Parasa

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Paras (पारस) = Iran (इरान) is a country located in West Asia, known previously as Persia.

Origin

Variants

Jat Gotras

History

पारस

विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ...पारस (AS, p.549) ईरान या फारस का प्राचीन भारतीय नाम है. पारस निवासियों को संस्कृत [p.550]: साहित्य में पारसीक कहा गया है. रघुवंश 4,60 और अनुवर्ती श्लोकों में कालिदास ने पारसीकों और रघु के युद्ध और रघु की उन पर विजय का चित्रात्मक वर्णन किया है, 'भल्लापवर्जितैस्तेषां शिरोभिः श्मश्रुलैर्महीं। तस्तार सरघाव्याप्तैः स क्षौद्रपटलैरिव (4.63) आदि. इसमें पारसीकों के श्मश्रुल शिरों का वर्णन है जिस पर टीका लिखते हुए चरित्रवर्धन ने कहा है--'पाश्चात्या: श्मश्रूणि स्थापियित्वा केशान्वपन्तीति तद्देशाचारोक्ति:'अर्थात ये पाश्चात्य लोग सिर के बालों का मुंडन करके दाढ़ीमूछ रखते हैं. यह प्राचीन ईरानियों का रिवाज था जिसे हूणों ने भी अपना लिया था.

कालिदास को भारत से पारस देश को जाने के लिए स्थलमार्ग तथा जलमार्ग दोनों का ही पता था--'पारसीकांस्ततो जेतुं प्रतस्थे स्थलवर्त्मना । इन्द्रियाख्यानिव रिपूंस्तत्त्वज्ञानेन संयमी' (4.60)

पारसीक स्त्रियों को कालिदास ने यवनी कहा है--'यवनीमुखपद्मानां सेहे मधुमदं न सः । बालातपं इवाब्जानां अकालजलदोदयः (4.61)

यवन प्राचीन भारत में सभी पाश्चात्य विदेशियों के लिए प्रयुक्त होता था यद्यपि आद्यत: यह आयोनिया (Ionia) के ग्रीकों की संज्ञा थी. कालिदास ने 'संग्रामस्तुमुलस्तस्य पाश्चात्यैरश्वसाधनैः । शार्ङ्गकूजितविज्ञेयप्रतियोधे रजस्यभूथ् (4.62) में पारसीकों को पाश्चात्य भी कहा है. इस पद्य की टीका करते हुए टीकाकार, सुमिति विजय ने पारसीकों को 'सिंधुतट वसिनो मलेच्छराजान्' कहा है जो ठीक नहीं जान पड़ता क्योंकि रघु. 4,60 में (देखें ऊपर) रघु का, पारसीकों की विजय के लिए स्थलवर्त्म से जाना लिखा है जिससे निश्चित है कि इनके देश में जाने के लिए समुद्रमार्ग भी था. पारसीकों को को कालिदास ने 4,62 (देखें ऊपर) में अश्वसाधन अथवा अश्वसेना से संपन्न बताया है.

मुद्राराक्षस 1,20 में 'मेधाक्ष: पंचमो-अश्मिन् पृथुतुरगबलपारसीकाधिराज:' लिखकर, विशाखदत्त ने पारसियों के सुदृढ़ अश्वबल की ओर संकेत किया है. कालिदास ने प्राचीन ईरान के प्रसिद्ध अंगूरों के उद्यानों का भी उल्लेख किया है--'विनयन्ते स्म तद्योधा मधुभिर्विजयश्रमं । आस्तीर्णाजिनरत्नासु द्राक्षावलयभूमिषु (4.65).

विष्णु पुराण 2,3,17 में पारसीकों का उल्लेख इस प्रकार है-- 'मद्रारामास्तथाम्बाष्ठा:, पारसीका दयास्तथा'.

ईरान और भारत के संबंध अति प्राचीन हैं. ईरान के सम्राट दारा ने छठी सदी ईसा पूर्व में पश्चिमी पंजाब पर आक्रमण करके कुछ समय के लिए वहां से कर वसूल किया था. उसके नक्शे-रुस्तम तथा बहिस्तां से प्राप्त अभिलेखों में पंजाब को दारा के साम्राज्य का सबसे धनी प्रदेश बताया गया है. संभव है गुप्त काल के राष्ट्रीय कवि कालिदास ने इसी प्राचीन कटु ऐतिहासिक स्मृति के निराकरण के लिए रघु को पारसीकों पर

[p.551] विजय का वर्णन किया है. वैसे भी यह ऐतिहासिक तथ्य है कि गुप्त सम्राट महाराज समुद्रगुप्त को पारस तथा भारत के पश्चिमोत्तर अन्य प्रदेशों से संबद्ध कई राजा और सामंत कर देते थे तथा उन्होंने समुद्रगुप्त से वैवाहिक संबंध भी स्थापित किए थे. आठवीं सदी ई. के प्राकृत ग्रंथ गौडवहो (गौडवध) नामक काव्य में कान्यकुब्ज नरेश यशोवर्मन की पारसीकों पर विजय का उल्लेख है.

See also

External links

References