p.51
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