Kashyap

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(Redirected from Khobe Rana)

Kashyap (कश्यप)[1] Kashyapa (काश्यप)[2] Kashyip (काश्यिप)[3] gotra Jats are found in Uttar Pradesh and Madhya Pradesh. Dilip Singh Ahlawat has mentioned it as one of the ruling Jat clans in Central Asia.[4] They are also called Khobe Rana (खोबे राणा) in Bijnor.

Orgin

They are descendants of rishi Kashyapa (काश्यप).[5]

Jat Gotras Namesake

History

I. Narayanpal Stone inscription of Queen Gunda-mahadevi, the mother of Somesvaradeva (Nagavanshi) 1111 AD

SourceEpigraphia Indica Vol. IX (1907-08): A S I, Edited by E. Hultzsoh, Ph.D. & Sten Konow, Ph.D., p.162

Narayanpal is a village 23 miles west of Jagdalpur. The inscription is on a stone slab and is in Nagari characters, and the language is Sanskrit. It records the grant of the village Narayanapura to the god Narayana and some land near the Khajjuri tank to the god Lokesvara, and it is dated in the Saka year 1033 on Wednesday, the full moon-day of the Karttika month in the Khara samvatsara (Saka-nripa-kalatite dasa-sata.traya[s*]-trims-adhike Khara-samvatsare Kartika-paurnimasyam Budhavare) corresponding to 18th October 1111 A. D., and issued by Gunda महादेवी (गुंड महादेवी), the chief queen of Maharjaa Dharavarsha, the mother of Somesvaradeva and the grand mother of Kanharadeva, who was then ruling on the death of his father (Maharaja-Somesvara-devasya swar (swr)gate tesham putrasya, asam, naptuh . . . Srimad-vira-Kanharadevasya kalyana-vyaya-raiya). The dynasty claims to belong to the Nagavansha and the Kasyapa gotra, to have a tiger with a calf as their crest and to be the lords of Bhogavati the best of the cities (Nagavamsodbhava, Bhogavati-pura-var-esvara savatsa-vyaghra Lamchhana Kas(s)yapa,-gotra). At the end of the inscription the sun and moon, a cow and a calf, and a,


1. This has now been removed to a roadside place called Jangla, six miles north of Potinar, for easy access.


[p.162]. dagger and shield with a linga in its socket, exactly of the shape in which the Lingayats wear them, are engraved. There is a postscript to this inscription in which it is stated that the land was given by Dharana-mahadevi, who was probably the widow of Somesvara, as will appear further on. There can be no doubt that Narayanpal is the Narayanapura of the inscription. A temple of Narayana is still standing there. The image of Vishnu, about 2' high, canopied by a hooded snake, is exquisitely executed.

काश्यप लोग

ठाकुर देशराज[8] ने लिखा है.... काश्यप - शिवि लोगों के वर्णन में मिस्टर क्रूक साहब के हवाले से यह बात हम बता चुके हैं कि जाटों में एक बड़ा समूह काश्यप लोगों का भी है। सूर्यवंश की प्रसिद्धि इन्हीं काश्यप से बताई जाती है। काशी के काश्य भी काश्यप हैं जो कि जाटों के अंदर काफी काशीवात कहलाते हैं। मगध के लिच्छवि शाक्य और ज्ञातृ भी काश्यप ही थे। इनके अलावा सैकड़ों काश्यिप गोत्री खानदान जाटों में मौजूद हैं। पुराणों में तो कैस्पियन सागर को कश्यप ऋषि का आश्रम बताया है। कुछ लोग श्रीनगर से 3 मील दूर हरी पर्वत पर कश्यप ऋषि का आश्रम मानते हैं।

कश्यप/काश्यप जाटवंश

कश्यप/ काश्यप - ब्रह्मा के पुत्र मरीचि से कश्यप का जन्म हुआ था। कश्यप ऋषि से ही सूर्यवंश की प्रसिद्धि बताई जाती है। इनके नाम पर कश्यप या काश्यप जाटवंश प्रचलित हुआ। पुराणों ने तो कैस्पियन सागर को कश्यप ऋषि का आश्रम बताया है। कुछ इतिहासकारों ने श्रीनगर से तीन मील दूर हरिपर्वत पर कश्यप ऋषि का आश्रम लिखा है।

“ट्राईब्स एण्ड कास्ट्स ऑफ दी नार्थ वेस्टर्न प्राविन्सेज एण्ड अवध”नामक पुस्तक में मिस्टर डब्ल्यू कुर्क साहब लिखते हैं कि दक्षिण पूर्वी प्रान्तों के जाट अपने को दो भागों में विभक्त करते हैं - शिवि गोत्री या शिवि के वंशज और कश्यप गोत्री।

मगध के लिच्छवी, शाक्य और ज्ञातृ भी काश्यप ही थे। इनके अतिरिक्त सैंकड़ों काश्यप गोत्री खानदान जाटों में विद्यमान हैं। काशी के काश्य भी काश्यप हैं जो कि जाटों के अन्दर काशीवत कहलाते हैं।[9]

कैस्पियन सागर पर कश्यप शासन

कश्यप वंश - इस वंश के जाटों का शासन प्राचीनकाल में कैस्पियन सागर पर था जिसका नाम इनके नाम पर कैस्पियन पड़ा।[10]

Distribution in Uttar Pradesh

Villages in Moradabad District

Ramnagar Urf Rampura,

Villages in Bijnor District

Puranpur Bijnor,

Distribution in Madhya Pradesh

Bhopal,

Distribution in Haryana

Sonipat

Notable persons

Raja Rao Nain Singh - ये कश्यप गोत्री जाट थे, राव इनकी उपाधि थी. इनका छोटा-सा व आखिरी राज 12 वीं सदी में ब्यावर राजस्थान में लहरी ग्राम में था. जो आज रैबारी जाती का गाँव है. ये चौधरी संग्राम सिंह, जिनके नाम से सांगवान गोत्र का प्रचलन हुआ, के पिता थे. पहले इन कश्यप गोत्री जाटों का बड़ा पंचायती राज सारसू जांगल (राजस्थान) में था. रावसांघा इन जाटों की उपाधि थी. 14 वीं सदी में ये चरखी दादरी हरयाना में आये.[11]

References


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