Kiram
Kiram (किरम)[1] / Karmi (करमी) [2] Krimi (कृमि) is a gotra of Jats[3]found in Uttar Pradesh and Afghanistan[4] They are Chandravanshi.
Origin
This gotra started after King Krimi (कृमि) brother of Shivi and son of Ushinara of Mahabharata.[5]
Villages founded by this clan
Jat Gotras Namesake
- Karmi = Carmæi (Pliny.vi.32).
Mention by Pliny
Pliny[6] mentions Arabia....Next come the Hemnatæ, the Aualitæ, the towns of Domata and Hegra, the Tamudæi49, with the town of Badanatha, the Carrei, with the town of Cariati50, the Achoali, with the town of Foth, and the Minæi, who derive their origin, it is supposed,51 from Minos, king of Crete, and of whom the Carmæi are a tribe.
9 Their district is still called Thamud, according to Ansart.
50 Still called Cariatain, according to Ansart.
51 A ridiculous fancy, probably founded solely on the similarity of the name.
History
Tej Ram Sharma[7] describes that....We get three different versions about the origin of the Yaudheyas : third version is ....
(iii) The Harivamsa 594 and the Vayu Purana 595 state that King Usinara of the Puru dynasty had five queens named Nrga or Mrga, Krmi, Nava, Darva and Drsadvati who gave birth to five sons named Nrga, (or Mrga),'Krmi, Nava, Suvrata and Sibi (or Sivi) respectively. Sibi was the lord of the Sibi people or of the city of Sivapura, while Nrga (or Mrga) was the ruler of the Yaudheyas or of Yaudheyapura. The other three sons of Usinara, viz., Nava, Krmi and Suvrata, were the lords respectively of Navarastra, Krmilapuri and Ambasthapuri. 596 According to Pargiter, King Usinara established the Yaudheyas, Ambasthas, Navarastra,and the city of Krmila, all on the eastern border of the Punjab; while his famous son Sivi Ausinara originated the Sivis or Sibis in Sivapura. 597
594. I. 31.24-28: takes the reading Nrga.
595. 99.18-22: takes the variant reading Mrga.
596. D.C. Sircar, Oz. pp. 252-53.
597. Pargiter, M. P. 264.
जाट इतिहास
दलीप सिंह अहलावत[8] लिखते हैं : मि० ग्राउस ने नव लोगों के साथ कृमि लोगों का भी जिक्र किया है। यह जाट गोत्र है। कर्नल टॉड ने टालेमी के हवाले से लिखा है कि स्कन्धनाभ और जटलैंड के शासन करने वाले जाटों की छः शाखाओं में किम्ब्री, सुएवी और कट्टी अधिक प्रसिद्ध हैं। ये कृमि ही किम्ब्री हैं। कृमि आजकल किरम कहलाते हैं। इस जाट गोत्र के लोग उत्तरप्रदेश में पाये जाते हैं। कृमि जाटों के नाम पर अफगानिस्तान में कुर्रम जिला है।
दलीप सिंह अहलावत[9] लिखते हैं : ‘मथुरा मेमायर्स’ के लेखक ग्राउस साहब ने नव लोगों का वर्णन इस प्रकार किया है - चन्द्रवंशी सम्राट् ययाति के पुत्र अनु के वंश में अनु से नौवीं पीढ़ी में राजा |उशीनर हुए। उनकी पांच रानियां थीं - 1. नृगा 2. कृमि 3. नवा 4. दर्व 5. दृषद्वती। इनके एक-एक पुत्र हुआ। उनके नाम नृग, कृमि, नव, सुव्रत और शिवि थे (देखो वंशावली अनु का वंश)। नव ने नवराष्ट्र पर राज किया। कृमि ने कुमिल्लापुरी और शिवि ने शिवव्यास पर राज किया और नृग ने यौधेयों पर राज किया । (नृग के पुत्र यौधेय से यौधेयसंघ बना जो जाट गोत्र है)।
पाणिनि ने उशीनरों को पंजाब के पास रहते थे, लिखा है। ऐतरेय ब्राह्मण ने उन्हें कुरु, पांचालों में शामिल किया है। उशीनर की पांचवीं रानी दृषद्वती के नाम पर दृषद्वती नदी का नाम हुआ, जो महाभारत में कुरुक्षेत्र की दक्षिणी सीमा बताई गई है। आजकल यह नदी लुप्त है। नव ने अपने नाम से एक जनपद नवराष्ट्र के नाम से स्थापित किया और नव की वंशपरम्परा का नाम ‘नव’ प्रचलित हुआ। यह जाट गोत्र है जो राजा नव के नाम से चला।
नवराष्ट्र, जिसका राजा नव था, वह गुड़गांव व मथुरा के समीप रहा होगा और उसकी राजधानी यही रही होगी जो अब नोह (नूह) कहलाती है। (मथुरा मेमायर्स पृ० 320-322)। इस ‘नोह’ को ‘नूह’ भी कहते हैं। महाभारतकाल के पश्चात् पश्चिमोत्तर भारत के खोतानप्रदेश पर भी नव लोगों ने शासन स्थिर किया था। वहां पर भी अभी तक नूह झील है जिसे नव लोगों ने ही खुदवाया था। सन् ईस्वी के प्रारम्भिक काल में ये लोग अपनी पितृ-भूमि वापिस आ गये और जलेसर के पास बस्तियां आबाद कीं। वहां से उठकर वर्तमान ‘नोह’ में एक झील खोदी और वहां पर दुर्ग निर्माण किया। स्वतंत्रता-युद्ध सन् 1857 तक किसी न किसी रूप में ये वहां के शासक रहे हैं। मि० ग्राउस साहब के लेखानुसार 17वीं शताब्दी में भी आगरा-मथुरा के अधिक भाग पर नव क्षत्रियों का ही शासन था। बीच में ये नव, नौवार-नौहवार नाम से भी प्रसिद्ध हुए। बुलन्दशहर में भट्टापारसोल एक गांव, गुड़गांव जिले में दो गांव, आगरा में 98 गांव और गुड़गांव जिले की नूह तहसील के समीप 98 गांव हैं जो इस वंश की विशाल जनसंख्या का परिचय देते हैं। शिवि लोगों का प्रजातंत्र काफी प्रसिद्ध था।
जाट इतिहास - ठाकुर देशराज
ठाकुर देशराज[10] ने महाभारत कालीन प्रजातंत्री समूहों का उल्लेख किया है जिनका निशान इस समय जाटों में पाया जाता है....कृमि आजकल किरम कहलाते हैं और यू० पी० में पाये जाते हैं।
ठाकुर देशराज[11] ने लिखा है....‘मथुरा मेमायर्स’ के लेखक ग्राउस साहब ने नव लोगों का वर्णन करते हुये लिखा है कि उशीनर की पांच रानियां थीं - 1. नृगा 2. कृमि 3. नवा 4. दर्व 5. दृषद्वती। इनके एक-एक पुत्र हुआ। उनके नाम नृग, कृमि, नव, सुव्रत और शिवि थे। इनमें से नव ने नवराष्ट्र पर राज किया। कृमि ने कुमिल्लापुरी और शिवि ने, जो कि ऋग्वेद की एक ऋचा का लेखक कहा जाता है, शिवव्यास पर राज किया और नृग ने यौधेयों पर राज किया ।
ठाकुर देशराज[12] ने लिखा है .... अफगानिस्तान में शिवि और कुर्रम दो जिले हैं, जो शिवि और कृमि जाटों के नाम पर मशहूर हुए थे। हाला जाटों के नाम पर एक हाला पहाड़ भी है, जिसे सोमगिरि के नाम से भी पुकारते हैं।
Distribution
These people are inhabitants of Uttar Pradesh. [13]
External links
References
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.31,sn-323.
- ↑ Dr Ompal Singh Tugania: Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, p.30,sn-200.
- ↑ Dr Pema Ram:Rajasthan Ke Jaton Ka Itihas, p.296
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Parishisht-I, s.n. क-67
- ↑ Mahendra Singh Arya et al.: Adhunik Jat Itihas, Agra 1998, p. 230
- ↑ Natural History by Pliny Book VI/Chapter 32
- ↑ Personal and geographical names in the Gupta inscriptions/Tribes,pp.171-172
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ-194
- ↑ जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ-194
- ↑ Jat History Thakur Deshraj/Chapter V,p.139
- ↑ Jat Itihas (Utpatti Aur Gaurav Khand)/Pancham Parichhed,p.106-110
- ↑ Thakur Deshraj: Jat Itihas (Utpatti Aur Gaurav Khand)/Navam Parichhed,p.153
- ↑ Mahendra Singh Arya et al.: Adhunik Jat Itihas, Agra 1998, p. 230
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