Mandawariya
Mandawariya (मण्डावरिया) is a small village in Kishangarh Tehsil in District Ajmer, Rajasthan.
Origin
Location
It is located on NH-8
Jat Gotras
History
Tejaji had war with the Meenas in the valley of Chang at about 15 km distance from Sursura near the Mandawaria village. [1]
He killed many Meenas in the war. He was badly wounded in the process to bring Gujari's cows back from dacoits. Veer Teja was man of words. He brought all cows back to Paner where Lachha told that Kanan Kerda has yet not come back. Tejaji goes back to the hills where Meenas were hiding. He attacked them and brought back Kanan Kerda (one eyed calf). Meenas attacked Tejaji and was seriously injured. He is said to have killed 150 Meenas in this war whose deolis are there in the Mandawaria hills. He killed all and came back victorious. [2]
Sant Kanha Ram[3] has done extensive research and identified the places associated with Tejaji. We are providing here photographs of War Spot near Mandawaria Hill and Deolis of Tejaji from his book.
तेजाजी का इतिहास
संत श्री कान्हाराम[4] ने लिखा है कि.... [पृष्ठ-84]: तेजाजी के जन्म के समय (1074 ई.) यहाँ मरुधरा में छोटे-छोटे गणराज्य आबाद थे। तेजाजी के पिता ताहड़ देव (थिरराज) खरनाल गणराज्य के गणपति थे। इसमें 24 गांवों का समूह था। तेजाजी का ससुराल पनेर भी एक गणराज्य था जिस पर झाँझर गोत्र के जाट राव रायमल मुहता का शासन था। मेहता या मुहता उनकी पदवी थी। उस समय पनेर काफी बड़ा नगर था, जो शहर पनेर नाम से विख्यात था। छोटे छोटे गणराज्यों के संघ ही प्रतिहार व चौहान के दल थे जो उस समय के पराक्रमी राजा के नेतृत्व में ये दल बने थे।
[पृष्ठ-85]: पनैर, जाजोता व रूपनगर गांवों के बीच की भूमि में दबे शहर पनेर के अवशेष आज भी खुदाई में मिलते हैं। आस पास ही कहीं महाभारत कालीन बहबलपुर भी था। पनेर से डेढ़ किमी दूर दक्षिण पूर्व दिशा में रंगबाड़ी में लाछा गुजरी अपने पति परिवार के साथ रहती थी। लाछा के पास बड़ी संख्या में गौ धन था। समाज में लाछा की बड़ी मान्यता थी। लाछा का पति नंदू गुजर एक सीधा साधा इंसान था।
तेजाजी की सास बोदल दे पेमल का अन्यत्र पुनःविवाह करना चाहती थी, उसमें लाछा बड़ी रोड़ा थी। सतवंती पेमल अपनी माता को इस कुकर्त्य के लिए साफ मना कर चुकी थी।
खरनाल व शहर पनेर गणराजयों की तरह अन्य वंशों के अलग-अलग गणराज्य थे। तेजाजी का ननिहाल त्योद भी एक गणराज्य था। जिसके गणपति तेजाजी के नानाजी दूल्हण सोढ़ी (ज्याणी) प्रतिष्ठित थे। ये सोढ़ी पहले पांचाल प्रदेश अंतर्गत अधिपति थे। ऐतिहासिक कारणों से ये जांगल प्रदेश के त्योद में आ बसे। सोढ़ी से ही ज्याणी गोत्र निकला है।
इन सभी गणराजयों की केंद्रीय सत्ता गोविंददेव या गोविंदराज तृतीय चौहान की राजधानी सांभर में निहित थी। इसके प्रमाण इतिहास की पुस्तकों के साथ-साथ यहाँ पनेर- रूपनगर के क्षेत्र के गांवों में बीसियों की संख्या में शिलालेख के रूप में बिखरे पड़े हैं। थल, सिणगारा, रघुनाथपुरा, रूपनगढ, बाल्यास का टीबा, जूणदा आदि गांवों में एक ही प्रकार के पत्थर पर एक ही प्रकार की बनावट व लिखावट वाले बीसियों शिलालेख बिलकुल सुरक्षित स्थिति में है।
संत श्री कान्हाराम[5] ने लिखा है कि.... [पृष्ठ-86]: इन शिलालेख के पत्थरों की घिसावट के कारण इन पर लिखे अक्षर आसानी से नहीं पढे जाते हैं। ग्राम थल के दक्षिण-पश्चिम में स्थित दो शिलालेखों से एक की लिखावट का कुछ अंश साफ पढ़ा जा सका, जिस पर लिखा है – विक्रम संवत 1086 गोविंददेव ।
रघुनाथपुरा गाँव की उत्तर दिशा में एक खेत में स्थित दो-तीन शिलालेखों में से एक पर विक्रम संवत 628 लिखा हुआ है। जो तत्कालीन इतिहास को जानने के लिए एक बहुत बड़ा प्रमाण है। सिणगारा तथा बाल्यास के टीबा में स्थित शिलालेखों पर संवत 1086 साफ-साफ पढ़ा जा सकता है। इन शिलालेखों पर गहन अनुसंधान आवश्यक है।
[पृष्ठ-87]: रूपनगढ क्षेत्र के रघुनाथपुरा गाँव के प्राचीन गढ़ में एक गुफा बनी है जो उसके मुहाने पर बिलकुल संकरी एवं आगे चौड़ी होती जाती है। अंतिम छौर की दीवार में 4 x 3 फीट के आले में तेजाजी की एक प्राचीन प्रतिमा विराजमान है। उनके पास में दीवार में बने एक बिल में प्राचीन नागराज रहता है। सामंती राज में किसी को वहाँ जाने की अनुमति नहीं थी। इस गुफा के बारे में लेखक को कर्तार बाना ने बताया। कर्तार का इस गाँव में ननिहाल होने से बचपन से जानकारी थी। संभवत ग्रामीणों को तेजाजी के इतिहास को छुपने के प्रयास में सामंतों द्वारा इसे गोपनीय रखा गया था।
राष्ट्रीय राजमार्ग – 8 पर स्थित मंडावरिया गाँव की पहाड़ी के उत्तर पूर्व में स्थित तेजाजी तथा मीना के बीच हुई लड़ाई के रणसंग्राम स्थल पर भी हल्के गुलाबी पत्थर के शिलालेखों पर खुदाई मौजूद है। पुरातत्व विभाग के सहयोग से आगे खोज की आवश्यकता है।
प्रथम समर भूमि
संत श्री कान्हाराम[6] ने लेख किया है कि लाछा गुजरी की गायें मीणों द्वारा अपहरण कर ले जाने के बाद मीणों से युद्ध कर गायें छुड़ाई थी। वह स्थान जहां युद्ध हुआ उसके बारे में जानकारी दी गई है:
प्रथम समर भूमि चांग – नष्ट हो चुके इस चांग गाँव की भूमि तेजाजी और लाछां की गायें हरण करने वाले मेर-मीणों की समर भूमि है।
[पृष्ट-249]: युद्ध स्थल की यह भूमि अजमेर की किशनगढ़ तहसील के गाँव मंडावरिया की पहाड़ी की उत्तर-पूर्वी तलहटी में स्थित है।
मंडावरिया - यह मंडावरिया गाँव किशनगढ़ से से 3-4 किमी पूर्व में अजमेर-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग-8 के उत्तरी दिशा में आबाद है। इस गाँव से सटकर पूर्व दिशा में करीब 2.5 किमी उत्तर-दक्षिण दिशा की तरफ फैली पहाड़ी है। पहाड़ी की चौड़ाई आधा किमी के लगभग है। इस पहाड़ी के पूर्व दिशा में लगभग 2.5 किमी की दूरी पर तोलामाल गाँव बसा है। उससे 2 किमी पूर्व चुंदड़ी गाँव बसा है। इस पहाड़ी की उत्तर दिशा में 2-3 किमी दूरी पर फलौदा गाँव है। तथा 6-7 किमी की दूरी पर तिलोनिया गाँव है। पहाड़ी के उत्तरी-पूर्वी छोर की तलहटी में पहाड़ी से लेकर करीब 4 किमी पूर्व तक तथा 2 किमी चौड़ाई में गायें छुड़ाने के लिए तेजाजी का मेर-मीणा लोगों के साथ मूसलाधार वर्षा तथा तूफानी काली रात में भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध के अवशेष यहाँ के चप्पे-चप्पे में विद्यमान हैं। पहाड़ी के उत्तरी-पूर्वी तलहटी के छोर के करीब 1 किमी नीचे सेवड़िया गोत्र के तेज़ूराम जाट का कुआ है जो तोलामाल गाँव की सीमा में पड़ता है। इस कुआ के इर्द-गिर्द इस युद्ध से संबन्धित हल्के लाल गुलाबी रंग के पत्थर के लड़ाई में मारे गए लोगों के देवले मौजूद है। गाँव के पुराने लोग बताते हैं कि वर्षों पहले यहाँ बहुत संख्या में मूर्तियाँ देवले थे परंतु आज की स्थिति में 3 देवले सही हालत में सुरक्षित बचे हुये हैं।
[पृष्ठ-250]: ग्रामीणों द्वारा ये देवले तोड़ दिये गए हैं जिनके कुछ अवशेष सरक्षित देवले के पास छोटे टीले में दबे पड़े हैं। बचे हुये देवलों के ऊपर देवनागरी लिपि में खुदाई की हुई है किन्तु पुराने और घिसे होने के कारण पढे नहीं जा सकते। आधे अधूरे अक्षर जो पढ़ने में आ रहे है वे इस प्रकार हैं – रण, पग, रण संग्राम ला, स, सा, बदी महिना, बा, घ, रा, 1048 अथवा 1040 जैसे अंक पढे जा सके हैं लेकिन तारतम्य नहीं बैठ पाया। हमारे खोजी दल ने उस स्थान पर तीन बार खोज की तब सेवड़िया परिवार ने बताया कि कुछ टूटी हुई मूर्तियाँ कुए की खुदाई में भी निकली हैं।
कुए से पूर्व दिशा में चूंदड़ी गाँव के पलटी में कैर की झाड़ी में एक तेजाजी का स्थान है। जिसके बारे में दृढ़ मान्यता है कि इस स्थान पर लड़ते हुये तेजाजी का घुटना टिका था जिसे संभाल कर लीलण ने वापस अपनी पीठ पर ले लिया था।
Population
At the time of Census-2011, the population of Mandawariya village stood at 635, with 108 households.
Notable persons
External links
Gallery
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मंडावरिया पर्वत की तलहटी स्थित रण संग्राम स्थल के देवले
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मंडावरिया पर्वत की तलहटी स्थित रण संग्राम स्थल
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उजड़े हुए चांग गांव के चिन्ह - ठीकरे
References
- ↑ Mansukh Ranwa: Kshatriy Shiromani Veer Tejaji, 2001, p. 40
- ↑ Mansukh Ranwa: Kshatriy Shiromani Veer Tejaji, 2001, p. 41
- ↑ Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. p.39
- ↑ Sant Kanha Ram: Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. pp.84-85
- ↑ Sant Kanha Ram: Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. pp.86-87
- ↑ Sant Kanha Ram: Shri Veer Tejaji Ka Itihas Evam Jiwan Charitra (Shodh Granth), Published by Veer Tejaji Shodh Sansthan Sursura, Ajmer, 2015. pp.248-250
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