Druhyu

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Genealogy of Ila
Ancestry of Yayati

Druhyu, father of Maharaja Bhoja, was son of the Chandravanshi Jatvansh King Yayati.

Variants of name

Jat Gotras from Druhyu

  • Daral (दराल)- Daral Jats living in the outskirts of Delhi are Chandravanshi Jats descendants of Druhyu son of Yayati.[1]
  • Bhoj (भोज) or Bhoja is a gotra of Jats in India. This gotra gets its name from Maharaja Bhoj. The descendants of Maharaja Bhoj were known as Bhoj. [2]
  • Drehval - According to Bhim Singh Dahiya Druhyu: the famous tribe, fighting against Sudas (RV Vll/lg), may perhaps be the same as Drehval also written as Dhruv. [3]

Druhyu ancestry

According to James Todd[4] One great arm of the tree of Yayati remains unnoticed, that of Uru or Urvasu, written by others Turvasu. Uru was the father of a line of kings who founded several empires. Virupa, the eighth prince from Uru, had eight sons, two of whom are particularly mentioned as sending forth two grand shoots, Druhyu and Bhabru. From Druhyu a dynasty was established in the north. Aradwat, with his son Gandhara, is stated to have founded a State : Prachetas is said to have become king of Mlecchhades, or the barbarous regions. This line terminated with Dushyanta, the husband of the celebrated Sakuntala, father of Bharat, and who, labouring under the displeasure of some offended deity, is said by the Hindus to have been the cause of all the woes which subsequenty befell the race. The four grandsons of Dushyanta, Kalanjar, Keral, Pand, and Chaul, gave their names to countries.

Druhyu people

The Druhyu were a people of Ancient India. They are mentioned in the Rigveda,[5] often together with the Anu tribe. Some early scholars have placed them in the northwestern region. [6]

The Epic and the Puranas say that they are located in the "north" (that is, Gandhara), and are settled in Gandhara, Aratta and Setu. (Vishnu Purana IV.17) The Druhyus were driven out of the land of the seven rivers by Mandhata and their next king Gandhara settled in a north-western region which became known as Gandhāra. The sons of the later Druhyu king Pracetas too settle in the "northern" (udīcya) region (Bhagavata 9.23.15-16; Visnu 4.17.5; Vayu 99.11-12; Brahmanda 3.74.11-12 and Matsya 48.9.). More recently, scholars have theorised that the Druhyu could be ancestors of Zoroastrian, Iranian, Greek or European peoples, or more likely, the Celtic Druid class[7]. Particularly, as the Rg Veda describes this proto-Indo European tribe as migrating North [7]. Of particular note, vid in Druid comes from the same root as Veda which means knowledge in both cultures [8].

History

Ram Swarup Joon[9] writes about Draihayu, Drada, Dorewal : Draihau was the fourth son of Yayati. Their descendants are found in Jammu and Kashmir. In the Chandravanshi genealogical tables the Draihavu branch is not well known. To the North of Sialkot in the hilly regions are found people belonging to Daiyu, Drahaihayu, Dadraihayu, Sadhne and Drada, gotras. Most of them are now Muslims.

In the Mahabharata (Dronaparva) Drada (Darada) Kshatriyas are called the neighbors of Cheema Kshatriyas. These people took part in the Mahabharata.

Panini's Ashtadhyayi refers to Dradi Sindhu which means the River Sindhu which emerges from the country of Drada-s which indicates the area North of Kashmir. According to "Ptolemy" Dradas were the rulers of Afghanistan in the era of Mahabharat. In Drona Parva Shloka 17-58 it is mentioned that Lord Krishna and Arjun conquered the Dradas who were the rulers of Afghanistan and forced them to join their Rajasuya Yagya.

King Drupada said that Shaks, Palius and Dradas should be invited to join them in war. According to "Bhisham Parva", Dradas joined the Pandu's and fought well. The Dradas also took part in their Yagya (Sacrifice). A region adjoining Kashmir is called Dradis-Stan and a tribe in Kashmir is called Drada. In Punjab Sikh Jats belonging to this gotra are found in large numbers. Sadhan, Sajra, Sadhie and Sadhnana are branches of this gotra.

जाटों का शासन

दलीप सिंह अहलावत[10] ने लिखा है.... ययाति जम्बूद्वीप के सम्राट् थे। जम्बूद्वीप आज का एशिया समझो। यह मंगोलिया से सीरिया तक और साइबेरिया से भारतवर्ष शामिल करके था। इसके बीच के सब देश शामिल करके जम्बूद्वीप कहलाता था। कानपुर से तीन मील पर जाजपुर स्थान के किले का ध्वंसावशेष आज भी ‘ययाति के कोट’ नाम पर प्रसिद्ध है। राजस्थान में सांभर झील के पास एक ‘देवयानी’ नामक कुंवा है जिसमें शर्मिष्ठा ने वैरवश देवयानी को धकेल दिया था, जिसको ययाति ने बाहर निकाल लिया था[11]। इस प्रकार ययाति राज्य के चिह्न आज भी विद्यमान हैं।

महाराजा ययाति का पुत्र पुरु अपने पिता का सेवक व आज्ञाकारी था, इसी कारण ययाति ने पुरु को राज्य भार दिया। परन्तु शेष पुत्रों को भी राज्य से वंचित न रखा। वह बंटवारा इस प्रकार था -

1. यदु को दक्षिण का भाग (जिसमें हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरयाणा, राजस्थान, दिल्ली तथा इन प्रान्तों से लगा उत्तर प्रदेश, गुजरात एवं कच्छ हैं)।

2. तुर्वसु को पश्चिम का भाग (जिसमें आज पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, इराक, सऊदी अरब,यमन, इथियोपिया, केन्या, सूडान, मिश्र, लिबिया, अल्जीरिया, तुर्की, यूनान हैं)।

3. द्रुहयु को दक्षिण पूर्व का भाग दिया।

4. अनु को उत्तर का भाग (इसमें उत्तरदिग्वाची[12] सभी देश हैं) दिया। आज के हिमालय पर्वत से लेकर उत्तर में चीन, मंगोलिया, रूस, साइबेरिया, उत्तरी ध्रुव आदि सभी इस में हैं।

5. पुरु को सम्राट् पद पर अभिषेक कर, बड़े भाइयों को उसके अधीन रखकर ययाति वन में चला गया[13]। यदु से यादव क्षत्रिय उत्पन्न हुए। तुर्वसु की सन्तान यवन कहलाई। द्रुहयु के पुत्र भोज नाम से प्रसिद्ध हुए। अनु से म्लेच्छ जातियां उत्पन्न हुईं। पुरु से पौरव वंश चला[14]

जब हम जाटों की प्राचीन निवास भूमि का वर्णन पढते हैं तो कुभा (काबुल) और कृमि (कुर्रम) नदी उसकी पच्छिमी सीमायें, तिब्बत की पर्वतमाला पूर्वी सीमा, जगजार्टिस और अक्सस नदी


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-185


उत्तरी सीमा और नर्मदा नदी दक्षिणी सीमा बनाती है। वास्तव में यह देश उन आर्यों का है जो चन्द्रवंशी अथवा यदु, द्रुहयु, तुर्वसु, कुरु और पुरु कहलाते थे। भगवान् श्रीकृष्ण के सिद्धान्तों को इनमें से प्रायः सभी ने अपना लिया था। अतः समय अनुसार वे सब जाट कहलाने लग गये। इन सभी खानदानों की पुराणों ने स्पष्ट और अस्पष्ट निन्दा ही की है। या तो इन्होंने आरम्भ से ही ब्राह्मणों के बड़प्पन को स्वीकार नहीं किया था या बौद्ध-काल में ये प्रायः सभी बौद्ध हो गये थे। वाह्लीक,तक्षक, कुशान, शिव, मल्ल, क्षुद्रक (शुद्रक), नव आदि सभी खानदान जिनका महाभारत और बौद्धकाल में नाम आता है वे इन्हीं यदु, द्रुहयु, कुरु और पुरुओं के उत्तराधिकारी (शाखायें) हैं[15]

सम्राट् ययातिपुत्र यदु और यादवों के वंशज जाटों का इस भूमि पर लगभग एक अरब चौरानवें करोड़ वर्ष से शासन है। यदु के वंशज कुछ समय तो यदु के नाम से प्रसिद्ध रहे थे, किन्तु भाषा में ‘य’ को ‘ज’ बोले जाने के कारण जदु-जद्दू-जट्टू-जाट कहलाये। कुछ लोगों ने अपने को ‘यायात’ (ययातेः पुत्राः यायाताः) कहना आरम्भ किया जो ‘जाजात’ दो समानाक्षरों का पास ही में सन्निवेश हो तो एक नष्ट हो जाता है। अतः जात और फिर जाट हुआ। तीसरी शताब्दी में इन यायातों का जापान पर अधिकार था (विश्वकोश नागरी प्र० खं० पृ० 467)। ये ययाति के वंशधर भारत में आदि क्षत्रिय हैं जो आज जाट कहे जाते हैं। भारतीय व्याकरण के अभाव में शुद्धाशुद्ध पर विचार न था। अतः यदोः को यदो ही उच्चारण सुनकर संस्कृत में स्त्रीलिंग के कारण उसे यहुदी कहना आरम्भ किया, जो फिर बदलकर लोकमानस में यहूदी हो गया। यहूदी जन्म से होता है, कर्म से नहीं। यह सिद्धान्त भी भारतीय धारा का है। ईसा स्वयं यहूदी था। वर्त्तमान ईसाई मत यहूदी धर्म का नवीन संस्करण मात्र है। बाइबिल अध्ययन से यह स्पष्ट है कि वह भारतीय संसकारों का अधूरा अनुवाद मात्र है।

अब यह सिद्ध हो गया कि जर्मनी, इंग्लैंण्ड, स्काटलैण्ड, नार्वे, स्वीडन, रूस, चेकोस्लोवाकिया आदि अर्थात् पूरा यूरोप और एशिया के मनुष्य ययाति के पौत्रों का परिवार है। जम्बूद्वीप, जो आज एशिया कहा जाता है, इसके शासक जाट थे[16]

References

  1. Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudee, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihasa (The modern history of Jats), Agra 1998 p.255
  2. Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudi, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihasa (The modern history of Jats), Agra 1998 (Page 274)
  3. Bhim Singh Dahiya: "Aryan Tribes and the Rig Veda
  4. James Todd Annals/Chapter 4 Foundations of States and Cities by the different tribes, p.52
  5. e.g. RV 1.108.8; 7.18; 8.10.5; 6.46.8
  6. Macdonell-Keith, Vedic Index 1912, vol. I p. 395
  7. 7.0 7.1 Sanskrit in English
  8. Our Druid Cousins
  9. Ram Swarup Joon: History of the Jats/Chapter V,p. 81-82
  10. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III, p.185-186
  11. महाभारत आदिपर्व 78वां अध्याय, श्लोक 1-24.
  12. ये वे देश हैं जो पाण्डव दिग्विजय में अर्जुन ने उत्तर दिशा के सभी देशों को जीत लिया था। इनका पूर्ण वर्णन महाभारत सभापर्व अध्याय 26-28 में देखो।
  13. जाट इतिहास पृ० 14-15 लेखक श्रीनिवासाचार्य महाराज ।
  14. हाभारत आदिपर्व 85वां अध्याय श्लोक 34-35, इन पांच भाइयों की सन्तान शुद्ध क्षत्रिय आर्य थी जिनसे अनेक जाट गोत्र प्रचलित हुए । (लेखक)
  15. जाट इतिहास (उत्पत्ति और गौरव खण्ड) पृ० 146-47 ले० ठा० देशराज।
  16. जाट इतिहास पृ० 14-18 लेखक श्रीनिवासाचार्य महाराज ।

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