Champanagari

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(Redirected from Kalachampa)
Author: Laxman Burdak IFS (R)

Champanagari (चम्पानगरी) was an ancient city of Charmanvata (चर्मन्वत) people settled on the banks of Chambal River (चर्मण्वती) .[1] Probably these Charman (चर्मन्) people migrated to Champa Vietnam and founded Indian colonies there.

Variants

History

कालचंपा

विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...कालचंपा (AS, p.177) का नाम जातककथाओं में चम्पानगरी कहा गया है. (देखें:चंपा)

इतिहास

ठाकुर देशराज[3] ने मालवा के इतिहास में चर्मन् लोगों के बसने का उल्लेख किया है...ठाकुर देशराज लिखते हैं कि इस प्रदेश का नाम मालवा हमारे मत से तो मल्ल लोगों के कारण पड़ा है। मल्ल गण-तन्त्री थे और वे महाभारत तथा बौद्ध-काल में प्रसिद्ध रहे हैं। ये मल्ल ही आगे चलकर, सिकन्दर के समय में, मल्लोई के नाम से प्रसिद्ध थे। इस समय इनका अस्तित्व ब्राह्मण और जाटों में पाया जाता है। ‘कात्यायन’ ने शब्दों के जातिवाची रूप बनाने के जो नियम दिए हैं, उनके अनुसार ब्राह्मणों में से मालवी और क्षत्रियों (जाटों) में माली कहलाते हैं ये दोनों शब्द मालव शब्द से बने हैं। मल्ल लोग विदेहों के पड़ौसी थे। इधर कालान्तर में आये होंगे। पहले यह देश अवन्ति के नाम से प्रसिद्ध था। राजा विक्रमादित्य इसी देश में पैदा हुए थे। मालवा समृद्धिशाली और उपजाऊ होने के लिए प्रसिद्ध है। पंजाब और सिन्ध की भांति जाटों की निवास भूमि होने का इसे सौभाग्य प्राप्त है। जाटों का इस धन-धान्य के सम्पन्न भूमि पर राज्य ही नहीं, किन्तु साम्राज्य रहा है। खेद इतना है कि उनके राज्य और साम्राज्य का पूरा हाल नहीं मिलता। अब तक जो सामग्री प्राप्त हुई है, वह गौरवपूर्ण तो अवश्य है, किन्तु पर्याप्त नहीं है।

ईसा से चार शताब्दी पूर्व का इतिहास अंधकार में है और जो मिलता भी है, वह क्रमबद्ध नहीं। महाभारत काल में उज्जैन में बिन्दु और अनुबिन्दु नाम से राजा राज करते थे। उनका राज्य द्वैराज्य-प्रणाली पर चलता था। वे अवश्य ही दो जातियों की ओर से चुने हुए होंगे। इस तरह उनका राज्य ज्ञाति-राज्य था। वर्तमान में जिस देश को मालवा कहते हैं, उसमें दशार्ण, दशार्ह, मालवत्स्य, कुकर, कुन्ति, भोज, कुन्तल और चर्मन् आदि अनेक जाति-समूह रहते थे। धारानगर के निकटवर्ती प्रदेश में भोज और मन्दसौर के आसपास दशार्ण और दशार्ह लोगों का राज्य था। आज के मन्दसौर का पूर्व नाम दशपुर अथवा दसौर था। चम्बल के किनारे पर चम्पानगरी में चर्मन्वत लोगों का राज था। भारत के राष्ट्रीय इतिहास में (जिसे कि श्री विजयसिंह जी पथिक लिख रहे थे) दशार्ण लोगों को दस जातियों का समूह माना गया है। किन्तु प्राचीन ग्रन्थों में वे एक ही जाति के माने गए हैं।

इन जातियों के अलावा इस देश पर मौर्य, गुप्त, अन्धक और पंवार लोगों का भी राज रहा है। ये जातियां मालवा-प्रदेश से बाहर की थीं और इन्होंने ऊपर लिखे प्रजातंत्रों को नष्ट करके अपना राज्य जमाया था। इनसे पहले यहां मल्लोई जाति का प्रजातंत्र बहुत बड़ा था। सिकन्दर के समय के साथ क्षुद्रक लोगों का भी पता इनके ही पड़ौस में लगता है। इन सब जातियों में से कुछ न कुछ समूह जाट और राजपूत दोनों में पाए जाते हैं। किन्तु दशपुरिया, भोज और कुन्तल केवल जाटों में ही मिलते हैं। मालवा में बांगरी लोगों का भी आधिपत्य रहा था और उनके नाम से एक हिस्से का नाम बांगर प्रसिद्ध हो गया था। उनका निशान ब्राह्मण और जाट जातियों में मिलता है।


विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] लिखते हैं.... चंपापुर (हिंद-चीन): प्राचीन भारतीय उपनिवेश चंपा में वर्तमान अनाम का अधिकांश भाग सम्मिलित था. अनाम (Annam) के उत्तरी जिले 'थान-हो-आ' (Than Hoa), 'नगे आन' (Nghe An) और 'हातिन्ह' (Ha Tinh) केवल इसके बाहर थे. इस प्रकार चंपापुरी का विस्तार 14 डिग्री से 10 डिग्री उत्तरी देशांतर के बीच में था. दूसरी शती ई. में यहां पहली बार भारतीयों ने अपनी औपनिवेशिक बस्ती बनाई थी. यह लोग संभवतः भारत की चंपानगरी के निवासी थे. 15वीं शती तक यहां के निवासी पूर्ण रूप से भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के प्रभाव में थे. इस शती अनामियों ने चंपा को जीतकर वहां अपना राज्य स्थापित कर लिया और भारतीय उपनिवेश की प्राचीन परंपरा को समाप्त कर दिया. चंपा का सर्वप्रथम भारतीय राजा श्रीमान था जिसका चीन के इतिहास में भी उल्लेख मिलता है. चंपापुरी के वर्तमान अवशेषों में यहां के प्राचीन भारतीय धर्म तथा संस्कृति की सुंदर झलक मिलती है.

See also

References