Chander
Chander(चंदेर), Chanderi(चंदेरी), Chanderiya(चंदेरिया),Chandelia (चंदेलिया)[1] Chandeliya (चंदेलिया) Chandelya (चंदेल्या) Chandadya (चांदडया/चंदरया) Chandariya (चंदडिया/चंदेरिया) Chandolia/Chandoliya (चंदोलिया) Gotra Jats are found in Rajasthan, Madhya Pradesh,Uttar Pradesh and Punjab
Origin
This gotra originated from place called Chanderi in Madhya Pradesh.
चंदेरिया जाट गोत्र का इतिहास
लेखक :मानवेन्द्र सिंह तोमर
गुप्तवंशीय (धारण गोत्र का जाट राजवंश) चंदेरी के जाट राजा पूरणमल के वंशज चंदेरी, चंदेरिया, चंदोलिया कहलाते हैं।
राजा पूरणमल जाट मुगल काल और सूरी वंश के समय मे चंदेरी के शासक थे। राजा पूरणमल के पूर्वजों की जड़ें गुप्त वंश (धारण गोत्र) के जाटों में जाकर मिलती है।
चंदेरीका प्राचीन नाम चंद्रनगर था। गुप्त वंश के राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने यहां पर किले का निर्माण करवाया था। उन्ही (चंद्रगुप्त विक्रमादित्य) के नाम से यह जगह चंद्रनगर (चंद्रपुर) नाम से जानी गई थी। चंद्रनगर से अपभ्रंश होकर यह नगर चंदेरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ । गुप्त वंशी जाट चंदेरी के शासक होने के कारण चंदेरी के नाम पर चंदेरी (चंदेरिया/चंदेलिया) नाम से प्रसिद्ध है|गुप्त वंश की चंदेरी (चंदेरिया/चंदेलिया) शाखा मध्यप्रदेश, राजस्थान, पंजाब में निवास करती है।
चंदेरी किले के निर्माण पर कुछ दूसरे वंश भी दावा प्रस्तुत करते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा प्रामाणिक दावा गुप्त वंश के जाट राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का ही सिद्ध होता है
चंदेरी के गुप्त वंश के पश्चात यह किला मालवा के जाट महाराजा यशोधर्मन के अधिकार में रहा था। यशोधर्मन के पश्चात चंदेरी का किला अलाउद्दीन ख़िलजी, तुगलक वंश , लोधी वंश, और मालवा के सुल्तान महमूद ख़िलजी के अधीन रहा था । 1527 ईस्वी में मैदिनी राय खंगार ने मालवा के सुल्तान के समय चंदेरी पर कब्ज़ा कर लिया था। लेकिन 1528 ईस्वी में बाबर ने मेदिनीराय खंगार को हराकर चंदेरी किले को जीत लिया था।
बाबार के समय मुगलिया अत्याचार से जब चंदेरी की जनता त्राहि त्राहि कर रही थी उस समय एक जाट यौद्धा पूरणमल चंदेरी का उद्धारक बनके उभरा था। मुगल सेना और पूरणमल के मध्य 1529 ईस्वी में भयंकर युद्ध हुआ जिसमें मुगलो ने जाटों के आगे युद्ध भूमि में घुटने टेक दिए इस तरह अविजित मुगलों ने प्रथम बार मध्य भारत मे हार का स्वाद चखा था।
भारत भूमि के पुत्र पूरणमल जाट ने मुगलों की रक्त सरिता में स्नान कर, भारत माता की आत्मा को तृप्त किया था।
चंदेरी के किले पर चंद्रगुप्त के वंशज राजा पूरणमल जाट का अधिकार हो गया था। जाटों ने चंदेरी का चौमुखी विकास किया था। चंदेरी के दुर्ग को सुरक्षित अभेद किले के रूप में परिवर्तित करने के लिए किले में नवीन निर्माण किए गए थे। पूरणमल जाट ने मुगलों के सेनायनक (पठान) को जिस जगह काटा था आज वो खूनी दरवाजा कहलाता है। बाद में चुन चुनकर मुगल तुर्को को इस ही जगह (खूनी दरवाजे) पर मौत के घाट उतारा गया था। तब से इसी खुनी दरवाजे पर शत्रु के रक्त का अभिषेक किया जाता है।अर्थात शत्रुओ को खूनी दरवाजे पर मृत्यु दंड दिया जाता था।
दिल्ली के अफगान सुल्तान शेरशाह सूरी ने 1542 ईसवी के अंत मे चंदेरी पर आक्रमण किया था। बाबर के समय शेरशाह सूरी ने चंदेरी के 1528 ईस्वी के युद्ध मे एक सैनिक के रूप में भाग लिया था। शेरशाह ने सोचा कि पल भर में चंदेरी को जीत लेगा लेकिन भविष्य में शेरशाह का सामना उन जाट वीरों से होने वाला था जिन्होंने रण भूमि में वीरगति या विजय को अपना लक्ष्य बना रखा था। शीघ्र ही शेरशाह को पता चल गया कि उसका पाला सवा शेरों से पड़ गया है। चार महीने तक लाख प्रयत्न करने के बाद भी शेरशाह को युद्ध क्षेत्र में सिर्फ नाकामी हाथ लगी थी। रणक्षेत्र में हर बार विजयश्री का सेहरा जाट राजा पूरणमल के सिर पर ही बंधा था। जाटों ने अपनी युद्ध कौशलता वीरता,साहस के दम पर अफगानों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था जब युद्ध क्षेत्र में विजय की कोई भी आश शेष नही बची थी । तब अफगानी लोमड़ी शेरशाह ने छल कपट का सहारा लिया
शेरशाह ने अपना शांति दूत चंदेरी के राजा पूरणमल जाट के पास भेजा। दूत ने शेरशाह का संदेश राजा को सुनाते हुए बताया कि शेरशाह आपकी वीरता का मुरीद हो गया है अतः वो ऐसे वीर यौद्धा से युद्ध की जगह मित्रता (संधि) करना चाहता है। जाट राजा कुरान की सौगंध के साथ भेजे इस संदेश पर विश्वास करते हुए किले से बाहर आकर संधि वार्ता करने के लिए शेरशाह के कैम्प में आ गया था। लेकिन शेरशाह ने मित्रता की आड़ में निहत्थे राजा की पीठ में खंजर घोप कर उसकी हत्या कर दी जब यह खबर किले में पहुँची तो जाट महिलाओं और बच्चो को गुप्त रास्ते से सुरक्षित क्षेत्रों में भेज दिया गया था आज वो जाट लोग चंदेरी से आने के कारण चंदेरी(चंदेरिया/,चंदेलिया), गोत्र के जाट कहलाते हैं।
चंदेरी किले में शेष बचे सैनिकों और वीरांगनाओ ने कायर की तरह मरने के बजाए युद्ध भूमि में प्राणों का बलिदान देना अपना सनातन धर्म समझा इसके बाद भयंकर कत्ले आम हुआ था।एक और भारतीय राजा अफगानों की छल का शिकार हुआ था।इसी के साथ भारत के एक स्वर्णिम अध्याय का दुःखद अंत हुआ
History
Evidences compiled by Nainsi on the clans of the Jats and their original homes and their immigration there from different places in Merta in Nagaur are of Immense importance. It is one of the prominent immigrant clans that came to Merta. (See:The Role of Jats in the Economic Development of Marwar)
Distribution in Rajasthan
Locations in Jaipur city
Thakur Pacheswar ka Rasta,
Villages in Tonk district
Barol Village (2),Beejwar,Gundolab,Hanotya, Awda,Hindola,Naykon ka Basda,Pachewar,Pipalya,Pipalya ka basda,Sahalsagar (1),
Villages in Sikar district
Villages in Churu district
Sujangarh (1),
Villages in Nagaur district
Bemoth, Kasumbi, Shyampura Parbatsar,
Villages in Ajmer district
Distribution in Madhya Pradesh
Villages in Ratlam district
Villages in Ratlam with population of Chandoliya gotra are:
Distribution in Punjab
Villages in Patiala district
Chandi /,Chanderi population is 2,250 in Patiala district.[2]
Notable persons
External Links
References
- ↑ डॉ पेमाराम:राजस्थान के जाटों का इतिहास, 2010, पृ.300
- ↑ History and study of the Jats. B.S Dhillon. p.126
- ↑ Pitha Ram Guleria, Sujangarh Jat Samaj Nirdeshika, 2015, p.39
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