Hasanpur Hodal
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Hasanpur (हसनपुर) is a village under Hodal Tehsil in Palwal district of Haryana.
Location
History
हसनपुर युद्ध (14-15 नवम्बर, 1720 ई०) में चूड़ामन का वजीर सैय्यद अब्दुल्ला खां का पक्ष लेना
वजीर सैय्यद अदुल्ला खां को सराय छठ (आगरा से उत्तर-पश्चिम 48 मील) पर 9 अक्तूबर की अर्द्धरात्रि को अपने भाई सैय्यद हुसैन अली खां की हत्या का समाचार मिला और वह दिल्ली की ओर बढ़ा। उसने नवम्बर 12 तक 90 सहस्र सवार पैदल सेना और 400 जिन्सी तथा भारी तोपों का एक तोपखाना तैयार कर लिया था। इसके अलावा राजा मोहकमसिंह, चूड़ामन तथा समीपस्थ जाट, राजपूत जमींदारों की जमात भी उसके पास पहुंच गई थी। इस विशाल सेना के साथ वजीर नवम्बर के दूसरे सप्ताह में बिलोचपुर (परगना पलवल) में पहुंच गया। सम्राट् मुहम्मदशाह ने भी 12 नवम्बर के दिन बिलोचपुर के दक्षिण में छः मील हसनपुर के पास युद्ध छावनी डाली। वजीर ने ठाकुर चूड़ामन को हसनपुर युद्ध में सहायता के लिए कई पत्र लिखे। ठाकुर चूड़ामन हसनपुर पहुंचने तक पाखण्डी की तरह सम्राट् के लश्कर में शामिल रहा। वजीर के सन्देश अनुसार चूड़ामन 13 नवम्बर को बादशाही बारूदखाने को उड़ाने में असफल रहा किन्तु अपने प्रथम धावा में सामान से लदे तीन-चार हाथी तथा ऊंट गाड़ियों के विशाल झुण्ड को उड़ाकर लाने में सफल रहा।
इसके बाद वह अपने भाई-बन्धु, भतीजे, बदनसिंह, रूपसिंह आदि की कमान में सज्जित दस सहस्र सेना के साथ वजीर की छावनी में उपस्थित हुआ। उसने शाही लश्कर से उड़ाये हाथी, बैल व ऊंट गाड़ियां वजीर को भेंटस्वरूप प्रस्तुत कीं लेकिन वजीर ने इनको सम्मान सहित ठाकुर चूड़ामन को पुरस्कार के रूप में लौटा दिया।
बुधवार, 14 नवम्बर 1720 ई० को दोनो सेनायें भिड़ गईं। जब सेनायें भयंकर टक्कर ले रही थीं, उस समय चूड़ामन ने अपने जाट सैनिकों के साथ बादशाही डेरा तथा सैनिक सामान पर पीछे
- 1. डा० मथुरालाल शर्मा (कोटा राज्य का इतिहास, 1/136-7) से स्पष्ट है कि प्रत्येक परगने में चौधरी, कानूनगो और एक ठाकुर - ये तीन अफसर रहते थे। चौधरी, कानूनगो लगान वसूल करने वाले अधिकारी थे और ठाकुर परगने का शासन प्रबन्ध और शान्ति सुरक्षा के लिए जिम्मेदार था।
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-652
से धावा कर दिया और वहां भयंकर उत्पात तथा लूटमार की। चूड़ामन ने इस युद्ध में अत्यधिक धृष्टता दिखलाई और शाही छावनी पर बार-बार आक्रमण करके लूटमार के करारे हाथ दिखलाये। इससे शाही सैनिक तथा व्यापारी रणक्षेत्र को छोड़कर भागने लगे जिनको रास्ते में जाटों तथा मेवातियों ने लूट लिया। चूड़ामन ने शाही गोला बारूद से लदे हजारों खच्चर और बैलगाड़ियों और सम्राट् की व्यक्तिगत शाही सम्पत्ति, अमूल्य सामान से लदे ऊंटों के झुण्ड पर अपना अधिकार कर लिया। चूड़ामन की इस घुसपैठ से वजीर ने लाभ उठाया और वह शाही सेना के मध्य भाग की ओर बढ़ा। अन्त में वजीर सैय्यद अब्दुल्ला खां घायल हो गया और पकड़ा गया। सन् 1722 ई० में उसे जहर देकर मार दिया।
जब वजीर की सेना की हार के चिन्ह स्पष्ट दिखाई देने लगे तब चूड़ामन ने वजीर की छावनी पर धावा बोल दिया। जाट सैनिकों ने शाही सैनिकों के साथ मिलकर वजीर की छावनी को खूब लूटा। इस युद्ध में ठाकुर चूड़ामन को अमूल्य सामान, एक हजार खच्चर तथा ऊंट गाड़ियों पर लदा माल, शाही सदर के कागजात तथा बीस लाख मोहरें भी मिलीं। इस युद्ध में सम्राट् मुहम्मदशाह को विजय प्राप्त हुई।
हसनपुर के युद्ध के बाद सम्राट् के प्रतिशोध को अवश्यम्भावी जानकर चूड़ामन अब खुले तौर पर स्वतंत्र ‘राजा’ की तरह आचरण करने लगा। सन् 1722 ई० में उसने सआदत खां के विरुद्ध मारवाड़ के राजा अजीतसिंह राठौर और बाद में इलाहाबाद के सूबेदार मुहम्मद खां बंगश के सेनापति दिलेर खां के विरुद्ध बुन्देलों की सहायतार्थ सेना भेजी। आगरा के सूबेदार सआदत खां के निर्देश पर उसका नायब नीलकण्ठ नागर जाटों को दण्डित करने आया। 16 सितम्बर, 1721 ई० को फतेहपुर सीकरी के निकट युद्ध में चूड़ामन के पुत्र मोहकमसिंह के हाथों शाही सेना पराजित हुई और नीलकण्ठ नागर मारा गया। चूड़ामन ने जयसिंह कछवाहा के विरुद्ध अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए मारवाड़ के राजा अजीतसिंह से मित्रता स्थापित की।[1]
Jat Gotras
Population
Notable Persons
External Links
References
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter VIII (Page 652-653)
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