Bhagu Ram Fagoria
Bhagu Ram Fagoria (27.5.1943-7.11.2017), from Chandi, Makrana, Nagaur, was in Jat Regiment of the Indian Army. He took part in Indo-Pak War 1965, 1971 and Ino-China War-1962. He was also part of the Indian Peace Keeping Force in Shri Lanka. He was awarded number of Medals of bravery during his career in Army.
जीवन परिचय
देश के लिए तीन बार युद्धस्थल पर अपनी बहादुरी का परिचय देने वाले, मकराना के गांव चाण्डी के गौरव सैनिक भागूराम जी फगौड़िया (जाट रेजिमेंट) हमारे बीच नहीं रहे।
आपका जन्म 27 मई 1943 को मकराना के पास और हमारे पड़ोसी गांव चाण्डी में हुआ। आपके पिता का नाम चौधरी नरसीराम था। आपने ठीकठाक शिक्षा ग्रहण की थी। तत्पश्चात गांव के सबसे ज्यादा शिक्षित साथी बेगाराम की सलाह पर सेना में जाने का मन बनाया।
देश सेवा
आपका चयन सन् 1961 में थल सेना की जाट रेजिमेंट में हुआ। जहां आपने सन् 1978 तक अपनी सेवाएं दी।
देश सेवा में उनके योगदान को आने वाली पीढियां याद करेगी।
सन् 1962 (अरूणाचल प्रदेश) में चीन के साथ, तथा 1965 व 1971 (मिजो हिल्स पोस्ट) के युद्ध में वीरता के कई कारनामे रचे थे। जिसके चलते उन्हें दर्जनों सैना मैडल मिले थे। युद्धों के अलावा आपने 3 साल तक श्रीलंका व 1 साल बंग्लादेश में शांती सेना में भी काम किया था। जब आप शांति सेना के लिए श्रीलंका थे तब 3 साल तक घरवालों से संपर्क नहीं हो पाया। ऐसे में सैनिक परिवार ने आप को शहीद समझ लिया। लेकिन शांती सेना से वापस गांव लोटे तो तमाम गांव वालों की आंखे नम हो गई। और गाजे बाजे के साथ आपका जौरदार स्वागत किया गया था। आपने सन् 1978 तक देशसेवा में अपना जीवन समर्पित किया और आज 76 वर्ष की उम्र में भरा पूरा परिवार को छौड़कर मंगलवार दिनांक 7.11.2017 को अंतिम सांस ली।
सन् 1962 के चीन युद्ध में अरूणाचल प्रदेश में आपकी बटालियन के 14 सैनिक शहीद हुए थे। तब आपने व आपके एक और साथी ने गौली लगने के बावजूद संघर्ष किया और आखिर में अपनी पोस्ट को बचाने में कामयाब रहे। उनकी इस बहादुरी का जाट रेजिमेंट ने सम्मान किया। आज भी बरेली सेंटर के संग्रहालय में आपकी बहादुरी के कारनामे अंकित है।
समाज सेवा
आप 31 मई 1978 को सेवानिवृत्ति लेके पैतृक गांव आकर बस गये। और खेती बाड़ी का काम करने लगे। इस दौरान गांव के युवाओं को अपने सैन्य जीवन की यादें सुनाया करते थे। तथा मार्गदर्शक बन कर सेना में जाने का साहस देते थे। उनकी प्रेरणा से चाण्डी व आसपास के गांवो के काफी युवाओं का सेना में चयन हुआ। जो कि गर्व की बात है।
सेवानिवृत्ति के पश्चात अनेक सैनिक सम्मान समारोह व सैनिक कल्याण बोर्ड द्वारा सम्मानित करने हेतू बुलाया गया मगर आप कभी शामिल नहीं हुए। वो बोलते थे मैने अपनी भारत मां की सेवा सेना में रहकर खूब की है। सरकार मुझे पेंशन देती है मेरे लिए इतना ही काफी है। मुझे और कोई सम्मान नहीं चाहिए।
भारत भूमि के ऐसे जाबांज सिपाहियों को शत शत नमन करते हैं। आने वाली पीढियां आपकी सदैव कर्जदार रहेगी। आपको अश्रूपूरित श्रृदांजलि।
लेखक
References
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