Jadhang
Jadhang (जादंग) is a small hilly village in Uttarkashi District, Uttarakhand, and claimed by Zanda County, Ngari Prefecture, Tibet, China.
A tributary of the Jat Ganga, itself an important tributary of the Bhagirathi River, flows through this place.
Mana Pass and some of the nearby villages are Tirpani, Nelang and Pulam Sumda, which all lie in the valley of the Jadh Ganga.[1]
Variants
Location
Some of the nearby villages are Nelang,Sang and Pulam Sumda, which all lie in the valley of the Jadh Ganga. The valley of the Jadh Ganga is claimed by China and virtually controlled by India.
Jat Gotras
Population
Nelang and Jadhang villages are inhabited by the Char Bhutia tribe who practice Buddhism. During the 1962 Sino-Indian War, India evacuated these villages.
History
The villagers of Nelong-Jadhang villages situated on Indo-China border have a twinge of eviction during Indo-China War of 1962. The elders of the border area say that the Indo-China war went on from October 20 to November 21 in 1962. The next year, when they started going to their villages, the government stopped them. Their Nelong and Jadhang villages were handed over to the army, declaring a threat from China. The villagers of Nelong-Jadhang used to migrate to the traditional pasture camps of Dunda, Tehri, Mussoorie, Rishikesh, and Dehradun with their flocks. The villagers returned from these villages to their winter camps in the month of September before Diwali in 1962. The security of this border was dependent on the police and the Special Task Force. Later ITBP and Army were deployed here.
75-year-old Sevakram Bhandari, a resident of Border Nelang village, chairman of Jad Bhotia Janakalyan Samiti, Narayan Singh Negi, 73, president of Frontier Sheep Palak Sangh and Nagendra Singh, 73, of Harshil, recall the old days. Both Nelong and Jadhang villages were inhabited on the border before the invasion. The villagers used to cultivate Kuttu, Fabra, Potato, and Barley and go to the border of Tibet to feed the flocks. They used to have raw encroachments made of clay and stone at places like Sumla, Mandi, etc. Sumla, Mandi, as well as Tibetan traders, used to come to Bagori near Harshil. Tibetan traders used to take grains and pulses, jaggery, etc. from here instead of sheep, goat, cow, coral, gold, ghee, wool, salt, etc.
The elders of Nelang and Jadung village tell that a large number of Tibetan refugees entered India in the year 1962 via Uttarkashi. A large number of these refugees reached Nelong through the passes of Teesuncula, Muningla, Thagla-1 and Thagla-2. Due to prolonged trade and communication with them, the local people had no problem. Thakur Hukam Singh was posted at the check post in Nelong. His wife was from Tibet and he himself knew the Tibetan language. After informing the local administration, they stopped these refugees in Harshil. After this, they were sent to Rajpur (Dehradun) and Dharamshala (Himachal Pradesh) after staying in Maneri for a few days.
इतिहास
चीन सीमा से लगे गांवों नेलांग-जादूंग गांव के ग्रामीणों के दिलों में बेदखली की टीस है। उन्हें आज तक मुआवजे का इंतजार है। सीमांत क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि 1962 में 20 अक्तूबर से 21 नवंबर तक भारत-चीन युद्ध चला। अगले साल जब वे अपने गांव जाने लगे तो सरकार ने उन्हें रोक दिया। चीन से खतरा बताते हुए उनके नेलांग और जादूंग गांव सेना के सुपुर्द कर दिए गए। उनके मुताबिक नेलांग-जादूंग के ग्रामीण अपनी भेड़ बकरियों के साथ डुंडा, टिहरी, मसूरी, ऋषिकेश और देहरादून के परंपरागत चरागाह वाले डेरों में पलायन कर जाते थे।
1962 में दीपावली से पहले सितंबर माह में इन गांवों से ग्रामीण अपने शीतकालीन डेरों की ओर लौटे थे। उस वक्त इस बॉर्डर की सुरक्षा पुलिस और स्पेशल टास्क फोर्स के भरोसे थी। बाद में यहां आईटीबीपी और सेना को तैनात कर दिया गया।
तिब्बत के साथ होता था व्यापार: जाड भोटिया जनकल्याण समिति के अध्यक्ष सीमावर्ती नेलांग गांव निवासी 75 वर्षीय सेवकराम भंडारी, सीमांत भेड़ पालक संघ के अध्यक्ष 73 वर्षीय नारायण सिंह नेगी और हर्षिल के 73 वर्षीय नागेंद्र सिंह पुराने दिनों को याद करते हैं। वे बताते हैं कि 1962 में चीनी आक्रमण से पहले सीमा पर नेलांग और जादूंग दोनों गांव आबाद थे। यहां ग्रामीण कुट्टू, फाबरा, आलू और जौ की खेती करते थे।
भेड़-बकरियां चराने के लिए तिब्बत की सीमा तक जाते थे। सुमला, मंडी आदि स्थानों पर उनके मिट्टी-पत्थर से बने कच्चे डेरे हुआ करते थे। सुमला, मंडी के साथ ही तिब्बत के व्यापारी हर्षिल के पास बगोरी तक आते थे। तिब्बती व्यापारी भेड़-बकरी, गाय, मूंगा, सोना, घी, ऊन, नमक आदि के बदले यहां से जौ, कुट्टू आदि अनाज एवं दालें, गुड़ आदि सामान ले जाते थे।
उत्तरकाशी होते हुए पहुंचे थे तिब्बती शरणार्थी: नेलांग और जादूंग गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि वर्ष 1962 में उत्तरकाशी के रास्ते बड़ी संख्या में तिब्बती शरणार्थियों ने भारत में प्रवेश किया था। टीसांचुकला, मुनिंगला, थागला-1 एवं थागला-2 दर्रों से होते हुए बड़ी संख्या में यह शरणार्थी नेलांग पहुंचे थे। इनके साथ लंबे समय तक व्यापार और संवाद के कारण स्थानीय लोगों को कोई दिक्कत नहीं हुई।
नेलांग में चेक पोस्ट पर ठाकुर हुकम सिंह तैनात थे। उनकी पत्नी तिब्बत की थी और वह स्वयं भी तिब्बती भाषा जानते थे। उन्होंने स्थानीय प्रशासन को इसकी सूचना देकर इन शरणार्थियों को हर्षिल में रुकवाया। इसके बाद इन्हें कुछ दिनों तक मनेरी में ठहराने के बाद राजपुर (देहरादून) और धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) भेज दिया गया।
Notable persons
References
Back to Jat Villages