Fog
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Fog (फोग) is a small shrub found in Thar desert in India and Pakistan, also in Armenia, Azerbaijan, and Turkey.
Variants of name
- Phog (फोग)
- Calligonum polygonoides (केलिगोनम पॉलीगोनोइडिस
- Orta (in old Arabic poetry) (List of place names in Turkey)
- फोगड़ा
- फोगाली
- तूरनी
Character of plant
It is usually 4 feet to 6 feet high but occasionally may reach even 10 feet in height with a girth of 1 to 2 ft. This plant is referred to as orta in old Arabic poetry. It commonly grows on dry sandy soils and on sand dunes. It is very hardy and being capable of growing under adverse conditions of soil and moisture. It is frost hardy. It produces root suckers and is easily propagated by cutting and layering. [1]
Distribution
It is found from arid and semi-arid areas of Thar desert in India and Pakistan at the east to the Goravan Sands State Reservation in Armenia, Azerbaijan (Nakhichevan), and Turkey (Aralykh, Igdir). It is becoming increasingly rare due to the demand for its roots, which are used to make charcoal. Overgrazing and sand mining are also having an effect (Tadevosyan, 2001).
Uses
Its charcoal is used to melt iron. Its flowers, known as phogalo in Rajasthani, are used to prepare rayata. The plant is fed to cattle. It is an important part of the habitat for semi-desert wildlife.[2]
Jat Clans
- Phogat (फोगाट)
- Fogat (फोगाट)
- Fogawar (फोगावर)
- Fogawat (फोगावट)
- Fogya (फोग्या)
- Faug (फौग)
- Phog (फोग)
- Phoge (फोगे)
फोग का परिचय
मरुस्थल का झाड़ी नुमा पौधा: फोग रेगिस्तान में पाया जाने वाला झाड़ी नुमा पौधा है जिसकी ऊंचाई 4 से 6 फीट तक हो सकती है परंतु कभी-कभी 10 फीट भी हो जाती है. यह थार के रेगिस्तान में भारत और पाकिस्तान में मुख्य रूप से पाया जाता है. इसके अलावा आर्मीनिया, अजरबैजान और तुर्की में भी मिलता है. यह मरुस्थल में पाई जाने वाली उपयोगी झाड़ी है. फोगड़ा को वनस्पति विज्ञान की भाषा केलिगोनम पॉलीगोनोइडिस के नाम से जाना जाता है. यह केलिगोनेएसी कुल का सदस्य है. इसमें फरवरी मार्च के महीने में फूल आते हैं और मार्च के अंत तक या अप्रैल मध्य तक पक जाते हैं. एक पौधे से 4 किलो तक बीज प्राप्त हो सकता है. इसको कॉपीस पद्धति से अथवा कलम लगाकर विकसित किया जासकता है. स्थानीय भाषा में इसको फोगाली, तूरनी आदि नामों से भी पुकारा जाता है.
विलुप्ति के कगार पर: खेती के तरीकों में बदलाव से मरूस्थल की पहचान फोग लुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है। पहले जिन स्थानों पर फोग बहुतायात से उगता था, उन स्थानों पर अब फोग नजर ही नहीं आत है. मरूप्रदेश वासियों के लिए संजीवनी के रूप में काम आने वाले फोग का हर जगह महत्व था लेकिन खेती में मशीनों के अन्धाधुन्ध उपयोग ने फोग को विलुप्ति के कगार पर पहुंचा दिया है. पहले जब गांव में थोडी दूरी पर ही फोग की झाडियों की हरियाली नजर आ जाती थी. चैत्र में इन पर नई पत्तियां और फूल आने से मनोरम दृश्य होता था. लोग इसे खाद्यान्न के रूप में तो काम लेते हैं इसकी पत्तियां पशुओं के चारे एवं तना जलाऊ लकडी के रूप में भी काम में लेते. लेकिन अब यह सब बीते जमाने की बात हो गया है. अधिकांश इलाकों में फोग की विदाई हो चुकी है. इस के विलुप्त होने को देखते हुए इस को बचाने के लिए इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज (आईयूसीएन) की रेड डाटा बुक में सम्मिलित किया गया है.
उपयोग
- इसकी जड़ों का उपयोग लुहारों द्वारा हथियार बनाने के लिए कोयला निर्माण हेतु किया जाता है. फोग की लकड़ी का उपयोग चारकोल बनाने में किया जाने के कारण इसके पौधे समाप्ति की ओर हैं.
- इसके फूल को फोगला कहा जाता है जिसका उपयोग रायता बनाने में किया जाता है. इसके फूल को सुखाकर फोगला बनाया जाता है जिसका रायता बनता है. यह रायता गर्मी में बहुत ही ठंडा और टेस्टी होता है.
- इस पौधे की पत्तियों को ऊंट बहुत पसंद करते हैं. फोग की पत्तियों को सुखकर बनाये गए चारे को ल्हासू कहते हैं जो बहुत पौष्टिक चारा माना जाता है.
- फोग झाड़ी के पत्तियों से निकाला गया रस आकलेटेक्स के विष के प्रतिरोधी के रूप में माना जाता है.
- यह रेगिस्तान में टीलों के स्थिरीकरण और इसके फैलाव को रोकने में भी सहायक है.
- इसके फूलों का उपयोग आग से जलने पर दवा के रूप में किया जाता है.
- इसकी जड़ों का सत्व कत्थे के साथ मिलाकर लेने से गले की खराश दूर होती है.
- इसका जलीय पेस्ट अफीम के नशे को दूर करने तथा बिच्छू का जहर उतारने के लिए एक एंटी डॉट के रूप में काम आता है.
- इसका सत्व टाइफाइड के निवारण में काम आता है.
- इसकी काढे को जानवरों के मूत्र की समस्याओं के निवारण में प्रयोग किया जाता है.
- इसकी कलियां दही के साथ लेने से लू के आघात से बचा जा सकता है.
- इसके काढ़े से कुल्ले करने से मसूड़ों की सूजन कम हो जाती है.
फोगला का रायता
थार रेगिस्तान में फोग के फूल 'फोगला' का रायता बहुत ही प्रसिद्ध है। इस रायते के पीछे एक वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि फोग के फूलों के बने रायते की तासीर ठंडी होती है, जो रेगिस्तान में लू से बचाती है और शरीर में पानी की कमी नहीं होने देती है। राजस्थान के खाने में इसका अहम स्थान होने के साथ-साथ यह यहां की संस्कृति से भी विशेष रूप से जुड़ा हुआ है। यहां फोग को लेकर एक कहावत भी प्रचलित है-
- "फोगले रो रायतो, काचरी रो साग
- बाजरी री रोटड़ी, जाग्या म्हारा भाग।"
राजस्थान अपनी भौगोलिक परिस्थितियों और जलवायु के लिए काफी फेमस है. ऐसे में यहां उगने वाले हर एक पेड़, पौधों का भी औषधीय महत्व है. ऐसी ही एक झाड़ी है ‘फोग’ जिसकी गहरी जड़ों से लेकर फूल और टहनियों का विशेष महत्व है. बावजूद इसके यह औषधीय झाड़ी आज अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद कर रही है..... ऋतु चौधरी
फोग का पर्यावरण की दृष्टि से महत्व: फोग की जड़ें बहुत गहरी होती हैं, जो रेगिस्तान में धोरों को बांधने का काम करती है. इसकी पत्तियां टूट-टूट कर जमीन पर गिरती है और मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती है. रेगिस्तान की विषम परिस्थितियों में उगकर यह क्षेत्र के पर्यावरणीय संतुलन में अहम भूमिका निभाता है. फोग का पौधा अत्यंत सूखे और पाले दोनों ही परिस्थितियों में जीवित रह सकता है, इसकी यही खासियत ही इसे थार के अनुकूल बनाती है. पर्यावरणीय दृष्टि से इतना महत्वपूर्ण होने के बाद भी राजस्थान में धीरे-धीरे फोग की झाड़ियां लगातार खत्म होती जा रही है......मरूस्थल का मेवा अपना अस्तित्व खोता जा रहा हैं....ऋतु चौधरी
फोग का पेड़
फोगड़े का पेड़ आज भी दो जगह संरक्षित है. वांकल माँ विरात्रा (बाड़मेर) का जो ओण है वहाँ पर और जसनाथ जी के मुख्य मन्दिर कतरियासर (बीकानेर) का ओण. यहां पर काफी मात्रा में आपको फोगड़े के पेड़ देखने को मिल जाएंगे. इतना बड़ा फोग का पेड़ बनना एक दुर्लभ चीज है.
पेड़नुमा फोगड़े का फोटो: रेगिस्तान की धरती से विलुप्त होता 'फोगड़ा' है। दरख़्त का रूप लिए हुए। बीकानेर संभाग में सिर्फ बीकानेर के कुछ गांवों में दर्शन होते हैं। इस पेड़नुमा फोगड़े का फोटो बाड़मेर के संतोष जी गोदारा के सौजन्य से साभार प्राप्त किया है। फ़ोटो सवाऊ मूलराज, गिड़ा, बाड़मेर की है। फ़ोटो क्रेडिट: संतोष गोदारा, बाड़मेर।
इतिहास में फोग
प्राचीन नागवंशी लोग पेड़ पौधों अथवा जानवरों को अपना विशिष्ठ प्रतीक चिन्ह मानते थे। वर्तमान नें अधिकांश नागवंशी जातियां जाटों में शामिल हो गई हैं। जाटों की एक प्रमुख गोत्र का नाम फोगाट है जो संभवतः नागवंशियों की संतान हैं जो फोग को अपना प्रतीक चिन्ह मानते थे। फोगाट जाट हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में पाए जाते हैं।
एकबार की बात है, बीकानेर के राजा रायसिंहजी के भाई पीथळ नांव के ख्यातनांव कवि को दिल्ली बादशाह अकबर ने बुरहानपुर भेजा और वहां के सूबेदार बनाए गए। देस से ज्यादा दिन बहार रहने के कारण देश की याद आई। एक दिन वे तफरी कर रहे थे। अचानाक उनको फोग दिख गया तो वे बोले :
- तूं सैं देसी रूंखड़ो, म्हे परदेसी लोग।
- म्हानै अकबर तेड़िया, तूं यूं आयो फोग।।
राजस्थानी भाषा में फोग की महिमा
फोग री जड़ भी ऊंडी। बंतळ करता लोग कैवै कै फोग-खेजड़ा पताळ रो पाणी पीवै। खोदता जावो, पण आं री जड़ नीं खूटै। फोग बिरखा रै पाणी सूं ई जीवतो रैय सकै। गरमियां में हर्यो रैवै। इं रा जड़-बांठ सांगोपांग बळीतो। इणरा पत्तां नै ल्हासू कैवै। गाय, भैंस, बकरी, भेड अर ऊँट ल्हासूं कोड सूं खावै। इण बांठ रा फूलां नै फोगलो कैयीजै। फोगलै रो रायतो बणै लिज्जतदार। इण रायतै री तासीर ठण्डी। सरीर री गरमी रो बैरी। बैदंग में इण बांठ रो खासो नांव। लू रो ताव उतारण सारू रामबांण। डील माथै इणरा हर्या पानका नाखो अर लू रो ताव उतारो। लकवै रै रोग्यां रो इलाज भी फोग सूं हुवै। मरीज नै उघाड़ो कर`र मांचै सुवावै। मांचै नीचै सूं फोग रै पत्तां री भाप दिरीजै। बैद बतावै कै इणसूं लकवो ठीक हुवै। फोग रै फळ नै घिंटाळ कैवै। घिंटाळ डांगरां रो लजीज चारो। घिंटाळ ऊँटां नै भोत भावै। जे खोड़ में तिसाया मरो, फोग रा पानका चाबो। तिरस नै जै माताजी री। फोग धोर्यां रो चूल्हो दोय तरियां सूं बाळै। एक तो लकड़ी सूं अर दूजो पानकां, घिंटाळ अर बळीतै रै बिणज सूं। इणी कारण मुरधर रै लोकजीवण में फोग री मोकळी महिमा। बैसाख री तपती लूवां में हर्यो कच्च रैवै। खारा खाटा ल्हासू खाय'र छाळ्यांक् मोकळो दूध देवै। बैसाख में गाय-भैंस रो दूध सूक ज्यावै, पण छाळ्यां धीणो बपरावै। इण सारू लोक में कैबा चालै-
- 'फोगलो फूट्यो, मिणमिणी ब्याई।
- भैंस री धिरियाणी, छाछ नै आई।'
नोट - छाळी अर मिणमिणी बकरी रा पर्याय है।
फोगलै रै रायतै सारू भी लोक में कैबा है-
- 'फोगलै रो रायतो, काचरी रो साग।
- बाजरी री रोटड़ी, जाग्या म्हारा भाग।'
फोग की कहावतें - फोग आलो ई बळै, सासू सूदी ई लड़ै।
कहावत में कहा गया है कि जिस प्रकार फोग की लकड़ी गीली होने पर भी आग पकड़ लेती है, उसी प्रकार सास सीधी हो तब भी अधिकार पूर्वक बहू को फटकार लगा ही देती है. मौका मिलने पर असली स्वभाव उजागर हो ही जाता है.
- लूआं रा लपरका
- अर
- आंधी रा झपरकां सूं आयगी
- फोग रै मूंडै फेफी,
- फेरूं ई ऊभो है थिर
- मरुधरा माथै
- सींव रै रुखाळै सो अड़ीजंत।
- तिरकाळ तावड़ै सूं
- बुझावै आपरी तिरस
- लीलीछम कूंपळा बण जावै
- किणी ऊंट री जुगाळी
- अर बीज बधावै-
- रायतै रौ स्वाद।
- मन में कठै है खोट ?
- सींव रा रुखाळा ई लेवै
- जिणरी ओट।
- जोग लियोड़ो सो फोग
- दुनिया नैं देवै
- गिरस्थी चलावण रो गुरुमंतर
- अर
- संतां नैं सीख।
फोग उपनाम के व्यक्ति
- एंडर्स फोग रैसमुसेन: डेनमार्क के प्रधानमंत्री एंडर्स फोग को नाटो में प्रमुख नाटो के नेताओं ने एंडर्स फोग रैसमुसेन को गठबंधन का नया महासचिव नियुक्त किया है. [3]
- डॉ. बिल फोग - छह फीट, सात इंच वाकई लंबे कद के शख्स हैं, मगर उनकी नेकनामी इससे कई गुना ऊंची है. गरीबी और बीमारी से जंग में इनकी जेहनियत, नुमाइंदगी और विनम्रता ने अनमोल भूमिका निभाई है. विश्व स्वास्थ्य के क्षेत्र में डॉक्टर बिल एक असाधारण शख्स हैं. उन्होंने चेचक के उन्मूलन के लिए एक नई रणनीति बनवाने में अग्रणी भूमिका निभाई है. यह वही बीमारी है, जिसने सिर्फ 20वीं सदी में 30 करोड़ लोगों की जान ले ली थी.[4]
- Phileas Fogg: Fictional character of the book "Around the World in Eighty days", Phileas Fogg of London and his newly employed French valet Passepartout attempt to circumnavigate the world in 80 days. Phileas Fogg is the protagonist in the 1872 Jules Verne novel Around the World in Eighty Days. An inspiration for the character was the real round-the-world travels of the American writer and adventurer William Perry Fogg.
- William Perry Fogg (27 July 1826 – 8 May 1909) was an American adventurer and author and an inspiration for Phileas Fogg in the 1873 novel Around the World in 80 Days.
Further reading
- Kaul, R. N. (1963). Need for afforestation in the arid zones of India. La-Yaaran vol 13.
- Ghosh, R. C. (1977). Hand Book on Afforestation Techniques. Dehradun.
- Gupta, R. K. & I. Prakasah. (1975). Environmental Analysis of the Thar Desert. Dehradun.
- Tadevosyan, T. L. (2001). On the ecology of the joint weed-like calligonum (Calligonum polygonoides L., Dicotyledones, Polygonaceae). Proceedings of Republican Youth Scientific Conference: The Future of Ecological Science in Armenia. Yerevan. pp. 35-42. (In Russian)
- Tadevosyan, T. L. (2007). The role of vegetation in microhabitat selection of syntopic lizards, Phrynocephalus persicus, Eremias pleskei and Eremias strauchi from Armenia. Amphibia-Reptilia 28(3) 444-48.
External links
- फोग रो छंद, रचनाकार: गिरधर दान रतनू "दासौड़ी"
- 'लुप्त हो रही फोग झाड़ी, संरक्षण नहीं किया तो हो जाएगी समाप्त', दीपक व्यास, राजस्थान पत्रिका, 26.4.2019
- जानिए क्या होता है फोग - मरू क्षेत्र का मेवा
References
- ↑ L R Burdak (1982): Recent advances in desert afforestation, Dehradun, p.56
- ↑ L R Burdak (1982): Recent advances in desert afforestation, Dehradun, p.56
- ↑ डेनमार्क के महामहिम प्रधानमंत्री श्री एंडर्स फोग रास्मुसेन की भारत यात्रा के दौरान हस्ताक्षरित समझौते
- ↑ Live हिन्दुस्तान असाधारण बिल फोग