Pallu Rana
Pallu Rana (1375 AD) (पल्लू राणा) was chieftain of Suhag Gotra and father of Kod Khokhar. Kod Khokhar was father of Suhag Rana who was originator of Suhag Gotra. He was chieftain of a place called ‘Kod Khokhar’ in his name in Mewar region of Rajasthan. He founded Pallu Kot after his father named Pallu Rana.
History
Kod Khokhar lived at Udaipur and after sometime he reached Marwar and constructed fort at Pahalkot (Pallukot) in memory of their chieftain named Pallu. They occupied Pallukot and Dadrewa areas. Pahalu or Pall was title of Rana. Their ancestors were Vira Rana and Dhira Rana had ruled over the land of Medapat prior to this.[1]
इतिहास
पंडित अमीचन्द्र शर्मा[2]ने लिखा है - [p.33]: कोड खोखर नामका सरदार उदयपुर रियासत में रहता था। वह चौहान संघ में था और वहाँ से चलकर ददरेड़े नामक गाँव में आ बसा। बाद में वह पल्लूकोट में आ बसा। पल्लूकोट और ददरेड़ा दोनों मारवाड़ में हैं।
[p.34]: कोड खोखर के 4 पुत्र हुये – 1. मान, 2. सुहाग, 3. देसा, 4. दलाल
- मान की संतान मान गोत्र के जाट कहलाए,
- सुहाग की संतान सुहाग गोत्र के जाट,
- देसा से देसवाल और
- दलाल से दलाल जाट गोत्र प्रचलित हुआ।
सुहाग गोत्र के विख्यात जाट ने मातनहेल गाँव बसाया। जो अब जिला रोहतक में है। मातनहेल गाँव के सुहाग गोत्री जाटों की वंशावली निम्नानुसार है:
- 1 वीर राणा (1300 ई.),
- 2 धीर राणा (1325 ई.),
- 3 पल्लू राणा (1350 ई.),
- 4 कोड खोखर राणा (1375 ई.),
- 5 सुहाग (1400 ई.),
- 6 बाह (1425 ई.),
- 7 खुतेसा (1450 ई.),
- 8 खोखू (1475 ई.),
- 9 मैयल (1500 ई.),
- 10 महन (1525 ई.),
- 11 रत्न (1550 ई.),
- 12 बालू (1575 ई.),
- 13 कैंबो (1600 ई.),
- 14 नासी (1625 ई.),
- 15 मालम (1650 ई.),
- 16 सहवाज़ (1675 ई.),
- 17 बाग्घो (1700 ई.),
- 18 कल्ला (1725 ई.),
- 19 महासिंह (1750 ई.),
- 20 आलम (1775 ई.),
- 21 हठिया (1800 ई.) ,
- 22 दुल्लो (1825 ई.),
- 23 साहिब सुख (1850 ई.),
- 24 नत्थन सिंह जैलदार (1875 ई.),
- 25 रतिया (1900)
यह मानकर की रतिया लेखक का समकालीन होने से वर्ष 1900 ई. से एक पीढ़ी का काल 25 वर्ष मानते हुये उपरोक्त पीढ़ियों की काल गणना की जावे तो वीर राणा का काल लगभग 1300 ई. आता है।
References
- ↑ Thakur Deshraj: Jat Itihas, pp. 596-97
- ↑ Jat Varna Mimansa (1910) by Pandit Amichandra Sharma, p.33-34
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