Mansarovar

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(Redirected from Manasarovara)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Lake Manasarovar (मानसरोवर) is lake near Mount Kailash in Tibet Autonomous Region. The lake is revered a sacred place in four religions: Bön, Buddhism, Jainism and Hinduism. It is also known as Brahmasara (ब्रह्मसर) or Mānasa (मानस).

Variants

Geography

Lake Manasarovar lies at 15,060 ft above mean sea level. Lake Manasarovar is relatively round in shape with the circumference of 88 km. Its depth reaches a maximum depth of 300 ft and its surface area is 320 km2. It is connected to nearby Lake Rakshastal by the natural Ganga Chhu channel. Lake Manasarovar is near the source of the Sutlej, which is the easternmost large tributary of the Sindhu. Nearby are the sources of the Brahmaputra River, the Indus River, and the Ghaghara, an important tributary of the Ganges.

Lake Manasarovar overflows into Lake Rakshastal which is a salt-water endorheic lake. These lakes used to be part of the Sutlej basin and were separated due to tectonic activity.

Importance

Lake Manasarovar is a personification of purity, and one who drinks water from the lake will go to the abode of Shiva after death.

Like Mount Kailash, Lake Manasarovar is a place of pilgrimage, attracting religious people from India, Nepal, Tibet and neighboring countries. Bathing in Manasarovar and drinking its water is believed by Hindus to cleanse all sins.[1] Pilgrimage tours are organized regularly, especially from India, the most famous of which is the yearly "Kailash Manas Sarovar Yatra". Pilgrims come to take ceremonial baths in the waters of the lake.

Lake Manasarovar has long been viewed by the pilgrims as being nearby to the sources of four great rivers of Asia, namely the Brahmaputra, Ghaghara, Sindhu and Sutlej, thus it is an axial point which has been thronged to by pilgrims for thousands of years. The region was closed to pilgrims from the outside following the Battle of Chamdo; no foreigners were allowed between 1951 and 1980. After the 1980s it has again become a part of the Indian pilgrim trail.[2]

Buddhists associate the lake with the legendary lake Anavatapta (Sanskrit; Pali Anotatta) where Maya is believed to have conceived Buddha. The lake has a few monasteries on its shores, the most notable of which is the ancient Chiu Monastery built on a steep hill, looking as if it has been carved right out of the rock.

The lake is very popular in Buddhist literature and associated with many teachings and stories. Buddha, it is reported, stayed and meditated near this lake on several occasions. Lake Manasarovar is also the subject of the meditative Tibetan tradition, "The Jewel of Tibet". A modern narration and description of the meditation was made popular by Robert Thurman.[3]

In Jainism, Lake Manasarovar is associated with the first Tirthankara, Rishabha. As per Jain scriptures, the first Tirthankar, Bhagwan Rushabhdev, had attained nirvana on the Ashtapad Mountain. The son of Bhagwan Rishabhdev, Chakravati Bharat, had built a palace adorned with gems on the Ashtapad Mountain located in the serene Himalayas.There are many stories related to Ashtapad Maha Tirth like Kumar and Sagar's sons, Tapas Kher Parna, Ravan and Mandodri Bhakti, among many others. [4]

History

In Mahabharata

Manasa (मानस) (Naga) is mentioned in Mahabharata (I.52.5)

Manasa (मानस) (Pond) is mentioned in Mahabharata (II.25.5)


Adi Parva, Mahabharata/Book I Chapter 52 mentions the names of Nagas who fell into the fire of the snake-sacrifice. Manasa (मानस) (Naga) is mentioned in Mahabharata (I.52.5). [5]....Nagas born of Vasuki: Kotika, Manasa, Purna, Saha, Pola, Halisaka, Pichchhila, Konapa, Chakra, Kona, Vega, Prakalana, Hiranyavahu, Sharana, Kakshaka, Kaladantaka--


Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 25 mentions the countries Arjuna subjugated in the North, Arjuna arrives to conquer Harivarsha. Manasa (मानस) (Pond) is mentioned in Mahabharata (II.25.5).[6]....And the exalted prince having arrived at the lake Manasa conquered the regions ruled by the Gandharvas that lay around the Hataka territories...

मानसरोवर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[7] ने लेख किया है ....मानसरोवर (AS, p.735): इसका प्राचीन नाम ब्रह्मसर भी है. मानसरोवर भारत के उत्तर में हिमालय पर्वतश्रेणियों में कैलाश पर्वत के निकट (तिब्बत में ) स्थित विस्तीर्ण झील है. इस झील से भारत की तथा मध्य एशिया की कई नदियां निकलती हैं. गंगा का मूल स्रोत भी इसी झील से निस्तृत है. कई भौगोलिकों के अनुसार ये नदियां वास्तव में मानसरोवर से नहीं वरन उसके आसपास की कई झीलों से निकलती हैं जैसे रावणहृद नामक झील से सतलज निकलती है (देखें डाउसन, क्लासिकल डिक्शनरी- 'मानसरोवर'). किंतु यह निश्चित है कि सिंध तथा पंजाब की कई नदियां झेलम आदि मूल रूप में इसी झील से उद्भूत हैं. सरयू और ब्रह्मपुत्र का उद्गम भी मानसरोवर ही है. वाल्मीकि रामायण किष्किंधा कांड 43,20-21-22 में कैलास, कुबेरभवन तथा उसके निकट विशाल 'नलिनी' या सरोवर का उल्लेख है जो अवश्य ही मानसरोवर है--'तत् तु शीघ्रम् अतिक्रम्य कांतारम् रोम हर्षणम् । कैलासम् पाण्डुरम् प्राप्य हृष्टा यूयम् भविष्यथ (4-43-20); तत्र पाण्डुर मेघाभम् जाम्बूनद परिष्कृतम्। कुबेर भवनम् रम्यम् निर्मितम् विश्वकर्मणा (4-43-21); विशाला नलिनी यत्र प्रभूत कमलोत्पला । हंस कारण्डव आकीर्णा अप्सरो गण सेविता (4-43-22)'

बाल्मीकि बालकांड 24,8-9-10 में मानसरोवर की उत्पत्ति तथा सरयू का इससे निस्सृत होने का वर्णन है--'कैलास पर्वते राम मनसा निर्मितम् परम् (1-24-8); ब्रह्मणा नरशार्दूल तेन इदम् मानसम् सरः । तस्मात् सुस्राव सरसः सा अयोध्याम् उपगूहते (1-24-9); सरः प्रवृत्ता सरयूः पुण्या ब्रह्म सरः च्युता।' (1-24-10).

महाभारत वन पर्व में पांडवों की उत्तर दिशा के तीर्थों की यात्रा के प्रसंग में मानस का उल्लेख है--'एतद् द्वारं महाराज मानसस्य प्रकाशते । वरपमस्यगिरेरमधुये. रामेण श्रीमता कृतम्'

मेघदूत में कालिदास ने मानस को सुवर्णकमल वाला सरोवर बताया है तथा इसका अलका और कैलास के निकट वर्णन किया है--'हेमाम्भोजप्रसवि सलिलं मानसस्याददानः, कुर्वन् कामं क्षणमुखपटप्रीतिमैरावतस्य।...'. पूर्वमेघ 64. इसका तिब्बती नाम चोमापन है.

शिवी और जाट संघ

ठाकुर देशराज[8] ने लिखा है ....शिवि - यह खानदान बहुत पुराना है। वैदिक काल से लेकर किसी न किसी रूप में सिकंदर के आक्रमण के समय तक इनका जिक्र पाया जाता है। पुराणों ने शिवि लोगों को उशीनर की संतानों में से बताया है। राजा ययाति के पुत्रों में यदु, पुरू, तुर्वषु, अनु और द्रुहयु आदि थे। उशीनर ने अनु खानदान के थे। पुराणों में इनकी जो वंशावली दी है वह इस प्रकार है:- 1. चंद्र 2. बुद्ध 3. पुरुरवा 4. आयु 5. नहुष 6. ययाति* 7. (ययाति के तीसरे पुत्र) अनु 8. सभानर 9. कालनर 10. सृजय 11. जन्मेजय 12.


* कुछ लोग राजा ययाति की राजधानी शाकंभरी अर्थात सांभर झील को मानते हैं जो कि इस समय जयपुर-जोधपुर की सीमा पर है।


[पृ.92]:महाशील 13. महामना 14. महामना के दूसरे पुत्र उशीनर और 15. उशीनर के पुत्र शिवि। प्रसिद्ध दानी महाराज शिवि की कथाओं से सारी हिंदू जाति परिचित है।* ईसा से 326 वर्ष पूर्व जब विश्वविजेता सिकंदर का भारत पर आक्रमण हुआ था, उस समय शिवि लोग मल्लों के पड़ोस में बसे हुए थे। उस समय के इनके वैभव के संबंध में सिकंदर के साथियों ने लिखा है:- "कि इनके पास 40,000 तो पैदल सेना थी।" कुछ लोगों ने पंजाब के वर्तमान शेरकोट को इनकी राजधानी बताया है।हम 3 स्थानों में इनके फैलने का वर्णन पाते हैं। आरंभ में तो यह जाति मानसरोवर के नीचे के हिस्से में आबाद थी। फिर यह उत्तर-पूर्व पंजाब में फैल गई। यही पंजाब के शिवि लोग राजपूताना में चित्तौड़ तक पहुंचते हैं। जहां इनकी मध्यमिका नगरी में राजधानी थी। यहां से इनके सिक्के भी प्राप्त हुए हैं जिन पर लिखा हुआ है- 'मज्झिम निकाय शिव जनपदस' दूसरा समुदाय इनका तिब्बत को पार कर जाता है जो वहां शियूची नाम से प्रसिद्ध होता है। कई इतिहासकारों का कहना है कि कुशान लोग शियूची जाति की एक शाखा थे।


* शिवि जाति के कुछ प्रसिद्ध राजाओं का हाल परिशिष्ट में पढ़िए।

यह शेरकोट पहले शिविपुर कहलाता था। कुछ लोग धवला नदी के किनारे के शिवप्रस्थ को शिवि लोगों की राजधानी मानते हैं।


[पृ.93]: महाराजा कनिष्क कुशान जाति के ही नरेश थे। तीसरा दल इनका जाटों के अन्य दलों के साथ यूरोप में बढ़ जाता है। स्केंडिनेविया और जटलैंड दोनों ही में इनका जिक्र आता है। टसीटस, टोलमी, पिंकर्टन तीनों ही का कहना है कि-" जट्टलैंड में जट लोगों की 6 जातियां थी। जिनमें सुएवी, किम्ब्री हेमेन्द्री और कट्टी भी शामिल थीं, जो एल्व और वेजर नदियों के मुहाने तक फैल गईं थीं। वहां पर इन्होंने युद्ध के देवता के नाम पर इमर्नश्यूल नाम का स्तूप खड़ा किया था।” बौद्ध लोगों का कहना है कि भगवान बुद्ध तथागत ने पहले एक बार शिवि लोगों में भी जन्म लिया था। इन लोगों में हर-गौरी और पृथ्वी की पूजा प्रचलित थी। संघ के अधिपति को गणपति व गणेश कहते थे। इनकी जितनी भी छोटी-छोटी शाखाएं थी वह जाति राष्ट्र में सम्मिलित हो गई थी।

आरंभकाल में भारत में शिवि लोगों को दक्ष लोगों से भी भयंकर युद्ध करना पड़ा था। वीरभद्र नाम का इनका सेनापति दक्षनगर को विध्वंस करने के कारण ही प्रसिद्ध हुआ था। एक बार इन में गृह कलह भी हुआ था। जिसका समझौता इस प्रकार हुआ कि हस्ति शाखा के प्रमुख को पार्लियामेंट का इनको सर्वसम्मति से प्रधान चुनना पड़ा।* मालूम ऐसा होता है


* पुराणों में यह कथा बड़े गोलमोल के साथ वर्णन की गई है। हस्ति कबीले के लोग पीछे काबुल नदी के किनारे बसे थे। उनका हस्तीनगर आजकल न्यस्तन्यस कहलाता है।


[पृ.94]:शिवि लोगों के संघ में जब कि वह जाति राष्ट्र के रूप में परिवर्तित हुआ सभी शिवि लोग शामिल हो गए थे। यह भी सही बात है कि नाग लोग भी शिव लोगों की ही शाखा के हैं। क्योंकि पूनिया जाट कहा करते हैं कि आदि जाट तो हम हैं और शिवजी की जटाओं से पैदा हुए हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि शिवि जाटों की संख्या एक समय बहुत थी। क्योंकि सिकंदर के समय में 40 हजार तो उनके पास पैदल सेना ही थी। यदि हम दस आदमियों पीछे भी एक सैनिक बना दे तो इस तरह वे 4 लाख होते हैं और जबकि उनके दो बड़े-बड़े समूह चीन और यूरोप की ओर चले गए थे। यदि समस्त शिवि जाटों की अंदाज से ही गिनती करें तो वह 10 लाख के करीब साबित हो सकते हैं।

शायद कुछ लोग कहें कि 'यह माना कि शिवि एक महान और संपन्न जाति भारत में थी किंतु यह कैसे माना जाए किसी भी शिवि लोग जाट थे'? इसका उत्तर प्रमाण और दंतकथा दोनों के आधार पर हम देते हैं।

(1) पहली दंतकथा तो यह है कि जाट शिव की जटाओं में से हुए हैं। अर्थात शिवि लोग जाट थे।

(2) जाट शिव के गणों में से हैं अर्थात गणतंत्री शिवि जाट थे।

(3) जाट का मुख्य शिव ने बनाया, इसके वास्तविक माने यह है कि 'जाट-राष्ट्रों' में प्रमुख शिवि हैं।

यह इन दंतकथाओं के हमारे किए अर्थ न माने जाएं, तब भी इतना तो इन दंतकथाओं के आधार पर स्वीकार करना ही पड़ेगा कि जाट और शिवि लोगों का कोई


[पृ.95]: न कोई संबंध तो है ही। हम कहते हैं कि संबंध यही है कि शिवि लोग जाट थे। इसके लिए प्रमाण भी लीजिए। "ट्राइब्स एंड कास्ट्स ऑफ द नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविन्सेज एंड अवध" नामक पुस्तक में मिस्टर डबल्यू क्रुक साहब लिखते हैं:

The Jats of the south-eastern provinces divide them selves into two sections - Shivgotri or of the family of Shiva and Kashyapagotri.

अर्थात् - दक्षिणी पूर्वी प्रान्तों के जाट अपने को दो भागों में विभक्त करते हैं - शिवगोत्री या शिव के वंशज और कश्यप गोत्री ।

इसी तरह की बात कर्नल टॉड भी प्रसिद्ध इतिहासकार टसीटस (Tacitus) के हवाले से लिखते हैं:- "स्कंदनाभ देश में जट नामक एक महापराक्रमी जाति निवास करती थी। इस जाति के वंश की बहुत सी शाखाएं थी। उन शाखाओं में शैव और शिवि लोगों की विशेष प्रतिष्ठा थी। "

हिंदुओं के प्राचीन ग्रंथकारों ने शिवि लोगों को शैवल और शैव्य कर के भी लिखा है। इनमें कई सरदार बड़े प्रतापी हुए हैं। उनके जीवन पर परिशिष्ट भाग में थोड़ा सा प्रकाश डालेंगे।

ब्रह्मसर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[9] ने लेख किया है ... 1. ब्रह्मसर (AS, p.650): मानसरोवर (तिब्बत) को प्राचीन संस्कृत साहित्य में ब्रह्मसर भी कहा गया है. कालिदास ने रघुवंश 13,60 में सरयू नदी की उत्पत्ति ब्रह्मसर से बताई है--'ब्राह्मंसरः कारणं आप्तवाचो बुद्धेरिवाव्यक्तं उदाहरन्ति'. मल्लिनाथ [p.651]: ने अपने टीका में 'ब्रह्मसरो मानसाख्यं यस्या: सरय्या:' आदि लिखा है जिससे स्पष्ट है कि सरयू का उद्गम मानसरोवर या ब्रह्मसर है. कवि की विचित्र उपमा से यह भी ज्ञात होता है कि कालिदास के समय में ब्रह्मसर तक पहुंचना यद्यपि अधिकांश लोगों के लिए असंभव था फिर भी सब लोगों का परंपरागत विश्वास यही था कि सरयू मानसरोवर से उद्भूत होती है. किंतु साथ यह भी दृष्टव्य है कि इस विशिष्ट भौगोलिक तथ्य की खोज, जो उस प्राचीन समय में बहुत ही कठिन रही होगी, कालिदास के समय के बहुत पूर्व हो चुकी थी. कालिका पुराण में ब्रह्मपुत्र या लौहित्य का उद्भव भी ब्रह्मकुंड या ब्रह्मसर से ही माना गया है. यह भी भौगोलिक तथ्य है. (दे. सरयू, लौहित्य)

2. ब्रह्मसर (AS, p.651): महाभारत अनुशासनपर्व में पुष्कर (जिला अजमेर, राजस्थान) के प्रसिद्ध सरोवर का एक नाम. यह ब्रह्मा के तीर्थ के रूप में प्राचीन काल से ही प्रख्यात है.

3. ब्रह्मसर (AS, p.651): कुरुक्षेत्र में स्थित सरोवर. शतपथ ब्राह्मण के कथानक के अनुसार राजा पुरु को खोई हुई अप्सरा उर्वशी इसी स्थान पर कमलों पर क्रीड़ा करती हुई मिली थी.

हाटक

विजयेन्द्र कुमार माथुर[10]ने लिखा है .... हाटक (AS, p.1018): महाभारत सभापर्व में उल्लिखित स्थान है, जिसे यक्षों का देश कहा गया है. इस पर उत्तर दिशा की दिग्विजय के प्रसंग में अर्जुन ने विजय प्राप्त की थी- यह स्थान कालिदास के मेघदूत की अलका के निकट ही स्थित होगा. मानसरोवर यहां से समीप ही था- यह तिब्बत में स्थित वर्तमान मानसरोवर और कैलाश का निकटवर्ती प्रदेश था. यहां गुहयकों (यक्षों) तथा गंधर्वों की बस्ती था. श्री बी.सी. ला के मत में हाटक वर्तमान अटक (पाकिस्तान) है. एन.ल. डे के अनुसार यह हूण देश का नाम है.

Jat History

  • Kaswan - The Taxila Ladle Copper inscription bears this as 'Kaswin' word. In Mahabharata there is a word Khawakasha which becomes 'Kashwa' when 'Kh' is changed to 'x' and tellies with the word 'kasuwa' of "Panchtar inscription". The word 'Kaswan' is in fact 'XWN' word of Tokharian language which means 'King'. In Mahabharata also there is mention of a country named 'Kuswan' which was situated in the north of Mansarovar lake. [11] [12]
  • Mythological account of Jata - Hukum Singh Panwar (Pauria)[14] writes ....No less important and gratifying, in our search for variants of Jat is our discovery of its earliest mention among the Sanakadicas. They were seven in number-Sananda, Sanatana, Sanantakumar, Jata197, Vodu or Vodhu, etc. All of them are said to be the real as well as mind-born sons of Brahma (from Sapta Sindhu) and they along with many others, went to see Bhagwan Vishnu in Narayanpura, also called Vairavati or Vairamati in the northern parts of Toyambudhi on the sea of fresh water (Mansarovar?) in the Svetdwipa198 (Sivalaks) also known as Saka-dwipa after its conquest and settlement in it by the Sakas199. As a hunter, tempted to chase a musk-deer on and on, ultimately gets at the hill-forests of Central Asia, so our quest for Jat and its alternatives has landed us in the domain of mythology, the curtain of which is grotesquely painted with the legends of Brahma, Vishnu etc., with the back-drop of the Kailash' or mount Meru. It has been said that what is mythological legend today may be history tomorrow, and what is history today may be legend tomorrow. We raise the curtain of mythology and discover that of the seven supposed sons of Brahma, one was Jata (जट), who is represented by the Vishnuites to have led so many to the svet-dwipa for the 'darshan' of Lord Vishnu. This has led us to speculate: was this Jat the same Jat, who, in the presence of Brahma, was made a General on the occasion to defeat and drive away the Asuras from the Sapta Sindhu?

External links

References

  1. Kailash Yatra. "About Holy Manasarovar Lake – Kailash Yatra". www.kailash-yatra.org.
  2. In Search of Myths & Heroes By Michael Wood
  3. The Jewel Tree of Tibet – Robert Thurman. Soundstrue.com.
  4. http://www.dnaindia.com/lifestyle/report-lost-tirth-of-jains-traced-to-himalayas-1631581
  5. कॊटिकॊ मानसः पूर्णः सहः पौलॊ हलीसकः, पिच्छिलः कॊणपश चक्रः कॊण वेगः प्रकालनः (I.52.5)
  6. सरॊ मानसम आसाथ्य हाटकान अभितः परभुः, गन्धर्वरक्षितं थेशं वयजयत पाण्डवस ततः (II.25.5)
  7. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.735
  8. Jat Itihas (Utpatti Aur Gaurav Khand)/Pancham Parichhed ,pp.91-95
  9. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.650-651
  10. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.1018
  11. Bhim Singh Dahiya: Jats the ancient rulers
  12. Jat Samaj Monthly Magazine, Agra, May (2006) page-7
  13. Ram Sarup Joon: History of the Jats/ChapterVIII,p. 139
  14. The Jats:Their Origin, Antiquity and Migrations/Jat-Its variants,p.354

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