Naimisha

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Naimisha (नैमिष) or Naimisharanya (नैमिषाराण्य) or Naimiṣāraṇya (नैमिषाराण्य), meaning Naimisha Forest , was an ancient forest mentioned in the Mahabharata and the Puranas.[1] It lay on the banks of the Gomati River of Uttar Pradesh.

Variants of name

Location

It lay on the banks of the Gomati River of Uttar Pradesh. It lay between the Panchala Kingdom and the Kosala Kingdom.

Identification

Neemsar (नीमसर) (Nimsar) village is Sitapur (UP) . Its ancient name was Naimisharanya .[2][3]

History

In Mahabharata

Naimishakunja (नैमिष कुञ्ज) (Tirtha) is mentioned in Mahabharata (III.81.92),

Naimisha (नैमिष) (Tirtha) is mentioned in Mahabharata (III.81.173),(III.82.53-57), (III.85.4), (VIII.30.60), (VIII.30.75), (XIII.26.9), (XIII.26.32)


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 81 mentions names of Tirthas (Pilgrims). Naimishakunja (नैमिष कुञ्ज) (Tirtha) is mentioned in Mahabharata (III.81.92)[4]......O son of the Kuru race, one should next repair to Naimishakunja (नैमिष कुञ्ज) (III.81.92). O king, the Rishis engaged in ascetic austerities in the woods of Naimisha had, in days of old, taking the vow of pilgrimage, gone to Kurukshetra. There, on the banks of the Saraswati, O chief of the Bharatas, a grove was made, which might serve for a resting spot for themselves, and which was highly gratifying to them. Bathing in the Saraswati there, one obtaineth the merit of the Agnishtoma sacrifice.


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 81 mentions names of Tirthas (Pilgrims). Naimisha (नैमिष) (Tirtha) is mentioned in Mahabharata (III.81.173).[5].....The tirtha called Naimisha (नैमिष) (III.81.173) is productive of good on earth. Pushkara (पुष्कर) (3.81.173) is productive of good in the regions of the firmament;....


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 82 mentions names Pilgrims. Naimisha (नैमिष) (Tirtha) is mentioned in Mahabharata (III.82.53-57).[6].... One should repair next to the sacred Naimisha (नैमिष) (III.82.53-57), worshipped by the Siddhas. There dwelleth for aye Brahma with the gods. By only purposing to go to Naimisha, half one's sins are destroyed; by entering it, one is cleansed of all his sins. The pilgrim of subdued senses should stay at Naimisha for a month; for, O Bharata, all the tirthas of the earth are at Naimisha. Bathing there, with restrained senses and regulated fare, one obtains, O Bharata, the merit of the cow-sacrifice, and also sanctifies, O best of the Bharatas, his race for seven generations both upwards and downwards. He who renounceth his life at Naimisha by fasting, enjoyeth happiness in the heavenly regions. Even this is the opinion of the wise. O foremost of kings, Naimisha is ever sacred and holy.


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 85 mentions sacred asylums, tirthas, mountans and regions of eastern country. Naimisha (नैमिष) (Tirtha) is mentioned in Mahabharata (III.85.4). [7].... In that direction, O Bharata is a place called Naimisha (नैमिष) (III.85.4) which is regarded by the celestials. There in that region are several sacred tirthas belonging to the gods. There also is the sacred and beautiful Gomati (गॊमती) (III.85.5) which is adored by celestial Rishis.... --- Karna Parva/Mahabharata Book VIII Chapter 30 mentions the tribes who are not followers of Brahmanism. Naimisha (नैमिष) (Tirtha) is mentioned in Mahabharata (VIII.30.60)[8].....The Kauravas with the Panchalas, the Salwas, the Matsyas, the Naimishas, the Koshalas, the Kasapaundras, the Kalingas, the Magadhas, (VIII.30.60) and the Chedis who are all highly blessed, know what the eternal religion is...... (VIII.30.75)[9]...what sin is there that they do not incur? Fie on the Arattas and the people of the country of the five rivers! Commencing with the Panchalas, the Kauravas, the Naimishas, the Matsyas,--all these,--know what religion is. ....


Anusasana Parva/Book XIII Chapter 26 mentions the sacred waters on the earth. Naimisha (नैमिष) is mentioned in Mahabharata (XIII.26.9).[10].....By bathing in Pushkara, and Prabhasa, and Naimisha, and the ocean, and Devika, and Indramarga, and Swarnabindu, one is sure to ascend to heaven being seated on a celestial car, and filled with transports of joy at the adorations of Apsara.


Anusasana Parva/Book XIII Chapter 26 mentions the sacred waters on the earth. Naimisha (नैमिष) is mentioned in Mahabharata (XIII.26.32).[11].....He that bathes in Analamba or in eternal Andhaka, or in Naimisha, or the tirtha called Swarga (Swarga Tirtha), and offers oblations of water to the Pitris, subduing his senses the while, acquires the Merit of a human sacrifice.

नैमिषक

विजयेन्द्र कुमार माथुर[12] ने लेख किया है ..नैमिषक (AS, p.509) विष्णु पुराण 4,24,66 में वर्णित है-- 'नैषध नैमिषक, कालकोशकाञ जानपदान् मणिधान्यकवंशा भोक्षयन्ति'. इस उल्लेख से सूचित होता है कि संभवत: गुप्तकाल के पूर्व निमिषारण्य में मणिधान्यकों का आधिपत्य था. (दे. नैमिषारण्य)

नैमिषारण्य

विजयेन्द्र कुमार माथुर[13] ने लेख किया है ...नैमिषारण्य (AS, p.509) (=नीमसार) उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले का एक स्थान है। गोमती नदी के तट पर सीतापुर से 20 मील की दूरी पर यह प्राचीन तीर्थ स्थान है। विष्णु पुराण के अनुसार यह बड़ा पवित्र स्थान है।

पुराणों तथा महाभारत में वर्णित नैमिषारण्य वह पुण्य स्थान है, जहाँ 88 सहस्र ऋषीश्वरों को वेदव्यास के शिष्य सूत ने महाभारत तथा पुराणों की कथाएँ सुनाई थीं- 'लोमहर्षणपुत्र उपश्रवा: सौति: पौराणिको नैमिषारण्ये शौनकस्य कुलपतेद्वदिशवार्षिके सत्रे, सुखासीनानभ्यगच्छम् ब्रह्मर्षीन् संशितव्रतान् विनयावनतो भूत्वा कदाचित् सूतनंदन:। तमाश्रममनुप्राप्तं नैमिषारण्यवासिनाम्, चित्रा: श्रोतुत कथास्तत्र परिवव्रस्तुपस्विन:'महाभारत, आदिपर्व 1, 1-23.

'नैमिष' नाम की व्युत्पत्ति के विषय में वराह पुराण में यह निर्देश हैं- 'एवंकृत्वा ततो देवो मुनिं गोरमुखं तदा, उवाच निमिषेणोदं निहतं दानवं बलम्। अरण्येऽस्मिं स्ततस्त्वेतन्नैमिषारण्य संज्ञितम्'-- अर्थात् ऐसा करके उस समय भगवान ने गौरमुख मुनि से कहा कि मैंने एक निमिष में ही इस दानव सेना का संहार किया है, इसीलिए (भविष्य में) इस अरण्य को लोग नैमिषारण्य कहेंगे।

वाल्मीकि रामायण उत्तरकांड 19, 15 से ज्ञात होता है कि यह पवित्र स्थली गोमती नदी के तट पर स्थित थी, जैसा कि आज भी हैं- 'यज्ञवाटश्च सुमहानगोमत्यानैमिषैवने'। 'ततो भ्यगच्छत् काकुत्स्थ: सह सैन्येन नैमिषम्' (उत्तरकांड 92, 2) में श्रीराम का अश्वमेध यज्ञ के लिए नैमिषारण्य जाने का उल्लेख है। रघुवंश 19,1 में भी नैमिष का वर्णन है- 'शिश्रिये श्रुतवतामपश्चिम् पश्चिमे वयसिनैमिष वशी'- जिससे अयोध्या के नरेशों का वृद्धावस्था में नैमिषारण्य जाकर वानप्रस्थाश्रम में प्रविष्ट होने की परम्परा का पता चलता है।

कालकोश

विजयेन्द्र कुमार माथुर[14] ने लेख किया है ..कालकोश (AS, p.177) विष्णु पुराण 4,24,66 के अनुसार कालकोश जनपद में संभवत: गुप्तकाल के पूर्व मणिधान्यकों का राज्य था, 'नैषध नैमिषक, कालकोशकाञ जानपदान् मणिधान्यकवंशा भोक्षयन्ति'. निषद (पूर्व मध्य प्रदेश) तथा निमिषारण्य (मध्य उत्तर प्रदेश) के साथ उल्लेख होने से कालकोश की स्थिति उत्तर प्रदेश के दक्षिण या मध्य प्रदेश के पूर्वोत्तर भाग में अनुमेय है.

गोमती नदी

विजयेन्द्र कुमार माथुर[15] ने लेख किया है ...2. गोमती नदी (AS, p.302) = उत्तर प्रदेश की प्रसिद्ध नदी है जो बीसलपुर (जिला पीलीभीत) की झील से निकलकर पूर्वी उत्तर प्रदेश में गंगा में मिल जाती है. यह अवध की प्रसिद्ध नदी है.

रामायण काल में गोमती कौशल देश की सीमा के बाहर बहती थी क्योंकि वाल्मीकि अयोध्या कांड 49,8 में वर्णित है कि वनवास के लिए जाते समय श्रीराम ने गोमती को पार करने से पहले ही कौशल की सीमा को पार कर लिया था-- 'गत्वा तु सुचिरंकालं तत: शीतवहां नदीम्, गोमतीं गोयुतानूपामतरत्सागरंगमाम्'-- इस वर्णन में गोमती को शीतल जल वाली नदी बताया गया है तथा इसके तट पर गौवों के समूहों का उल्लेख है. बाल्मीकि ने गोमती को सागरगामिनी कहा है क्योंकि गंगा में मिलकर नदी अंततः सागर में ही गिरती है.

राम ने वन की यात्रा के समय प्रथम रात्रि तमसा तीर पर बिताकर अगले दिन गोमती और स्यंदिका (=सई) को पार किया था-- 'गोमतीं चाप्यतिक्रम्य राघव: शीघ्रगै हर्ये:, मयूरहंसाभिरुतांततार स्यंदिकां' अयोध्या कांड 49,11. रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने भी बन जाते समय भारत को गोमती पार करते बताया है-- 'तमसा प्रथम दिवस कारिवासू, दूसर गोमतितीर निवासू'-- अयोध्या कांड.

महाभारत में भी गोमती का उल्लेख है-- 'लंघती गोमती चैव संध्या त्रिसोतसी तथा, एताश्चान्याश्च राजेन्द्र सुतीर्था लोकविश्रुता:' सभा.9,23. 'ततस्तीर्थेषु पुण्येषु गोमत्या: पांडवानृप, कृताभिषेका: प्रददुर्गाश्च वित्तं च भारत'. वन पर्व है 94,2. इस उल्लेख में नैमिषारण्य (=नीमसार, जिला सीतापुर उत्तर प्रदेश) गोमती नदी के तट पर बताया है, जो वस्तुतः ठीक है. नैमिषारण्य का वन पर्व 94,1 में उल्लेख है. भीष्म पर्व 9,18 में अन्यान्य नदियों में गोमती का उल्लेख है-- 'गॊमतीं धूतपापां च वन्दनां च महानदीम'. श्रीमद् भागवत 5,19,18 में गोमती का वर्णन है-- 'दृषद्वती गोमती सरयू'.. विष्णु पुराण में गोमती तट को पवित्र कहा गया है तथा उसे तप: स्थली माना है-- 'सुरम्ये गोमती तीरे स तेपे परमं तप:' 1,15,11.

प्राचीन साहित्य में

यजुर्वेद 21/18 में काम्पील (काम्पिल्य) , ब्राहमणग्रंथों में कौषीतकि ब्राहमण26/5 मन्त्र में , "नैमिषीय" छान्दोम्य उपनिषद् मन्त्र में नैमिषाराण्य का वर्णन है। प्राचीन काल में ऋषि मुनियों ने जहाँ अनेक आश्रम बनाये हुए थे। वर्तमान में यह नीमसर कहलाता है और एक महत्वपूर्ण तीर्थ है।

External links

References

  1. Roshen Dalal (2011). Hinduism: An Alphabetical Guide. p. 86.
  2. Mahipal Arya, Jat Jyoti, August 2013,p. 15
  3. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur,p.509
  4. ततॊ नैमिष कुञ्जं च समासाद्य कुरूद्वह, ऋषयः किल राजेन्द्र नैमिषेयास तपॊधनाः, तीर्थयात्रां पुरस्कृत्य कुरुक्षेत्रं गताः पुरा (III.81.92)
  5. 173 पृथिव्यां नैमिषं पुण्यम अन्तरिक्षे च पुष्करम, तरयाणाम अपि लॊकानां कुरुक्षेत्रं विशिष्यते (III.81.173)
  6. ततश च नैमिषं गच्छेत पुण्यं सिद्धनिषेवितम, तत्र नित्यं निवसति बरह्मा देवगणैर वृतः (III.82.53); नैमिषं परार्थयानस्य पापस्यार्धं परणश्यति, परविष्टमात्रस तु नरः सर्वपापैः परमुच्यते (III.82.54); तत्र मासं वसेद धीरॊ नैमिषे तीर्थतत्परः, पृथिव्यां यानि तीर्थानि नैमिषे तानि भारत (III.82.55); अभिषेककृतस तत्र नियतॊ नियताशनः, गवामयस्य यज्ञस्य फलं पराप्नॊति भारत, पुनात्य आ सप्तमं चैव कुलं भरतसत्तम (III.82.56); यस तयजेन नैमिषे पराणान उपवासपरायणः, स मॊदेत सवर्गलॊकस्थ एवम आहुर मनीषिणः, नित्यं पुण्यं च मेध्यं च नैमिषं नृपसत्तम (III.82.57)
  7. तस्यां देवर्षिजुष्टायां नैमिषं नाम भारत, यत्र तीर्थानि देवानां सुपुण्यानि पृथक पृथक (III.85.4)
  8. कुरवः सहपाञ्चालाः शाल्वा मत्स्याः सनैमिषाः, कॊसलाः काशयॊ ऽङगाश च कलिङ्गा मगधास तदा (VIII.30.60)
  9. आ पाञ्चालेभ्यः कुरवॊ नैमिषाश च; मत्स्याश चैवाप्य अद जानन्ति धर्मम, कलिङ्गकाश चाङ्गका मागधाश च; शिष्टान धर्मान उपजीवन्ति वृथ्धाः (VIII.30.75
  10. पुष्करं च प्रभासं च नैमिषं सागरॊदकम, देविकाम इन्द्र मार्गं च स्वर्णबिन्दुं विगाह्य च, विबॊध्यते विमानस्थः सॊ ऽपसरॊभिर अभिष्टुतः (XIII.26.9)
  11. मतङ्ग वाप्यां यः सनायाद एकरात्रेण सिध्यति, विगाहति हय अनालम्बम अन्धकं वै सनातनम (XIII.26.31); नैमिषे सवर्गतीर्थे च उपस्पृश्य जितेन्द्रियः, फलं पुरुषमेधस्य लभेन मासं कृतॊदकः (XIII.26.32)
  12. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.509
  13. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.509
  14. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.177
  15. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.301