Bhaddilapura
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Bhaddilapura (भद्दिलपुर) is mentioned in Jainagrantha Antakritadashanga-Sutra as capital of King named Jitashatru. There is mention of a forest Shrivana here. [1] Bhaddalapura (भद्दलपुर) is another name for Bhaddilapura: the capital of Malaya.
Variants
- Bhaddilapura भद्दिलपुर (AS, p.655)
- Bhaddalapura (भद्दलपुर)
- Shrivana श्रीवन = दे. Bhaddilapura भद्दिलपुर, (p.923)
History
Bhaddalapura (भद्दलपुर) is another name for Bhaddilapura: the capital of Malaya. It is said that this place was visited by Ariṭṭhanemi and was the birth place of the tenth Tīrthaṅkara Sitalnath. Bhaddilapura is identified with Bhadia (Jaunpur district) , a village near Kukuhā hill about nine km from Hunterganja (Hunterganj, Chatra district, Jharkhand) in the Hazaribagh District. According to Jaina Paṭṭāvalīs of the Mūlasaṃgha the first twenty-six pontificates belong to Bhaddalapura. After that, the 27th pontiff transferred his seat from Bhaddalapura to Ujjain. According to the four Paṭṭāvalīs, Bhaddalapura is identified with Bhilsa in Malwa while the fifth, which is the oldest, tells us that it was in the South. It is reasonable to identify this place with Bhadrika or Bhadrāvatī located near Ellora. It was one of the early capitals of the Imperial Rāṣṭrakūṭas. [2][3]
भद्दिलपुर
भद्दिलपुर (AS, p.655):अंतकृतदशांग-सूत्र जैन ग्रंथ में इस नगर को जितशत्रु नामक राजा की राजधानी बताया गया है. यहां स्थित श्रीवन नामक उद्यान का भी उल्लेख है. यह शायद भद्दिय (Bhaddiya) ही है. [4]
अश्वबोधतीर्थ
विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है ... अश्वबोधतीर्थ (AS, p.51) भृगुकच्छ के निकट एक जैन तीर्थ जिसका उल्लेख विविधतीर्थ-कल्प में है। जिन सुव्रत अश्वबोधतीर्थ प्रतिष्ठानपुर से आए थे और इस स्थान के निकट वन में उन्होंने राजा जितशत्रु को उपदेश दिया था। जितशत्रु उस समय अश्वमेधयज्ञ करने जा रहे थे। जैन धर्म में दीक्षित होने के उपरांत उन्होंने यहाँ एक चैत्य बनवाया जो अश्वबोधतीर्थ कहलाया था। जैन ग्रंथ प्रभावकचरित में अश्वबोध मंदिर का इतिहास वर्णित है। इसमें इसका अशोक के पौत्र संप्रति द्वारा जीर्णोद्वार कराए जाने का उल्लेख है। 1184 ई. के लगभग रचे गए सोमप्रभासूरि के ग्रंथ कुमारपाल प्रतिबोध में भी इस तीर्थ में हेमचंद्रसूरि द्वारा प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण करवाने का उल्लेख है। इस तीर्थ को शकुनिकाविहार भी कहते थे।
जाट इतिहास
ठाकुर देशराज[6] लिखते हैं--हमें ऐसा भी मालूम होता है कि जरत्कुमार से कई पीढ़ी आगे चलकर के (एक दर्जन से भी अधिक) जटट्,जिट नामों के साथ ही जित नाम भी आता है। क्या यह संभव नहीं कि जरत्कुमार के वंशजों ने जितारि और जितशत्रु नाम जाटों से शत्रुता रखने के कारण रखे? और यह शत्रुता शायद उस समय जाकर मिटी जबकि ज्ञातृवंशी (कुछ लोगों ने ज्ञातृ को ही आगे चलकर जात अथवा जाट माना है - ले.) भगवान महावीर के पिता ने अपनी छोटी बहन का विवाह सम्बन्ध इन लोगों (जितशत्रु) के साथ कर दिया, जो कि पीछे जाकर के जरत्कुमार के वंशज भगवान महावीर के अनुयायी हो गये।
External links
References
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.655
- ↑ Source: Jainworld: Jain History (h)
- ↑ https://www.wisdomlib.org/definition/bhaddalapura
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.655
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.51
- ↑ Jat History Thakur Deshraj/Chapter II,p.84