Bhandarej

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(Redirected from Bhandarez)
Author:Laxman Burdak, IFS (Retd.)
Location of villages around Dausa

Bhandarej (भांडारेज) is a village in Dausa tahsil in Dausa district in Rajasthan. It is an ancient place of a historical importance. Its ancient name was Bhadravati/Bhadrawati (भद्रावती) city of Mahabharata period. There is an ancient temple of Bhadreshwara Mahadeva.[1]

Variants

  • Bhandarej भांडारेज, राज., (AS, p.662)

Location

It is located 10 km east of Dausa.

History

Much before the forts and palaces came into existence here, Rajasthan ostensibly had well-defined Buddhist monasteries or complexes at four places— Bairat in Alwar, Kholvi in Jhalawar, Bhandarez in Dausa and Ramgoan in Tonk. Discovered by the Archaeological Survey of India's (ASI) first director-general Alexander Cunningham in late 18th century, these historical sites today are crying for attention from the state....The site at Bhandarez is situated 65-km from Jaipur at Lalsot in Dausa district. Here the ruins of a big complex are situated at a 50-ft height. This site indicates presence of a big Buddhist complex. However, dense human settlement around it has deterred chances of further excavation and exploration here.[2]

भांडारेज

भांडारेज (AS, p.662): जिला दौसा, राजस्थान में स्थित ऐतिहासिक स्थान है. इस स्थान पर एक बावड़ी जो राजस्थान की प्राचीन शिल्पकला का [p.663]: सुंदर उदाहरण है. इसके विषय में स्थानीय कपोलकल्पना है कि इसे प्रेत आत्माओं ने अर्ध रात्रि के समय बनवाया था.[3]

बौद्ध स्तूपों के पुरावशेष

बौद्ध स्तूपों के पुरावशेष : पुरातत्व विभाग द्वारा उपलब्ध सूचना के अनुसार भांडारेज स्थित भंडान माता के मन्दिर के प्रांगण में ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी की यक्ष प्रतिमाएं गुप्तकालीन देवालयों के अवशेष उपलब्ध हैं जो यहाँ की प्राचीनता के ज्ञापक हैं. [4]

बड़गुजर क्षत्रियों का अधिपत्य: ज्ञात इतिहास के अनुसार भांडारेज पर बड़गुजर क्षत्रियों का अधिपत्य था. 11 वीं शताब्दी के आस-पास ढूंढाड़ में कछवाहा राजवंश के संस्थापक दुलहराय ने बढगूजरों को परास्त कर दौसा पर अधिकार के साथ भांडारेज पर भी अधिकार कर लिया. आमेर शासक मानसिंह प्रथम के समय उनके छोटे भाई माधो सिंह ने, जो मुगल दरबार में मनसबदार और भानगढ़ के शासक थे, बड़गुजर क्षत्रियों से प्रसन्न होकर उन्हें फिर से भांडारेज की जागीर दिलवा दी. [5]


कुम्भाणी उपशाखा का अधिकार : तदनन्तर भांडारेज पर कछवाहों की कुम्भाणी उपशाखा का अधिकार रहा. ये कुम्भाणी आमेर के 11 वें शासक जूणसी के वंशज थे. भांडारेज के दीपसिंह कुम्भाणी सवाई जयसिंह के सामंत और सेनानायक थे. जाट शासकों के विरुद्ध अभियान में विशेषकर भुसावर परगना के संघर्ष और थून की गढ़ी के घेरे के समय दीपसिंह कुम्भाणी जयपुर की सेना के स्तम्भ थे. दीपसिंह कुम्भाणी के भाई दौलत सिंह का मालवा के तीसरी सूबेदारी के दौरान 10 मार्च 1732 को सवाई जयसिंह की छावनी खिजुरिया (मंदसौर) में दौलत सिंह कुम्भाणी की उपस्थिति का साक्ष्य मिलता है. [6]

भांडारेज राजावतों के अधिकार में: कुम्भाणीयों के बाद भांडारेज राजावतों के अधिकार में आ गया तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के के बाद विलीनीकरण तक यह धूला संस्थान का क़स्बा था मांवडा - मंढोली को विषयवस्तु बनाकर लिखे गए धूला इतिहास 'कूर्म-विजय' में उल्लेख है कि बूंदी अभियान के सिलसिले में दलेलसिंह राजावत की सेवाओं से प्रसन्न होकर सवाई जयसिंह ने उन्हें दो परगने - भांडारेज और खेड़ा बख्शे.[7]

दलेलसिंह राजावत का मांवडा-मंढोली युद्ध में प्राणोत्सर्ग:

सवाई ईश्वरी सिंह के शासनकाल में राव दलेलसिंह ने राजमहल की लड़ाई सहित अनेक युद्धों में भाग लिया. तत्पश्चात सवाई माधव सिंह प्रथम के शासनकाल में जयपुर रियासत और भरतपुर महाराजा जवाहरसिंह के बीच 14 दिसंबर 1767 में नीम का थाना के पास मांवडा-मंढोली नामक स्थान पर भीषण युद्ध लड़ा गया, जिसमें जयपुर की सेना का नेतृतव वयोवृद्ध राव दलेलसिंह ने किया। इस युद्ध में दलेल सिंह ने अपने कुंवर लक्षमण सिंह और मात्र 11 पौत्र भंवर राजसिंह सहित लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की. इस प्रकार मांवडा-मंढोली के रणक्षेत्र में धूला (भांडारेज) की एकसाथ पीढ़ियां काम आईं. [8]

भांडारेज की एक अनमोल धरोहर यहाँ की कुम्भाणी शासकों दीपसिंह कुम्भाणी व दौलतसिंह कुम्भाणी की विक्रम संवत 1789 (1732 ई.) में निर्मित बावड़ी है. इस बावड़ी के निर्माण के शिलालेख में नंदा दरोगा नाम का भी उल्लेख है.[9]

Jat Gotras

Notable persons

External links

References

  1. Dr. Raghavendra Singh Manohar:Rajasthan Ke Prachin Nagar Aur Kasbe, 2010,p. 10
  2. Buddhism thrived in Rajasthan also around the Ashokan era’:Times of India Jaipur, Shoeb Khan, TNN, Jan 31, 2016
  3. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.662-663
  4. Dr. Raghavendra Singh Manohar:Rajasthan Ke Prachin Nagar Aur Kasbe, 2010,p. 10
  5. Dr. Raghavendra Singh Manohar:Rajasthan Ke Prachin Nagar Aur Kasbe, 2010,p. 11
  6. Dr. Raghavendra Singh Manohar:Rajasthan Ke Prachin Nagar Aur Kasbe, 2010,p. 11
  7. Dr. Raghavendra Singh Manohar:Rajasthan Ke Prachin Nagar Aur Kasbe, 2010,p. 11
  8. Dr. Raghavendra Singh Manohar:Rajasthan Ke Prachin Nagar Aur Kasbe, 2010,p. 12
  9. Dr. Raghavendra Singh Manohar:Rajasthan Ke Prachin Nagar Aur Kasbe, 2010,p. 13

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