Somdeo Shyoran

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Somdeo Shyoran

Somdeo Shyoran (born:1946) is a Teacher and Social worker from Kayamsar village in Ramgarh tehsil of Sikar district in Rajasthan. He provides free career guidance and financial help to needy students.

सोमदेव श्योरान का परिचय

दिनांक 21.11.2024 को लेखक का मंडावा शहर में एक शादी समारोह में सम्मिलित होने का अवसर मिला. उस दौरान मेरी मुलाकात सोमदेव श्योरान जी से हुई जिनकी समाज सेवा के बारे में मैंने पहले बहुत सुन रखा था. 79 वर्ष की आयु में भी हमेशा समाज सेवा के लिए सक्रिय रहते हैं. यद्यपि अब उनको कानों से कम सुनाई देने लगा है.

आपको पुस्तकें पढ़ने और पढ़ाने का बहुत शौक है. गांव में घर पर पुस्तकों का अच्छा संग्रहण कर रखा है. गांव के बच्चों को पुस्तकें पढ़ने के लिए भी प्रदान करते हैं. आप आर्य समाज से काफी प्रभावित हैं. देश के विभिन्न भागों में पर्यटन कर विभिन्न स्थानों की जानकारी लेने और वहां का जीवन और संस्कृति आदि समझने में बहुत रुचि रखते हैं. आप अभी तक कन्याकुमारी, रामेश्वरम, द्वारका, पुरी, तिरुपति, मुंबई, दिल्ली, कोणार्क मंदिर, सोमनाथ मंदिर, जयपुर, बीकानेर, उदयपुर, आगरा, गोवा, नागपुर, त्रिवेंद्रम, जोधपुर, इलाहाबाद, चेन्नई, एलोरा, औरंगाबाद आदि स्थानों का भ्रमण कर चुके हैं.

उनके ही शब्दों में उनकी जीवनी के बारे में नीचे लिख रहा हूँ.

जन्म

जन्म: मेरा जन्म ग्राम कायमसर जिला सीकर में पौष माह विक्रम संवत 2002 (तदनुसार जनवरी 1946) में पिता श्री सांवल राम श्योरान एवं माता शिवकोरी देवी के घर में हुआ. मेरा ननिहाल हरसावा है. मेरे बचपन का नाम घासी राम था. परन्तु विद्यालय में सोमदेव नाम रख दिया. मेरे जन्म से 10-12 वर्ष पूर्व ही मेरे दादा, ताऊ, पिता व चाचा ने अपनी मेहनत से ईंट और चूना तैयार करवा कर चौक-बंद हवेली बनवाली थी. हवेली की चिनाई मिट्टी से की गई थी. केवल प्लास्टर चूने से किया गया था. उस वर्ष 1946 ई. (विक्रम संवत 2002) में जून अथवा जुलाई में भारी बरसात हुई थी. जिससे उत्तर साइड की आधी हवेली ढह गई थी. बाद में इसे अगली गर्मियों में ईंट और चूने से फिर बनाई गई थी. उस समय गांव में पक्के मकान के केवल 8-10 घरों में ही थे.

शिक्षा

शिक्षा: जब मैं 4-5 वर्ष का हुआ और समझने लगा तब गांव के पीपल के पेड़ के चारों तरफ गोल बने हुए गट्टे पर एक गुरु जी 15-20 छात्रों को पढ़ाते थे जिसमें रसूलपुरनारसरा से भी छात्र पढ़ने के लिए आते थे. मैंने सन् 1957 में पांचवी कक्षा राजकीय प्राथमिक विद्यालय रसूलपुर से पास की थी. 1956 में ही फतेहपुर से चूरू रेलगाड़ी शुरू हुई थी. उच्च प्राथमिक शिक्षा जांगिड़ वैदिक विद्यालय फतेहपुर से व हाई स्कूल विज्ञान-गणित विषय लेकर चमड़िया स्कूल फतेहपुर से 1962 में 51.33% अंकों से उत्तीर्ण की थी.

1962-63 में चमड़िया महाविद्यालय फतेहपुर में प्रि युनिवर्सिटी (PUC) कक्षा विज्ञान-गणित अंग्रेजी माध्यम से पढ़ा. भौतिकी में पूरक आ गई जो जयपुर जाकर महाराजा कॉलेज में देकर आया था. पूरक में फिर असफल हो जाने पर मैंने पढ़ना छोड़ दिया. केवल 6 महीने बेरोजगार रहा. इस दौरान खेती का कार्य करता रहा.

परिवार

परिवार: 23.05.1963 को मेरी शादी सिंगारी देवी बाबल जसवंतपुरा बास (घांघू) चुरू जिले में हुई एवं गौना 2 वर्ष बाद हुआ जब मेरी आयु 19 वर्ष 4 माह तथा पत्नी की आयु 17 वर्ष के लगभग थी. मेरी पत्नी बड़ी सुंदर, सुशील, कठोर परिश्रमी और गुणवान थी जिससे मेरे दो पुत्री मनोहरी व सरोजिनी (अध्यापिका) तथा दो पुत्र देवेंद्र तथा धर्मेन्द्र का जन्म क्रमशः 1973, 1976, 1978 व 1980 में हुआ था.

शासकीय सेवा

शासकीय सेवा: जनवरी 1964 से राष्ट्रीय रोहा उन्मूलन कार्यक्रम (National Trachoma Control Programme) के अंतर्गत स्वास्थ्य कार्यकर्ता 80 रूपया मासिक वेतन पर लग गया. मुझे रोजाना घर से 10-15 किलोमीटर दूर बच्चों की आंखों में दवा डालने के लिए दीनवा, डाबडी, ढाकाली, बेसवा, बागडोदा, बालोद भाकरा, बलोद व बलोद छोटी जाना पड़ता था और शाम को वापस घर आना पड़ता था. रामगढ़ चिकित्सालय के अधीन मैनें यह कार्य केवल 6 महीने तक किया.

1964-65 में बगड़ (झुंझुनू) से एसटीसी की. 3.07. 1965 को राजकीय प्राथमिक विद्यालय रुल्यानी में अध्यापक पद पर प्रथम नियुक्ति हुई. रुल्यानी, तीडवा, ठेडी, लावंडा की प्राथमिक स्कूलों में साढ़े 9 वर्ष पढ़ाया. बाद में रोरू बड़ी, कायमसर, गोड़िया बड़ा की उच्च प्राथमिक कक्षाओं में गणित, विज्ञान, संस्कृत व अंग्रेजी पढ़ाई. शाम को बच्चों को फुटबॉल खिलाता था. कायमसरढांढण की सेकंडरी व सीनियर सेकेंडरी स्कूलों में पढ़ाया.

समाज सेवा

सामान्य ज्ञान की परीक्षा, ग्रामीण प्रतिभावान परीक्षा, भारत सरकार की छात्रवृत्ति परीक्षा बालकों से दिलवाई. बालकों ने लगातार इन परीक्षाओं में स्थान प्राप्त किया. उच्च प्राथमिक विद्यालय खेलकूद प्रतियोगिता (वार्षिक) में मैं फुटबॉल, खो-खो की टीम तैयार करके ले जाता था. पिताजी की स्मृति में 8-10 वर्ष हिंदी व अंग्रेजी की शुद्ध लेखन प्रतियोगिता 11, 14, 16, 18 आयु वर्ग में करवाई.

ग्रामीण स्कूलों में प्रयोगशालाओं का अभाव होता था. बच्चों को विज्ञान के सिद्धांत समझाने के लिए स्वयं के खर्च पर प्रयोग सामग्री लाकर विज्ञान के प्रयोग करवाए.

सेवानिवृत होने के 2 वर्ष बाद जन सहयोग प्राप्त कर वर्ष 2003 व 2020 में फुटबॉल, वॉलीबॉल लंबी कूद 100, 200, 400, 800, 1500, 4 X 100 मीटर रिले दौड़ की ग्राम स्तर की ओपन प्रतियोगिता का आयोजन करवाया. वर्ष 2023 की माध्यमिक परीक्षा में श्री नारुका स्कूल कायमसर के 7 बच्चों के 90% से अधिक अंक आने पर उनको ₹2000-2000 देकर व प्रशस्ति-पत्र (अंग्रेजी) देकर सम्मानित किया.

ग्रामीण महिला शिक्षण संस्थान सीकर को ₹16000, ग्रामीण छात्रावास फतेहपुर को ₹5000 जाट छात्रावास सीकर को ₹1000 लगभग 15-20 वर्ष पूर्व दे चुका था. गांव कायमसर व आसपास के गांव रसूलपुर, नारसरा हरदयालपुर के लोगों के घरों व खेतों का निशुल्क बटवारा करता रहता हूं. अब भी बालक-बालिकाओं को निशुल्क (दसवीं कक्षा तक) पढाता रहता हूं. सादा भोजन ग्रहण करता हूं. धूम्रपान, शराब व मांस का सेवन नहीं करता हूं.

दिनांक 6.11.2024 से 25.11.2024 तक करोड़पति फकीर के नाम से प्रसिद्ध प्रोफेसर घासीराम जी वर्मा गणितज्ञ, चिंतक, समाज सुधारक की जीवनी नारूका स्कूल कायमसर व राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय रसूलपुर, लावंडा, गोडिया बड़ा की स्कूलों में छात्रों और अध्यापकों को सुना चुका हूँ.

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

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