Gurukul Jhajjar
The Gurukul Jhajjar is an Institute founded on the outskirts of Jhajjar town in Haryana by by Mahashaya Bishembar Das, Swami Parmanand and Swami Brahmanand on 16 May, 1915 (vikrama Samvat 1972). Interestingly, this gurukul was not affiliated with gurukul Kangri, but was independent. Set up during the first world war, they emphasised guru-bhakti (reverence for the teacher) and the virtues of manliness through exercises, particularly in the akharas - ideals which formed a part of pre-existing religious culture and were also central to the Arya Samaj.
What Gurukul means?
A Gurukul (Guru refers to "teacher" or "master"; Kul refers to his domain) is a type of ancient Hindu school in India that is residential in nature with the shishyas or students and the guru or teacher living in close proximity, many a time within the same house. The Gurukul is the place where the students resided together as equals, irrespective of their social standing. The students learns from the guru and also helps the guru in his day-to-day life, including the carrying out of mundane chores such as washing clothes, cooking, etc.
The guru-shishya parampara is a hallowed tradition in Hinduism, and has also carried over into Sikhism. At the end of a shishya's study, the guru asks for a "guru dakshina," since a guru does not take fees. A guru dakshina is the final offering from a student to the guru before leaving the ashram. The teacher may ask something or nothing at all.
Features of Gurukul
1) Education through "ARSH VIDHI" endrorsed by Maharshi Dayanad.
2) Free of Cost Education.
3) Special Efforts are made to prepare Ideal Bramchari ( Pupil).
4) Bramcharies are kept under the VAN PARSTHI , SANYASI Guru's Guidence.
5) Guru ( teacher) rules the roost.
6) Bramcharies ( Pupils) work one hour per day as Shram-Dan.
Centenary celebrations
On 12-13 March 2016, Gurukul Jhajjar celebrated centenary of its establishment.
गुरुकुल झज्जर
स्वामी ओमानन्द सरस्वती ने झज्जर-रेवाड़ी रोड पर एक ऐसे गुरुकुल का संचालन किया कि आज झज्जर क्षेत्र में यह केन्द्र अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त शिक्षा संस्थान है । झज्जर गुरुकुल की स्थापना 16 मई 1915 में पं. विश्वम्भर दास झज्जर निवासी ने की । इसी दिन महात्मा मुंशीराम जी (श्रद्धानन्द) ने गुरुकुल की आधारशिला रखी । 138 बीघा जमीन पं. विश्वम्भर दास ने दान स्वरूप दी । गुरुकुल झज्जर का 20 वर्षों तक स्वामी परमानन्द जी संचालन किया । इस काल में गुरुकुल झज्जर ने बहुत उतार-चढ़ाव देखे ।
अंततः 22 सितंबर 1942 को स्वामी ब्रह्मानन्द जी, जगदेव सिंह सिद्धान्ती और श्री छोटूराम के आग्रह पर स्वामी भगवान देव जी ने गुरुकुल झज्जर का कार्यभार संभाला । उस समय गुरुकुल में दो-चार छोटे ब्रह्मचारी, दो-तीन बूढ़े कर्मचारी थे । गोशाला में दो बैल और तीर-चार गायें थीं । गोशाला में दो-तीन छप्पर पड़े थे । एक बड़ा हाल कमरा व उसके साथ लगते दो छोटे कमरे थे, उनका शहतीर भी कुछ लोग उतार कर ले गये थे । खारे पानी का एक कुआं होता था । उसी में स्नान करना पड़ता था । बस यही सम्पदा मिली थी गुरुकुल झज्जर में आचार्य भगवान देव जी को, लेकिन गुरुकुल संभालने के बाद फिर क्या था, जैसे सोने का पारखी मिल गया हो और गुरुकुल झज्जर का प्रगति चक्र इतना तीव्र चला कि विलम्ब से मनाई गई 20 से 22 फरवरी 1947 के रजत जयन्ती समारोह में गोशाला की आधारशिला डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने रखी जो बाद में भारत के राष्ट्रपति बने ।
आज गुरुकुल झज्जर में महाविद्यालय, पुरातत्व संग्रहालय, विशाल पुस्तकालय, औषधालय और गोशाला, व्यायामशाला, यज्ञशाला, उद्यान, भोजनालय, छात्रावास, अतिथिशाला, वानप्रस्थी सन्यासी कुटी समूह आदि के विशाल भवन खड़े हैं । महाविद्यालय में महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक द्वारा मान्यता प्राप्त महर्षि दयानन्द द्वारा प्रतिपादित आर्य पाठ्य विधि का पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है । पुरातत्व संग्रहालय में विपुल ऐतिहासिक पुरा अवशेष संग्रहीत हैं । औषधालय में असाध्य रोगों के निदान के लिए औषधियों का निरन्तर निर्माण चल रहा है । आयुर्वैदिक पद्धति से चिकित्सा कार्य होता है । अनेक औषधियों का आविष्कार करने की ख्याति प्राप्त की जिनमें संजीवनी तेल, बदलामर्त, स्वप्नदोषामृत, स्त्रीरोगामृत, अर्ष रोगामृत, सर्पदंशामृत और नेत्र ज्योति सुरमा जन-जन में लोकप्रिय हैं । कैंसर जैसे असाध्य रोगों का सफल इलाज गुरुकुल झज्जर में होता है । गुरुकुल झज्जर की हवन सामग्री रूहानी सुगन्धों से भरी होती है ।
अपने जीवन के कठोरतम, संघर्षमय क्षण, जेलों के संस्मरण, विदेशयात्रायें, संग्रहालय की स्थापना और उसमें एकत्रित दुर्लभ वस्तुओं का विवरण, शरीर पर घावों के निशान, हरयाणा बनने की कहानी में झज्जर का योगदान, आमरण अनशन, हिन्दी आंदोलन, अस्त्र-शस्त्रों का बीमा, हिन्दू-मुस्लिम मारकाट के संस्मरण, महाभारत काल के अस्त्र-शस्त्र, मुस्लिम भेष धारण करके लाहौर जाने का संस्मरण, 1947 में 1000 कारतूसों का प्रबन्ध, दिव्य अस्त्रों का जखीरा, हाथी दांत पर कशीदाकशी से शकुंतला की आकृति, चन्दन की जड़ में सर्प, चित्तौड़गढ़ का विजय स्तंभ, बादाम में हनुमान, झज्जर के नवाब फारुख्शयार का कलमदान और मोहर, नवाबों की चौपड़, गोटियां और पासे, माप-तोल के बाट और जरीब । गुरुकुल की इस विरासत और धरोहर को देखकर बस यही कहा जा सकता है कि :
झज्जर तेरे आंगन में इस स्थान को सलाम ।
विरासत में दे गया एक अहतराम को सलाम ।
List of Prominent Jats associated with Gurukul Jhajjar
- Chaudhary Kumbha Ram Arya
- Chaudhary Priya Vrat
- Chaudhary Kabool Singh
- Chaudhary Hira Singh
- Dharmpal Singh Dudee
- Dr. Sahib Singh Verma
- Dr. Yoga Nand Shastri
- Jagdev Singh Sidhanti
- Naresh Kadyan
- Prof. Sher Singh
- Raghuvir Singh Shastri
- Sir Chhotu Ram
- Sompal Singh Shastri
- Swami Indravesh
- Swami Omanand Sarswati
Website of Gurukul Jhajjar
Monthly magazine of Gurukul Jhajjar
Gurukul Jhajjar publishes its regular magazine Sudharak (सुधारक) in Hindi. Some latest versions of this publication can be read online (also downloads in PDF format) at the following link - http://www.thearyasamaj.org/sudharak
Photo Gallery
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आचार्य विजयपाल, गुरुकुल झज्जर
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आचार्य विरजानन्द दैवकरणि, निदेशक, पुरातत्त्व संग्रहालय, गुरुकुल झज्जर
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हरयाणा पुरातत्त्व संग्रहालय का भवन
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External Links
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