Talk:Surashtra
लेखक:लक्ष्मण बुरड़क, IFS (Retd.), जयपुर |
18.12.2013: भोपाल - जूनागढ़: शाम 17.45 बजे हबीबगंज स्टेशन भोपाल से जबलपुर-सोमनाथ एक्सप्रेस से रवाना हुए।
19.12.2013: भोपाल - उज्जैन - नागदा - मेघनगर - दाहोद - गोधरा - बड़ोदा - आनंद - नाडियाड - मणिनगर - अहमदाबाद - वीरमगाम - सुरेंद्रनगर - थान - राजकोट - गोंदल - वीरपुर - जेतलसर - जूनागढ़ (17 बजे )
19.12.2013: जूनागढ़
जूनागढ़: जूनागढ़ पहुँचने का निर्धारित समय 15.50 बजे था। रेल विलम्ब से पहुंची। स्टेशन पर डिप्टी रेंजर अमित वाणिया वाहन लेकर आये थे। उसने बताया कि अशोक-शिलालेख 6 बजे शाम बंद हो जाता है इसलिये हम सीधे अशोक-शिलालेख पहुंचे।
ऊपरकोट किले पर दरवाजे में घुसते ही नवाबी समय के दो तोप, जिनके नाम नीलम और माणक हैं, उनको देखा। यहाँ से नीचे जूनागढ़ शहर का बहुत सुन्दर दृश्य दिखता है। पास ही रानी राणक देवी का महल देखा। इस महल से गिरनार बहुत सुन्दर दिखता है।
अशोक-शिलालेख: तत्पश्चात अशोक-शिलालेख देखा। गिरनार पहाड़ से पहले ही यह रास्ते में पड़ता है। यहाँ अशोक मौर्य का लगभग 250 ई.पू. का शिलालेख है। इसमें अशोक की राजाज्ञा लिखी है। पाली भाषा में उपदेश दिया गया है कि महिलाओं और जानवरों के प्रति दयाभाव रखा जावे। भिखारियों को भीख दी जावे। रुद्रदमन ने इसी शीला पर 150 ई. सन में संस्कृत में शीला लेख लिखवाया था। स्कंदगुप्त मौर्य शासक ने 450 ई. के लगभग शिलालेख लिखवाया था जिसमे पास ही स्थित सुदर्शन झील के किनारे बाढ़ से टूटने का विवरण है। अभी इस नाम की कोई झील नहीं है। ये तीनों शिलालेख एक बड़ी चट्टान पर अंकित किये गए हैं जिसको एक भवन में पुराततव विभाग द्वारा संरक्षित किया गया है।
ऊपरकोट का किला: ऊपरकोट का किला 319 ई. पूर्व में चन्द्रगुप्त द्वारा बनाया गया था। माना जाता है कि 7-10 वीं शदी तक इस किले को भुला दिया गया था और यह जंगल से ढ़क गया था।
बौद्ध गुफाएं: रास्ते में ही बौद्ध गुफाएं स्थित हैं। यहाँ दो बहनों अड़ी-कडी के नाम से बावड़ियाँ हैं जो बहुत गहरी हैं। सीढयों वाला प्राचीन नवघन कुआं भी है। यहाँ पर भवनाथ शिवमंदिर है। दामोदर कुण्ड, राधा दामोदर जी - श्री रेवती-बल्देव जी का प्राचीन मंदिर और रेवती कुण्ड है।
गिरनार पहाड़ के लिए दश हजार सीढियाँ बनी हुई हैं। हम गिरनार की चोटी पर नहीं जा सके क्योंकि यह दिनभर का कार्यक्रम है। हमें बताया गया कि गिरनार पहाड़ के ऊपर दत्तात्रेय और अम्बाजी माता के मंदिर हैं। नीचे की सीढ़ियों से दूरबीन से मंदिरों के दर्शन करवाये जाते हैं। सीढयों से उतरते हुए हमने एक हरा ताजा फल खाया जो पहले कभी नहीं देखा था। हरे आवरण के अंदर सफ़ेद पिस्ता जैसा खाने का स्वादिष्ट बीज होता है।
शाम हो गयी थी सो हम 6.30 बजे जूनागढ़ के फोरेस्ट रेस्ट हाउस पहुंचे। वहाँ चाय लेकर सासन गिर के लिए रवाना हो गए। वन विश्राम गृह अच्छा और साफ-सुथरा था। यहाँ के पहाड़ों में सागौन और मिश्रित घने वन हैं। यहाँ के वन में शेर प्रायः दिखाई देता है।
वन और जन जीवन : सासन गिर की जूनागढ़ से दूरी 62 किमी है। सड़क ख़राब होने से हमें डेढ घंटा सासन गिर पहुँचने में लगा सो इस समय का सदुपयोग हमारे साथ डिप्टी रेंजर अमित वाणिया से जानकारी प्राप्त करने में किया और जनजीवन की जानकारी ली।
यहाँ अच्छे घने वन हैं परन्तु इनकी कटाई नहीं होती है और कोई कूप नहीं निकलता है। जूनागढ़ मुख्य वन संरक्षक के अधीन सात वन मंडल हैं। टिमरू (तेंदू पत्ता) नाम मात्र का ही होता है। संयुक्त वन प्रबंध उत्तरी गुजरात में लागू किया गया है जिसे मनड़ी कहा जाता है। इस क्षेत्र का मुख्य आकर्षण गिर अभयारण्य है। दीवाली के समय गुजराती लोग भ्रमण पर निकलते है। गिर में उस समय भारी भीड़ देखने को मिलती है। उस समय कुछ लोग तो रात को गाड़ियों में ही सो जाते हैं। अमिताभ बच्चन का एक विज्ञापन गुजरात के बारे में प्रसारित किया गया था। तब से पर्यटकों की भीड़ बढ़ गयी है।
इस क्षेत्र में पटेल, अहीर, मुसलमान, ब्राह्मण, लुहार आदि जातियां हैं। खेती से अच्छी आमदनी होती है। मुख्य फसल यहाँ अब कपास हो गयी है। कुछ साल पहले तक मूंगफली की फसल होती थी जो अब कम हो गयी है। कपास के खेतों में काम करने के लिए मध्य प्रदेश के अलीराजपुर और झाबुआ जिलों के मजदूर आते हैं। अन्य फसलों में तूअर, अरण्ड, गेहूं, आदि हैं। सिंचाई का साधन कुए हैं। इनमे पानी 10 फुट की ऊंचाई पर ही मिल जाता है। पीने के लिए नर्मदा का पानी आता है। दूध-दही पर्याप्त होता है। यहाँ की गिर किस्म की गाय प्रसिद्ध है।
सासन गिर: रात्रि 8 बजे सासन गिर पहुंचे। अमित वाणिया डिप्टी-रेंजर ने हमें यहाँ सासन गिर के उस समय ड्यूटी पर तैनात डिप्टी-रेंजर संदीप पम्पानिया (मोब:9824083536) से परिचय करवाया और वह वापस जूनागढ़ चला गया। सासन गिर में हमारी रुकने की व्यवस्था वन विश्राम गृह के कमरा नंबर 24 में की थी। कमरा बहुत बड़ा है और व्यवस्था बहुत अच्छी थी। खाने की डायनिंग हाल में सामूहिक व्यवस्था थी। हमने खाना खाया और सो गए। खाना बहुत अच्छा था। बिल सिर्फ 70 रू. था। अधिकारीयों के गैर शासकीय कार्य के लिए किराया 120 रू. तथा अन्य के लिए 1500 रू. निर्धारित है। हमें लायन देखने के लिए सुबह 6 बजे तैयार रहने के लिए बताया गया। दिन भर की यात्रा में थके होने से अच्छी नींद आई। रात्रि में वन विश्राम गृह के पास ही लायन की दहाड़ सुनाई दे रही थी।
20.12.2013: सासन गिर
सुबह 6.30 बजे लायन देखने राऊण्ड पर निकले। साथ में एक वन पाल और जिप्सी के शासकीय ड्रायवर महेंद्र शेकवा थे। निकलते ही एक मेल लायन ठीक सामने सड़क पर मिला जिसका ट्रेकर्स ने पता लगाया था। लायन सामने से आकर जिप्सी के बाएं तरफ, जिधर मैं बैठा था, से दो फुट की दूरी से पीछे निकल गया। थोड़ी दूर पर 2 फीमेल लायन और दो बच्चे मिले। चीतल अदि अनेक जानवर भी दिखाई दिए। साढ़े नौ बजे राऊण्ड से लौटकर नाश्ता किया और देवलिया लायन सफारी देखने निकले। इसमें हम तेंदुआ, लायन, चीतल अदि जानवर बहुत नजदीक से देख पाये। सासन गिर के वनपाल संदीप पम्पानिया ने अच्छा सहयोग किया। सासन गिर एक सुखद यादगार यात्रा रही। ड्रायवर महेंद्र सेकवा ने वह जगह दिखाई जहाँ पर अमिताभ बच्चन की सूटिंग की गयी थी। सेकवा उपनाम में मेरी जिज्ञासा थी। जब ड्रायवर से पूछा तो बताया कि वह कठी क्षेत्रीय है।
20.12.2013: सासन गिर - तलाला - सोमनाथ
सासन गिर से हमने टैक्सी करली थी। 13.30 बजे हम सोमनाथ के लिए रवाना हुए। लगभग 4 बजे सोमनाथ पहुंचे। सासन गिर से सोमनाथ की दूरी 40 कि.मी. है। रास्ते में खेती का अवलोकन किया। गन्ना, नारियल, केला, बाजरा, जवार अदि की अच्छी लहराती फसलें देखी। आम के यहाँ काफी बगीचे हैं। यहाँ का केशर आम बहुत प्रसिद्ध है।
20.12.2013: सोमनाथ
सोमनाथ - सोमनाथ में हमें वन विश्राम गृह जाना था जहाँ के प्रभारी श्री समेजा भाई (मोब-9909298171) हैं। यह कुम्हारवाड़ी में है। सोमनाथ मंदिर पास ही पड़ता है। हम सोमनाथ मंदिर 5.30 बजे पहुँच गए। लगा हुआ समुद्र का किनारा है। यह बहुत सुन्दर जगह है। सनसेट देखा। 6.30 बजे शाम सोमनाथ मंदिर में प्रवेश किया। सात बजे आरती होती है। समीजा भाई हमें अंदर ले गए और वी. आई. पी. दर्शन करवाये। आरती के बाद लाइट और साऊंड प्रोग्राम होता है। इसमें सोमनाथ का इतिहास बताया जाता है। हमने गुजराती खाने की इच्छा व्यक्त की तो समीजा भाई हमें लीलावती होटल ले गए। यहाँ सेल्फ सर्विस है, खाना मात्र 55 रु में मिलता है। खाना अच्छा था। रात्रि विश्राम सोमनाथ वन विश्राम गृह में किया।
21.12.2013: सोमनाथ - वेरावल - चोरवाड - मांगरोल - माधवपुर - पोरबंदर - भोगत - बरड़िया - द्वारका - मीठापुर - ओखा - बेट द्वारका - मीठापुर
सोमनाथ से सुबह 8 बजे द्वारका के लिए रवाना हुए। सोमनाथ से वेरावल 5 किमी की दूरी पर है। यहाँ मछलियों का बड़ा बाजार है। सड़क के किनारे से समुद्र में अनेक नावें दिखाई देती हैं। मछली की गंध तकलीफ देह है। रास्ते में चोरवाड़ गाँव पड़ता है। यह धीरू भाई अम्बानी का गाँव है। यहाँ पर देखने लायक स्थानों में समुद्र का किनारा और म्यूजियम हैं। पोरबंदर गांधीजी का जन्म स्थान है। यह पुराना शहर है। कृष्ण के मित्र सुदामा यहीं के रहने वाले थे। इसलिए प्राचीन समय में इसे सुदामापुरी भी कहा गया है। हमने शहर के बीच स्थित सुदामा का मंदिर देखा। परिसर अच्छा है परन्तु ज्यादा गतिविधियां नहीं हैं। कुछ लोग पेड़ों के नीचे आराम करते दिखाई दिए। यह जगह सुदामा चौक नाम से जानी जाती है। पुजारी ने मंदिर का फ़ोटो नहीं लेने दिया सो हमने बाहर से मंदिर का फ़ोटो लिया।
मेरीन नेशनल पार्क के डायरेक्टर जामनगर, आर. डी. कम्बोज (Mob:09825049427) ने हमारे रुकने की व्यवस्था मीठापुर स्थित टाटा केमिकल्स के मीठा महल गेस्ट हाउस मीठापुर में की थी। मीठापुर द्वारका से 19 कि.मी. की दूरी पर बेट द्वारका के रास्ते में ही स्थित है। हम 2 बजे दोपहर मीठापुर पहुंचे। गेस्ट हाउस में सामान रखा और आगे की यात्रा पर बेट द्वारका के लिए निकल पड़े। यह मीठापुर से करीब 10 किमी दूर है। ओखा पोर्ट पर पहुँच कर यहाँ से फेरी से बेट द्वारका जाना पड़ता है। लगभग आधा घंटा लगता है और किराया है 10 रु.। बेट द्वारका पहुंचकर द्वारकाधीश मुख्य मंदिर पहुंचे। यहाँ मंदिर 4 बजे खुलता है और खुलने से पहले पुजारी यात्रियों को सम्बोधित करता है। वह यहाँ का इतिहास बताता है। पुजारी ने बताया कि कृष्ण के मित्र सुदामा 'भेंट' करने ले लिए यहाँ आये थे। भेंट से बेट और इसप्रकार इसका नाम बेट द्वारका हो गया। परन्तु वास्तव में 'बेट' का अर्थ 'टापू' होता है इसलिए यह बेट द्वारका कहलाता है। यह भी बताया गया कि कृष्ण ने यहाँ शंख नाम के राक्षस का संहार किया था इसलिए इसका नाम शंखोद्धार हो गया।
शाम साढ़े पांच बजे लौटकर मीठापुर में टाटा केमिकल्स गेस्ट हॉउस में रात्रि विश्राम किया।
22.12.2013: मीठापुर - द्वारका, द्वारका - जामनगर
सुबह 8 बजे तैयार होकर गेस्ट हॉउस रिशेपनिस्ट से चेक आउट का कहा तो उसने बताया कि नाश्ता तैयार है नाश्ता करके ही आप जावें। चलते समय बिल पूछा तो बताया कि यहाँ खाना-पीना और रुकना फ्री है। कहा कि आप तो रजिस्टर में टीप लिखदें। हमने रजिस्टर में लिखा - 'यहाँ का आतिथ्य सत्कार देखकर मैं भाव विभोर हूँ'।
8 बजे मीठापुर से रवाना होकर 20 मिनट में द्वारका पहुँच गए। द्वारका में हमें रेंज आफिसर पी. टी. सियानी (मो:08980029328) मिल गए। उनको साथ लेकर मंदिर गए। रणछोड़ मंदिर में सियानी ने वी. आई. पी. दर्शन करवाये। आज रविवार होने से भीड़ ज्यादा थी। मंदिर में दर्शन से पहले जब खड़े थे तो देखा कि मध्य प्रदेश के हरदा से भी कई महिलायें आईं थी जो राजस्थानी में कृष्ण के 'सांवरिया भक्ति-गीत' गा रही थी। इसी बीच हमने अन्य सहायक मंदिर भी देखे जो उसी परिसर में स्थित हैं। कृष्ण की पटरानियों के मंदिर हैं। रणछोड़ मंदिर पर धजा पहराना एक महत्व्पूर्ण गतिविधि है। यह धजा 52 गज या 40 मीटर की होती है। धजा पहराते ही ऊपर से एक नारियल गिरता है जिसके टुकड़े का प्रसाद शुभ फलदाई माना जाता है। मुझे भी नारियल का एक टुकड़ा मिला। दर्शन और आरती में भाग लेने के बाद बाहर से फ़ोटो लिया और 'दिव्या द्वारका' नामक पुस्तक खरीदी। यह अच्छी बात है कि मंदिर में एक पुस्तकालय है जहाँ पुस्तकें बिकती हैं। बाहर आकर हम गोमती घाट गए। कहते हैं कि चारों धामों के दर्शन करने के बाद यहां के दर्शन करने से विशेष पुण्य मिलता है।
द्वारका से प्रातः 10 बजे जामनगर के लिए रवाना हुए। रास्ते में एक जगह आती है जाम खंभालिया। इस स्थान से वाडीनगर 14 कि.मी. है और उसके आगे 3 कि.मी. दूरी पर नराडा टापू है। नराडा पहुँच कर वहाँ के मेरीन अफसर हसैन भाई (मोब: 09909969557) से संपर्क किया। यहाँ पहुंचते-पहुंचते दोपहर का एक बज गया था। हमें बताया कि अब समुद्र में हाई टाइड आने लगे हैं और अब समुद्र में ज्यादा अंदर तक नहीं जा सकते। हारुन नामक एक दैनिक वेतन भोगी गाइड ने साथ जाकर मेरीन लाइफ दिखाया। वहाँ पर विश्राम गृह भी है। हमें लंच यहीं करवाया गया। आज काफी पर्यटक लोग थे क्योंकि आज इतवार था। अधिकांस गुजराती थे। स्कूल कालेज के बच्चे भी थे। सभी को मुफ्त खाना खिलाया जा रहा था। पूछने पर बताया कि उनको शिक्षा विकास और प्रसार की एक योजना के अंतर्गत शासन से फंड मिलता है जिसमें नेचर एजुकेशन और केम्प आदि के जरिये पर्यावरण जागरूकता पैदा की जाती है। यहाँ गुजराती जनजीवन की झलक भी देखने को मिलती है। केम्प की एक बीमार महिला का इलाज एक डाक्टर द्वारा मुफ्त में किया गया। वह डाक्टर परिवार सहित टापू देखने आया था। यह भी हमें महसूस हुआ कि गुजरातियों में आपस में अधिक भाई चारा है। एक दूसरे की मदद के लिए तत्पर दिखे।
नराडा टापू से लौटते में रास्ते के देखा कि दोनों तरफ खेतों में नमक बनाया जाता है। समुद्र का खारा पानी 5-7 महीनों तक खेतों में फैला दिया जाता है। बाद में इनसे नमक बनाया जाता है। पास ही नमक बनाने का कारखाना है। वाड़ीनगर से नराड़ा जाने का पहले रास्ता नहीं था परन्तु अब 3 कि.मी. सड़क का निर्माण आयसर कंपनी द्वारा किया गया है। पहले यहाँ नाव से आना पड़ता था। नराड़ा के समुद्र में कई कंपनियों यथा एस्सार, इन्डियन आयल, रिलायंस आदि के पेट्रोल लाने के डिपो हैं जो समुद्र के अंदर हैं। वहाँ से पाइप लाइनों से तेल कारखानों में लाया जाता है जिसका यहाँ प्रोसेसिंग किया जाता है। हम शाम 4 बजे जामनगर पहुँच गए। जामनगर के पास थेबा नामक गाँव में मेरीन नेशनल पार्क का विश्राम गृह है जहाँ पर हम रुके। आज जुकाम हो गया सो यहाँ आराम करना बेहतर समझा।
23.12.2013: जामनगर
प्रोग्राम के अनुसार हमें जामनगर से 10 कि.मी. दूरी पर स्थित पिरोटन नामक टापू में जाना था परन्तु बताया गया कि इस समय समुद्र में हाई-टाइड जल्दी आ जाती हैं इसलिए प्रातः 2 बजे रवाना होना पड़ेगा और जल्दी लौटना पडेगा। साथ ही रिस्क भी थी कि समय पर नहीं लौट पाएं इसलिए हमने पिरोटन टापू का प्रोग्राम निरस्त कर दिया। सुबह 6.30 बजे उठ कर हम खिजडिया पक्षी विहार देखने गए। यह जामनगर से 12 किमी की दूरी पर है। यह अद्भुत पक्षी विहार है। यहाँ 257 प्रजाति के पक्षी पाये जाते हैं। यहाँ पर खारा और मीठा पानी साथ-साथ मिलते हैं इसलिए जैव विविधता बढ़ जाती है। यहाँ स्कूली बच्चों का नेचर केम्प भी चल रहा था। यहाँ पर बच्चों को वन्य प्राणी और पक्षियों से परिचय कराया जाता है। वन्य प्राणियों की फ़िल्में भी दिखाई जाती हैं। इसके लिए सरकार से बजट प्राप्त होता है। यहाँ के स्टाफ का रुख पर्यटकों के लिए बहुत सौहारदपूर्ण लगा। हमारे साथ एक हट्टा-कट्टा युवा वनरक्षक जाड़ेजा नाम का था जो पूरे समय साथ रहा और अच्छी तरह से समझाया। सासन गिर से लायी टैक्सी वापस भेज दी। सासनगिर से जामनगर की कुल तय की दूरी 610 कि.मी.।
आज सुबह थेबा गाँव (जामनगर) से 8 बजे रवाना हुए। थेबा गाँव से स्टेशन 12 कि.मी. दूर है। ओखा - रामेश्वरम एक्सप्रेस से जामनगर से 9.30 बजे अहमदाबाद के लिए यात्रा प्रारम्भ की। वन मंडल अधिकारी गांधीनगर श्री व्यास ने अहमदाबाद स्टेशन पर गाड़ी भेज दी। वहाँ से गांधीनगर 30 कि.मी. दूर पहुंचे। वन चेतना केंद्र के वन विश्राम गृह टायगर डेन में व्यवथा थी। हम पहुंचे ही थे कि हमारे बैच के साथी तमिलनाडु से विनोद कुमार भी वहीँ पहुंचे थे। वह भी गुजरात के ट्यूर पर थे और मेरे द्वारा की गयी यात्रा के रिवर्स ऑर्डर में। रात्रि विश्राम टायगर डेन वन विश्राम गृह में किया।
25.12.2013: गांधीनगर
सुबह 8 बजे देसाई बीड़ी कंपनी के कमलेश भाई ने गाड़ी भिजवाई थी। वह लेकर हम वैष्णव देवी मंदिर पहुंचे। यह मूल वैष्णव देवी मंदिर की प्रतिकृति है, जो 15 साल पहले बनना प्रारम्भ किया गया था। देवी के दर्शन करने पर एक सिक्का दिया जाता है। इस निर्देश के साथ कि इसको बेशकीमती वस्तुओं के साथ रखा जावे, यह बहुत फलदाई होगा।
अड़ालज बाव - तत्पश्चात हम सन 1498 में पत्थर से निर्मित बावड़ी देखने गए जिसे अड़ालज बाव कहते हैं। यह वाघेला सरदार वीर सिंह ने अपनी पत्नी रुदा की याद में बनवाई थी। यह आर्किटेक्चर का एक सुन्दर नमूना है। यह पांच मंजिल की है। अभी भी इसमें 20 फुट पानी रहता है। यहाँ पर अमिताभ बच्चन का एक विज्ञापन फिल्मांकित हुआ था जिसके बाद में इसकी प्रसिद्धि बहुत बढ़ गयी है। यहाँ काफी पर्यटक आते हैं।
गांधी आश्रम साबरमती - हम साबरमती में गांधीजी का आश्रम देखने गए। यह ह्रदय-कुञ्ज नाम से जाना जाता है। गांधीजी 1915 - 1930 तक यहाँ रहे थे। गांधीजी ने भारत के स्वतंत्रता के लिए अनेक आंदोलन यहीं से संचालित किये थे। गांधीजी के जीवन की अनेक झलकियां और विविध चित्र हैं। उनका और कस्तूरबा गांधी के रहने का कमरा विद्यमान है। साबरमती नदी के किनारे स्थित इस आश्रम के लान में पहुंचे तो हमारी 1976 -77 की यादें ताजा हो गयी। उस समय हम दूरसंचार इंजीनियर के रूप अहमदाबाद में प्रशिक्षण ले रहे थे। हमारा होस्टल इस आश्रम के पास ही स्थित था और हम प्रति रविवार यहं लॉन में आकर कम्पीटिशन की तैयारी किया करते थे। मेरा बाद में भारतीय वन सेवा में चयन हो गया। उस समय के मेरे साथी सम्प्रति कोठरी बाद में राजस्थान प्रशासनिक सेवा में आये थे और उनका देहांत लगभग 15 साल पहले हो चुका है।
अक्षरधाम - शाम को 7 बजे हम अक्षर-धाम मंदिर देखने गए। वहाँ बहुत भीड़ थी। सुरक्षा भी बहुत मजबूत थी। कुछ वर्ष पूर्व आतंकवादियों ने इस मंदिर पर हमला किया था। यहाँ कोई सामान साथ में अंदर नहीं लेजाने देते हैं। सारा सामान बाहर ही जमा किया जाता है। महिला-पुरुष की अलग-अलग पंक्तियाँ लगाई जाती हैं। मेरी पत्नी अलग लाईन में थी और मैं अलग। जब सामान रखकर पंक्ति में प्रवेश करने वाले थे तभी वहाँ मोबाइल ध्यान में आया। सुरक्षा प्रहरी ने बताया कि वापस जाकर विंडो पर जमा करावें। मैं वापस गया और सामान जमाकराकर लौटा तब अंदर मेरी पत्नी काफी देर तक दिखाई नहीं दी। उनको ढूंढने में समय लग गया। मंदिर में बहुत भीड़ थी। तब तक वहाँ का लेजर शो का समय हो चुका था सो हम नहीं देख पाये। यद्यपि हम मंदिर आराम से देख सके। मंदिर परिसर बहुत बड़ा और भव्य है। यह मंदिर स्वामी नारायण संप्रदाय का है। स्वामी नारायण मूल रूप से अयोध्या के पास छपिया गाँव के रहने वाले थे। उनका बचपन का नाम घनश्याम था। उन्होंने 29 जुलाई 1792 को गृहत्याग कर सौराष्ट्र के समुद्रतटीय गाँव लॉज में रामानंद स्वामी द्वारा स्थापित आश्रम आ गए। 20 अक्टूबर 1800 को रामानंद स्वामी ने इस सम्प्रदाय की धर्म-धुरा इनको सौंपी। बाद में ये भगवान् स्वामीनारायण नाम से प्रसिद्ध हुए। इन्होने सौराष्ट्र में अनेक समाज-सुधार के काम किये। सनातन धर्म को पुनर्स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान किया।
आज छुट्टी होने से हर जगह बहुत भीड़ थी। गुजरात में यह बड़ा अच्छा लगा कि यहाँ स्कूल-कालेजों में अध्ययन के दौरान बच्चों को अच्छा भ्रमण कराया जाता है।
26.12.2013: गांधीनगर
आज सुबह 9 बजे हमारे गुजरात कैडर के साथी जमाल अहमद खान आ गए और उनके साथ नाश्ता करने उनके शासकीय निवास में गए। उनका बंगला गांधीनगर में अक्षरधाम के पास ही स्थित है और अच्छा हराभरा है। नाश्ता कर हम अरण्य-भवन चले गए जहाँ हमारे साथी प्रधान मुख्य वन संरक्षक राजीवा से मुलाकात हुई और दिनेश मिश्रा भी मिले। दोनों ही मेरे बौचमेट हैं। अन्य साथी छविनाथ पण्डे (वन्य प्राणी) और हरी शंकर सिंह प्रवास पर होने से मुलाकात नहीं हो सकी। गुजरात में अरण्य-भवन हाल में ही बनकर तैयार हुआ है।
इंद्रोड़ा डायनोसार पार्क - तत्पश्चात हम इंद्रोड़ा डायनोसार पार्क देखने गए। यह गांधी नगर में ही 5 किमी दूरी पर स्थित है। यहाँ सभी डायनोसार प्रजातियों के मॉडल और उनका विवरण है। यहाँ बॉटनिकल गार्डन और सर्प गृह भी हैं। बच्चों के लिए काफी उपयोगी और शिक्षाप्रद है।
हम गांधीनगर से दोपहर बाद सामान ले आये और अहमदाबाद के पुराने बाजार कालुपुर, लाल दरवाजा और तीन दरवाजा घूमने गए. ये स्टेशन के पास ही हैं. वहाँ से हम स्टेशन पहुँच गए।
शाम 6.45 पर सोमनाथ-जबलपुर एक्सप्रेस से भोपाल के लिए रवाना हो गए। देशाई बीड़ी कंपनी के अशोक भाई और उनके मैनेजर कमलेश भाई स्टेशन पर सी ऑफ करने आये थे।