Hiranyapura
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Hiraṇyapura (हिरण्यपुर) refers to the name of a City mentioned in the Mahābhārata (cf. III.170.11).
Origin
Variants
- Hiranyapura हिरण्यपुर (AS, p.1023)
- Hiraṇyapura (हिरण्यपुर)
History
In Mahabharata
Hiranyapura (हिरण्यपुर) City is mentioned in Mahabharata (III.170.11)
Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 170 describes the destruction of Hiranyapura, the city inhabited by Pulamas Kalakas and the Kalakeyas, Arjuna's terrible encounter with the Nivatakavachas dwelling in Hiranyaparva. Yaksha, Asura, Guhyaka, Nairrita......The mighty unearthly city, moving at will, and having the effulgence of fire or the sun. And that city contained various trees composed of gems, and sweet-voiced feathered ones. And furnished with four gates, and gate-ways, and towers, that impregnable (city) was inhabited by the Paulamas and Kalakas. And it was made of all sorts of jewels and was unearthly, and of wonderful appearance. And it was covered with trees of all kinds of gems, bearing fruits and flowers. And it contained exceedingly beautiful unearthly birds. And it always swarmed throughout with cheerful Asuras, wearing garlands, and bearing in their hands darts, two edged swords, maces, bows, and clubs. And, O king, on seeing this wonderful city of the Daityas, I asked Matali saying, 'What is this that looketh so wonderful?' Thereat, Matali replied, 'Once on a time a Daitya's daughter, named Pulama and a mighty female of the Asura order, Kalaka by name, practised severe austerities for a thousand celestial years. And at the end of their austerities, the self-create conferred on them boons. And, O king of kings, they received these boons,--that their offspring might never suffer misfortune; that they might be incapable of being destroyed even by the gods, the Rakshasas and the Pannagas; and that they might obtain a highly effulgent and surpassingly fair aerial city, furnished with all manner of gems and invincible even by the celestials, the Maharshis, the Yakshas, the Gandharvas, the Pannagas, the Asuras [p. 348]: and the Rakshasas. O best of the Bharatas, this is that unearthly aerial city devoid of the celestials, which is moving about, having been created for the Kalakeyas, by Brahma himself. And this city is furnished with all desirable objects, and is unknown of grief or disease. And, O hero, celebrated under the name of Hiranyapura, this mighty city is inhabited by the Paulamas and the Kalakanjas; and it is also guarded by those mighty Asuras. And, O king, unslayed by any of the gods, there they dwell cheerfully, free from anxiety and having all their desires gratified, O foremost of kings. Formerly, Brahma had destined destruction at the hands of mortals. Do thou, O Partha, in fight, compass with that weapon--the thunder-bolt--the destruction of the mighty and irrepressible Kalakhanjas.'
Various definitions
Hiraṇyapura (हिरण्यपुर).—A city of Rasātala, the residence of Nīvātakavacas;1 residence of fourteen sons of Mārīca (Dānavas);2 the residence of the Paulomas and the Kālakeyas;3 residence of the sons and grandsons, etc. of the two daughters of Vaiśvanara.4
Source: Wisdom Library: Kathāsaritsāgara
Hiraṇyapura (हिरण्यपुर) is the name of an ancient city situated in Kaśmīra, in the Himālayas, according to the Kathāsaritsāgara, chapter 65. Accordingly, “... there is in the lap of the Himālayas a country called Kaśmīra, which is the very crest-jewel of the earth, the home of sciences and virtue. In it there was a town named Hiraṇyapura, and there reigned in it a king named Kanakākṣa”.
Source: archive.org: Shiva Purana (history)
Hiraṇyapura (हिरण्यपुर) is the name of a city mentioned as the home of the Kālakhañjas, according to the Śivapurāṇa verse 5.32.32.—This city of the Paulomas and Kālakhañjas (or Kālakeyas) as mentioned in the Mahābhārata (Vana P. CLXXIII.13) and the Kathāsaritsāgara (XLV. 135) stood on the sea-route leading to Pātāla. Its exact locus remains still unidentified.
Source: archive.org: Personal and geographical names in the Gupta inscriptions
Hiraṇyapura (हिरण्यपुर) is a place name ending in pura mentioned in the Gupta inscriptions. Hiraṇyapura is also known as Hindoun or Herdoun in the way that pura is changed to own.
Source: Early History Of The Deccan Pts.1 To 6: Principal Administrative Divisions from the Rise of the Sātavāhanas
Hiraṇyapura (हिरण्यपुर) refers to Hiraṇyapura-bhoga, where bhoga refers to a division of a rājya (administrative division).—Hiraṇyapura reminds one of Kāñchanakāpurī of the Purāṇas. It has been identified with Songāon near Chāndūr, or with Hirpur near Sāgar.
Reference - https://www.wisdomlib.org/definition/hiranyapura
हिरण्यपुर
हिरण्यपुर (AS, p.1023) : विजयेन्द्र कुमार माथुर [1] ने लेख किया है ....महाभारत वनपर्व 173 में दानवों के हिरण्यपुर नामक नगर का उल्लेख है। यहाँ कालकेय तथा पौलोम नामक दानवों का निवास माना गया है- ‘हिरण्यपुरमित्येव ख्यायते नगरं महत्, रक्षितं कालकेयैश्च पौलोमैश्च महासुरैः’। वनपर्व 173,13
वनपर्व 173, 26-27 में ही आगे में कहा गया है कि सूर्य के समान प्रकाशित होने वाला दैत्यों का आकाशचारी नगर उनकी इच्छा के अनुसार चलने वाला था और दैत्य लोग वरदान के प्रभाव से उसे सुख पूर्वक आकाश में धारण करते थे- ‘तत् पुरं खचरं दिव्यं कामगं सूर्यसप्रभम् दैतेयैर्वदानेन धार्यतेस्म यथासुखम्’। यह दिव्य नगर कभी पृथ्वी पर आता तो कभी पाताल में चला जाता, कभी ऊपर उड़ता, कभी तिरछी दिशाओं मे चलता और कभी [p.1024]:शीघ्र ही जल में डूब जाता था’- ‘अन्तर्भूमौ निपतति पुनरूर्ध्व प्रतिष्ठते, पुनस्तिर्यक् प्रयात्याशु पुनरप्सु निमज्जति’।
यहाँ के निवासी दानवों का वध अर्जुन ने किया था। महाभारत के अनुसार यह नगर समुद्र के पार स्थित था। पाताल देश के निवातकवच नामक दैत्यों को हराकर लौटते समय अर्जुन यहाँ आये थे। (वनपर्व 173.)
हिरण्यपुर (उद्योग 100, 1-2-3) का उल्लेख महाभारत में आगे में इस प्रकार है, ‘हिरण्यपुरमित्येत ख्यातं पुरवरं महत्, दैत्यानां दानावनां च मायाशतविचारिणाम्, अनल्पेन प्रयत्नेन निर्मितं विश्वकर्मणा, मयेन मनसा सृष्टं पातालतलमाश्रितम्। अत्र मायासहस्त्राणि विकुर्वाणा महोजसः, दानवा निवसन्तिरूम शूरा दत्तवराः पुरा’।
इसी प्रसंग (उद्योग 100, 9-10-11-12-13-14-15) में हिरण्यपुर का विस्तार से वर्णन है- ‘पश्य वेश्मानि रौकमाणि मातले राजतानि च, कर्मणा विधियुक्तेन युक्तान्युपगतानि च। वैदूयं मणिचित्राणि प्रवालरुचिराणि च, अर्कस्फटिकशुभ्राणि वज्रसारोज्ज्वलानिच। पार्थिवानीव चाभान्ति पद्मरागमयानि च, शैलानीव च दृश्यन्ते दारवाणीव चाप्युता। सूर्यरूपाणि चाभान्ति दीप्ताग्निसद्दशानि च, मणिजालविचित्राणि प्रांशूनि निबिडानिच। नैतानि शक्यं निर्देष्टुं रूपतोद्रव्यतस्तथा, गुणतश्चैव सिद्धानि प्रमाणगुणवन्ति च। आकीडन् पश्यदैत्यानांतथैव शयनान्युत। रत्नवन्ति महार्हाणि भाजनाम्यासनानिच। जलदाभांस्तथाशैलांस्तोयप्रस्त्रवणानि च कामपुष्पफलांश्चापि पादपान् कामचारिणः’।
इस श्लोक (उद्योग 1-2-3) से सूचित होता है कि यह नगर मयदानव द्वारा निर्मित किया गया था। यह सम्भव है कि हिरण्यपुर उत्तरी अमेरिका में स्थित वर्तमान मैक्सिको (Mexico) की प्राचीन माया जाति का कोई नगर रहा हो। दो तथ्य यहाँ विशेष रूप से विचारणीय है- हिरण्यपुर को पाताल देश में स्थित बताया गया है। जो अमेरिका ही जान पड़ता है। क्योंकि पृथ्वी पर अमेरिका भारत के सर्वथा ही नीचे या दूसरी ओर (पश्चिमी गोलार्द्ध) में है। दूसरी बात यह कि हिरण्यपुर को मय दानव द्वारा निर्मित बताया गया है और यहाँ के निवासियों का सहस्त्रों मायाओं (मायासहस्त्राणि) के जानने वाले लोंगो के रूप में वर्णन है। यह बात विचारणीय है कि मैक्सिको की प्रचीन जाति जिसका नाम ‘माया’ था, तथा महाभारत मे कथित मयदानव के बसाए हुए नगर में रहने वाले तथा अनेक प्रकार की माया जानने वाले लोंगों मे परस्पर बहुत कुछ साम्य दिखाई पड़ता है।
इस प्रसंग में महाभारत में माया शब्द का प्रयोग बहुत ही सारगर्भित जान पड़ता है। महाभारत में जो वर्णन हिरण्यपुर के वैभव-विलास का है वह भी प्राचीन मेक्सिको की माया सभ्यता के अनुरूप ही है। ऊपर कहा गया है [p1025]:कि अर्जुन ने इस देश में जाकर यहाँ के दानवों को पराजित किया था। भारतीयों का इस देश से सम्बंध इस बात से भी प्रकट होता है कि मानव शास्त्र के अनुसार मेक्सिको के प्राचीन निवासियों की जाति, उनकी रूपाकृति, उनके कितने ही धार्मिक रीति-रिवाज (जैसे राम-सीता का उत्सव) तथा उनकी भाषा के अनेक शब्द भारतीय जान पड़ते हैं। कुछ विद्वानों का तो यह निश्चित मत है कि माया लोग भारत से ही आकर मेक्सिको में बसे थे।
External links
References
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.1023-1025